संस्कृति की अवधारणा एवं विशेषताएँ - Concept and Characteristics of Culture.

संस्कृति की अवधारणा एवं विशेषताएँ - Concept and Characteristics of Culture in Hindi.

प्रसिद्ध मानवशास्त्री हॉबेल के शब्दों में , " संस्कृति एक अनोखी मानव घटना है । ” मानवशास्त्र की अनोखी उपलब्धि संस्कृति है । बिना संस्कृति के कुछ भी सामाजिक नहीं । इसीलिए कहा गया है - संस्कृति सामाजिक होती है ।

नीचे इसकी कुछ परिभाषाएँ दी जा रही हैं जिससे इसका भाव और स्पष्ट होगा ।


टायलर के शब्दों में , " संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून, प्रथा और ऐसी ही अन्य क्षमताओं और आदतों का समावेश रहता है जिन्हें मनुष्य समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त करता है । "


इस परिभाषा में इस बात पर बल दिया गया है कि संस्कृति मानव की सामाजिक विरासत है । यह व्यक्ति के समाज का उपहार है जोकि उसे समाज के सदस्य होने के नाते प्राप्त है । यदि स्पष्ट रूप से कहा जाय तो संस्कृति से तात्पर्य वह ' सब कुछ ' होता है जिसे मानव अपने सामाजिक जीवन में सीखता है या समाज से पाता है । संस्कृति प्रकृति की देन नहीं , बल्कि समाज की देन है ।


यह समाज का मानव को श्रेष्ठतम वरदान है । इसी दृष्टिकोण को प्रस्तुत करते हुए लैंडिस ने लिखा है कि ' संस्कृति वह दुनिया है जिसमें एक व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु तक निवास करता है , चलता - फिरता है और अपने अस्तित्व को बनाये रखता है । "


श्री पिडिंगटन ने संस्कृति को एक - दूसरे ढंग से परिभाषित किया है । आपके शब्दों में , “ संस्कृति उन भौतिक तथा बौद्धिक साधनों या उपकरणों का सम्पूर्ण योग है जिसके द्वारा मानव अपनी प्राणिशास्त्रीय तथा सामाजिक आवश्यकताओं को सन्तुष्टि तथा अपने पर्यावरण से अनुकूलन करता है । " 


इस प्रकार श्री पिडिंगटन के अनुसार किसी भी मानव की संस्कृति में दो प्रकार की घटनाओं का समावेश होता है -


( 1 ) भौतिक वस्तुएँ - जिन्हें मानव अपनी आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए । बनाता है; जैसे - उपकरण, औजार, बर्तन, वस्त्र, मकान, मन्दिर, मूर्तियाँ आदि । समावेश संस्कृति में होता है । 


( 2 ) ज्ञान , विश्वास मूल्य आदि अभौतिक या अमूर्त घटनाओं का भी समावेश संस्कृति में होता है। संस्कृति के ये दोनों पक्ष एक दूसरे से सम्बन्धित तथा एक-दूसरे के पूरक होते हैं ।


श्री विडने ने अपनी परिभाषा में लिखा है कि " संस्कृति में कृषि, कला, प्रौद्योगिकी, सामाजिक संगठन, भाषा, धर्म, कला आदि का समावेश होता है । इनकी परिभाषा में संस्कृति के विभिन्न तत्वों का स्पष्टीकरण किया गया है । इनमें कृषि सम्बन्धी तत्व, प्राविधिक तथ्य, सामाजिक तथ्य तथा मानसिक तथ्य समाहित हैं ।


श्री मैलिनोवस्की के अनुसार- " संस्कृति प्राप्त आवश्यकताओं की एक व्यवस्था है तथा उद्देश्यमूलक क्रियाओं की एक संगठित व्यवस्था है । " इनके अनुसार संस्कृति के अन्तर्गत जीवन के समग्र तरीके या ढंग आ जाते हैं जो कि व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक तथा अन्य आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं और उसे प्रकृति के बन्धनों से मुक्त कराते हैं । इस प्रकार संस्कृति मानव का वह साधन है जिसके द्वारा या जिसके माध्यम से वह अपने साधनों को प्राप्त करता है अर्थात् अपनी विभिन्न आवश्यकताओं की पूर्ति करता है ।


श्री हॉबेल के मतानुसार " संस्कृति समाज से सम्बन्धित सीखे हुए व्यवहार प्रतिमानों का सम्पूर्ण योग है जो कि एक समाज के सदस्यों की विशेषताओं को बतलाता है और जो इसीलिए प्राणिशास्त्रीय विरासत का परिणाम नहीं होता है । हॉबेल के मतानुसार संस्कृति वंशानुक्रमण के द्वारा निर्धारित नहीं होती है । संस्कृति तो पूर्णतया सामाजिक आविष्कारों का परिणाम होती है । दूसरे शब्दों में संस्कृति सामाजिक आवश्यकताओं की पूर्ति से सम्बन्धित आविष्कारों को कहते हैं ।


इसी कारण वह विचारों के आदान - प्रदान तथा शिक्षा के माध्यम से एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होती है । संस्कृति की निरन्तरता को बनाये रखना एक सामाजिक आवश्यकता होती है । ' श्री हसंकॉक्ट्सि के शब्दों में- " संस्कृति पर्यावरण का मानव निर्मित भाग है । " यह परिभाषा मानव के दो प्रकार के पर्यावरण का संकेत करती है -


( 1 ) प्राकृतिक पर्यावरण - जो प्रकृति के द्वारा उपलब्ध है उसका प्रयोग मानव किन आधारों पर करता है । 


( 2 ) सामाजिक पर्यावरण समूह तथा संस्थाओं का निर्माण और विकास मानव किन आधारों पर करता है ? इससे स्पष्ट होता है कि मानव के समक्ष चुनौतियों के रूप में जो भी उपस्थित होता है तथा मानव उनका प्रत्युत्तर देने के प्रमाण में जो भी उपक्रम करता है वही संस्कृति की एक व्यवस्था को जन्म देती है ।


इन सभी परिभाषाओं के उपरान्त यह तथ्य स्पष्ट हो जाता है कि मानव अपने निवास की अवधि में जिन प्रमुख उपलब्धियों को प्राप्त करता है , वही संस्कृति है ।


डॉ . ए . एन . वर्मा के शब्दों में , " संस्कृति मानव द्वारा निर्मित भौतिक और अभौतिक मूल्यों का वह संगठन है जो व्यक्ति और समाज के सम्बन्धों से उपजती है तथा एक अमूल्य धरोहर के रूप में विद्यमान होती है । " इस परिभाषा में डॉ . वर्मा ने संस्कृति के दो पक्षों को प्रकाशित किया है । संस्कृति का भौतिक पक्ष भौतिक उपलब्धियों से सम्बन्धित है जिसे मानव ने अपनी आवश्यकता पूर्ति के लिए बनाया है । संस्कृति का अभौतिक पक्ष ज्ञान , विज्ञान एवं कला से सम्बन्धित है जिनसे जीवन मूल्य बनते हैं तथा आदर्शों की स्थापना में सहयोगी होते हैं ।


राल्फ लिटन ने संस्कृति को सामाजिक वंशानुक्रम कहा है किन्तु इसके स्थान पर सामाजिक विरासत कहना अधिक उपयोगी सिद्ध होगा । श्री डी . एस . फोर्ड ने संस्कृति की समस्याओं को सुलझाने के परम्परागत तरीकों को समावेशित किया है । 


संस्कृति की विशेषताएं | Features of Culture in Hindi

( 1 ) संस्कृति सीखी जाती है - संस्कृति सीखे हुए व्यवहार को कहते हैं । जो भाषा के माध्यम से मन्द गति से सीखी जाती है तथा व्यवहार का अंग बन जाती हैं ।


( 2 ) संस्कृति में हस्तान्तरित होने का गुण निहित है — संस्कृति में हस्तान्तरित होने का गुण विद्यमान होता है । इसीलिए कहा जाता है कि संस्कृति पीढ़ी दर पीढ़ी हस्तान्तरित होती रहती है ।


( 3 ) प्रत्येक समाज की संस्कृति भिन्न - भिन्न होती है - संसार के प्रत्येक समाजों की संस्कृति में एकरूपता नहीं होती बल्कि वे भिन्न प्रकार की होती है । इनमें प्रतीकों तथा अभौतिक मूल्यों की विभिन्नताएँ आती हैं ।


( 4 ) संस्कृति में सामाजिकता का गुण होता है- संस्कृति की प्रकृति सामाजिक होती है और यह संसार के प्रत्येक समाजों में पायी जाती है । इसीलिए मनुष्य को सामाजिक प्राणी कहना समीचीन प्रतीत होता है क्योंकि सभी में सम्मिलन का गुण विद्यमान होता है ।


( 5 ) संस्कृति समूह की आदर्श होती है- प्रत्येक समाज की संस्कृति भिन्न होती है , जो उस समय के लिए आदर्श होती है । यही कारण है कि संस्कृति के आदर्श को प्राप्त करना समूह का लक्ष्य होता है ।


( 6 ) संस्कृति मानव आवश्यकताओं की पूर्ति करती है - संस्कृति का भौतिक पक्ष मानव आवश्यकताओं से सम्बन्धित होता है । समाज में पाये जाने वाले नुतन आविष्कारों की परिसीमाएँ आवश्यकताओं से ही सम्बन्धित होती हैं ।


( 7 ) संस्कृति में अनुकूलन का गुण होता है - संस्कृति एक ऐसी व्यवस्था है जो मानव को आत्मसात करने तथा अनुकूलन करने का गुण सिखलाती है । कोई भी समाज अपनी सांस्कृतिक व्यवस्था में आने वाले प्रत्येक प्राणी का अनुकूलन करता है ।


( 8 ) संस्कृति आधिवैयक्तिक और आधिसावयवी होती है - संस्कृति का एक महत्त्वपूर्ण गुण यह है कि यह व्यक्ति और समाज से ऊपर की वस्तु होती है । इसमें यह स्पष्ट होता है कि संस्कृति मानव निर्मित अवश्य होती है , किन्तु उसके कार्यों का परिसीमन व्यक्ति नहीं कर सकता । सामाजिक स्तर पर भी समूह उस सांस्कृतिक आदर्श को प्राप्त करने का प्रयास अवश्य करता है किन्तु समूह की वह वस्तु बनकर नहीं रहती है ।


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