राष्ट्रवाद का अर्थ
राष्ट्रवाद, सामान्यतः लोग राष्ट्र , राष्ट्रीयता और राष्ट्रवाद में कोई मौलिक अन्तर न कर उन्हें समानार्थी समझते हैं परन्तु इनके आधारभूत तत्वों पर विचार करने के पश्चात् हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि इनकी अवधारणाओं में अन्तर है । हिन्दी भाषा के राष्ट्र शब्द को अंग्रेजी में ' Nation ' ( नेशन ) कहते हैं जिसकी उत्पत्ति लैटिन के ‘ Natio ' ( नेशियो ) शब्द से मानी जाती है जिसका अर्थ है ' पैदा होना ' ।राष्ट्रीयता को अंग्रेजी में ' Nationality ' तथा राष्ट्रवाद को ' Nationalism ' कहते हैं । राष्ट्र एक मानव समूह है जिसका निर्माण भावात्मक आधार पर होता है । एक अथवा अनेक तत्वों के कारण व्यक्तियों के रूप में ' हम एक है ' का जो भाव पैदा होता है वह किसी मानव समूह को ' राष्ट्र ' रूप प्रदान करता है । उसे राष्ट्रीयता का ' भाव ' कहा जाता है ।
वह राष्ट्र निर्माण के पूर्व की अमूर्त स्थिति के रूप में है जो उसके बनने का आधार तैयार करता है । इस शब्द का प्रयोग किसी राष्ट्र की सदस्यता के प्रतीक के रूप में भी किया जाता है , जैसे — भारतीय राष्ट्रीयता , अमेरिकी राष्ट्रीयता आदि । ' राष्ट्रवाद ' भी एक या वही है परन्तु वह राष्ट्र निर्माण के बाद का है । वह राष्ट्र निर्माण के प्रति समर्पण और बलिदान का भाव है । 'नेशियो' ( नेशियो ) से तात्पर्य किसी ' जाति ' अथवा ' नस्ल ' से भी है । प्रजाति अथवा जाति के लोग रक्त सम्बन्ध से बँधे रहते हैं जिसके कारण उनमें प्रजातीय अथवा जातीय एकता होती है ।
एकता की भावना उन्हें आपस में बाँधे रखती है । रक्त - सम्बन्ध पर आधारित प्रजातीय एकता का ही राजनीतिक दृष्टि से विकसित रूप राष्ट्र है परन्तु वह प्रजातीय अथवा जातीय संघटन से व्यापक स्वरूप वाला होता है । प्रजातीय एकता के साथ - साथ अन्य तत्व भी किसी समूह को राष्ट्र का रूप प्रदान करते हैं , जैसे - समान भाषा , इतिहास , भौगोलिक क्षेत्र , धर्म , संस्कृति और परम्परा आदि अनेक तत्व व्यक्तियों के बीच एकता की भावना पैदा कर उनके समूह को राष्ट्र का रूप प्रदान करते हैं ।
ये उनके बीच राजनीतिक एकता की भावना पैदा कर उन्हें राष्ट्र का रूप देते हैं । अनेक है कि आज के विकसित युग में राष्ट्र का रूप कुछ भिन्न हो गया है । एक ही राष्ट्र में धर्म , संस्कृतियाँ , भाषाएँ और परम्पराएँ पायी जाती हैं । यह बात उल्लेखनीय राष्ट्रीयता का भाव सभी नहीं बल्कि किसी एक अथवा कुछ तत्वों से भी हो सकता है । इन परम्परागत तत्वों के अतिरिक्त कोई और भी तत्व यह भाव पैदा कर सकता है , जैसे विचारधारा अथवा संवैधानिक व्यवस्था आदि ।
इन भिन्ताओं के बावजूद वह एक राष्ट्र माना जाता है जैसे भारत राष्ट्र की अवधारणाओं को मोटे तौर पर हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-
बार्कर ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है , " राष्ट्र ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो निश्चित भूभाग में रहते हैं तथा एक ही प्रदेश में रहने के कारण एक - दूसरे से बँधे होते हैं । ” ( “ The nation is a body of persons inhabiting a definite territory and thus united together by primary fact of living | together on common land . ” – Barker . )
राम्योजेमर के अनुसार , " राष्ट्र मनुष्यों का वह समूह है जिसके सदस्य अनेक समानताओं के कारण आपस में बँधे होते हैं । समानताएँ इतनी सुदृढ़ और वास्तविक होती हैं कि आपस में खुशी के साथ मिलकर रहते हैं तथा अलग होने पर असन्तुष्ट हो जाते हैं । "
ई . एच . कार ने इसकी परिभाषा करते हुए इसे मनुष्यों का ऐसा समूह कहा है जिसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
( 1 ) समान सरकार भी भावना , चाहे वह वर्तमान में हो , अतीत में रही हो अथवा भविष्य में रहेगीं
( 2 ) सभी सदस्यों में घनिष्ठ सम्बन्ध और सामीप्य
( 3 ) कमोवेश निश्चित भूभाग
( 4 ) एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्रों से अलग करने वाली विशेषताएँ जैसे भाषा ,
( 5 ) सदस्यों के बीच समान हित
( 6 ) राष्ट्र के स्वरूप के बारे में सदस्यों के बीच सामान्य चेतना अथवा इच्छा ।
ब्राइस के अनुसार , “ राष्ट्र एक ऐसी राष्ट्रीयता ( राष्ट्रीय समूह ) के रूप में होता है । जो राजनीतिक दृष्टि से संघटित होकर या तो स्वतंत्र होती है या स्वाधीन होने की प्रबल इच्छा रखती है । "
सामान्य इतिहास , धर्म , भाषा तथा संस्कृति एवं परम्पराअ आदि के आधार पर राजनीतिक दृष्टि से संघटित व्यक्तियों का समूह राष्ट्र है । उस समूह में ' हम ' की भावना उन्हें राजनीतिक दृष्टि से संघटित करती है । यह ' हम ' की भावना ही राष्ट्रीयता है जो उस समूह के व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाँधती है तथा उसे इस प्रकार उस समूहों के लोगों से अलग करती है । यह भावना उनमें इसलिए पैदा होती है कि उनका एक सामान्य इतिहास , धर्म और साहित्य तथा उनकी एक सामान्य भाषा , संस्कृति और परम्परा होती है ।
यही समानता उनमें एकता की भावना पैदा करती है । इन तत्वों के अतिरिक्त भी अनेक तत्व हैं जो एक समूह विशेष के लोगों में एकता और ' हम ' की भावना पैदा करते हैं जैसे भौगोलिक एकता , प्रजातीय एकता , राजनीतिक एकता , सामान्य अधीनता तथा अन्य बातें जिन तत्वों के कारण किसी समूह विशेष में एकता की भावना पैदा होती है तथा वह एक राजनीतिक संघटन का रूप धारण करता है , वे राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने वाले तत्व कहे जाते हैं ।
हम देखते हैं कि राष्ट्र और राष्ट्रीयता में मूलभूत अन्तर है परन्तु इसके बावजूद भी दोनों घनिष्ठ रूप से एक - दूसरे के पूरक हैं । राष्ट्र राजनीतिक रूप में संघटित समूह विशेष है तो कतिपय तत्वों के कारण पैदा होने वाली एकता हम की भावना के कारण बनता है । उन तत्वों के कारण पैदा होने वाली यह भावना ही राष्ट्रीयता है । राष्ट्र मूर्त रूप जबकि राष्ट्रीयता एक भावना है । राष्ट्रीयता पहले और राष्ट्र बाद में है ।
वह राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है । मार्क्सवादी अथवा साम्यवादी दृष्टिकोण के अन्तर्गत राष्ट्रीयता एक भिन्न अर्थ है । इसे उस जनसमूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका एक सामान्य इतिहास , धर्म , साहित्य संस्कृति , भाषा और परम्परा आदि हो परन्तु जो राजनीतिक रूप में संघटित न हो अर्थात् जिसका अपना अलग से स्थापित कोई सम्प्रभु राज्य न हो , जैसे भारत में हिन्दू मुस्लिम , पंजाबी , बंगाली , गुजराती आदि हैं ।
ये भिन्न - भिन्न राष्ट्रीयताएँ हैं । यदि इस अर्थ में भी हम राष्ट्रीयता को लें तो उसमें और राष्ट्र में मौलिक अन्तर है । राष्ट्र राजनीतिक रूप से संघटित जनसमूह है जबकि राष्ट्रीयता के साथ ऐसी बात नहीं है । एक राष्ट्र में अनेक राष्ट्रीयताएं हो सकती हैं ।
ये उनके बीच राजनीतिक एकता की भावना पैदा कर उन्हें राष्ट्र का रूप देते हैं । अनेक है कि आज के विकसित युग में राष्ट्र का रूप कुछ भिन्न हो गया है । एक ही राष्ट्र में धर्म , संस्कृतियाँ , भाषाएँ और परम्पराएँ पायी जाती हैं । यह बात उल्लेखनीय राष्ट्रीयता का भाव सभी नहीं बल्कि किसी एक अथवा कुछ तत्वों से भी हो सकता है । इन परम्परागत तत्वों के अतिरिक्त कोई और भी तत्व यह भाव पैदा कर सकता है , जैसे विचारधारा अथवा संवैधानिक व्यवस्था आदि ।
इन भिन्ताओं के बावजूद वह एक राष्ट्र माना जाता है जैसे भारत राष्ट्र की अवधारणाओं को मोटे तौर पर हम दो भागों में विभक्त कर सकते हैं-
- परम्परावादी
- आधुनिक
राष्ट्रवाद की परिभाषा ( Rashtravad ki Paribhasha )
गार्नर ने राष्ट्र की परिभाषा करते हुए कहा है कि “ राष्ट्र सांस्कृतिक दृष्टि से सजातीय समूह है जो अपनी मनःस्थिति और अभिव्यक्ति की एकता के लिए सचेतन और दृढनिश्चयी रहता है । " ( " A nation is a culturally homogeneous social groups which is at once conscious and tenacious of its unity of psychic life and expression . " - Garner . )बार्कर ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है , " राष्ट्र ऐसे व्यक्तियों का समूह है जो निश्चित भूभाग में रहते हैं तथा एक ही प्रदेश में रहने के कारण एक - दूसरे से बँधे होते हैं । ” ( “ The nation is a body of persons inhabiting a definite territory and thus united together by primary fact of living | together on common land . ” – Barker . )
राम्योजेमर के अनुसार , " राष्ट्र मनुष्यों का वह समूह है जिसके सदस्य अनेक समानताओं के कारण आपस में बँधे होते हैं । समानताएँ इतनी सुदृढ़ और वास्तविक होती हैं कि आपस में खुशी के साथ मिलकर रहते हैं तथा अलग होने पर असन्तुष्ट हो जाते हैं । "
ई . एच . कार ने इसकी परिभाषा करते हुए इसे मनुष्यों का ऐसा समूह कहा है जिसकी विशेषताएँ इस प्रकार हैं-
( 1 ) समान सरकार भी भावना , चाहे वह वर्तमान में हो , अतीत में रही हो अथवा भविष्य में रहेगीं
( 2 ) सभी सदस्यों में घनिष्ठ सम्बन्ध और सामीप्य
( 3 ) कमोवेश निश्चित भूभाग
( 4 ) एक राष्ट्र का दूसरे राष्ट्रों से अलग करने वाली विशेषताएँ जैसे भाषा ,
( 5 ) सदस्यों के बीच समान हित
( 6 ) राष्ट्र के स्वरूप के बारे में सदस्यों के बीच सामान्य चेतना अथवा इच्छा ।
ब्राइस के अनुसार , “ राष्ट्र एक ऐसी राष्ट्रीयता ( राष्ट्रीय समूह ) के रूप में होता है । जो राजनीतिक दृष्टि से संघटित होकर या तो स्वतंत्र होती है या स्वाधीन होने की प्रबल इच्छा रखती है । "
राष्ट्रवाद (Nationalism) की विशेषता ( Rashtravad ki visheshta )
राष्ट्रीयता की परिभाषा स्पष्ट करने के लिए हमें इसकी विशेषताओं अथवा इसके आधारभूत तत्वों पर भी विचार करना होगा जो इस प्रकार हैं-- राष्ट्रीय एकता अथवा ' हम ' की भावना है ।
- यह एक राष्ट्र के लोगों अर्थात् सामान्य प्रजाति , सामान्य इतिहास , धर्म , सामान्य भाषा तथा सामान्य संस्कृति एवं परम्पराओं वाले व्यक्तियों के बीच पैदा होने वाली भावना है ।
- यह भावना इस तरह के व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाँधती है , उनके बीच ' हम ' का भाव पैदा करती है तथा उन्हें मानव जाति के शेष भाग से अलग करती है । यह किसी मानव समूह को राष्ट्र का रूप देने वाली आधारभूत भावना होती है । कहने का तात्पर्य यह है कि इसके बिना कोई भी मानव समूह राष्ट्र का रूप नहीं धारण कर सकता है ।
राष्ट्रवाद, राष्ट्र और राष्ट्रीयता की अवधारणा में अन्तर
राष्ट्र को अंग्रेजी भाषा में ' नेशन ' ( Nation ) तथा राष्ट्रीयता को ' नेशनलिटी ' कहते हैं । अंग्रेजी के इन दोनों शब्दों की उत्पत्ति लैटिन के ' नेशियो ' ( Natio ) शब्द से हुई है जिसका अर्थ है जन्म लेना अथवा पैदा होना । इस शब्द का प्रयोग वंश के रूप में भी किया जाता है । उत्पत्ति का समान स्रोत होते हुए भी दोनों में मूलभूत अन्तर है । कतिपय समानताओं के आधार पर राजनीतिक रूप से संघटित व्यक्तियो का समूह विशेष राष्ट्र है ।सामान्य इतिहास , धर्म , भाषा तथा संस्कृति एवं परम्पराअ आदि के आधार पर राजनीतिक दृष्टि से संघटित व्यक्तियों का समूह राष्ट्र है । उस समूह में ' हम ' की भावना उन्हें राजनीतिक दृष्टि से संघटित करती है । यह ' हम ' की भावना ही राष्ट्रीयता है जो उस समूह के व्यक्तियों को एकता के सूत्र में बाँधती है तथा उसे इस प्रकार उस समूहों के लोगों से अलग करती है । यह भावना उनमें इसलिए पैदा होती है कि उनका एक सामान्य इतिहास , धर्म और साहित्य तथा उनकी एक सामान्य भाषा , संस्कृति और परम्परा होती है ।
यही समानता उनमें एकता की भावना पैदा करती है । इन तत्वों के अतिरिक्त भी अनेक तत्व हैं जो एक समूह विशेष के लोगों में एकता और ' हम ' की भावना पैदा करते हैं जैसे भौगोलिक एकता , प्रजातीय एकता , राजनीतिक एकता , सामान्य अधीनता तथा अन्य बातें जिन तत्वों के कारण किसी समूह विशेष में एकता की भावना पैदा होती है तथा वह एक राजनीतिक संघटन का रूप धारण करता है , वे राष्ट्रीयता की भावना विकसित करने वाले तत्व कहे जाते हैं ।
हम देखते हैं कि राष्ट्र और राष्ट्रीयता में मूलभूत अन्तर है परन्तु इसके बावजूद भी दोनों घनिष्ठ रूप से एक - दूसरे के पूरक हैं । राष्ट्र राजनीतिक रूप में संघटित समूह विशेष है तो कतिपय तत्वों के कारण पैदा होने वाली एकता हम की भावना के कारण बनता है । उन तत्वों के कारण पैदा होने वाली यह भावना ही राष्ट्रीयता है । राष्ट्र मूर्त रूप जबकि राष्ट्रीयता एक भावना है । राष्ट्रीयता पहले और राष्ट्र बाद में है ।
वह राष्ट्र निर्माण की आधारशिला है । मार्क्सवादी अथवा साम्यवादी दृष्टिकोण के अन्तर्गत राष्ट्रीयता एक भिन्न अर्थ है । इसे उस जनसमूह के रूप में परिभाषित किया जाता है जिसका एक सामान्य इतिहास , धर्म , साहित्य संस्कृति , भाषा और परम्परा आदि हो परन्तु जो राजनीतिक रूप में संघटित न हो अर्थात् जिसका अपना अलग से स्थापित कोई सम्प्रभु राज्य न हो , जैसे भारत में हिन्दू मुस्लिम , पंजाबी , बंगाली , गुजराती आदि हैं ।
ये भिन्न - भिन्न राष्ट्रीयताएँ हैं । यदि इस अर्थ में भी हम राष्ट्रीयता को लें तो उसमें और राष्ट्र में मौलिक अन्तर है । राष्ट्र राजनीतिक रूप से संघटित जनसमूह है जबकि राष्ट्रीयता के साथ ऐसी बात नहीं है । एक राष्ट्र में अनेक राष्ट्रीयताएं हो सकती हैं ।
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