सामाजिक मानवशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र ( Scope of Social Anthropology )
सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषाओं से यह स्पष्ट हो जाता है कि इसके क्षेत्र तथा विषय-वस्तु के बारे में विभिन्न विद्वानों ने भिन्न-भिन्न दृष्टिकोण प्रस्तुत किए हैं। अधिकांश मानवशास्त्री यह मानते हैं कि सामाजिक मानवशास्त्र यारि संस्कृति के अध्ययन से सम्बन्धित है जबकि दूसरी ओर इंग्लैण्ड के अधिकांश मानवशास्त्री इस पक्ष में हैं कि मानवशास्त्र के अन्तर्गत आदिम सामाजिक गठन सामाजिक संरचना, सामाजिक प्रक्रियाओं तथा संस्थागत व्यवहारों का ही अध्ययन " किया जाता है ।
एक अन्य मतभेद इस तथ्य को लेकर है कि सामाजिक मानवशास्त्र केवल आदिम समाजों के अध्ययन तक ही सीमित है । वास्तविकता यह है कि सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन - क्षेत्र को लेकर विभिन्न विद्वानों द्वारा जो विचार प्रस्तुत किये जाते हैं , उनमें कोई मौलिक भिन्नता नहीं है । यदि तनिक ध्यान से देखा जाय तो स्पष्ट हो जाता है कि सभी विद्वान सामाजिक मानवशास्त्र को सामाजिक संगठन, व्यवस्था तथा संस्थागत सामाजिक व्यवहारों को अध्ययन मानने ही पक्ष में हैं ।
सभी ने प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से इस तथ्य को भी स्वीकार किया है कि सामाजिक मानवशास्त्र में मुख्यतः आदिम अथवा जनजातीय समाजों का ही अध्ययन किया जाता है । इस सम्बन्ध में इवान्स प्रिचाई ने सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र से सम्बन्धित अनेक विशेषताओं को स्पष्ट किया है । इन विशेषताओं के आधार पर सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र को निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है :
( 1 ) सामाजिक मानवशास्त्र मुख्यतः आदिम समाजों का अध्ययन करता है ।
इसका तात्पर्य यह नहीं है कि इसके अन्तर्गत अन्य मानव समाजों का अध्ययन बिल्कुल भी नहीं किया जाता बल्कि अन्य मानव समाजों का अध्ययन केवल इस दृष्टिकोण से किया जाता है कि उनकी आदिम समाजों से एक तुलना की जा सके ।
( 2 ) सैद्धान्तिक रूप से सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में सभ्य और जटिल समाजों की विशेषताओं के अध्ययन को भी सम्मिलित किया जाता है लेकिन व्यावहारिक रूप से सामाजिक मानवशास्त्र आदिम समाजों के अध्ययन पर ही केन्द्रित रहता है । यह सच है कि सभ्य समाजों में भी आदिम समाज की तरह धर्म , कानून , परिवार , नातेदारी व्यवस्था तथा आर्थिक संगठन विद्यमान होता है लेकिन इनका रूप आद्रिम समाजों से इतना भिन्न है कि उनके बीच सरलतापूर्वक कोई तुलना नहीं की जा सकती ।
( 3 ) सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत मानव का एक सामाजिक प्राणी के रूप में अध्ययन किया जाता है , विभिन्न संस्कृतियों का नहीं । इसका तात्पर्य है कि सामाजिक मानवशास्त्र संस्कृति के भौतिक पक्ष के अध्ययन में अधिक रूचि नहीं लेता । आदिम मानव द्वारा बनाये गये उपकरणों , बर्तनों , कलात्मक वस्तुओं , शिल्प तथा हथियारों आदि का अध्ययन सांस्कृतिक मानवशास्त्र की विषय - वस्तु है । दूसरी ओर एक सामाजिक प्राणी के रूप में आदिम मानव एक विशेष ढंग से सामाजिक सम्बन्धों की स्थापना करता है , उसने एक विशेष सामाजिक संरचना का निर्माण किया है , तथा अनेक ऐसी संस्थाओं को विकसित किया है जो उसकी पर्यावरण सम्बन्धी आवश्यकताओं के अनुकूल है ।
( 4 ) सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र के अन्तर्गत वह सभी विशेषताएँ सम्मिलित हैं जो आदिम - मानव की सामाजिक व्यवस्था से सम्बन्धित हैं अथवा उसे बनाये रखने में योगदान करती हैं । उदाहरणार्थ जनजातीय अर्थ - व्यवस्था , जनजातीय पंचायत , कानून , विवाह , परिवार , नातेदारी , धर्म , जादू , टोटम , विधि - निषेध तथा इसी प्रकार की दूसरी सभी संस्थाएँ सामाजिक मानवशास्त्र की अध्ययन वस्तु
( 5 ) सामाजिक मानवशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र दूसरे सामाजिक विज्ञानों की तुलना में बहुत अधिक व्यापक है । इसका कारण यह है कि सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्ग संसार के प्रत्येक भाग में फैले हुए आदिम समाजों की विभिन्न व्यवस्थाओं का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है। आज जैसे - जैसे जनजातीय समूह सभ्य समाजों के सम्पर्क में आ रहे हैं , उनके सामाजिक जीवन तथा संस्थाओं में भी विविधत बढ़ती जा रही है । सामाजिक मानवशास्त्र इन सभी विविधताओं का अध्ययन करके उनके सामान्य कारणों परिणामों की खोज करने का भी प्रयत्न करता है ।
( 6 ) प्रजाति के आधार पर
प्रजाति के आधार पर आज आदिम समुदाय में भी विभाजन स्पष्ट होने लगा है। इस दृष्टिकोण से सामाजिक सामाजिक मानवशास्त्र न केवल प्रजातियों का अध्ययन और है । इस करता है की खोज दृष्टिकोण से बल्कि विभिन्न मानवशास्त्र न केवल विभिन्न प्रजातीय समूहों के बीच पायी जाने वाली समानताओं करके तथा प्रजाति से सम्बन्धित भ्रान्तियों का निराकरण करके सम्पूर्ण आदिम समुदाय को एक - दूसरे से सम्बद्ध करने का प्रयत्न करता है ।
सामाजिक मानवशास्त्र के आवश्यक अध्ययन - क्षेत्र को स्पष्ट करने के लिए केवल उन्हीं विषयों नहीं है जिनका इसके अन्तर्गत अध्ययन किया जाता है बल्कि भी समंझना आवश्यक है जिनका सामाजिक मानवशास्त्र में अध्ययन नहीं किया जाता । इसी दृष्टिकोण को लेकर सामाजिक मानवशास्त्र के वास्तविक अध्ययन क्षेत्र को समझा जा सकता है ।
( i ) सामाजिक मानवशास्त्र सम्पूर्ण संस्कृति का अध्ययन नहीं करता क्योंकि कार्य सांस्कृतिक मानवशास्त्र का है ।
( ii ) सामाजिक मानवशास्त्र सम्पूर्ण समाज का अध्ययन नहीं करता । पॉपर ( Popper ) का कथन है कि “ यदि हमें किसी वस्तु का अध्ययन करना है तो हमें उसके कुछ पक्षों का चुनाव अवश्य करना होगा । हमारे लिए यह सम्भव नहीं है कि हम सम्पूर्ण प्रकृति अथवा सम्पूर्ण विश्व का एक साथ अवलोकन कर लें अथवा उसकी विवेचना कर सकें । इसका कारण यह है कि हमारी सभी व्याख्याएँ अनिवार्य रूप से चुनाव पर आधारित होती हैं । "
( iii ) सामाजिक मानवशास्त्र किसी विशेष देश और काल से बँधा हुआ नहीं है । प्रत्येक युग और प्रत्येक स्थान पर जहाँ कहीं भी आदिम विशेषताएँ महत्वपूर्ण समझी जाती हैं , उनका सामाजिक मानवशास्त्र में अध्ययन किया जाता है ।
( iv ) अन्त में, यह ध्यान रखना भी आवश्यक है कि सामाजिक मानवशास्त्र मुख्यतः आदिम समाजों के अध्ययन से सम्बन्धित है लेकिन यह उसकी अध्ययन विषय की एक अनिवार्य सीमा नहीं है । स्पष्ट है कि सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन - क्षेत्र में उन सभी विषयों का समावेश है जो मुख्यतः आदिम समुदायों की सामाजिक संरचना , सामाजिक व्यवस्था के विभिन्न स्परूपों , सामाजिक सम्बन्ध , सामाजिक प्रक्रियाओं , संस्थागत व्यवहारों तथा सामाजिक महत्व के विश्वासों आदि से सम्बद्ध है ।
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