भारत में जनजातियों की प्रमुख समस्याएं | Major problems of tribes in India

भारत की जनजातियों की तीन प्रमुख समस्याओं का वर्णन कीजिए । Describe three major problems faced by the tribes of India.

भारतीय जनजातियों को आज अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ रहा सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक क्षेत्र में उनका विशेष शोषण हो रहा है, परिणामतः उनमें असन्तोष एवं कुण्ठा की भावना विकसित हो जाती है। जनजातीय समाजों की विभिन्न समस्याओं का वर्णन करने से पूर्व यह आवश्यक है कि जनजाति की परिभाषा एवं विशेषताओं का अध्ययन कर लें ।


जनजाति की परिभाषा ( Definition of tribe )

हॉवेल के अनुसार- " एक जनजाति यह सामाजिक समूह है जो एक विशेष भाषा अथवा बोली बोलता है तथा एक विशेष संस्कृति रखता है जो उसे दूसरी जनजातियों से पृथक करती है । यह अनिवार्य रूप में राजनैतिक संगठन नहीं है । "


गिलिन एवं गिलिन के अनुसार " स्थानीय आदिम समूहों के किसी भी संग्रह को , जो एक सामान्य क्षेत्र में रहता हो , एक सामान्य भाषा बोलता हो और एक संस्कृति का अनुसरण करता हो , एक जनजाति कहते हैं । " भारतीय संविधान में जनजाति के लिये अनुसूचित जनजाति शब्द का प्रयोग किया गया है ।


इस समय हमारे देश में जनजातियों की जनसंख्या 5 करोड़ , 16 लाख 28 हजार से भी अधिक उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर कहा जा सकता है कि जनजाति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नवत् है-

( i ) प्रत्येक जनजाति का एक निश्चित भौगोलिक क्षेत्र होता है । 

( ii ) यह अनेक परिवारों का समूह होता है । 

( iii ) जनजाति के सदस्यों द्वारा किसी सामान्य भाषा का प्रयोग किया जाता है । 

( iv ) प्रत्येक जनजाति का एक नाम होता है । 

( v ) जनजाति अन्तर्विवाही होती है । 

( vi ) प्रत्येक जनजाति के अपने धार्मिक विश्वास होते हैं । 

( vii ) जनजाति के सदस्यों में एकता की भावना पायी जाती है ।


भारत में मध्य प्रदेश , बिहार , गुजरात , राजस्थान , उड़ीसा एवं असम में जनजातियाँ पायी जाती हैं । विभिन्न मानवशास्त्रियों ने इनका भौगोलिक सांस्कृतिक एवं भाषा के आधार पर वर्गीकरण किया है । 


जनजातीय समस्याओं के कारण ( Due to tribal problems )

देश के प्रमुख मानव शास्त्रियों एवं विचारकों ने भारत में जनजातीय समस्याओं के विकसित होने के प्रमुख कारकों का उल्लेख किया है दो निम्नवत् हैं 

( 1 ) यातायात के साधनों का विकास । 

( 2 ) विदेशी मिशनरियों द्वारा जनजातियों में ईसाइयत का प्रचार । 

( 3 ) स्वतन्त्रता के पश्चात् नगरीकरण एवं औद्योगीकरण 

( 4 ) प्रशासनिक अधिकारी । 

( 5 ) राजनैतिक नैताओं का चुनाव प्रचार । 

( 6 ) दुर्गम निवास स्थानों पर जनजातियों का निवास


भारत में जनजातियों को वर्तमान में निम्न समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है -

( 1 ) सामाजिक समस्याएँ , 

( 2 ) आर्थिक समस्याएँ , 

( 3 ) सांस्कृतिक समस्याएं , 

( 4 ) स्वास्थ्य समस्याएँ , 

( 5 ) राजनैतिक एवं प्रशासनिक समस्याएँ ।


( 1 ) सामाजिक समस्याएँ -

आज जनजातीय समाज अनेक सामाजिक समस्याओं से ग्रस्त है । युवा गृह जनजातियों की एक प्रमुख संस्था थी जो मनेरंजन क्लब एवं सांस्कृतिक विशेषताओं को ग्रहण करने एवं प्रशिक्षण का कार्य करता था । सभ्य समाजों के सम्पर्क के कारण युवा गृहों का पतन हुआ है । बाहरी लोगों के सम्पर्क के कारण जनजातीय समाजों में नैतिक पतन की समस्या का उदय हुआ है ।


इनके भोलेपन और निर्धनता का अनुचित लाभ उठाकर और धन का लोभ दिखाकर बाहरी व्यक्ति विशेषकर ठेकेदार , एजेन्ट आदि इनकी महिलाओं का आर्थिक एवं शारीरिक शोषण करते हैं , जो अन्त में वेश्यावृत्ति की समस्या के रूप में विकसित होता है । वेश्यावृत्ति के कारण अनेक घातक यौन रोग इन क्षेत्रों में फैलते हैं । जनजातियों में जीवन साथी प्राप्त करने की स्वतन्त्रता रही है । बाल विवाह की कुप्रथा का इनमें अभाव था । हिन्दू समाज से सम्पर्क के कारण अब उनमें भी बाल - विवाह का प्रचलन हो गया है । 


( 2 ) आर्थिक समस्याएँ -

जनजातियों को अनेक आर्थिक समस्याओं का भी सामना करना पड़ रहा है । वास्तविकता यह है कि वे रोटी, कपड़ा और मकान जैसी जीवन रक्षक आवश्यकताओं की भी पूर्ति नहीं कर पाते । सरकारी योजनाओं का लाभ भी उन्हें नहीं मिल पाता । ठेकेदारी प्रथा के कारण वनों पर जन - जातियों के अधिकार समाप्त हो गये हैं । ठेकेदार उनका खूब आर्थिक शोषण करते हैं । और प्रातः से सायंकाल तक पशुओं के समान इनसे मजदूरी कराते हैं । और इस पर भी उन्हें पूरी मजदूरी नहीं देते ।


जनजातियों के आर्थिक शोषण का वर्णन करते । प्रसिद्ध विद्वान डॉ ० मजूमदार ने कहा है- " वे पशुओं की भाँति काम करते हैं और पशुओं के नमूने हुए की तरह दिखाये जाते हैं । और इसी तरह नमियन्त्रित भी किये जाते हैं । " जनजातियों की सरलता और निर्धनता के कारण महाजनों और सूदखोरों ने अनुचित लाभ उठाया है और उन्हें ऋणग्रस्तता के जाल में फाँस दिया है । उनकी जमीन आदि भी महाजनों और साहूकारों ने हड़प ली है । नये कानूनों के कारण वनों की भूमि पर उनका अधिकार नहीं रहा और उन्हें भूमि सम्बन्धी अधिकारों से वंचित कर दिया गया है । 


( 3 ) सांस्कृतिक समस्याएँ -

वर्तमान में जनजातीय समाजों की विभिन्न सांस्कृतिक समस्याओं की चुनौती का भी सामना करना पड़ रहा है । अनेक जनजातियाँ तो सांस्कृतिक सम्पर्क और ' पर - संस्कृति ग्रहण ' की प्रक्रिया के कारण अपनी सांस्कृतिक विशेषताओं को भी खो चुकी हैं । उनकी ललित कलाओं रीति - रिवाजों का सांस्कृतिक परम्पराओं का लाभ हो रहा है । ईसाई मिशनरियों द्वारा उनका सांस्कृतिक शोषण हो रहा है । ईसाई मत के प्रचार और धर्म परिवर्तन के कारण इन क्षेत्रों में तनाव उत्पन्न हुआ है ।


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