मध्य काल में स्त्री शिक्षा की क्या स्थिति थी? Female education in the medieval period

मध्य काल में स्त्री शिक्षा की क्या स्थिति थी? What was the status of female education in the medieval period?

नारी शिक्षा - इस्लामी काल में नारी शिक्षा को वह प्रगति तो नहीं मिली जो वैदिक काल में थी, कारण साफ है, क्योंकि मुसलमानों में पर्दा प्रथा का बाहुल्य था। दीर्घकाल तक भारतीय संस्कृति के सम्पर्क में रहने के बाद भी पर्दा - प्रथा का अन्त नहीं हो सका । इस समय छोटी बालिकाएँ मकतबों में जाया करती थीं । उच्च शिक्षा महिलाओं को घर में दी जाती थी । उस्ताद अमीरों के घर जाकर बालिकाओं या महिलाओं को शिक्षा देता था ।

मध्य काल में स्त्री शिक्षा की क्या स्थिति थी? Female education in the medieval period

सम्राज्ञी नूरजहाँ का नाम शिक्षित नारी समाज में सम्मान से लिया जा सकता है , रजिया सुशिक्षित नारी थी । बाबर की पुत्री गुलबदन का हुमायूँनामा प्रसिद्ध ग्रन्थ है। औरंगजेब की पुत्री जैबुन्निसा अरबी , फारसी की विद्वान् थी । नारियों में सुलताना सलीम, मुमताज महल, जहाँआरा आदि को साहित्य और कला का पर्याप्त ज्ञान था । लड़कियों की शिक्षा घर में होती थी । राज्य या समाज की ओर से कोई विशिष्ट व्यवस्था न थी ।


मध्य काल में स्त्री शिक्षा (WOMEN EDUCATION IN MEDIEVAL PERIOD)


सिद्धान्त रूप में तो मुस्लिम संस्कृति महिलाओं का बहुत सम्मान करती है तथा उसे शिक्षा के समान अवसर देने की बात कहती है, परन्तु व्यावहारिकता में इस दिशा में कोई ठोस उपाय या प्रयास नहीं किये गये। यही कारण था कि स्त्रियों को मकतबों में प्राथमिक शिक्षा तो प्रदान की जाती थी, मगर उच्च शिक्षा अर्थात् मदरसों में उनको प्रवेश की अनुमति नहीं थी। मदरसों में उनके प्रवेश निषेध का बहुत बड़ा कारण पर्दा प्रथा थी। उच्च शिक्षा तक आते-आते बालिकाएँ बड़ी हो जाती थीं और उनके लिए बुर्का पहनकर अपने शरीर को ढकना अनिवार्य हो जाता था।


राज्य या समाज की ओर से भी इनके लिए पृथक, शिक्षा संस्थाओं की कोई व्यवस्था नहीं की गई थी, जिसके फलस्वरूप भी निम्न और निर्धन वर्ग की बालिकाएँ या तो ज्ञान प्राप्ति के लाभ से वंचित रह जाती थीं या उनका ज्ञान अत्यन्त कम पढ़ने और लिखने तक सीमित रह जाता था। सामान्यतया लड़कियों को पढ़ाना सम्मान के विपरीत व मनहूसियत की निशानी समझा जाता था व उन्हें घर पर ही सिलाई, कढ़ाई, खाना बनाना, बातचीत करने का सलीका आदि सिखा दिया जाता था।


फिर भी यह नहीं कहा जा सकता कि मुस्लिम काल में नारी शिक्षा का पूर्ण अभाव था, क्योंकि कई नारियाँ विदुषी थीं तथा शिक्षा पसन्द करती थीं तथा उन्होंने साहित्य उत्पन्न करने में भी योगदान दिया है। साम्राज्ञी नूरजहाँ का नाम विदुषी महिलाओं में लिया जा सकता है, क्योंकि उन्होंने अपने शौहर की प्रशासनिक प्रणाली में एक बहुत कार्यकुशल भूमिका का निर्वाह कर अपनी योग्यताओं का पर्याप्त प्रमाण दिया।


नूरजहाँ का उदाहरण ही इस बात का प्रमाण भी है, कि राजकीय परिवार की महिलाओं की शिक्षा का प्रबन्ध महल में ही किया जाता था। राजघरानों व कुलीन परिवारों की बालिकाओं और स्त्रियों को व्यक्तिगत रूप से उनके निवास स्थानों पर ही धर्म व साहित्य के अतिरिक्त नृत्य, संगीत व अन्य ललित कलाओं की भी शिक्षा दी जाती थी, इल्तुतमिश की पुत्री रजिया सुल्ताना अपनी विद्वता के लिए प्रसिद्ध थी।


दक्षिण की वीरांगना चाँद सुल्ताना को तुर्की, अरबी, फारसी व मराठी भाषाओं पर समान अधिकार था। बाबर की पुत्री 'गुलबदन बेगम' की कृति, "हुमायूँनामा" इतिहास की अमूल्य निधि मानी जाती है। हुमायूँ की भतीजी सलीमा सुल्ताना, जहाँगीर की पत्नी नूरजहाँ और औरंगजेब की पुत्री जेबुन्निसा बेगम आदि सभी विदुषी महिलाएँ थीं। इनके अतिरिक्त और भी अनेक सुशिक्षित स्त्रियाँ थीं, किन्तु इनकी तुलना में उन सामान्य स्त्रियों की संख्या कहीं अधिक थी जो अशिक्षित थीं।


सारांशत: कहा जा सकता है कि राजघरानों व कुलीन परिवारों की स्त्रियों में तो शिक्षा का प्रचलन था, परन्तु सामान्य स्त्रियों में शिक्षा का प्रसार नहीं हुआ तथा वे शिक्षा से रंचमात्र भी लाभ प्राप्त न कर सीं। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए डॉ. एफ. ई. केई ने लिखा है  "मुसलमान स्त्रियों को विशाल सामान्य समूह के पारिवारिक कर्तव्यों को करने के लिए घरेलू प्रशिक्षण के अलावा किसी भी प्रकार की कोई शिक्षा प्राप्त नहीं हुई।”


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