कानून एवं प्रथा का सम्बन्ध ( Law and Custom )
आदिम समाजों में कानून की विद्यमानता नहीं होती बल्कि आदिम समय में प्रथाएँ ही कानून का कार्य करती थीं । प्रथायें समय एवं इतिहास की देन हैं । उनका निर्माण किसी समय विशेष में न होकर विकास का परिणाम है और प्रथाओं का निर्माण करने वाली कोई विशिष्ट समिति नहीं पायी जाती है । आदिम लोगों का विश्वास है कि उनकी प्रथायें गोत्र, पूर्वज या ईश्वर की देन हैं अतः उनमें परिवर्तन व संशोधन नहीं हो सकता और न उन्हें रद्द किया जा सकता है और उनके स्थान पर नये कानून भी नहीं बनाये जा सकते ।
वर्तमान कानून यदि देश के संविधान के विरुद्ध हो तो कोई भी व्यक्ति सर्वोच्च न्यायालय में जाकर उसे चुनौती दे सकता है । इसका एक कारण वर्तमान सरकार से कार्यपालिका , विधायिका और न्यायपालिका का पृथक् - पृथक् होना है , जबकि आदिम समाजों में इनका सम्मिश्रण है । गोत्र का मुखिया कानून का निर्माता नहीं है वरन जो कानून प्राचीन समय से चले आ रहे हैं उनका ही वह पालन करवाता है और अवहेलना करने पर व्यक्तिगत रूप से या परिषद् के निर्णय के आधार पर दण्ड देता है ।
वर्तमान कानून लिखित होने के कारण अधिक स्पष्ट है, उनकी व्याख्या वकीलों द्वारा की जाती है, न्यायाधीश और वकील कानून के विशेषज्ञ होते हैं । जबकि प्रथायें मौखिक रूप से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित की जाती हैं , वहाँ आधुनिक समाजों की तरह विशेषज्ञ या कानून के ज्ञाता नहीं हैं वरन् हर व्यक्ति गोत्र, धर्म तथा आधार के नियमों से परिचित है । वर्तमान समाजों की तरह प्रथाओं में विशेषीकरण की प्रकृति कम ही दिखाई . " देती है । हमारे यहाँ तो एक वर्ग ने न्याय दिलाने को एक व्यवसाय के रूप में अपना लिया है और इसके लिए वे प्रशिक्षण भी प्राप्त करते हैं ।
जबकि प्रथाओं के सम्बन्ध में इन सबका अभाव पाया जाता है फिर भी प्रथाओं का पालन उसी तरह किया जाता है जैसे आधुनिक समाजों में कानून से ।
यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )
यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद
यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका
यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत
यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध
यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण
यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत
यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन
यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन
यह भी पढ़ें- सामाजिक उद्विकास: सामाजिक उद्विकास एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर