क्या ग्रामीण समाजशास्त्र एक विज्ञान है ? ( Is rural sociology a science? )

क्या ग्रामीण समाजशास्त्र एक विज्ञान है ? ( Is rural sociology a science? )

विज्ञान तथा वैज्ञानिक पद्धति की प्रकृति को समझ लेने के पश्चात् यह महत्वपूर्ण प्रश्न उत्पन्न होता है कि क्या ग्रामीण समाजशास्त्र को एक विज्ञान कहा जा सकता है ? इस प्रश्न का समुचित उत्तर देने के लिए आवश्यक है कि ग्रामीण समाजशास्त्र की प्रकृति का विज्ञान की कसौटियों पर मूल्यांकन किया जाए । ग्रामीण समाजशास्त्र की निम्नांकित विशेषताएँ वे हैं जो उसे निश्चित रूप से एक विज्ञान के रूप में स्पष्ट करती है


( क ) ग्रामीण समाजशास्त्र वैज्ञानिक पद्धति पर आधारित है

ग्रामीण समाजशास्त्र के अन्तर्गत जिन तथ्यों को एकत्रित किया जाता है उनका आधार विशुद्ध रूप से वैज्ञानिक पद्धति तथा वैज्ञानिक प्रवृत्ति है । यह सच है कि एक नवीन विषय होने के कारण इसके अन्तर्गत अत्यधिक विकसित पद्धतियों का उपयोग नहीं किया जा सकता है ।


इसके पश्चात् भी ग्रामीण समाजशास्त्र नवीन पद्धतियों की खोज में निरन्तर संलग्न है । इस समय सांख्यिकी पद्धति ( Statistical Method ) , सामाजिक सर्वेक्षण पद्धति ( Social Survey Method ) , अवलोकन पद्धति ( Ob servation Method ) , वैयक्तिक अध्ययन पद्धति ( Case Study Method ) , ऐतिहासिक पद्धति ( Historical Method ) तथा समाजमिति ( Sociometry ) आदि वे प्रमुख वैज्ञानिक पद्धतियाँ हैं जिनके माध्यम से अध्ययनकर्ता ग्रामीण मानव , उसके पर्यावरण तथा ग्रामीण तथ्यों का अध्ययन करता है ।


( ख ) ग्रामीण समाजशास्त्र

ग्रामीण समाजशास्त्र ' क्या है ' का विवेचन करता है जिस प्रकार प्राकृतिक विज्ञान केवल यथार्थ परिस्थितियों के अध्ययन से सम्बन्धित है , उसी प्रकार ग्रामीण समाजशास्त्र में भी केवल ' क्या है ' का वर्णन किया जाता है , ' क्या होना चाहिए ' का नहीं ।


इसका तात्पर्य है कि ग्रामीण समाजशास्त्र किसी कल्पना अथवा सुधार की प्रान्ति को उतना महत्व नहीं देता जितना कि ग्रामों में विद्यमान यथार्थ दशाओं के अध्ययन को । उदाहरण के लिए , ग्राम्य जीवन , ग्रामीण समस्याओं तथा विकास योजनाओं को उनके यथार्थ रूप में प्रस्तुत करता है , यह दशाएँ चाहे संगठनकारी हो अथवा विघटनकारी ।


( ग ) ग्रामीण समाजशास्त्र कार्य

ग्रामीण समाजशास्त्र कारण के सम्बन्धों की विवेचना करता है -कार्य कारण का अर्थ है किसी घटना के वास्तविक कारणों तथा परिणामों को ज्ञात करके उनके सह सम्बन्धों को स्पष्ट करना । वास्तविकता यह है कि प्रत्येक घटना किसी न किसी कारण से प्रभावित होती है एवं प्रत्येक घटना कुछ निश्चित परिणामों को जन्म देती है ।


ग्रामीण समाजशास्त्र , ग्रामीण पर्यावरण के अन्तर्गत कार्य - कारण के इस सम्बन्ध की विवेचना को सर्वाधिक महत्व देता है । वास्तविकता यह है कि ग्रामों में आज पंचायती राज , सामुदायिक विकास , सहकारिता , भूदान तथा समन्वित ग्रामीण विकास आदि से सम्बन्धित किसी भी योजना को तब तक सही दिशा नहीं दी जा सकती जब तक इनसे सम्बन्धित कार्य - कारणों की समुचित वैज्ञानिक विवेचना न कर ली जाए । इस विशेषता के आधार पर भी ग्रामीण समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक बन जाती है ।


( घ ) सिद्धान्तों की सार्वभौमिकता

विज्ञान की महत्वपूर्ण विशेषता इससे सम्बन्धित नियमों अथवा सिद्धान्तों का सार्वभौमिक होना है । ग्रामीण समाजशास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न अध्ययनों के आधार पर जिन सिद्धान्तों का निर्माण किया जाता है उनकी प्रकृति बहुत बड़ी सीमा तक सर्वव्यापी होती है ।


इसका तात्पर्य यह है कि एक विशेष ग्रामीण पर्यावरण में ग्रामीण जीवन से सम्बन्धित जिन सिद्धान्तों का निर्माण हुआ है , वे सिद्धान्त उन्हीं के समान किसी भी दूसरे पर्यावरण में उतना ही . सत्य प्रमाणित होते हैं ।


( च ) सिद्धान्तों की पुनर्परीक्षा

ग्रामीण समाजशास्त्र सिद्धान्तों की परीक्षा एवं पुनर्परीक्षा को भी अत्यधिक महत्व देता है । एक ग्रामीण समाजशास्त्री अपनी परिकल्पना के आधार पर तथ्यों को एकत्रित करके उनका वर्गीकरण अथवा सामान्यीकरण करता है । इसके पश्चात् वह अन्य क्षेत्रों एवं अन्य समूहों के अन्तर्गत अपने सामान्य निष्कर्षों अथवा सिद्धान्तों की सत्यता की पुनर्परीक्षा करता है ।


पुनर्परीक्षा के पश्चात् यदि समय , स्थान अथवा परिस्थिति के अनुसार सिद्धान्तों में परिवर्तन की आवश्यकता होती है तो उनमें वैज्ञानिक आधार पर संशोधन किया जाता है । इस विशेषता के आधार पर भी ग्रामीण समाजशास्त्र की प्रकृति वैज्ञानिक बन जाती है ।


( छ ) ग्रामीण समाजशास्त्र में भविष्यवाणी करने की क्षमता है

भविष्यवाणी विज्ञान का धारभूत तत्व है । विभिन्न अध्ययनों के आधार पर ग्रामीण समाजशास्त्र जो सामान्य निष्कर्ष प्रस्तुत करता है वे भविष्य की सम्भावनाओं पर महत्वपूर्ण प्रकाश डालते हैं । यह सम्भव है कि भविष्य में यह परिणाम पूर्णतया सत्य न हों लेकिन सच तो यह है कि प्राकृतिक विज्ञान से सम्बन्धित पूर्वानुमानों में भी कुछ परिवर्तन अवश्य देखने को मिलते हैं ।


वास्तव में भविष्यवाणी पूर्णतया अपरिवर्तनशील तथ्य नहीं है बल्कि यह वह स्थिति है जो सत्य के काफी निकट होती है । ग्रामीण समाजशास्त्र की प्रकृति से सम्बन्धित इन सभी विशेषताओं से स्पष्ट होता है कि इसकी प्रकृति पूर्णतया वैज्ञानिक है।


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