गोखले बिल Gokhale bill (1911) : गोखले बिल की प्रमुख विशेषताएँ
गोखले बिल Gokhale bill (1911)
सन् 1905 में आरम्भ होने वाले भारतीय राष्ट्रीय आन्दोलन का प्रसार सम्पूर्ण देश में हो चुका था तथा उग्रवादी व उदारवादी दोनों दलों के नेता आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभा रहे थे किन्तु इस सम्बन्ध में सर्वाधिक आक्रामक भूमिका गोपाल कृष्ण गोखले निभा रहे थे। लार्ड कर्जन की शिक्षा नीति की घोषणा हो चुकी थी। गोखले उच्चकोटि के विद्वान, अच्छे शिक्षक व कुशल वक्ता थे। अतः वह कर्जन द्वारा पारित 'विश्वविद्यालय अधिनियम-1904' का खुलकर विरोध कर रहे थे।
अंग्रेज लगातार अपनी नवीन नीतियों व शैक्षिक अधिनियमों के माध्यम से देश की शैक्षिक स्थिति को उन्नत बनाने की बात कर रहे थे। किन्तु वास्तविकता यह थी कि ये समस्त प्रयास दिखावा मात्र थे एवं भारत जैसे विस्तृत क्षेत्रफल व जनसंख्या वाले भूभाग में यह अत्यन्त न्यून थे।
सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय चेतना के प्रसार के कारण, देशी संस्थाओं द्वारा अनेक शैक्षिक प्रयास किये गये, जैसे-सन् 1910 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस ने अपने इलाहाबाद अधिवेशन में एवं मुस्लिम लीग ने अपने नागपुर अधिवेशन में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य व निःशुल्क बनाने के सम्बन्ध में प्रस्ताव पारित किये।
देश में अनिवार्य तथा निःशुल्क शिक्षा की मांग पर सर्वाधिक कार्य गोपाल कृष्ण गोखले द्वारा किया गया। शिक्षित (बी. ए.) होने के कारण वे तत्कालीन शिक्षा के गुण-दोषों से भली भाँति परिचित थे तथा उनका मत था कि जब तक भारतीयों को शिक्षित नहीं किया जाता, तब तक स्वतन्त्रता की अपेक्षा करना व्यर्थ है।
इसी बीच सन् 1906 में एक घटना से गोपाल कृष्ण गोखले को इतनी अधिक प्रेरणा मिली कि वे अपने प्रयासों में और अधिक तत्पर हो गये। सन् 1906 में बड़ौदा के तत्कालीन नरेश सयाजी राव गायकवाड़ ने बड़ौदा राज्य में 7 से 12 वर्ष के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य एवं निशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की। अतः गोखले भी प्राथमिक शिक्षा की उक्त योजना को सम्पूर्ण भारत में लागू करवाने के लिये कृत संकल्प हो गये।
गोखले का प्रस्ताव (GOKHALE'S RESOLUTION)
प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में अपनी योजना को साकार रूप देने के उद्देश्य से केन्द्रीय धारा सपा (Imperial Legislative Council) जिसके वे स्वयं सदस्य थे, में 19 मार्च, 1910 ई. में अनिवार्य एवं निशुल्क प्राथमिक शिक्षा के सम्बन्ध में एक प्रस्ताव पेश किया। यह प्रस्ताव निम्न प्रकार था -
यह सभा सिफारिश करती है कि सम्पूर्ण देश में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य एवं नि:शुल्क करने का कार्य प्रारम्भ कर देना चाहिये तथा इस सम्बन्ध में सरकारी व गैर सरकारी आयडियों को सम्मिलित करके एक संयुक्त आयोग शीघ्र ही नियुक्त किया जाए।""
अपने इस प्रस्ताव में गोखले ने कुछ सुझाव देकर ब्रिटिश सरकार का ध्यान आकृष्ट किया-
(1) 6-10 आयु वर्ग के बच्चे जिन क्षेत्रों में 35% भी शिक्षा प्राप्त कर रहे हों, वहां पा अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा अनिवार्य कर दी जाए।
(2) प्राथमिक शिक्षा हेतु केन्द्र में एक पृथक् शिक्षा विभाग खोला जाए।
(3) प्राथमिक शिक्षा के प्रबन्ध व देखरेख हेतु एक सचिव की नियुक्ति की जाए।
(4) केन्द्रीय विभाग नियमित रूप से गजट (सरकारी विवरण पत्र) प्रकाशित करके प्राथमिक शिक्षा की प्रगति का विवरण प्रस्तुत करे।
(5) स्थानीय निकाय एवं प्रान्तीय सरकारें प्राथमिक शिक्षा पर होने वाले व्यय को 1:2 के अनुपात में वहन करें।
केन्द्रीय धारा सभा में इस प्रस्ताव पर व्यापक विचार-विमर्श हुआ। अधिकतर सदस्य गोखले के तकों से सहमत अवश्य हुये, किन्तु प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य व निःशुल्क करने के प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया। यद्यपि प्राथमिक शिक्षा हेतु पृथक् विभाग व सचिव की व्यवस्था अवश्य कर दी गई।
इस शिक्षा विभाग की नियुक्ति सन् 1940 में की गई तथा प्राथमिक शिक्षा की वार्षिक प्रगति की विवरणिका को भी नियमित रूप से प्रकाशित करने का प्रबन्ध किया गया। गोखले वास्तव में अपने प्रस्तावों से सम्बन्धित लक्ष्यों को प्राप्त न कर सके, किन्तु उनके इन प्रस्तावों ने शिक्षा के क्षेत्र में महान् परिवर्तन अवश्य कर दिये, क्योंकि स्वतन्त्रता के उपरान्त संविधान में धारा 45 के रूप में प्राथमिक शिक्षा को अनिवार्य बना दिया गया तथा 14 वर्ष तक की आयु वर्ग के छात्रों की अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की गई है। अतः वास्तविक रूप से यह स्पष्ट है कि गोखले के प्रयासों ने अत्यन्त दूरगामी व सकारात्मक प्रभाव डाले।
गौखले निरन्तर अपने शैक्षिक प्रयासों के प्रति तत्पर रहे, यद्यपि उनके सन् 1910 में प्रस्तुत किये गये प्रस्ताव अस्वीकृत कर दिये गये, किन्तु फिर भी वे निरन्तर बच्चों की शिक्षा व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रस्ताव प्रस्तुत करते रहे। इसी क्रम में उन्होंने 16 मार्च, सन् 1911 की धारा सभा (Legislative Council) में एक बिल प्रस्तुत किया। इस बिल का मुख्य उद्देश्य भारत में प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता के सिद्धान्त को लागू करना था। इस बिल में प्राथमिक शिक्षा के विकास से सम्बन्धित निम्न सुझाव दिये-
(1) गवर्नर जनरल ने जिन स्थानों पर प्राथमिक शिक्षा की अनिवार्यता का निश्चय किया, वहीं पर इसे लागू किया जाए।
(2) स्थानीय निकायों में सभी कार्यों के उत्तरदायित्व एक कानून के रूप में लागू किये जायें।
(3) शिक्षा पर आने वाले व्यय को स्थानीय निकायों व राज्य सरकारों को 1:2 के अनुपात में वहन करना चाहिये।
(4) जिन क्षेत्रों में यह अधिनियम लागू किया, उन क्षेत्रों में अभिभावकों को 6 से 10 वर्ष की केक विद्यालयों में भेजना अनिवार्य होगा तथा नियम को अभिभावकों को दण्डित किया
(5) पहले यह अधिनियम बालकों की शिक्षा के लिये लागू किया जायेगा, बाद में बालिकाओं की शिक्षा पर लागू होगा।
(6) 10 रुपये प्रति माह से कम आय वाले अभिभावकों के बच्चों को कोई शुल्क नहीं देना
17 मार्च, सन् 1912 को इस बिल पर धारा सभा में विचार किया गया, किन्तु सरकार ने इन्हें आवीकृत कर दिया। यद्यपि ये सुझाव जनता के लिये वास्तव में अत्यन्त लाभदायक सिद्ध हो सकते थे, किन्तु इन पर गम्भीरता से विचार न करते हुये इन्हें ठुकरा दिया गया।
गोपाल कृष्ण गोखले ने भारत में प्राथमिक शिक्षा की उन्नति हेतु अत्यन्त दूरगामी व लाभदायक कार्य किये। उनके द्वारा किये गये प्रयास, गोखले प्रस्ताव 1910 ई. व गोखले बिल-1911 के रूप में विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इन्हीं प्रस्तावों को आगे चलकर स्वतन्त्रता के उपरान्त भारतीय संविधान की धारा 45 के रूप में साकार रूप दिया गया।
गोखले बिल की प्रमुख विशेषताएँ--
गोखले बिल की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित है -
( 1 ) अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा उन्हीं स्थानों पर लागू की जाय जहाँ पर एक निश्चित संख्या में बालक शिक्षा ग्रहण कर रहे हों । गवर्नर - जनरल को अधिकार होगा कि वह यह प्रतिशत निश्चित करे।
( 2 ) सरकार की स्वीकृति के बाद ही संस्थाएँ उक्त नियमों को लागू कर सकती हैं ।
( 3 ) स्थानीय संस्था को यह अधिकार होगा कि इन नियमों को वह चाहे पूरे क्षेत्र में लागू करे या किसी भाग में । प्र ( 4 ) पर यह अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा का नियम वहाँ लागू होगा जहाँ 6 से 10 वर्ष तक के बालकों के लिए प्राथमिक शिक्षा जरूरी होगी ।
( 5 ) यदि अभिभावक की मासिक आय 100 रुपये से कम हो तो उस बालक से शुल्क न ली जाय ।
( 6 ) अधिनियम के व्यय के विषय में यह उल्लेख किया गया था कि प्रथमिक शिक्षा का व्यय - भार स्थानीय बोर्डों व सरकार द्वारा उठाया जाय लेकिन सरकार कम - से कम 2/3 भाग व्यय वहन करेगी।
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