Relation between Aims of Education and Curriculum
शिक्षा के उद्देश्य का अर्थ एवं परिभाषा ( Meaning and Definition of Aims of Education ) : मनुष्य एक प्रगतिशील प्राणी है, वह सदैव आगे बढ़ना चाहता है ; ऊँचा उठना चाहता है। वह अपने जीवन में जो कुछ प्राप्त करना चाहता है उसकी आदर्श स्थिति को उद्देश्य कहते हैं। इस आदर्श स्थिति को सीमा में नहीं बाँधा जा सकता । उद्देश्य शब्द का शाब्दिक अर्थ भी यही है ।
यह उत तथा दिश , दो शब्दों के योग से बना है । उत का अर्थ है- ऊपर की ओर और दिश का अर्थ है - दिशा दिखाना । इस प्रकार उद्देश्य का अर्थ है - उच्च दिशा का संकेत । और उच्च दिशा एक आदर्श स्थिति की द्योतक होती है , उसे सीमा में नहीं बाँधा जा सकता ।
शिक्षा के क्षेत्र में भी उसका यही अर्थ होता है , वह किसी उच्च दिशा अर्थात् स्थिति की ओर संकेत करता है , ऐसी आदर्श स्थिति जिसे सीमा में नहीं बाँधा जा सकता । अब यदि हम इसे परिभाषा में बाँधना चाहें तो इस प्रकार कह सकते हैं शिक्षा का उद्देश्य एक ऐसा कथन होता है जो व्यक्ति में वांछित परिवर्तन की आदर्श स्थिति की ओर संकेत करता है , ऐसी आदर्श स्थिति जिसे सीमा में नहीं बाँधा जा सकता । |
उद्देश्य और लक्ष्यों में अन्तर (Difference between Objectives and goals)
सामान्यतः लोग उद्देश्य ( Aims ) और लक्ष्य ( Objective ) में भेद नहीं करते और इन्हें पर्यायवाची शब्दों के रूप में प्रयोग करते हैं , परन्तु इनमें पूर्ण और अंश का सम्बन्ध है । उद्देश्य आदर्श स्थिति की ओर संकेत करता है , ऐसी आदर्श स्थिति जिसे सीमा में नहीं बांधा जा सकता । इसके विपरीत लक्ष्य की सीमा निश्चित होती है , वह अपने में प्राप्य होता है ।
प्रायः किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अनेक लक्ष्य निर्धारित किए जाते हैं और इन लक्ष्यों की प्राप्ति करते हुए उद्देश्य प्राप्ति की ओर बढ़ा जाता है । शिक्षा के सन्दर्भ में भी उद्देश्य और लक्ष्य में यही अन्तर होता है । उदाहरण के लिए बच्चों को भाषा का ज्ञान कराना शिक्षा का एक उद्देश्य है और इस भाषा ज्ञान के लिए वर्णों का ज्ञान एवं उनका उच्चारण , कुछ शब्दों का ज्ञान एवं उनका प्रयोग , वाक्य रचना के नियमों का ज्ञान एवं शुद्ध वाक्य रचना करने का अभ्यास आदि यथा उद्देश्य की प्राप्ति हेतु निर्धारित कुछ लक्ष्य हैं ।
यदि ध्यानपूर्वक देखा जाए तो उपर्युक्त लक्ष्यों को तो प्राप्त किया जा सकता है परन्तु हम यह कभी नहीं कह सकते कि किसी को भाषा का पूर्ण ज्ञान हो गया है । मनुष्य एक क्या , अनेक जीवनों में भी किसी भाषा का पूर्ण ज्ञान प्राप्त नहीं कर सकता । उद्देश्य और लक्ष्य में यहीं मूलभूत अन्तर होता है ।
शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यचर्या में सम्बन्ध ( Relation between Aims of Education and Curriculum )
हम जानते हैं कि प्रत्येक समाज शिक्षा का विधान कुछ उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए करता है और वे उद्देश्य ही उसकी शिक्षा के उद्देश्य होते हैं । हम यह भी जानते हैं कि इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए शिक्षा की एक निश्चित पाठ्यचर्या का निर्माण किया जाता है । स्पष्ट है कि शिक्षा के उद्देश्य एवं पाठ्यचर्या में कारण - कार्य का सम्बन्ध है , एक लक्ष्य है तो दूसरा उसकी प्राप्ति का साधन है ।
शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यचर्या के इस सम्बन्ध को हम अपने देश की स्कूली शिक्षा के उद्देश्यों और उनकी पाठ्यचर्या के संदर्भ में स्पष्ट किए देते हैं । वर्तमान में हमारे देश की स्कूली शिक्षा का प्रथम उद्देश्य हैं बच्चों का शारीरिक विकास करना ।
वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के शारीरिक विकास से तात्पर्य उनके शरीर की मांसपेशियों और विभिन्न अंगों के विकास करने , उनकी कर्मेन्द्रियों एवं ज्ञानेन्द्रियों के विकास करने और उनकी जन्मजात शक्तियों के विकास और उनके उदात्तीकरण ( Sublimation ) करने से होता है ।
इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या में स्वास्थ्य विज्ञान ( उत्तम स्वास्थ्य के लक्षण, उत्तम स्वास्थ्य की प्राप्ति के उपाय, रोगों से बचने और रोगग्रस्त होने पर उनके उपचार के उपाय और स्वास्थ्य रक्षक एवं वर्द्धक क्रियाओं ( पी० टी० , योगासन और खेल-कूद ) को स्थान दिया जाता है स्पष्ट है कि शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्माण शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ही किया जाता है । वर्तमान में हमारी स्कूली शिक्षा का दूसरा उद्देश्य है-बच्चों का मानसिक विकास करना ।
वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के मानसिक विकास से तात्पर्य विचार करने और विचारों का आदान-प्रदान करने हेतु भाषा का विकास करने , सामान्य जीवन का ज्ञान कराने हेतु सम्बन्धित विषयों का ज्ञान कराने , भाषा सीखने और जीवन से सम्बन्धित सामान्य ज्ञान प्राप्त करने के साधन उनकी मानसिक शक्तियों ( निरीक्षण, स्मृति, कल्पना , तर्क , चिन्तन एवं समस्या समाधान ) का विकास करने, उनकी बुद्धि और विवेक शक्ति का विकास करने, उन्हें मानसिक रोगों ( भय, निराशा, भग्नाशा एवं दुश्चिन्ता आदि ) से बचाने और उनमें मानसिक प्रेरकों ( अभय, आशा एवं आत्मविश्वास ) को उत्पन्न करने से होता है ।
आप जानते है कि इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या में भाषा ज्ञान और भाषा के प्रयोग , जीवन से सम्बन्धित विविध विषयों के सामान्य ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने में संवाद , चिन्तन , समस्या समाधान को स्थान दिया जाता है और बच्चों के मानसिक स्वास्थ के विकास की विधियों को स्थान दिया जाता है । स्पष्ट है कि जैसा शिक्षा का कोई उद्देश्य वैसी ही उसे प्राप्त करने की शिक्षा की पाठ्यचर्या । वर्तमान में हमारी शिक्षा का तीसरा उद्देश्य है - बच्चों का सामाजिक विकास करना ।
वर्तमान में शिक्षा के क्षेत्र में बच्चों के सामाजिक विकास से तात्पर्य बच्चों को समाज की भाषा के शुद्ध रूप , रीति - रिवाज एक व्यवहार विधियाँ सिखाकर उन्हें समाज में सही रूप से समायोजन करने , उन्हें समाज की अच्छाई - बुराई क प्रति संवेदनशील बनाने और उनमें समाज की अच्छाइयों को अपनाने एवं बुराइयों से बचने की समझ एक क्षमता उत्पन्न करने से होता है ।
यूँ बच्चों के अपने परिवार और समाज की सामाजिक क्रियाओं में भाग लेने से उनका सामाजिक विकास स्वाभाविक रूप से होता है , परन्तु उनके द्वारा समाज में सीखी हुई भाषा को शुद्ध रूप में बदलने और समाज की क्रियाओं में भाग लेते हुए अच्छा - बुरा सब कुछ सीखने में से अच्छे का चयन करने के लिए स्कूली शिक्षा की आवश्यकता होती है । इसके लिए स्कूली शिक्षा की पाठ्यचर्या में भाषा के शुद्ध रूप के ज्ञान और स्कूल की क्रियाओं में भाषा के शुद्ध रूप के प्रयोग को स्थान दिया जाता है । और सामूहिक कार्यों का सामूहिक रूप से करने की क्रियाओं को स्थान दिया जाता है ।
स्कूलों के उच्च सामाजिक पर्यावरण में बच्च का सामाजिक विकास उचित रूप में होता है । बच्चों में समाज सेवा भाव उत्पन्न करने के लिए स्कूली में समाज सेवा कार्यों को स्थान दिया जाता है । स्पष्ट है कि जिस समाज में समाज के जिस की रचना का उद्देश्य सामने होता है , पाठ्यचर्या उसी के अनुकूल बनाई जाती है । वर्तमान में हमारे देश में स्कूली शिक्षा का चौथा उद्देश्य है बच्चों का सांस्कृतिक विकास करना ।
वर्तमान में हमारे देश में शिक्षा द्वारा सांस्कृतिक विकास से तात्पर्य बच्चों को अपनी संस्कृति के अनुसार आचार - विचार करने के साथ - साथ दूसरों की संस्कृतियों के प्रति उदार भाव उत्पन्न करने से होता है , उनमे सांस्कृतिक सहिष्णुता के विकास करने से होता है । आप जानते हैं कि बच्चे अपने परिवार और समाज की क्रियाओं में भाग लेते हुए अपनी संस्कृति को स्वाभाविक रूप से ग्रहण करते हैं , विद्यालयों में तो उसे उचित दिशा प्रदान की जाती है ।
इसके लिए स्कूली पाठ्यचर्या में अपनी संस्कृति के विकास इतिहास और उसके मूल तत्वों को स्थान दिया जाता है , और ऐसे साहित्य के अध्ययन को स्थान दिया जाता है जिसमें उनकी अपनी संस्कृति की झलक होती है और सांस्कृतिक क्रियाओं को स्थान दिया जाता है । और सांस्कृतिक सहिष्णुता के भाव को उत्पन्न करने के लिए । पाठ्यचर्या में दूसरी संस्कृतियों के सामान्य तत्त्वों के ज्ञान को स्थान दिया जाता है ।
इससे सांस्कृतिक सहिष्णुता के विकास के साथ - साथ दूसरी संस्कृतियों के अच्छे तत्त्वों को स्वीकार कर अपनी संस्कृति के विकास को गति मिलती है । साफ जाहिर है कि शिक्षा के किसी उद्देश्य का जो आशय होता है , उसकी पाठ्यचर्या तद्नुकूल बनाई जाती है , शिक्षा के उद्देश्य और उसकी पाठ्यचर्या में कारण कार्य का सम्बन्ध होता है ।
वर्तमान में हमारे देश में स्कूली शिक्षा का पाँचवा उद्देश्य है बच्चों का नैतिक एवं चारित्रिक विकास करना । आप जानते हैं कि प्रत्येक समाज के आचरण सम्बन्धी अपने कुछ मानदण्ड होते हैं , कुछ नियम होते हैं , सामान्यतः इन नियमों के प्रति आस्था और उनके अनुसार चरण करने को नैतिकता और इन नियमों को दृढ़ता के साथ पालन करने को चरित्र कहा जाता है ।
परन्तु वर्तमान में नैतिकता और चरित्र का अर्थ थोड़े व्यापक रूप में लिया जाता है , अब इसकी कसौटी राष्ट्रीयता और अनतर्राष्ट्रीयता होती है , मानव अधिकार और मानव मूल्य होते हैं । आज हमारे देश में शिक्षा के नैतिक एवं चारित्रिक विकास से तात्पर्य बच्चों को मानव अधिकार और मानव मूल्यों का ज्ञान कराने और उन्हें उनके अनुसार आचरण करने में प्रशिक्षित करने से लिया जाता है । आप जानते हैं कि इस संदर्भ में बच्चे अपने परिवार और समाज की क्रियाओं में भाग लेते हुए जो कुछ भी सीखते हैं, प्रथमतः तो उसका दायरा बहुत सीमित होता है और दूसरे वह अच्छा - बुरा सब कुछ सीखते है ।
स्कूली पाठ्यचर्या कुछ इस प्रकार तैयार की जाती है कि उनमें अच्छे - बुरे की पहचान करने , सही - गैरसही की पहचान करने और सही निर्णय करने की शक्ति का विकास होता है और वे जो सही अर्थों में नैतिक है , उसे स्वीकार करते हैं । वर्तमान में हमारे देश में शिक्षा की व्यवस्था करना राज्य का उत्तरदायित्व है इसलिए स्कूली शिक्षा का एक उद्देश्य बच्चों को राज्य के शासनतन्त्र ( लोकतन्त्र ) के सिद्धान्तों का ज्ञान कराना, उनमें लोकतन्त्रीय नागरिकता का विकास करना और उन्हें लोकतन्त्रीय जीवन शैली में प्रशिक्षित करना है,
और सच पूछो तो वर्तमान में यह हमारी स्कूली शिक्षा का सर्वप्रथम उद्देश्य है, यह बात दूसरी है कि पाठ्यचर्या निर्माता इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए अभी तक बातें चाहे जितनी करते हों परन्तु उद्देश्य की प्राप्ति हेतु पाठ्यचर्या में तद्नुकूल ज्ञान और क्रियाओं को स्थान अभी तक नहीं दिया है , बस, नागरिक शास्त्र के कुछ प्रकरण मात्र रख दिए हैं और वे भी ऐसे कि उनसे बच्चों को यह भी ज्ञान नहीं होता है कि नागरिक किसे कहते हैं, एक अच्छे नागरिक में क्या गुण होने चाहिए और उसे कैसा आवरण करना चाहिए ।
इसके लिए सबसे पहली आवश्यकता है कि बच्चों को स्कूलों में प्रारम्भ से ही ऐसा पर्यावरण दिया जाए कि ये लोकतन्त्रीय जीवन शैली को स्वाभाविक रूप से सीखें और गृहण करें और दूसरी आवश्यकता यह है कि उन्हें माध्यमिक स्तर पर भारतीय लोकतन्त्र के छहों मूल सिद्धान्तों का सामान्य ज्ञान कराया ज्ञान और पाठ्यचर्या जाए , उन्हें संविधान द्वारा प्रदत्त मूल अधिकारों और कर्त्तव्यों का स्पष्ट ज्ञान कराया जाए और उन्हें तद्नुकूल आचरण में प्रशिक्षित किया जाए ।
तब वे अपनी माँगों की पूर्ति और सरकार की किसी नीति - रीति के विरोध प्रदर्शनों में रास्ते जाम नहीं करेंगे , रेल नहीं रोकेंगे , तोड़ - फोड़ नहीं करेंगे , आगजनी नहीं करेंगे और सरकारी एवं गैरसरकारी इमारतों को क्षति नहीं पहुँचाएँगे । इसके विशेष अध्ययन के लिए देखें अध्याय -15 , शिक्षा और लोकतन्त्रीय नागरिकता ( Education and Democratic Citizenship ) |
इससे एक तथ्य यह और स्पष्ट होता है कि यदि पाठ्यचर्या में किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आवश्यक सही ज्ञान और क्रियाओं का स्थान नहीं दिया जाता तो उस उद्देश्य की प्राप्ति अपने सही रूप में नहीं की जा सकती ।
हम समझते हैं शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यचर्या के सम्बन्ध के बारे में इतना लिखना पर्याप्त है । फिर आप स्वयं प्रबुद्ध हैं , इस क्षेत्र में आपके स्वयं के अनुभव हैं , आप थोड़ा और विचार करेंगे तो आपको सपष्ट होगा कि शिक्षा के उद्देश्य और पाठ्यचर्या में गहरा सम्बन्ध है और जब तक किसी उद्देश्य की प्राप्ति के लिए पाठ्यचर्या में आवश्यक ज्ञान और क्रियाओं को स्थान नहीं दिया जाता तब तक शिक्षा के उस उद्देश्य की प्राप्ति नहीं की जा सकती ।
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