जनजातीय युवा गृह का अर्थ, परिभाषा, उत्पत्ति, महत्व एवं कार्य - Tribal Youth Home

जनजातीय युवा गृह का अर्थ, परिभाषा, उत्पत्ति, महत्व एवं कार्य

जनजातीय सामाजिक जीवन में युवागृह की भूमिका का उल्लेख कीजिए ।


जनजातीय युवा गृह का अर्थ

युवा गृह ( Dormitory ) जनजातीय सामाजिक संगठन में ' युवागृहों ' या युवा संगठनों का विशेष महत्त्व है । इन्हें युवा शयनागार भी कहा जाता है । जनजातीय जनजातीय समाजों में यह मनोरंजन प्रशिक्षण केन्द्र के रूप में अपना महत्त्व प्रदर्शित करते हैं।


इन गृहों में जनजातियों के अविवाहित युवक और युवतियाँ रात्रि में मिलते हैं , जहाँ वे परस्पर मनोरंजन और अपनी संस्कृति से सम्बन्धित विशेषताओं का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं । यहाँ पर नृत्य , संगीत , आमोद - प्रमोद और खेलकूद का भी प्रबन्ध रहता है । युवक-युवतियाँ रात्रि में यहाँ पर सोते भी हैं। इस कारण इन्हें शयनागार भी कहा जाता है ।


जनजातीय युवा गृह की परिभाषा ( Definition of Tribal Youth Home)

युवागृहों की परिभाषा करते हुए सुप्रसिद्ध मानवशास्त्री डॉ ० योगेश अटल ने कहा है " परिवार - निर्माण के लिए आवश्यक सीढ़ी विवाह है । विवाह पूर्व प्रणय का उदय या यौन शिक्षा देने के लिए कतिपय आदिवासी समाज में युवागृह होते हैं । " - " आदिवासी भारत ", पृष्ठ 25 विभिन्न जनजातीय समाजों में युवा - गृहों को अलग - अलग नामों से पुकारा जाता है । नागा समाज में इसे ' मारुंग और उत्तर प्रदेश की भोटिया जनजाति में रंगबंग कहा जाता है । 


बिहार की उरांव जनजाति में इसका नाम धमकुरिया है । मध्य प्रदेश के बस्तर जनपद के मुड़िया गोंडों में इसे गोंदुल कहकर पुकारा जाता है । यहाँ रात्रि में गोंदुल में अविवाहित युवक और युवतियाँ मिलती हैं और सामाजिक परम्पराओं एवं यौन सम्बन्धी अनुभवों का प्रशिक्षण प्राप्त करते हैं । छः सात वर्ष की आयु में ही इसकी सदस्यता प्राप्त हो जाती हैं । 


युवागृहों की उत्पत्ति ( Origin of Dormitory )

मानवशास्त्री एस 0 सी ० राय ( S. C. Roy ) का कहना है कि आर्थिक लाभ , संस्कृति की शिक्षा और धार्मिक कार्यों को सम्पादित करने के लिए इन युवागृहों या युवा संगठनों की स्थापना की गई थी । ख्याति प्राप्त विद्वान और प्रसिद्ध मानवशास्त्री डॉ ० डी ० एन ० मजूमदार का कहना है कि प्रारम्भ में इन संस्था का जन्म वन में हिंसक पशुओं से समाज के सदस्यों की रक्षा करने के लिए हुआ था ।


आगे चलकर इनका उद्देश्य सामूहिक जनजातीय विकास करना भी हो गया । ग्रिगसन ( Grigson ) का कहना है कि इस संस्था की उत्पत्ति का उद्देश्य अविवाहितों को रात्रि में विवाहितों से दूर रखना तथा ताकि विवाहितों की यौन क्रियाओं को बच्चे देख न सकें । अतः युवागृहों की स्थापना करके अविवाहितों को रात्रि में घर से अलग रहना अनिवार्य किया गया । 


युवा गृहों का महत्त्व एवं कार्य ( Importance and Function of Dormitory )


युवागृहों के सामाजिक महत्त्व और कार्यों को संक्षेप में निम्न प्रकार से लिखा जा सकता है -


( 1 ) सांस्कृतिक विद्यालय -

यह एक प्रकार का विद्यालय है, जहाँ जनजातियों के युवक और युवतियों को उनकी संस्कृतिक विशेषताओं से परिचित कराया जाता है । प्रमुख उद्देश्य जनजातियों के अविवाहित युवक और युवतियों को मनोरंजन की व्यवस्था करना 


( 2 ) मनोरंजन केन्द्र -

युवागृह मनोरंजन केन्द्र का भी कार्य करते हैं , क्योंकि इनका एक भी है । नृत्य और संगीत इन युवागृहों के कार्य - कलापों के प्रमुख अंग है । 


( 3 ) यौन प्रशिक्षण -

इन युवागृहों में जनजाति के अविवाहित युवक और युवतियों को सम्बन्धों की स्वन्त्रता रहती है । वे एक साथ रहते हैं और रात्रि में यहीं पर सोते हैं । वहाँ बड़े सदस्य छोटे सदस्यों को यौन शिक्षा का प्रशिक्षण देते हैं । 


( 4 ) जीवन साथी का चुनाव-

युवागृहों में रात्रि में युवक - युवतियाँ एक साथ रहते हैं और एक दूसरे को समझने का प्रयास करते हैं । परिणामतः युवागृह जीवनसाथी का चुनाव करने में सहायक सिद्ध होते हैं । 


( 5 ) मानसिक तनावों से मुक्ति-

युवागृह अपने सदस्यों को तनाव मुक्त रखने का अवसर प्रदान करते हैं । यह जनजातीय युवक - युवतियाओं की ऊर्जा और कार्य शक्ति को रचनात्मक स्वरूप प्रदान करता है । नृत्य , संगीत , उन्मुक्त प्रेम की रातें इसके सदस्यों में नवजीवन का संचार करती हैं । 


( 6 ) अनुशासन की प्रेरणा -

युवागृहों द्वारा अपने सदस्यों को अनुशासित जीवन व्यतीत करने की प्रेरणा भी दी जाती है । इस कार्य के लिए कहानियों , पहेलियों एवं चुटकलों का प्रयोग किया जाता है । एल्विन के अनुसार , " घोटुल ( युवागृह ) में बालकों की स्वच्छता , अनुशासन और कठिन कार्य के पाठ पढ़ाये जाते हैं । " श्री योगेश अटल का कहना है- " इस संस्था के द्वारा एकता की भावना को बल मिलता है और सामुदायिक कार्यों के लिए व्यक्तिगत स्वार्थं की बलि देने की शिक्षा यहाँ दी जाती है । 


उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि जनजातीय समाजों में युवा - गृहों का विशेष महत्व है । आधुनिक काल में सभ्य समाजों के सम्पर्क एवं शिक्षा के प्रचार के साथ - साथ जनजातीय समाजों में युवागृहों का महत्त्व दिन - प्रतिदिन कम होता जा रहे है और यह अपना अस्तित्व खो रहे हैं । इनको विघटित करने में महाजन, ठेकेदार, सूदखोरों और बाहरी व्यक्तियों का हाथ है । यह आर्थिक प्रलोभन देकर रात्रि में युवागृहों में ठहरते हैं और जनजातीय समाजों की भोली - भाली युवतियों का शारीरिक शोषण करते हैं । परिणामतः युवागृहों के विघटन की प्रक्रिया धीरे - धीरे प्रारम्भ हो गई है । 


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