प्रतीकात्मकवाद क्या है? What is symbolism.

प्रतीकात्मकवाद क्या है? What is symbolism.

प्रतीकात्मक एक अत्यधिक व्यापक अवधारणा ( concept ) है जिसके अन्तर्गत सभी संकेत आ जाते हैं जिनकी सहायता से हम सामाजिक जीवन से सम्बद्ध विभिन्न विचार, भाव आदि को व्यक्त करते है । एक निश्चित प्रतीक का हम इस प्रकार व्यवहार करते हैं कि उससे दूसरे लोगों तक कुछ विशेष प्रकार के भाव अथवा विचार संचारित हो जाते हैं । इसी को प्रतीकात्मकवाद कहते हैं । निम्नलिखित विवेचना में यह बात और भी स्पष्ट हो जायेगी । 


प्रतीकात्मकवाद का अर्थ ( Meaning of Symbolism )


प्रतीकात्मकवाद प्रतीकों को व्यवहार में लाने की एक विधि या नियम की ओर संकेत करता है । इस प्रकार प्रतीकात्मकवाद का प्रत्यक्ष सम्बन्ध प्रतीकों से हैं । ' प्रतीक ' शब्द से ही स्पष्ट है कि बहुधा व्यक्ति को जो कुछ भी व्यक्त करना है , उसके समग्र वह साफ - साफ व्यक्त नहीं करता है, वरन विभिन्न चीजों तथा भावों को व्यक्त करने के लिए कुछ ऐसे चिन्हों या प्रतीकों का व्यवहार करता है जिनके माध्यम से वह अपने वास्तविक भाव की ओर देखने या सुनने वालों को संकेत करता है ।


देखने या सुनने वाला इन चिन्हों , प्रतीकों या संकेतों से ही यथार्थ की कल्पना कर लेता है । उदाहरणार्थ , एक कालाकार सांप को एक टेड़ी मेड़ी रेखा के संकेत या प्रतीक से अभिव्यक्त करता है , इसी प्रकार नृत्य में एक विशेष मुद्रा के द्वारा क्रोध, भय , अनुराग, उल्लास आदि को अभिव्यक्त किया जाता है ।


नर्तकी अपने सुख से यह नहीं कहती कि वह डर गई है , पर उसकी एक विशेष मुद्रा उसके मन के भाव को दर्शक के सामने स्पष्ट व्यक्त करती है । रोज के जीवन में भी हमें इसी प्रकार के अनेक संकेतों का दर्शन होता है उदाहरणार्थ, क्रास ( Cross ) का चिह ईसाइयों के धार्मिक जीवन का प्रतीक है और इस प्रतीक से ही ईसा मसीह के जीवन से सम्बद्ध अनेक घटनाएं स्पष्टतः व्यक्त हो जाती है ।


राष्ट्रीय झण्डा राष्ट्र के राजनीतिक जीवन का प्रतीक होता है और उसके पीछे अनेक शहीदों के बलिदान की कहानी छिपी होती है । यहां तक कि रेल लाइनों के किनारे सिग्नल पोस्ट की हरी बत्ती लाइन क्लियर का प्रतीक है जबकि लाल बत्ती रेलगाड़ी के लिए रुक जाने का संकेत है ।


इसी प्रकार मोमबत्ती की शिखा को ज्ञान ज्योति का प्रतीक माना जाता है । रेड - इण्डियनों में नीला रंग पुरुष का प्रतीक और पीला रंग श्री का प्रतीक माना जाता है । जूनी ( Zuni ) जनजातीय समाज में प्रेम , संगीत तथा तितलियों के देवताओं की प्रार्थना - छड़ियों को पीले रंग से संकेतित किया जाता है ।


इसी प्रकार गणित सम्बन्धी या लिखने सम्बन्धी चिन्हों को प्रतीकात्मकवाद के अन्तर्गत सम्मिलित किया जा सकता है क्योंकि साधारण व अनभिज्ञ व्यक्तियों के लिए इन चिह्नों का कोई अर्थ न होते हुए भी उन लोगों के लिए ये चिह्न अर्थ से भरपूर है जो कि उन चिह्नों को समझते या जानते हैं ।


इसी प्रकार बहू - देव - देवियों पर विश्वास करने वाले हिन्दु अपने जीवन के विभिन्न पक्षों के प्रतीक के रूप में विभिन्न देवी या देवताओं को मानते हैं । देवी सरस्वती विद्या की प्रतीक है , दुर्गा माता शक्ति की प्रतीक हैं , ब्रह्म सृष्टि का प्रतीक हैं , लक्ष्मी धन की प्रतीक हैं और गणेश जी सिद्धि तथा कल्याण के प्रतीक हैं । अतः स्पष्ट है कि सामाजिक जीवन में हमें कितने ही रूपों में प्रतीकात्मक वाद का दर्शन होता है । 


प्रतीकात्मक अन्तःक्रियावाद क्या है ?


व्यक्ति समाज में न तो अकेला है और न ही अकेले क्रिया करता है । एक सामाजिक प्राणी के रूप में वह दूसरों के सम्पर्क में आता है और दूसरों के साथ सम्बन्ध स्थापित करता है । व्यक्ति के विचार , भावनाएं यहाँ तक कि प्रतिक्रियाएं ( reactions ) भी इन दूसरे व्यक्तियों से संचारित ( communicate ) होती है, और दूसरों से उसे यह सब प्राप्त भी होता है ।


व्यक्ति अपने आस - पास के लोगों को उत्तेजित करता है और उसके द्वारा स्वयं भी उत्तेजित होता है । व्यक्ति की अधिकांश क्रियाएँ या व्यवहार ' सामाजिक ' होते हैं, क्योंकि वे क्रियाएं अर्थ पूर्ण ढंग से ( परिचित या अपरिचित ) दूसरे व्यक्तियों और मानव - समूहों के भूत - वर्तमान या भावी व्यवहार से सम्बन्धित तथा प्रभावित होती हैं , और उन्हीं के अनुसार उसकी ( व्यक्ति की क्रिया या व्यवहार की ) गतिविधि निर्धारित करती है ।


इसीलिए समाज के सदस्य के रूप में या सामाजिक प्राणी के रूप में व्यक्ति के द्वारा सामाजिक सन्दर्भ में अर्थात दूसरे व्यक्तियों या समूहों से सम्बन्धित रहकर तथा उनके द्वारा प्रभावित किये गये कार्य को ही सामाजिक क्रिया कहते हैं । वास्तविकता तो यह है कि समाज का प्रत्येक सदस्य दूसरे व्यक्तियों की क्रियाओं के संदर्भ में ' क्रिया ' कर रहा है, और उस ' क्रिया ' के प्रत्युत्तर (response) में दूसरे व्यक्ति भी अपनी क्रियाओं का निर्धारण कर रहें हैं ।


इसी को अन्तःक्रिया कहा जाता है । और भी स्पष्ट शब्दों में क्रिया के प्रत्युत्तर में क्रिया अन्तःक्रिया है । यह क्रिया वैयक्तिक क्रिया ( Individual action ) भी हो सकती है और सामूहिक क्रिया ( Group action ) भी । इसीलिए अन्तःक्रिया व्यक्ति और व्यक्ति में , व्यक्ति और समूह में तथा समूह में हो सकती है । पर इस सम्बन्ध में और कुछ कहने सके पहले अन्तःक्रिया का विस्तृत अर्थ व परिभाषा की विवेचना आवश्यक है।


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