संस्कृति संवर्धन का प्रसारवादी सिद्धान्त - Expansionist Theory of Culture

संस्कृति - संवर्धन के प्रसारवादी सिद्धान्त की आलोचनात्मक विवेचना कीजिए ।

प्रसारवादी सिद्धान्त: संस्कृति के उद्विकासवादी सिद्धान्त की वैज्ञानिक आलोचना के परिणामस्वरूप ही बीसवीं सदी के प्रारम्भ में प्रसारवादियों ने उद्विकासवादियों के एकमार्गी उद्विकास , मानव की मानसिक एकता एवं स्वतन्त्र आविष्कार के तर्कों का खण्डन किया और कहा कि मानव की आविष्कार करने की क्षमता सीमित है । विभिन्न संस्कृतियों में जब हम समान सांस्कृतिक तत्व देखते हैं तो इसका कारण स्वतन्त्र रूप से आविष्कार न होकर प्रसार है । मानव में अनुकरण करने एवं ग्रहण करने की शक्ति असीमित है ।


अतः जब भी दो सांस्कृतिक समूह सम्पर्क में आते हैं तो उनमें एक - दूसरे के रीति - रिवाजों, प्रथाओं, धर्म, कला, भौतिक वस्तुओं, भाषा, वस्त्र, बर्तन, भोजन आदि का आदान - प्रदान होता है । अधिक शारीरिक निकटता होने पर सांस्कृतिक प्रसार के भी अधिक अवसर होते हैं । इसके परिणामस्वरूप एक स्थान पर आविष्कृत सांस्कृतिक तत्व दूसरे स्थान पर फैलते हैं , इसे ही ' प्रसारवाद ' के नाम से जाना जाता है । एक स्थान से दूसरे स्थानों पर जाने वाले व्यक्ति अपनी संस्कृति को दूसरे स्थान पर फैलाने में योग देते हैं । प्रसारवादियों ने कई ऐतिहासिक उदाहरण भी दिये । 


प्रसारवादियों ने प्रसार की कुछ शर्तों एवं विशेषताओं का भी उल्लेख किया है । जो इस प्रकार हैं -

( 1 ) कोई भी सांस्कृतिक समूह दूसरे सांस्कृतिक समूह की संस्कृति या सांस्कृतिक तत्वों को उसी समय अपनायेगा जब वह उसके लिए अर्थपूर्ण और उपयोगी हो ।

( 2 ) प्रसार के दौरान संस्कृति - तत्व अपने मूल रूप में नहीं रह सकते वरन् उनमें ऐसे परिवर्तन आ जाते हैं जिससे वे अपने आपको नये पर्यावरण के अनुरूप बना सकें । 

( 3 ) प्रसार साधारणतः ' उच्च ' संस्कृति से ' निम्न ' संस्कृति या विकसित से अविकसित संस्कृति की ओर होता है ।

( 4 ) सांस्कृतिक प्रसार के कारण ग्रहण करने वाले समूह में सामाजिक एवं स्कृतिक परिवर्तन घटित हो सकते हैं । कभी - कभी तो प्रसारित होने वाले सांस्कृतिक था बिना किसी प्रकार की हलचल मचाये दूसरे समूह में घुल - मिल जाते हैं और भी - कभी ये कई परिवर्तनों के लिए उत्तरदायी हैं । 

( 5 ) सांस्कृतिक प्रसार में कुछ बाधाएँ भी हैं , जैसे - यातायात एवं संचार का अभाव , समुद्र , रेगिस्तान , पहाड़ , दलदल एवं सम्पर्क का अभाव आदि ।


इस प्रकार प्रसारवाद के जन्मदाताओं ने सांस्कृतिक परिवर्तन एवं परिवर्धन को एक नया मोड़ दिया है । प्रश्न उठता है कि वह स्थान कौन - सा है जहाँ से सभी स्रोतों पर सांस्कृतिक प्रसार हुआ। दूसरे शब्दों में प्रसार के केन्द्र कौन - से हैं ? इस प्रश्न पर प्रसारवादियों के मत में भिन्नता है जिसके परिणामस्वरूप प्रसारवादियों में तीन सम्प्रदाय बन गये । तीनों सम्प्रदायों का संक्षेप में उल्लेख निम्नवत् है -


( 1 ) ब्रिटिश प्रसारवादी या पान इजिप्शियन सम्प्रदाय –

अंग्रेज प्रसारवादी सम्प्रदाय मानवशास्त्रीय इतिहास में सबसे बाद में आया और सबसे पहले लुप्त भी हो गया । इस सम्प्रदाय ने मानवशास्त्र में भीषण - विवाद को जन्म दिया । इलियट स्मिथ इस सम्प्रदाय के संस्थापक थे और डब्ल्यू. जे. पैरी उसके समर्थक । स्मिथ केरियो विश्वविद्यालय में शरीररचनाशास्त्र के प्रोफेसर एवं विशेषज्ञ थे । उन्होंने अपने अध्ययन एवं अनुसन्धान के दौरान लम्बे समय तक मिस्र में निवास किया । आपने " The Ancient Egyption ” एवं “ The Migration of Early Culture ”. नामक पुस्तकें प्रकाशित कीं ।


इन रचनाओं में आपने मित्र को ही प्राचीन सभ्यता और संस्कृति का केन्द्र बताया। स्पष्ट है कि वे मिस्र की सभ्यता से बहुत प्रभावित हुए । अपने अध्ययन के द्वारा उन्होंने यह बताने का प्रयास किया कि भूमध्य सागरीय प्रदेशों , अफ्रीका , भारत , इण्डोनेशिया , पोलीनेशिया तथा अमरीका में भी संस्कृति का प्रसार मिस्र से ही हुआ है और मिस्र में संस्कृति का जन्म ईसा से लगभग चार हजार वर्ष पूर्व हुआ ।


इस सम्प्रदाय की आलोचना अनेक मानवशास्त्रियों ने इस आधार पर की है कि इनके विचार अवैज्ञानिक और संकीर्ण हैं मिस्र को ही सभी संस्कृतियों का उद्गम स्थल मानना हास्यास्पद है । चूँकि स्मिथ लम्बे समय तक मिस्र में रहे । अतः उनके विचार पक्षपातपूर्ण हो गये । यदि वे मिस्र के स्थान पर भारत में रहे होते तो वे भारत को ही संस्कृति का उद्गम स्थल कह सकते थे । 


( 2 ) जर्मन प्रसारवादी या सांस्कृतिक ऐतिहासिक सम्प्रदाय -

जर्मन आस्ट्रेलियन सम्प्रदाय का दृष्टिकोण अधिक तर्कपूर्ण एवं परिष्कृत है । इन्होंने उद्विकास और प्रसार दोनों का सम्मिश्रण किया है । इसके अगुवा फादर सिमित तथा समर्थकों में एन्करमेन एफ मैकनर , ई . फॉय आदि प्रमुख हैं । इस सम्प्रदाय को ' कल्चर क्रीज ' सम्प्रदाय कहते हैं जिसका अर्थ है ' सांस्कृतिक चक्र ' या ' सांस्कृतिक घेरा ' । इन लोगों की मान्यता है कि प्रत्येक संस्कृति के प्रसार का एक पूरा होता है । और हम ऐतिहासिक प्रमाणों के आधार पर इस घेरे को ज्ञात कर सकते हैं ।


ब्रिटिश प्रसारवादियों की तरह जर्मन प्रसारवादी किसी एक ही स्थान को संस्कृति का उद्गम स्थान नहीं मानते वरन् उनकी मान्यता है कि भिन्न - भिन्न स्थानों पर संस्कृति का जन्म हुआ और फिर दूसरे स्थानों पर प्रसार हुआ । इस प्रकार से इस सम्प्रदाय के लोग उद्विकास एवं प्रसार दोनों को ही स्वीकार करते हैं । समय - समय पर विभिन्न स्थानों पर संस्कृति के तत्वों का जन्म होता रहा है और वे दूसरे स्थानों पर फैलते रहते हैं ।


यदि हम सांस्कृतिक तत्वों के इतिहास को ज्ञात करें तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उनका उद्गम कहाँ हुआ है और वे किस स्थान से होकर प्रसारित हुई हैं । से इस सिद्धान्त की सबसे बड़ी कमज़ोरी यह है कि यह सिद्धान्त हमें प्रसार का ज्ञान कराता है , किन्तु यह नहीं बताता कि 'प्रसार' क्यों होता है ? 


( 3 ) अमरीकन प्रसारवादी- 

इस सिद्धान्त के प्रमुख नेता अमरीका के मानवशास्त्री फ्रेंच बोआस तथा क्लार्क विसलर हैं । उन्होंने सांस्कृतिक प्रसार क्यों होता है को प्रकट करने का प्रयत्न किया और जर्मन प्रसारवादियों की कमी को दूर किया । इन विद्वानों ने सांस्कृतिक तत्वों की व्याख्या करके उनके मिलन और आत्मसात् का मनोवैज्ञानिक अध्ययन किया ।


फ्रेंज बोआस ने उत्तरी अमरीका को विभिन्न सांस्कृतिक क्षेत्रों में विभक्त कर वहाँ की खाद्य सामग्री, धर्म, सामाजिक संगठन, गृह निर्माण कला आदि का अध्ययन किया और एक क्षेत्र में से दूसरे क्षेत्र में होने वाले प्रसार का उल्लेख किया । विमलर ने भी बोआस की इस अध्ययन पद्धति को अपनाया और अमरीका तथा अफ्रीका को विभिन्न सांस्कृतिक एवं भौगोलिक क्षेत्र में विभक्त कर उनका अध्ययन किया ।


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