भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति क्या है? Material and Non-Material Culture?

भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति क्या है? Material and Non-Material Culture?

भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति 

ऑगबर्न ( Ogburn ) ने अपनी पुस्तक ' Social Changes ' में अर्थ सामाजिक विरासत ( Social heritage ) से किया है । ' ऑगवर्न ' के अनुसार, " जिस प्रकार एक व्यक्ति को अपने माता - पिता से कुछ शारीरिक तथा मानसिक विशेषताएँ प्राप्त होती है उसी प्रकार के उसे अपने समाज से भी अनेक चीजें प्राप्त होती हैं । ” बच्चा पैदा होते ही विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं का अनुभव करता है और उनकी पूर्ति के लिए पूर्णरूपेण अपने समाज पर निर्भर रहता है ।

भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति क्या है

समाज से ही भोजन , कपड़ा , आवास तथा अन्य अनेक वस्तुयें खिलौना आदि प्राप्त होते हैं । बड़े होने पर एक सामाजिक प्राणी के रूप में उसे घड़ी, फर्नीचर, बर्तन, जूते , बिस्तर तथा पंखे आदि प्राप्त होते हैं । इसके अतिरिक्त समाज में रहते हुए वह अनेक नियम , रीति - रिवाज , प्रथा , परम्परा , कानून , धर्म , विज्ञान आदि के विषय में ज्ञान प्राप्त करता है तथा उनको वह अपने जीवन पर लागू भी करता है । ये सब चीजें जिस किसी व्यक्ति को समाज में प्राप्त होती हैं , सामाजिक विरासत कहलाती हैं । इसी सामाजिक विरासत को ' श्री ऑगबर्न ' ने संस्कृति की संज्ञा दी है । 


भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति क्या है?

 'ऑगबर्न' ने इसी सामाजिक विरासत या संस्कृति ( Culture ) को निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में विभाजित किया है -


( 1 ) भौतिक संस्कृति ( Material Culture ) - भौतिक संस्कृति के अन्तर्गत उन समस्त भौतिक तत्वों अथवा वस्तुओं का समावेश होता है जिनका निर्माण मानव ( मनुष्यों ) ने किया है , जैसे — रेलगाड़ी , मोटर, वायुयान, मकान, रेडियो, तार, टेलीविजन, मेज, कुर्सी, लोटा, पेन्सिल तथा कलम इत्यादि । 


( 2 ) अभौतिक संस्कृति ( Non - material Culture ) - अभौतिक संस्कृति के अन्तर्गत समाज में पायी जाने वाली समस्त जनरीतियों, लोकाचारों , रूढ़ियों, प्रथाओं, संस्थाओं, विश्वासों, आदर्शो, विधियों, धर्मों , कलाओं आदि का समावेश होता है।


लिण्टन के अनुसार संस्कृति के तत्व 


लिण्टन ( Linton ) ने संस्कृति के तत्वों को तीन भागों में विभाजित किया है-


( 1 ) सार्वभौमिक तत्व ( Universals ) - सार्वभौमिक तत्वों का अभिप्राय उन गुणों से है जिनको सामान्य रूप से सभी समाजों में सभी लोग स्वीकार करते हैं , जैसे वैवाहिक पद्धतियाँ , राज्य की कार्य प्रणालियाँ आदि ।


( 2 ) वैकल्पिक तत्व ( Alternatives ) – वैकल्पिक तत्व वे तत्व हैं जिनके चुनाव का अधिकार व्यक्तियों को होता है जैसे न्यायालय के द्वारा विवाह सम्पन्न करवाना अथवा पुरोहित के द्वारा । 


भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति में अन्तर


भौतिक एवं अभौतिक संस्कृति सम्पूर्ण संस्कृति के दो अंग हैं । उनमें निम्नांकित अन्तर पाये जाते हैं -


( 1 ) अभौतिक संस्कृति अमूर्त होती है उसे माप - तौल नहीं सकते जबकि भौतिक संस्कृति मूर्त होती है । उसे माप - तौल सकते हैं एवं इन्द्रियों द्वारा उसके अस्तित्व को महसूस किया जा सकता है । 


( 2 ) अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति की अपेक्षा धीमी गति से परिवर्तित होती है अतः वह भौतिक संस्कृति की तुलना में स्थिर होती है । 


( 3 ) अभौतिक संस्कृति का सम्बन्ध मानव के आन्तरिक जीवन से है जबकि भौतिक संस्कृति का सम्बन्ध बाह्य जीवन से है । 


( 4 ) अभौतिक संस्कृति में वृद्धि धीमी गति से होती है जबकि भौतिक संस्कृति में तीव्र गति से । उदाहरण के लिए पिछले डेढ़ सौ वर्ष में कितने ही भौतिक आविष्कार हुए , कितने ही प्रकार की नयी मशीनें एवं नयी वस्तुएँ बनीं फिर भी इस अवधि में हमारे विचारों , प्रथाओं , लोक - रीतियों आदि में कोई विशेष परिवर्तन नहीं हुए । 


( 5 ) अभौतिक संस्कृति की तुलना में भौतिक संस्कृति शीघ्र ग्राह्य है । जब दो सांस्कृतिक समूह सम्पर्क में आते हैं तो एक - दूसरे को भौतिक संस्कृति के तत्व स्वीकार कर लिये जाते हैं । अभौतिक संस्कृति के तत्व प्रथाओं एवं रीति - रिवाजों के । इन विभिन्नताओं के बावजूद दोनों संस्कृति एक - दूसरे पर अन्तर्निर्भर होती हैं । संस्कृति के एक भाग में होने वाला परिवर्तन संस्कृति के दूसरे भाग को प्रभावित करता है । एक में विकास होने पर दूसरे में भी विकास होना अनिवार्य हो जाता है ।


इन दोनों का एक - दूसरे के अनुरूप होना आवश्यक है । एक लम्बे समय तक इनमें अलगाव या कुसमायोजन नहीं चल सकता है । इन दोनों संस्कृतियों का अध्ययन समाजशास्त्र में किया जाता है । दोनों संस्कृतियाँ समाज के लिए उपयोगी और लाभदायक हैं । दोनों ही समाज को विकसित करने में कारक और प्रेरक का कार्य करती हैं । मानव समाज के उत्थान में दोनों का समान योग है । दोनों संस्कृतियाँ भौतिक और अभौतिक पर आधारित हैं अभौतिक संस्कृति जहाँ मानव को सामाजिक बनाने में प्रेरक शक्ति का कार्य करती है वहाँ भौतिक मानव को वैज्ञानिक तथा बुद्धिवादी बनाती है ।


यदि अभौतिक संस्कृति आत्मिक तथा सामाजिक विकास का कारण तथा उपादान है तो भौतिक संस्कृति है । भौतिक और अभौतिक अर्थात् दोनों संस्कृतियाँ मानव - जीवन की पोषक हैं । दोनों ही का मानव - समाज के उत्थान में सर्वोत्कृष्ट स्थान है । अभौतिक संस्कृति के अभाव में भौतिक संस्कृति का कार्य अपूर्ण है किन्तु भौतिक संस्कृति के अभाव अभौतिक संस्कृति का कार्य रुकता नहीं है , तो भी भौतिक संस्कृति और अभौतिक संस्कृति आपस में एक - दूसरे की पूरक हैं ।


सम्भवतः संक्षिप्त रूप से यह कहना पर्याप्त होगा कि दोनों ही संस्कृतियाँ मानव - विकास के अंग हैं तथा दोनों संस्कृतियों ने सामाजिक विकास में एक पृष्ठभूमि तथा पोषक का कार्य किया है जिससे मानव का सर्वांगीण विकास सम्भव हो ।


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