लघु समुदाय का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं महत्व | Small Community

लघु समुदाय का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं महत्व

लघु समुदाय: बृहत्तर समाजशास्त्र में प्रचलित लघु समुदाय की अवधारणा का प्रतिपादन राबर्ट रेडफील्ड नामक समाजशास्त्रीय द्वारा किया गया है । सम्पूर्ण मानवता को हम विभिन्न प्रकार की पृथक - पृथक इकाइयों के रूप में दृष्टिगत करते हैं । व्यक्ति अथवा मनुष्य भी एक सर्वथा स्वतन्त्र इकाई है ।


ठीक इसी प्रकार से जाति , वर्ग , राष्ट्र तथा सभ्यता - संस्कृति आदि सभी मानवता के पृथक - पृथक् स्वरूप मात्र ही हैं । समुदाय भी इस कोटि की एक महत्त्वपूर्ण इकाई माना जाता है । विभिन्न प्रकार के समुदाय छोटे - बड़े आकार के होते हैं , तथापि एक वास्तविक स्वतन्त्र इकाई के रूप में समुदाय सामान्यतया छोटे आकारीय ही होते हैं , जिनको लघु समुदाय भी कहा जाता है ।


अतीतकाल में यह लघु समुदाय मानव समाज में अत्यधिक होते थे । वास्तविकता तो यह है कि जिस समय से इन लघु समुदायों की उत्पत्ति हुई है , तभी से मनुष्य मात्र ने संगठित एवं सामूहिक जीवन में रहना भी प्रारम्भ किया है । नगरीय समुदायों का इतिहास केवल मात्र कुछ शताब्दियों पूर्व ही प्रारम्भ होता है , जबकि वर्तमान उबतिशील विश्व की कुल जनसंख्या का 3/4 हिस्सा अभी तक लघु समुदायों में ही निवास करता है । राबर्ट रेडफील्ड ने अपनी चर्चित कृति " The Little Community " में लिखा है कि " लघु समुदाय मानवता का सम्पूर्ण इतिहास में मानव जीवन का सबसे प्रबल स्वरूप है । "

लघु समुदाय का अर्थ, परिभाषा, विशेषताएँ एवं महत्व  Small Community

लघु समुदाय की अवधारणा का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनके कथन है कि " लघु समुदाय इन प्रचलित तथा स्पष्ट स्वरूपों का दूसरा स्वरूप है , जिसमें मानवता सुगमतापूर्वक हमारे सामने परिलक्षित होती है । विश्व के समस्त भागों तथा सम्पूर्ण मानव इतिहास में सदैव ही लघु समुदाय थे और रहे हैं । " इससे स्पष्ट होता है कि लघु समुदाय वर्तमान युग के सन्दर्भ में भी सर्वाधिक पुरातन , प्रबल एवं प्रमुख समुदाय होते हैं ।


किसी भी देश अथवा समाज में जितने भी ग्राम और कस्बे होते हैं , वह सभी लघु समुदाय के ही अन्तर्गत आते हैं । भारतवर्ष में तो कुल जनसंख्या का लगभग 90 प्रतिशत भाग इन्हीं लघु समुदायों में ही निवास करता है , इसलिए भारतीय ग्रामों को ' लघु समुदाय ' और नगरीय समुदायों को “ दीर्घ समुदाय " कहा जाता है । भारत जैसे ग्रामीण समाज वाले देश में इन लघु समुदायों को विशेष महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है । 


लघु समुदाय की प्रमुख विशेषताएँ-


प्रत्येक लघु समुदाय की अपनी कतिपय विशेषताएँ होती हैं , जिसके आधार पर ही उसको नगरीय और दीर्घ समुदायों से पृथक् किया जाता है । लघु समुदाय में निम्नांकित प्रमुख विशेषताएँ पायी जाती हैं 


( क ) विशिष्टता ( Distinctiveness ) —

प्रत्येक लघु समुदाय में ' विशिष्टता ' का अनिवार्य गुण निहित होता है । इस प्रकार के समुदायों का प्रारम्भ और अन्त स्पष्ट रहता है तथा उनका जीवन भी अन्य सभी समुदायों से सर्वथा पृथक् और भिन्न होता है । इस समुदाय के सदस्यों में अपेक्षाकृत अधिक तीव्र सामुदायिक भावना और समूह चेतना पायी जाती है और वे अपने समुदाय की इसी विशिष्टता को अपना गौरव भी समझते हैं । 


( ख ) लघुता ( Smallness ) —

लघु समुदायों की द्वितीय विशेषता इनका छोटा आकार जिसके फलस्वरूप इसमें निवास करने वाले सभी व्यक्ति एक दूसरे को भली भाँति जानते - समझते है तथा उनमें प्राथमिक सम्बन्ध भी स्थापित होते हैं । वास्तविकता भी यही है कि समुदाय का आकार जितना लघु होगा , उसमें उतने ही अधिक घनिष्ठ सम्बन्ध भी होंगे ।


( ग ) समानता ( Homogeneity ) -

लघु समुदाय के लोगों में समरूपता और एकरूपता भी पायी जाती है । लघु समुदाय के अन्तर्गत रहने वाले मनुष्यों के जीवन सम्बन्धी विभिन्न क्रिया-कलाप अत्यधिक मिलते-जुलते होते हैं । सामान्यतः उनकी आवश्यकताएँ भी एक समान ही होती हैं तथा ऐसे समुदाय परिवर्तन के अधिक पक्षधर भी नहीं होते हैं और भी सरल शब्दों में कहा जाये तो उनका रहन-सहन, जीवन पद्धति, खान-पान, आचार विचार, वेशभूषा, भाषा, प्रथा, परम्परायें , रीति रिवाज तथा धार्मिक- सांस्कृतिक संस्कारादि एक समान होते हैं , जिसके अन्तिम परिणामस्वरूप उनमें हम ( We ) की भावना प्रबल होती है।


डॉ . एम.एन. श्रीनिवास ने लिखा है कि " प्रत्येक ग्राम एक दृढ़ लघु समुदाय हैं , जिसमें प्रत्येक व्यक्ति एक दूसरे से भली- भाँति परिचित होता है तथा जिनमें अनुभव का एक महान कार्य सभी के लिए सामान्य भी होता है । " 


( घ ) आत्म - निर्भरता ( Self - dependence ) —

सामान्यतः लघु समुदायों में आत्म निर्भरता निर्भर होते हैं अर्थात् उनकी का गुण भी पाया जाता है । लघु समुदाय अपनी सभी आवश्यकताओं की पूर्ति संतुष्टि हेतु आत्म भी आवश्यकता नहीं होती हैं , जिसे उनका लघु समुदाय स्वयं ही पर्यन्त तक का प्रबन्ध है । " पूरा न करता हो । स्वयं राबर्ट रेडफील्ड ने लिखा है कि " लघु समुदाय एक जन्म से लेकर मृत्यु चूँकि लघु समुदाय की आवश्यकतायें अत्यधिक कम और सीमित होती हैं , इसलिए उनको नगरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ता है अर्थात् उनकी भोजन , वस्त्र , आवास - निवास तथा अन्यान्य विभिन आवश्यकतायें अपनी ही परिधि में पूर्ण हो जाती है । इससे स्पष्ट है कि लघु समुदायों की आत्म - निर्भरता की विशेषता भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं होती है ।


लघु समुदाय का महत्त्व ( Importance of small community )-


लघु समुदाय का व्यक्तित्व सर्वथा अनोखा और पृथक् होता है तथा इसके सदस्यों के लिए अपना समुदाय ही सब कुछ माना जाता है । राबर्ट रेडफील्ड ने लिखा है कि " इससे भी अधिक पृथक् समूह अथवा ग्राम के सदस्य हेतु समुदाय जीवन का एक क्षेत्र है , जहाँ पर क्रियायें तथा संस्थायें एक से समस्त अन्यों का पथ प्रदर्शन करती है , जिससे वह ग्रामवासी के लिए समुदाय यन्त्र तथा प्रथाओं की सूची मात्र ही न हो , यह एक एकीकृत पूर्णता होती है ।


" इससे स्पष्ट होता है कि लघ समुदाय ही किसी भी समुदाय का वास्तविक वर्णन करता है । लघु समुदाय एक लघु समूह होने के परिणामस्वरूप अनेक गुण भी रखता है , जैसे - लघुता के आधार पर इसका सूक्ष्मतम अध्ययन भी । सम्भव है । इसके अतिरिक्त यह पूर्ण भी होता है , जो कि इसका सर्वप्रमुख गुण है । राबर्ट रेडफील्ड ' तथा मिल्टन सिन्गर ने लघु समुदाय की इसी पूर्णता को विशेष रूप से उल्लेखनीय माना है तथा इसको समझने का प्रयास भी किया है कि लघु समुदाय वस्तुतः किस सीमा तक सम्पूर्ण समुदाय इसका अध्ययन हमें मूल्यवान निष्कर्ष प्रदान करते हैं ।


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