जनजातीय आर्थिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ - Salient Features of Tribal Economic Organization

जनजातीय आर्थिक संगठन की प्रमुख विशेषताओं का उल्लेख कीजिए । Salient Features of Tribal Economic Organization in Hindi.

जनजातीय आर्थिक संगठन: मजूमदार और मदान के अनुसार, " जीवन की दिन - प्रतिदिन की अधिकाधिक आवश्यकताओं को कम से कम परिश्रम से पूरा करने हेतु मानव सम्बन्धी तथा मानव प्रयत्नों को नियमित और संगठित करना ही अर्थव्यवस्था है । यह एक व्यवस्थित तरीके से सीमित साधनों द्वारा असीमित लक्ष्यों की अधिकतम सन्तुष्टि का प्रयास है । "


श्री पिडिंगटन के अनुसार, “ आर्थिक व्यवस्था जिसका उद्देश्य लोगों की भौतिक आवश्यकताओं को पूरा करना है , उत्पादन को संगठित करने , वितरण को नियन्त्रित करने तथा समुदाय में स्वामित्व व अधिकारों और माँगों को निर्धारित करने के लिए होती है । जनजातीय समुदाय में अर्थव्यवस्था का क्या स्वरूप है , यह बतलाना इस परिप्रेक्ष्य में समीचीन है । "


आर्थिक विकास के प्रमुख स्तर ( Key levels of economic development )

आदिम समाज में अर्थव्यवस्था को चार प्रमुख स्तरों में समझा जा सकता है -


( 1 ) शिकार करने और भोजन इकट्ठा करने का स्तर —

यह मानव जीवन के आर्थिक पहलू की प्रथम अवस्था है। इस स्तर में आर्थिक संगठन न केवल अव्यवस्थित तथा अनिश्चित था। इस स्तर में मानव फल, कन्द, मूल, पशुओं का शिकार तथा अन्य वन्य पदार्थों से अपनी उदरपूर्ति करता था। जंगलों में पशुओं का शिकार करना तथा मछली मारने के कार्य में स्त्रियों का भी सहयोग लिया जाता था ।

जनजातीय आर्थिक संगठन की प्रमुख विशेषताएँ - Salient Features of Tribal Economic Organization

शिकार करने और मछली मारने के स्थल प्रायः सामूहिक होते थे। उस पर किसी व्यक्ति का अधिकार नहीं होता था । इस समय शिकार करने हेतु जिन उपकरणों तथा हथियारों की आवश्यकता होती थी उसे वह प्रायः स्वयं ही निर्मित कर लेता था । परिवार की सामान्य धारणा प्रायः रक्त सम्बन्धी हुआ करती थी । 


( 2 ) पशुपालन या चरागाह का स्तर -

मानव समाज के विकास में आदिम अवस्था का यह दूसरा स्तर है । इसमें सभी जानवरों को मारकर खाने की तुलना में कुछ जानवर जो उसके शिकार में सहयोगी होते थे , उन पशुओं को पालने लगा । धीरे - धीरे कुछ पशुओं से समान ढोने तथा दुग्ध निकालने का काम करने लगा । आखेट युग में जहाँ मानव घुमक्कड़ जीवन व्यतीत करता था । पशुपालन युग में थोड़ा स्थिर होकर रहना सीख गया ।


ऐसे पशु जो स्तनधारी थे तथा दुग्ध दे सकते थे उसने दूध प्राप्त करना तथा उन्हें सुस्वाद समझकर पेट भरना पशुपालन युग की प्रमुख विशेषता थी। इस काल में मानव थोड़ा सभ्य हो गया वह झुण्ड में पशुओं को पालता था । इस स्तर में आर्थिक क्रियाओं के सम्बन्ध में प्राकृतिक पर्यावरण पर निर्भरता प्रायः प्रथम स्तर जैसी बनी रही इसीलिए ऋतु परिवर्तन के साथ - साथ लोगों को चरागाही की खोज में एक जगह से दूसरी जगह जाना पड़ता था ।


फिर आर्थिक जीवन उतना अनिश्चित नहीं था , जितना प्रथम स्तर में पशुओं में कोई रोग फैल जाने पर या एकाएक अधिक संख्या में पशुओं के मर जाने पर बहुधा पशुपालक समूहों को आर्थिक संकट का सामना करना पड़ता था । ऐसी परिस्थितियों में पूरे समूह के लोग सहयोगी होते थे क्योंकि पशुओं पर पूरे समूह का अधिकार होता था ।


( 3 ) कृषि स्तर

इस स्तर का प्रारम्भ तब हुआ है जब मानव को बीज बोने और पौधे उगाने की कला आ गयी । फलों का बाग़ लगाने या खेती करने की इस क्षमता ने आर्थिक जीवन को पहले से अधिक स्थिर बनाया यद्यपि कृषि करना पूर्णतया प्रकृति पर निर्भर था परन्तु प्रकृति की यह अनिश्चितता प्रथम और दूसरे स्तर से अधिक सुरक्षित थी । कृषि युग में मानव खेती करना सीख गया जिससे उसकी आर्थिक व्यवस्था सुदृढ़ हुई ।


अनाजों को उत्पन्न करने के लिए कृषि का काम सर्वप्रथम कब और कहाँ प्रारम्भ हुआ यह बतलाना कठिन है किन्तु इतना स्पष्ट है कि जब मानव को बीज बोने तथा पौधे उगाने की कला का विकास हुआ तभी से कृषि युग का प्रारम्भ होता है । कृषि कार्य में स्त्रियों का योगदान महत्त्वपूर्ण था । जनजातीय समाज में कृषि का कार्य औजारों के अभाव में बीज तथा खेती को तैयारी के तरीकों की जानकारी के अभाव में पूर्णरूप से अविकसित था ।


फिर भी इतना कहा जा सकता है कि पशुपालन तथा आखेट स्तर से यह स्तर अधिक है विकसित तथा व्यवस्थित था । आज भी ऐसे जनजातीय समुदाय हैं जहाँ कृषि एक ही स्थान पर की जाती है । अलग - अलग कृषि करना तथा खेतों को बदल - बदल कर करना यह जनजातीय समुदाय की अपनी विशेषता थी ।


( 4 ) औद्योगिक स्तर –

जनजातीय समुदाय में औद्योगिक स्तर नहीं पाया जाता है , परन्तु वृक्षों की पत्तियाँ प्राप्त कर उनसे बर्तन या अन्य वस्तुएँ बनाना तथा उन्हें बाजार में बेचना औद्योगिक स्तर की प्रमुख विशेषता है । जनजातीय क्षेत्रों में उद्योगों का अभाव था ।


आज भी पर्वतीय या पहाड़ी क्षेत्रों में कुछ लोग लकड़ी प्राप्त करने तथा पत्थर तोड़ने आदि का काम सीख रहे हैं । युवागृहों में दस्तकारी आदि के कार्यों की शिक्षा देना तथा फलों व सब्जियों के विविध प्रकारों को तैयार करना उनकी औद्योगिक प्रवृत्ति का द्योतक है । परन्तु इन सभी कार्यों का स्थान सभ्य समाज है इसलिए उद्योग - धन्धों का जनजातीय क्षेत्रों में पनपना सम्भव प्रतीत नहीं होता ।


आदिम अर्थव्यवस्था की विशेषताएँ ( Features of Primitive Economy )

आदिम समाजों की अर्थव्यवस्था को निम्नलिखित विशेषताओं के द्वारा प्रदर्शित किया जा सकता है-


( 1 ) जनजातीय समुदाय में आर्थिक क्रियाओं को धर्म और जादू से जोड़कर सम्पादित किया जाता है ; जैसे - यदि अगले दिन शिकार करना है तो उससे एक दिन पूर्व स्त्री सहवास वर्जित है क्योंकि इससे शिकार के देवता के अप्रसन्न होने का खतरा होता था । इसी प्रकार कृषि कार्य के प्रारम्भ में प्रथम दिन और अन्तिम दिन पशुओं की बलि चढ़ाना अनिवार्य था ।


( 2 ) आर्थिक उत्पादन कार्य में प्रौद्योगिकी का प्रयोग नहीं होता है , इसलिए अर्थोपार्जन की विधियाँ प्राचीन ही हैं ।


( 3 ) जनजातियों में उत्पादन और वितरण पर अधिक बल दिया जाता है विनिमय पर नहीं । इसलिए आर्थिक रूप से ये पिछड़े होते हैं । संचय की प्रवृत्ति का अभाव होता है इस कारण ऋणग्रस्तता इनका भाग्य होता है ।


( 4 ) आदिम समाजों में मुद्रा का अभाव है । इसका प्रचलन भी नहीं है इसलिए वस्तुओं का विनिमय अदला - बदली के दृष्टिकोण से होता है । सभ्य समाजों में मुद्रा का प्रचलन होने से विनिमय के आधार उन्नत हैं तथा विविध प्रकारों में मुद्रा अर्जित करने का प्रयास व्यक्त करता है ।


( 5 ) विनिमय के द्वारा मुनाफाखोरी का पूर्णरूपेण अभाव है जिसमें इन्हें विशेष लाभ नहीं हो पाता , साथ ही इनकी कार्यप्रणाली में लाभ कमाना विरोधी तत्व माना जाता है । अतः वस्तुओं को लाने-ले-जाने तथा अन्य प्रकार के लाभों से वंचित होते हैं ।


( 6 ) जनजातीय अर्थव्यवस्था में नियमित बाजार , व्यापार , दबाव प्रतियोगिता , एकाधिकार आदि का नितान्त अभाव पाया जाता है । यदि कहीं है भी तो वह बहुत ही कम ।


( 7 ) आदिम समाजों में परिवार आत्म - निर्भर होता है और वह इस अर्थ में कि प्रायः अपनी समस्त आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्रत्येक परिवार पृथक् रूप से या संयुक्त रूप से कर लेता है और इस कार्य में परिवार के प्रत्येक सक्षम व्यक्ति को सक्रिय भाग लेना होता है।


( 8 ) आदिम समाजों में अधिकतर आर्थिक क्रियाएँ सामूहिक और सहकारी आधारों पर समाहित होती हैं । आर्थिक क्रियाओं का प्रमुख उद्देश्य सामुदायिक कर्त्तव्यों को निभाना है ।


( 9 ) व्यक्तिगत या निजी सम्पत्ति की धारणा आदिम समाजों में किसी न किसी रूप में अवश्य ही होती है जो व्यक्ति या परिवार स्वयं बनाता है या कमाता


( 10 ) आदिम समाजों में नये परिवर्तन और आविष्कार बहुत ही कम हैं । सभ्य समाज के सम्पर्क में आने के लिए आर्थिक संगठन में परिवर्तन प्रारम्भ हो गया है किन्तु इसकी गति अभी मन्द है।


( 11 ) अनेक आदिम समाजों में उपहार विनिमय का एक माध्यम होता है । इन समाजों में उपहार को विनिमय के माध्यम से लिया जाता है ।


( 12 ) आदिम समाजों में आतिथ्य को आर्थिक सेवा के रूप में देखा जाता है । उनके समूह का कोई भी व्यक्ति आकर अतिरिक्त भोजन प्राप्त कर सकता है । उनके यहाँ सामानों को एकत्रित करके रखना उचित नहीं माना जाता जैसी कि सभ्य समाजों में देखने को मिलता है । 


फोर्ड तथा हर्षकोविट्स ने आदिम अर्थव्यवस्था का वर्गीकरण निम्न प्रकार किया है—

( क ) संकलन

( ख ) शिकार

( ग ) मछली मारना

( घ ) कृषि

( ङ ) पशुपालन ।


इस प्रकार उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि जनजातियों की अर्थव्यवस्था अभी पूर्ण रूप से अविकसित है । यह अवश्य कहा जा सकता है कि उनकी अर्थव्यवस्था का आधार जो भी पहले से था एक प्राकृतिक सम्पदा के रूप में वह भी सभ्य समाज द्वारा अपहृत किया जा रहा है।


यह भी पढ़ें- साम्राज्यवाद के विकास की सहायक दशाएँ ( कारक )

यह भी पढ़ें- ऐतिहासिक भौतिकतावाद

यह भी पढ़ें- अनुकरण क्या है? - समाजीकरण में इसकी भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में कला की भूमिका

यह भी पढ़ें- फ्रायड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- समाजीकरण और सामाजिक नियंत्रण के बीच सम्बन्ध

यह भी पढ़ें- प्राथमिक एवं द्वितीयक समाजीकरण

यह भी पढ़ें- मीड का समाजीकरण का सिद्धांत

यह भी पढ़ें- सामाजिक अनुकरण | अनुकरण के प्रकार

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण में जनमत की भूमिका

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के औपचारिक साधन

यह भी पढ़ें- सामाजिक नियंत्रण के अनौपचारिक साधन

यह भी पढ़ें- सामाजिक उद्विकास: सामाजिक उद्विकास एवं सामाजिक प्रगति में अन्तर

    #buttons=(Accept !) #days=(20)

    Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
    Accept !
    To Top