सरकार द्वारा ग्रामीण क्षेत्रों में चलायी जा रही किन्हीं पाँच योजनाओं पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए।
भारत में योजना आयोग द्वारा सन् 1977 में यह रिपोर्ट प्रस्तुत की गयी कि हमारे देश के ग्रामीण क्षेत्रों में 48 प्रतिशत तथा नगरीय क्षेत्रों में 41 प्रतिशत व्यक्ति निर्धनता की सीमा रेखा के नीचे रहकर जीवन व्यतीत कर रहे हैं । इनमें से 86% व्यक्ति इतने अधिक निर्धन थे कि वे एक माह में औसतन 28 रुपये से 43 रुपये तक ही व्यय करने की क्षमता रखते थे।
ग्रामीण निर्धनता की इस जटिल समस्या का समाधान करने के लिए समय - समय पर अनेक ऐसी योजनाएँ लागू की गयीं जिनके द्वारा गाँव के अत्यधिक निर्धन व्यक्तियों को अपने गाँव तथा निकटवर्ती क्षेत्रों में ही रोजगार सुविधाएँ उपलब्ध कराई जा सकें । इन कार्यक्रमों में पाँच कार्यक्रम अधिक महत्वपूर्ण हैं-
1. काम के बदले अनाज कार्यक्रम,
2. स्वरोजगार के लिए ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षण कार्यक्रम,
3. राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम,
4. ग्रामीण भूमिहीनों के लिए रोजगार गारण्टी कार्यक्रम, तथा
5. जवाहर रोजगार योजना ।
क . काम के बदले अनाज कार्यक्रम
यह कार्यक्रम भारत सरकार द्वारा सर्वप्रथम अप्रैल, 1977 से आरम्भ किया गया । योजना के क्रियान्वयन के लिए केन्द्र सरकार द्वारा राज्य सरकारों को यह निर्देश दिये गये कि ग्रामीण क्षेत्रों में भूमिहीन श्रमिकों तथा बेरोजगार निर्धनों को रोजगार देने के लिए विशेष योजनाएँ बनायी जायें तथा जो श्रमिक इन योजनाओं में कार्य करें, उन्हें मजदूरी का एक हिस्सा अनाज के रूप में प्रदान किया जाय ।
वास्तव में यह योजना गाँव के उन छोटे और सीमान्त कृषकों को लाभ पहुँचाने के लिए बनायी गयी जो वर्ष में कई महीने या तो पूर्णतया बेरोजगार रहते हैं अथवा भूमिहीन श्रमिक के रूप में कार्य करते हैं । आरम्भ में इस योजना के अन्तर्गत काम के बदले केवल गेहूं देने की व्यवस्था की गयी थी, लेकिन बाद में श्रम के बदले चावल और दूसरे खाधान भी दिये जाने लगे ।
जिन स्थानों पर विभिन्न सिंचाई परियोजनाओं , बाढ़ नियन्त्रण कार्यक्रमों , बांधों के निर्माण सम्पर्क सड़कों के निर्माण एवं वनों के विकास से सम्बन्धित कार्य चल रहे थे यहाँ काम के बदले अनाज कार्यक्रम को प्राथमिकता दी जाने लगी ।
इस कार्यक्रम से सम्बन्धित विभिन्न परियोजनाओं का निर्धारण गाँव पंचायतों को सौंपा गया जिन्हें खण्ड विकास अधिकारी की संस्तुति एवं जिला के निर्णय के पश्चात् लागू करने का प्रावधान रखा गया । प्रारम्भिक रिपोटों पूर्णरूपेण बेरोजगार प्रतिशत से ही यह स्पष्ट हुआ कि काम के बदले अनाज कार्यक्रम से आशिक और ग्रामीणों को रोजगार के व्यापक अवसर प्राप्त हुए।
भारत सरकार के योजना मन्त्रालय से सम्बद्ध कार्यक्रम मूल्यांकन संगठन ने सन् 1979 के प्रतिवेदन में बताया कि इस कार्यक्रम से जिन ग्रामीणों कोलाभ हुआ उनमें 50.6 प्रतिशत कृषि अमिक , 22.4 प्रतिशत छोटे पूर्व सीमान्त कृषक तथा 19.7 अन्य ग्रामीण थे ।
सभी लाभार्थियों में 42 प्रतिव्यक्ति अनुसूचित जातियों के तथा 13 प्रतिशत अनुसूचित जनजातियों के थे । यह भी स्पष्ट हुआ कि इस कार्यक्रम के फलस्वरूप बड़े किसानों को भूमिहीन श्रमिकों की मजदूरी में वृद्धि करनी पड़ी । नवीन परियोजनाओं के अन्तर्गत बहुत - से सम्पर्क - मार्ग बन जाने के फलस्वरूप ग्रामीणों को अपनी उपल निकटवर्ती बाजारों में लेजाने की सुविधा भी प्राप्त हुई जिसके फलस्वरूप उनकी आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ ।
बाढ़ नियन्त्रण योजना के संचालन से बहुत - सी कृषि योग्य भूमि का संरक्षण हो सका । इसके अतिरिक्त एक लम्बे समय से अपेक्षित ग्रामों में पीने के पानी की सुविधाएँ उपलब्ध होने तथा जल - निकासी की व्यवस्था हो जाने के कारण गन्दगी की समस्या का भी कुछ सीमा तक समाधान हो सका ।
इस कार्यक्रम के संचालन में कुछ कठिनाइयाँ अवश्य सामने आयीं लेकिन कार्यक्रम की उपलब्धियों को देखते हुए यह कठिनाइयाँ नगण्य थीं । इनके पश्चात् भी सन् 1979 से इस योजना को इस नाम से समाप्त करके इससे सम्बन्धित सुविधाएँ दूसरे कार्यक्रमों के रूप में प्रदान की जाने लगीं ।
इन कार्यक्रमों में ' राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम ' तथा ' ग्रामीण भूमिहीनों के लिए रोजगार गारण्टी कार्यक्रम ' प्रमुख हैं ।
ख . स्वरोजगार हेतु ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षण कार्यक्रम ( TRYSEM )
ग्रामीण क्षेत्रों में बढ़ती हुई बेरोजगारी की समस्या को देखते हुए यह कार्यक्रम 15 अगस्त , 1979 से लागू किया गया । इसका उद्देश्य 3,500 रुपये वर्ष से कम की आय वाले परिवारों में से 18 से 35 वर्ष के किसी ग्रामीण युवक का चयन करके उसे किसी विशेष रोजगार में इस तरह प्रशिक्षित करना है जिससे वह अपने लिए स्वयं एक उपयोगी व्यवसाय प्राप्त करके जीविका उपार्जित कर सके ।
यह रोजगार कृषि , उद्योग , व्यापार तथा सामान्य सेवा आदि किसी से भी सम्बन्धित हो सकता है । इस योजना की प्रमुख विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
( 1 ) प्रत्येक विकास खण्ड द्वारा वर्ष में स्वरोजगार के लिए 40 युवकों को प्रशिक्षण देने का प्रावधान रखा गया है ।
( 2 ) प्रशिक्षण पाने वाले युवकों को मासिक निधि , दैनिक भत्ते , विभिन्न उपकरण तथा कच्चा माल देने की भी व्यवस्था की जाती है ।
( 3 ) प्रशिक्षित युव द्वारा जो व्यवसाय आरम्भ किया जाता है उसके व्यय का 33.33 प्रतिशत भाग सरकार द्वारा आर्थिक सहायता के रूप में प्रदान किया जाता है जो अधिक से अधिक 3,000 रुपये ( अनुसूचित जनजातियों के लिए अधिक से अधिक 5,000 रुपये ) होता है । शेष व्यय के लिए सरकार द्वारा 6,000 रुपये तक किसी बैंकिंग संस्था द्वारा ऋण के रूप में दिलवाने की यदि अतिरिक्त प्रशिक्षण की आवश्यकता हो तो व्यवस्था की जाती है ।
( 4 ) व्यवसाय के दौरान विभिन्न संगठनों के माध्यम से इसकी व्यवस्था की जाती है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत प्रशिक्षण की समाप्ति पर प्रशिक्षणार्थियों को ' समन्वित ग्रामीण विकास कार्यक्रम के अन्तर्गत सहायता दी जाती है ।
छठी एवं सातवीं योजना के अन्तर्गत क्रमशः 10.15 लाख व 9.99 लाख ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षित किया गया था । सातवीं योजना के अन्तर्गत प्रशिक्षित युवकों में से 4.65 लाख स्वरोजगार में तथा 1.31 लाख वेतन पर कार्य करते थे । वर्ष 1996-97 के दौरान 3.64 लाख ग्रामीण युवकों को प्रशिक्षित किया गया ।
ग . राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम ( NREP )
भारत सरकार को ' काम के बदले अनाज कार्यक्रम के क्षेत्र में जिन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था उनका निराकरण करने के लिए इसके स्थान पर अक्टूबर , 1980 से राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम ' ( NREP ) आरम्भ किया गया । यह निर्धारित किया गया कि इस कार्यक्रम पर होने वाले सम्पूर्ण व्यय का आधा भाग केन्द्र सरकार तथा आधा भाग राज्य सरकार वहन करेगी ।
इस योजना के तीन प्रमुख उद्देश्य निर्धारित किये गये- रोजगार की अतिरिक्त सुविधाओं में वृद्धि करना , सामुदायिक सम्पत्ति का निर्माण करना तथा गाँवों में अति निर्धन लोगों के आर्थिक स्तर में सुधार करना । यह कार्यक्रम काम के बदले अनाज कार्यक्रम से इस दृष्टिकोण से बहुत कुछ मिलता - जुलता है कि इसके अन्तर्गत जिला ग्रामीण विकास एजेन्सी द्वारा रोजगार बढ़ाने के लिए वार्षिक आधार पर विभिन्न परियोजनाएँ बनायी जाती हैं तथा जो ग्रामीण इन परियोजनाओं में श्रम करते हैं उनहें मजदूरी का आंशिक भुगतान मुद्रा में और आंशिक भुगतान अनाज के रूप में किया जाता है ।
परियोजनाओं का निर्धारण इस प्रकार किया जाता है जिससे गाँव के भूमिहीन मजदूरों , सीमान्त किसानों तथा अनुसूचित जातियों एवं जनजातियों के लोगों को रोजगार मिल सके । सभी मजदूरों को घंटे दरों पर प्रतिदिन की मजदूरी के एक हिस्से के रूप में एक किलोग्राम अनाज अवश्य दिया जाता है ।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत सातवीं योजना के प्रथम चार वर्षों में 2,940 करोड़ रूपये के व्यय द्वारा 14,775 लाख कार्य दिवसों के लिए रोजगार उपलब्ध कराया गया । इसके फलस्वरूप ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार के अवसरों में वृद्धि हने के साथ ही सामुदायिक सम्पत्तियों में भी वृद्धि हुई ।
कार्यक्रम के प्रभाव से ग्रामों में भूमिहीन श्रमिकों को प्राप्त होने वाली मजदूरी की दर में भी सुधार हुआ । ऐसा अनुमान है कि गाँवों में रोजगार बढ़ने से बहुत बड़ी संख्या में ग्रामीण अब नगरों की ओर न जाकर गाँवों में ही उपयोगी रोजगार ढूँढ़ने का प्रयत्न करने लगे हैं ।
घ . ग्रामीण भूमिहीनों के लिए रोजगार गारण्टी कार्यक्रम
यह अनुभव किया गया कि गाँवों में रोजगार की सबसे विषम समस्या उन भूमिहीन श्रमिकों से सम्बन्धित है जिन्हें वर्ष में एक लम्बे समय तक किसी तरह का काम नहीं मिल पाता । इस समस्या का समाधान करने के लिए सन् 1983-84 से ग्रामीण भूमिहीनों के लिए रोजगार गारण्टी गार्यक्रम आरम्भ किया गया ।
यह कार्यक्रम दो प्रमुख उद्देश्यों को लेकर आरम्भ किया गया - प्रथम , प्रत्येक भूमिहीन श्रमिक के परिवार में से किसी एक सदस्य को वर्ष में कम से कम 100 दिनों के लिए रोजगार की गारण्टी देना तथा द्वितीय , गाँवों में ऐसी सम्पत्तियों का निर्माण करना जिससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था का स्वयं विकास हो सके ।
इस कार्यक्रम पर किया जाने वाला सम्पूर्ण व्यय केन्द्र सरकार द्वारा वहन किया जाता है । रोजगार के लिए विभिन्न परियोजनाएँ राज्य सरकारों द्वारा बनायी जाती हैं लेकिन यह ध्यान रखना आवश्यक होता है कि प्रत्येक परियोजना का कम से कम 50 प्रतिशत व्यय मजदूरी के भुगतान में हो ।
इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भी मजदूरी का एक हिस्सा एक किलोग्राम अनाज प्रति व्यक्ति प्रति दिन की दर से दिया जाता है जबकि शेष मजदूरी का भुगतान मुद्रा में होता है । इस कार्यक्रम के अन्तर्गत छठीं और सातवीं योजना के दौरान क्रमशः 385 करोड़ और 2,412 करोड़ रुपये व्यय करके क्रमशः 2,628 लाख और 11,544 लाख कार्य दिवसों के लिए रोजगार उपलब्ध कराया गया ।
इस सम्बन्ध में यह ध्यान रखना आवश्यक है कि 1 अप्रैल , 1989 से ' राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम ' ( एन.आर.ई.पी. ) तथा ' ग्रामीण भूमिहीन रोजगार गारण्टी कार्यक्रम ' ( आर.एल.ई.जी.पी. ) का ' जवाहर रोजगार योजना ' ( जे.आर.वाई . ) के नाम से विख्यात एक ग्रामीण रोजगार कार्यक्रम में विलय कर दिया गया ।
च . जवाहर रोजगढ़ योजना
ग्रामीण रोजगार से सम्बन्धित यह कार्यकम 1 अप्रैल , 1989 से आरम्भ किया गया । इस कार्यक्रम का प्राथमिक उद्देश्य ग्रामीण क्षेत्रों में रोजगार तथा अल्प रोजगार वाले व्यक्तियों के लिए अतिरिक्त लाभकारी रोजगार के अवसर बढ़ाना है जिससे ग्रामीण गरीबों की आय का स्तर ऊँचा उठ सके ।
यह कार्यक्रम ग्राम पंचायतों के माध्यम से सम्पन्न होता है । ग्राम पंचायतों को धन आवंटित करते समय 60 प्रतिशत धनराशि अनुसूचि जाति / जनजाति के लोगों के लिए और 40 प्रतिशत शेष लोगों के लिए निर्धारित की जाती है ।
इस कार्यक्रम पर वर्ष 1996-97 के दौरान 41.41 लाख कार्य-दिवस का रोजगार पैदा करने के लिए केन्द्रीय अंशदान के रूप में 1,639 करोड़ रुपये और राज्यों के अंशदान के रूप में 409 करोड़ रुपये का वितरण किया गया ।
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