जादू और धर्म में क्या अंतर है?
धर्म तथा जादू में अन्तर ( Distinction between Religion and Magic ) वास्तव में, जनजातीय समाज में धर्म, जादू, विज्ञान और प्रौद्योगिकी एक - दूसरे से इतने में मिले गये हैं कि किसी के भी अस्तित्व को दूसरे से पृथक् करके उनमें स्पष्ट अन्तर नहीं किया जा सकता ।
विशेषकर धर्म और जादू दोनों ही एक अधिमानवीय और अलौकिक शक्ति के विश्वास से सम्बन्धित होने तथा भावात्मक सुरक्षा का साधन होने के कारण पनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं । इसके उपरान्त भी इनकी प्रकृति के आधार पर कुछ अन्तर स्पष्ट करने से इनकी और अधिक स्पष्ट रूप से समझा जा सकेगा।
( 1 ) धर्म और जादू के बीच सर्वप्रथम अन्तर स्पष्ट करने का श्रेय दुर्खीम को है । आपके अनुसार धर्म एक साआजिक तथ्य है जो सामूहिक विश्वासों को अभिव्यक्त करता जादू पूर्णतया एक वैयक्तिक क्रिया है जिसका उद्देश्य सामान्यतया किसी व्यक्ति विशेष को लाभ अथवा हानि पहुंचाना होता है ।
( 2 ) धर्म में अलौकिक शक्ति प्रधान है और मनुष्य गौण मनुष्य केवल उपासना कर सकता है । इसका फल पूर्णतया अलौकिक शक्ति की इच्छा पर निर्भर है । दूसरी ओर जादू में मनुष्य प्रधान है और अलौकिक शक्ति गौण क्योंकि इसमें यह विश्वास किया जाता है कि अलौकिक शक्ति मनुष्य के नियंत्रण में रहकर उसी की इच्छानुसार कार्य करेगी ।
( 3 ) धर्म केवल विश्वास पर आधारित है जबकि जादू को कभी - कभी विज्ञान की श्रेणी तक में रख दिया जाता है । इसका कारण यह है कि जादू के नियम अत्यधिक निश्चित प्रकृति के होते . हैं । विज्ञान के समान ही इसमें एक समान कारण का समान परिणाम होना अनिवार्य माना जाता है ।
( 4 ) धर्म और धार्मिक क्रियाएँ सदैव समूह के कल्याण के लिए होती है जबकि जादू रचनात्मक ( positive ) भी हो सकता है और हानिकारक ( negative ) भी ।
( 5 ) मैलीनॉस्की ने धर्म और जादू को इसकी जटिलता के आधार पर एक दूसरे से मित्र माना है । धर्म सबके लिए है , और सभी व्यक्ति धार्मिक क्रियाएँ कर सकते हैं जबकि जादू केवल वही व्यक्ति कर सकते हैं , जो एक विशेष प्रकार की क्रिया में पूर्णतया निपुण हों ।
( 6 ) धर्म की सफलता इसके प्रकार और सार्वजनिक वार्तालाप पर निर्भर है जबकि जादू तभी तक सफल रहता है जब तक इसे गुप्त रखा जाता है । सार्वजनिक होने पर जादू का प्रभाव समाप्त हो जाता है ।
( 7 ) फ्रेजर ने इस आधार पर भी धर्म और जादू को भित्र माना है कि जादू की उत्पत्ति पहले हुई और इसमें कभी - कभी असफलता होने पर ही धर्म का विकास बाद में हुआ ।
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