सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा, विषय-वस्तु तथा अध्ययन क्षेत्र ( Definition, Theme and Field of Study of Social Anthropology )
मानवशास्त्र, मानव और उसके कार्यों का अध्ययन है। 19 वीं शताब्दी के मध्य मानवशास्त्र का एक विज्ञान के रूप में विकास हुआ । मानवशास्त्र शब्द की व्युत्पत्ति एन्थ्रोपी से हुई है जिसका अर्थ है - ' मानव ' तथा ' लोजी ' का अर्थ विज्ञान से है जिसका शाब्दिक अर्थ है - मानव का विज्ञान। वास्तव में मानव और उसके कार्यों का अध्ययन ही मानवशास्त्र में होता है।
सामाजिक मानवशास्त्र की परिभाषा
हॉबेल के अनुसार, “ मानवशास्त्र मानव और उसके समस्त कार्यों का अध्ययन क्रोबर " मानवशास्त्र मनुष्य के समूहों तथा उनके व्यवहार और उत्पादन का विज्ञान है । "
जैकब्स तथा स्टर्न- “ मानवशास्त्र मनुष्य जाति के जन्म से लेकर वर्तमानकाल तक में शारीरिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक विकास तथा व्यवहारों का वैज्ञानिक अध्ययन है। ”
हर्षकोविट्स का कथन है, “ मानवशास्त्र मानव और उसके कार्यों का अध्ययन है।
मजूमदार तथा मदान- " मानवशास्त्र मानव के उद्भव एवं विकास का शारीरिक , सामाजिक तथा सांस्कृतिक दृष्टिकोण से अध्ययन करता है। " उपर्युक्त परिभाषाओं से स्पष्ट है कि
( 1 ) मानवशास्त्र मानव जाति के जन्म के समय से लेकर वर्तमान समय तक के मानव एवं उसके कार्यों का विस्तृत अध्ययन है ।
( 2 ) यह मानव का शारीरिक , सांस्कृतिक एवं सामाजिक दृष्टि से अध्ययन है ।
( 3 ) मानवशास्त्र प्रत्येक युग और प्रत्येक सांस्कृतिक स्तर के मानव का अध्ययन है ।
( 4 ) यह किसी स्थान विशेष, समय विशेष तथा किसी विशेष सांस्कृतिक स्तर के अध्ययन तक ही अपने आपको सीमित नहीं रखता । "
डॉक्टर श्यामाचरण दुबे ने लिखा है- “ प्राणिशास्त्र की शाखा के रूप में नृविज्ञान ( मानवशास्त्र ) प्राचीन तथा आधुनिक मानव के विभिन्न समूहों की शारीरिक रचना एवं प्रक्रियाओं की समानताओं तथा विभिन्नताओं का विश्लेषण और वर्गीकरण करता है। दूसरी ओर एक सामाजिक-सांस्कृतिक अध्ययन के रूप में यह इसी प्रकार की विभिन्न संस्कृतियों की संरचना तथा प्रक्रियाओं का अध्ययन करता
लेवीस्ट्रास ने लिखा है कि " सामाजिक मानवशास्त्र केवल सामाजिक संगठन को जो कि एक अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय है , व्यक्त करता है , लेकिन यह उन बहुत से विषयों में से एक है जिनसे मिलकर सांस्कृतिक मानवशास्त्र बनता है । "
इवान्स प्रिचार्ड ने यह माना है कि " सामाजिक मानवशास्त्र सभी मानव समाजों का अध्ययन है और यह केवल आदिम समाजों का ही, अध्ययन नहीं करता यद्यपि व्यवहार रूप में और सुविधा की दृष्टि से वर्तमान समय में इसका अध्ययन प्रमुखतः सरल या आदिम लोगों की ओर है क्योंकि यह स्पष्ट है कि अन्य कोई भी ऐसा पृथक् विज्ञान नहीं है जो कि अपने आपको पूर्णतः इन समाजों के अध्ययन तक सीमित रखता हो। ”
प्रो . श्रीनिवास ने लिखा है, " मानवशास्त्र मानव समाजों का तुलनात्मक अध्ययन है । आदर्श रूप में इसके अन्तर्गत आदिम , सभ्य एवं ऐतिहासिक सभी समाज आते हैं । "
लूसी मेयर का कहना है कि सामाजिक नृविज्ञान ( मानवशास्त्र ) का ध्यान सदा ऐसे समाजों पर केन्द्रित रहा है जो आदिम कहे जाते हैं अथवा विस्तारपूर्वक कहने की दुविधा हो तो हम कह सकते हैं कि ऐसे समाज जिनकी प्रविधि सरल है अर्थात् ऐसे लोग जो हमारे यहाँ प्रचलित उपकरणों के बिना ही कार्य चलाते हैं, जो यान्त्रिकी और प्रविधियों से दूर हैं उनका काम इन वस्तुओं के बिना ही चलता है किन्तु हम ऐसे समाजों का अध्ययन करें जिनमें वे रहते हैं और उनकी तुलना पाश्चात्य जगत् से करें तो यह देखेंगे कि उनमें और हममें जीवन के मूल सिद्धान्त एक जैसे हैं ।
इस प्रकार विभिन्न समाजों की तुलना करने में ही कुछ सामान्य सिद्धान्त उभरते हैं । स्पष्ट है । सामाजिक मानवशास्त्र आदिम समाजों के अध्ययन में रुचि रखता है, लेकिन साथ ही विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययनों को महत्वपूर्ण मानता है ।
उपर्युक्त परिभाषाओं के आधार पर सकता है कि सामाजिक मानवशास्त्र वह विज्ञान है जो प्रधानतः आदिम समाजों पर अपना ध्यान केन्द्रित करता है एवं इन समाजों में प्रचलित समाजिक व्यवहारों , सामाजिक संगठन , सामाजिक • व्यवस्था अथवा संरचना में रुचि लेता है ।
सामाजिक मानवशास्त्र की विषय-वस्तु
इवान्स प्रिचार्ड के अनुसार सामाजिक मानवशास्त्र की अग्रलिखित विशेषताएँ -
( 1 ) सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक व्यवहार का सामान्यतः संस्थागत, स्वरूपों में अध्ययन करता है; जैसे - परिवार, नातेदारी व्यवस्था, राजनीतिक संगठन, कानूनी प्रणालियाँ तथा धार्मिक पूजा पद्धतियाँ आदि ।
( 2 ) सामाजिक मानवशास्त्र विशेषतः आदिम समाजों का अध्ययन करता है और इनकी आधुनिक सभ्य समाजों से तुलना करता है ।
( 3 ) सैद्धान्तिक रूप से सामाजिक मानवशास्त्र सभी मानव समाजों का अध्ययन है न कि केवल आदिम समाजों का । सामाजिक मानवशास्त्री आदिम लोगों की भाषा, कानून, धर्म तथा राजनीतिक एवं आर्थिक संस्थाओं आदि का अध्ययन करता है ।
( 4 ) सामाजिक मानवशास्त्र का भौगोलिक क्षेत्र काफी विस्तृत है । विश्व के विभिन्न भागों में फैले लोगों का , उनके समाजों एवं उप - समाजों का यह अध्ययन करता है ।
( 5 ) सामाजिक मानवशास्त्र में समाजों का अध्ययन किया जाता है न कि संस्कृतियों का । इसके अन्तर्गत एक समाज के सदस्यों के बीच पाये जाने वाले सम्बन्धों का अध्ययन किया जाता है ।
इवान्स प्रिचार्ड का कहना है कि यद्यपि संस्कृति से सम्बन्धित समस्याएँ और समाज से सम्बन्धित समस्याएँ - दोनों ही समान रूप से महत्वपूर्ण हैं । फिर भी संरचना सम्बन्धी अध्ययन पहले किये जाने चाहिए । सामाजिक
मानवशास्त्र एवं समाजशास्त्र का सम्बन्ध
सामाजिक मानवशास्त्र और समाजशास्त्र एक - दूसरे से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित हैं । इसी घनिष्ठता के कारण इनमें कोई स्पष्ट विभाजन रेखा खींचना सम्भव नहीं है। इवान्स प्रिचार्ड की तो मान्यता है कि सामाजिक मानवशास्त्र को समाजशास्त्रीय अध्ययनों की एक शाखा माना जा सकता है । यह वह शाखा है जो अपने को आदिम जातियों के अध्ययनों में रुचि रखती है ।
जब लोग समाजशास्त्र का प्रयोग करते हैं तो साधारणतया उनके मस्तिष्क में सभ्य समाजों की विशिष्ट समस्याओं के अध्ययन होते हैं । कीसिंग ने लिखा है कि सामाजिक मानवशास्त्र और समाजशास्त्र के बीच निकट सम्बन्ध है , दोनों प्रबल रूप से समूह व्यवहार के वैज्ञानिक सामान्यीकरणों से सम्बन्धित है ।
क्रोबर ने समाजशास्त्र और मानवशास्त्र के बीच पाये जाने वाले घनिष्ठ सम्बन्धों के आधार पर ही इन्हें जुड़वा बहिनें माना है। हॉबेल के हैं । मानवशास्त्र के तीन भागों - भौतिक मानवशास्त्र , प्रागैतिहासिक मानवशास्त्र तथा सामाजिक मानवशास्त्र में से समाजशास्त्र सामाजिक मानवशास्त्र के अत्यन्त निकट है । दोनों ही विज्ञानों के द्वारा समाजों का अध्ययन किया जाता है ।
सामाजिक मानवशास्त्र में आदिम समाजों का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र के द्वारा आधुनिक जटिल सभ्य समाजों का सामाजिक मानवशास्त्र में समाजों का उनकी सम्पूर्णता में अध्ययन किया जाता है । सामाजिक मानवशास्त्री आदिम लोगों की अर्थव्यवस्था का, उनके परिवार और नातेदारी संगठनों का, उनकी प्रौद्योगिकी तथा कलाओं का सामाजिक व्यवस्थाओं के भागों के रूप में अध्ययन करता है । दूसरी ओर समाजशास्त्री पृथक् - पृथक् समस्याओं का; जैसे — विवाह - विच्छेद , सामाजिक समस्याएँ, अपराध, श्रमिक असन्तोष, गरीबी आदि का अध्ययन करता है । सामाजिक मानवशास्त्री सरल और छोटे समाजों का अध्ययन कर समाजशास्त्री को आधुनिक जटिल सभ्य समाजों को समझने में सहायता पहुँचाता है ।
क्लस्टोन के अनुसार मानवशास्त्र व्यक्ति के सामने ऐसा दर्पण प्रस्तुत करता है जिसमें वह अपने को अपनी असंख्य विविधताओं में देख सकते हैं । स्पष्ट है कि मानवशास्त्री समाजशास्त्री को मानव की प्रकृति की अधिक उत्तमता के साथ समझने में योग देता है । समाजशास्त्री आधुनिक जटिल समाजों में विशिष्ट समस्याओं का अध्ययन कर मानवशास्त्री के लिए अनेक उपकल्पनाएँ प्रस्तुत करता है ।
विस्तृत अर्थों में समाजशास्त्र मानव सम्बन्धों के सम्बन्ध में सैद्धान्तिक ज्ञान का एक सामान्य पुंज है । समाजशास्त्र के सैद्धान्तिक ज्ञान का उपयोग आदिम सामाजिक जीवन की अधिक उत्तमता के साथ समझने में किया जाता है । दुर्खीम ने अपने समाजशास्त्रीय अध्ययनों के द्वारा सामाजिक घटनाओं के मूल में पाये जाने वाले सामाजिक कारण को ढूँढ निकाला । उसने विविध घटनाओं का कारण स्वयं समाज को माना है ।
अनेक मानवशास्त्रियों ने दुर्खीम के इस अध्ययन का उपयोग अपने मानवशास्त्रीय सिद्धान्तों के निर्माण के परिप्रेक्ष्य में किया है । बोटोमोर ने भारत के सन्दर्भ में समाजशास्त्र एवं मानवशास्त्र के बीच पाये जाने वाले धनिष्ठ सम्बन्ध को स्पष्ट करते हुए लिखा है कि भारतीय समाज न तो आदिम समाज की तरह पूरी तरह से पिछड़ा हुआ है और न ही औद्योगिक समाजों की तरह पूर्ण विकसित । अतः ऐसे समाजों में समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता ।
समाजशास्त्र और मानवशास्त्र में अन्तर
( 1 ) मानवशास्त्र आदिम समाजों का अध्ययन करता है जबकि समाजशास्त्र सभ्य समाजों का ।
( 2 ) दोनों विज्ञानों की अध्ययन पद्धतियों में अन्तर है ।
( 3 ) समाजशास्त्र समाज दर्शन और नियोजन से सम्बन्ध रखता है जबकि सामाजिक मानवशास्त्र इससे सम्बन्ध नहीं रखता।
( 4 ) मानवशास्त्र किसी समाज की सम्पूर्णता के अध्ययन से सम्बन्ध रखता है , जबकि समाजशास्त्र समाज के किसी विशिष्ट पहलू का अध्ययन करता है।
( 5 ) समाजशास्त्र व्यापक और अव्यक्तिक संगठनों तथा सामाजिक प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जबकि सामाजिक , मानवशास्त्र छोटे तथा आत्मनिर्भर समाजों का अध्ययन करता है।
सामाजिक मानवशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र
सामाजिक मानवशास्त्र को अध्ययन - वस्तु तथा क्षेत्र के सम्बन्ध में विद्वानों में एकमत नहीं है । अमरीका में अधिकांश मानवशास्त्री अपने को सांस्कृतिक मानवशास्त्री मानते हैं जो संस्कृति के अध्ययन को अपना विषय समझते हैं । इंग्लैण्ड में अधिकतर मानवशास्त्री अपने को सामाजिक मानवशास्त्री कहते हैं और वे समाज , सामाजिक संगठन अथवा सामाजिक संरचना को अपने अध्ययन में सम्मिलित करते हैं । प्रथम परम्परा के लोग जो अपने को संस्कृति के अध्ययन से सम्बन्धित मानते हैं ।
टायलर एवं बोआस से प्रेरणा प्राप्त करते हैं और दूसरी परम्परा के लोग जो अपने को समाज के अध्ययन से सम्बन्धित मानते हैं , दुखींम तथा रेडक्लिफ ब्राउन के विचारों से प्रभावित हैं । लूसी मेयर ने लिखा है कि अधिकांश वर्तमान समाजिक वैज्ञानिक अपने विषय ( सामाजिक समाजशास्त्र ) को एक शाखा के रूप में मानते हैं । ' रैडक्लिफ ब्राउन ' ने इसे तुलनात्मक समाजशास्त्र की संज्ञा दी है ।
एक समय था जब आदिम या सरल समाजों के अध्ययन को ही सामाजिक मानवशास्त्र का उचित क्षेत्र समझा जाता था । ऐसा मानने वालों में रैडक्लिफ ब्राउन, नैडेल तथा पिडिंगटन आदि विद्वानों के नाम उल्लेखनीय हैं । इवान्स प्रिचार्ड का मत है कि सामाजिक मानवशास्त्र यद्यपि आदिम या सरल समाजों का अध्ययन अवश्य करता है , लेकिन वह अपने को केवल आदिम समाजों के अध्ययन मात्र तक ही सीमित नहीं है रखता है ।
रैडक्लिफ ब्राउन का विचार है कि सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में वे समाज या सामाजिक व्यवस्थाएँ आती हैं जिनका समग्र रूप में अध्ययन किया जा सके और जिनकी तुलना अन्य समाजों से की जा सके । इस सम्बन्ध में इन्वास
प्रिचार्ड का विचार है कि सामाजिक मानवशास्त्र के अध्ययन क्षेत्र में सामाजिक व्यवहार एवं सामाजिक संस्थाएँ आती हैं । नैडेल तथा पिडिंगटन का मत है कि सामाजिक मानवशास्त्र में समकालीन आदि समुदायों की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है । सामाजिक मानवशास्त्र की विषय - वस्तु एवं अध्ययन क्षेत्र को अधिक स्पष्टता के साथ समझने के लिए इस बात की विवेचना करनी होगी कि सामाजिक मानवशास्त्री किन - किन बातों का अध्ययन अपने विषय के अन्तर्गत नहीं करते -
( 1 ) सामाजिक मानवशास्त्री सम्पूर्ण संस्कृति का अध्ययन नहीं करता है —
यह कार्य सांस्कृतिक मानवशास्त्री का है । सामाजिक मानवशास्त्री संस्थागत सामाजिक व्यवहारों , सामाजिक संस्थाओं , सामाजिक संगठनों एवं सामाजिक संरचनाओं के अध्ययन में रुचि लेता है ।
( 2 ) सामाजिक मानवशास्त्री अपने आपको आदिम या सरल समाजों के अध्ययन तक ही सीमित नहीं रखता है ।
इतना अवश्य है कि उसने ऐसे समाजों के अध्ययन में उनके लघु आकार , सीमित जनसंख्या , सरल प्रौद्योगिकी तथा अध्ययन की सुविधा आदि को ध्यान में रखते हुए रुचि ली है । सामाजिक मानवशास्त्रियों का अध्ययन वर्णनात्मक अध्ययनों से विश्लेषणात्मक एवं तुलनात्मक अध्ययनों की ओर गया है ।
( 3 ) सामाजिक मानवशास्त्री अपने को देश और काल की सीमाओं में नहीं बाँधता
सामाजिक मानवशास्त्रियों ने विश्व के विभिन्न भागों में लोगों के अध्ययन में रुचि दिखायी है । जहाँ उन्होंने समकालीन आदिम समुदायों का अध्ययन किया है , वहाँ साथ ही वे अब औद्योगिक समाजों में कार्य की ओर भी प्रवृत्त हुए हैं । अनेक सामाजिक मानवशास्त्रियों ने ग्रामीण अध्ययन भी किये हैं । उन्होंने कृषक समाज के अध्ययन में भी रुचि ली है । इस दृष्टि से सामाजिक मानवशास्त्र का क्षेत्र काफी व्यापक है ।
( 4 ) सामाजिक मानवशास्त्री सम्पूर्ण समाज का अध्ययन नहीं करता है
इस सम्बन्ध में इवान्स प्रिचार्ड ने लिखा है कि सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक व्यवहार का सामान्यतः उनके संस्थागत स्वरूपों में , जैसे परिवार, नातेदारी - व्यवस्था, राजनीतिक संगठन, कानूनी विधियों, धार्मिक पूजा - पद्धतियों आदि का तथा ऐसी संस्थाओं के बीच पाये जाने वाले सम्बन्ध का अध्ययन करता है।
अतः स्पष्ट है कि सामाजिक मानवशास्त्र के क्षेत्र के अन्तर्गत तीन प्रकार के विषयों का समावेश है-
( क ) वे संस्थागत सामाजिक सम्बन्ध, घटनाएँ तथा व्यवहार जो कि यथार्थ रूप में पाये जाते हैं अथवा घटित होते हैं ।
( ख ) उस समाज के दृष्टिकोण से उसका जो अर्थ होता है, तथा
( ग ) इन सबसे सम्बन्धित अर्थात् इन अर्थों के आधार पर जो सामाजिक, वैज्ञानिक एवं नैतिक मूल्य उस समाज में पाये जाते हैं ।
इस प्रकार सामाजिक मानवशास्त्र उन संस्थागत सामाजिक सम्बन्ध, व्यवहारों, व्यवस्थाओं तथा मूल्यों का अध्ययन करता है जो कि वास्तविक निरीक्षण-परीक्षण द्वारा जाने जा सकते हैं। मानवशास्त्री किसी भी पूर्व मान्यता को स्वीकार न करके निरीक्षण पर अत्यधिक बल देता है ।
सामाजिक मानवशास्त्र की प्रकृति तथा क्षेत्र को इवान्स प्रिचार्ड ने निम्नलिखित प्रकार से समझाया है
( 1 ) सामाजिक मानवशास्त्र आदिम समाजों के सामाजिक जीवन के अध्ययन से सम्बन्धित है और इसीलिए यह इन समाजों की जनसंख्या, परिवार तथा विवाह, नातेदारी, अर्थव्यवस्था के अंशों के रूप में करता है ।
( 2 ) यह विज्ञान सभी प्रकार के मानव - समाजों का अध्ययन करता है फिर भी यह अपना ध्यान विशेष रूप से आदिम समाजों पर केन्द्रित किया करता है क्योंकि इसका उद्देश्य सामाजिक संगठन तथा संस्थाओं के विकास और आदिम रूप का अध्ययन करना होता है ।
( 3 ) सामाजिक मानवशास्त्र सामाजिक जीवन की समस्त घटनाओं का अध्ययन नहीं है । यह तो केवल उन्हीं घटनाओं का अध्ययन है जो कि सामाजिक जीवन को निर्धारित करने में महत्त्वपूर्ण है ।
( 4 ) सामाजिक मानवशास्त्री वास्तविक तथ्यों के आधार पर वैज्ञानिक अध्ययन करने का प्रयत्न करता है और इसीलिए यह विज्ञान इस बात को स्वीकार करता है कि समाज और संगठन पर स्थानीय परिस्थितियों का काफी प्रभाव होता है । इस प्रभाव के महत्त्व को स्वीकार करते हुए यह विज्ञान सभी समाजों को एक श्रेणी के अन्तर्गत न लाकर उन्हें अलग - अलग मानता है ।
( 5 ) सामाजिक मानवशास्त्र समाज का अध्ययन है , संस्कृति का नहीं । सांस्कृतिक मानवशास्त्र की एक शाखा के रूप में सामाजिक मानवशास्त्र समाजशास्त्रीय दृष्टिकोण को अपनाता है और यह जानने का प्रयत्न करता है कि किस प्रकार विविध सामाजिक व्यवस्थाएँ अपने - अपने स्थान पर टिकी हुई हैं । इस दृष्टिकोण से संरचना का अध्ययन विशेष रूप से उल्लेखनीय है ।
इतना ही नहीं एक सम्पूर्ण सामाजिक संरचना निर्माण करने वाली इकाइयों का अध्ययन सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत आता है और इसके अन्तर्गत नातेदारी - व्यवस्था, आर्थिक व्यवस्था, धार्मिक व्यवस्था, राजनैतिक व्यवस्था आदि का सामाजिक सन्दर्भ में अध्ययन सामाजिक मानवशास्त्र का उल्लेखनीय कार्य है । इसी के साथ - साथ जो विभिन्न उपभाग हमें देखने को मिलते हैं ( जैसे सरकार, कानून, धर्म और जादू आदि ) उनका अध्ययन भी सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत आता है।
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