शिक्षा ( Education ) का अर्थ, परिभाषा, प्रक्रिया

शिक्षा ( Education ) का अर्थ, परिभाषा, प्रक्रिया

शिक्षा ( Education ) का अर्थ

शिक्षा ( Education ) एक महत्वपूर्ण और सर्वव्यापी विषय है। यह मानव की एक विशेष उपलब्धि है। शिक्षा मानव विकास का मूल साधन है इसी विकास के कारण मानव समस्त प्राणियों की मुकुटमणि माना गया है। मानव शिक्षा के द्वारा ही अपनी वाणी, विवेक, सामाजिकता, सृजनशीलता से विभूषित होता है। इसके द्वारा मनुष्य की जन्मजात शक्तियों का विकास उसके ज्ञान व कौशल में वृद्धि तथा व्यवहार में परिवर्तन किया जाता है।

यह कार्य मनुष्य के पैदा होते ही शुरू हो जाता है। उस समय वह बोलना, चलना उठना, बैठना कुछ भी नहीं जानता है। वह एकदम असामाजिक होता है। परन्तु जैसे-जैसे वह बड़ा होता है वैसे वह परिवार व समाज के संपर्क में आता है जब वह कुछ बड़ा हो जाता है तो उसकी शिक्षा विद्यालय में सुनियोजित ढंग से प्रारम्भ होती है विद्यालय के साथ-साथ उसे परिवार एवं समाज से बहुत कुछ सीखने को मिलता रहता हैं सीखने-सीखने का यह क्रम जीचवन पर्यन्त अर्थात् विद्यालय छोड़ने के उपरोन्त भी चलता रहता है। शिक्षा शब्द का प्रयोग अनेक अर्थों में किया जाता है। उपलब्ध ज्ञान के आधार पर शिक्षा के अर्थ को निम्न आधार पर स्पष्ट कर सकते हैं:

1. शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Etymological Meaning of Education) 
2. शिक्षा का संकुचित अर्थ (Narrower Meaning of Education)
3. शिक्षा का शिक्षा का व्यापक अर्थ (Wedder Meaning of Education)


1. शिक्षा का शाब्दिक अर्थ (Etymological Meaning of Education) 

शब्द व्युत्पत्ति की दृष्टि से शिक्षा शब्द का उद्गम संस्कृत के 'शिक्षा' धातु से हुई है। 'शिक्षा का अर्थ 'सीखना' होता है। तथा प्रेरक के रूप में प्रयुक्त होने पर इसका अर्थ सिखाना' भी हो जाता है। अतः शिक्षा का शाब्दिक अर्थ सीखना और सिखाना हुआ। रघुवंश में शिक्षा शब्द का दोनों ही अर्थों में प्रयोग हुआ है-

अमूच्च नम्रः प्राणिपात शिक्षया।

शिक्षा विशेष लघुहस्ततया निमेषात्तूष्णीचंकार शरपूरितवक्त्ररन्यान। प्रारम्भ में संस्कृत में शिक्षा का प्रयोग उच्चारण की शिक्षा देने के लिए होता था। सायण ने ऋग्वेद के भाग्य में लिखा है कि जिसमें स्वर वर्ण आदि के उच्चारण के प्रकारों को शिक्षा या उपदेश दिया जाय वहीं शिक्षा है। स्वर्णवर्णाद् युच्चारण प्रकारों यत्र शिक्ष्यते-उपदिश्यते सा शिक्षा।

भारतीय भाषाओं में शिक्षा के पर्यायवाची के रूप में विद्या तथा ज्ञान शब्दों का भी प्रयोग किया जाता हैं 'विद्या' शब्द का उद्गम 'विद्' धातु से हुई है, जिसका अर्थ जानना' या 'सौखना' होता है। बाद में विद्या शब्द पाठ्यक्रम के रूप में रूढ़ हो गया। भारतीय दर्शनों में ज्ञान शब्द का वही अर्थ है जो व्यापक अर्थों में शिक्षा का होता हैं भारतीय शब्द का वही अर्थ है जो व्यापक अर्थों में शिक्षा का होता है।

भारतीय दर्शनों में केवल सूचना अथवा तथ्यों के लिए 'ज्ञान' शब्द का प्रयोग नहीं होता। अमरकोश में ज्ञान और विज्ञान के विषय में कहा यगा है कि ज्ञान का विषय मुक्ति है जब कि विचज्ञान का शिल्प और विविध शास्त्र मोक्षे श्रीनिमयन्त्र विज्ञानं शिल्प शस्त्रयोः। अर्थात् ज्ञान वह है जो मनुष्य को उन्नत करता है तथा मुक्ति के लिए भाग प्रशस्त करता है जबकि व्यवहारिक जीवन में जो कुछ सीखा जाता है, विज्ञान कहलाता है। शिक्षा शब्द अंग्रेजी भाषा के 'एजूकेशन' (Education) शब्द का हिन्दी रूपान्तर हैं 'एजुकेशन' शब्द की व्युत्पत्ति लैटिन भाषा के निम्न शब्दों से हुई है-

1. एड्केटम (Aducatum) शब्द लैटिन भाषा के दो शब्दों 'ए' (E) और 'डयूको (Duco) का अर्थ है) अग्रसर करना, आगे बढ़ाना, बाहर निकालना। इस प्रकार एड्केटम का अर्थ है अन्दर से बाहर की ओर ले जाना। अतः एजूकेशन का अर्थ है बालक की आन्तरिक शक्तियों को बाहर निकालना या बाहर की ओर ले जाना।

बालक के अन्दर बहुत सो मानसिक शक्तियां विद्यमान रहती हैं, ये शक्तियां सुसुप्तावस्था में रहती हैं इन्हें जगाने, प्रस्फुटित करने और विकसित करने का कार्य शिक्षा करती है अब प्रश्न यह उठता है कि क्या शिक्षा कोई वस्तु है ? जो बालक के आन्तरिक शक्तियों का विकास करती है। अगर विचार किया जाय तो पता चलता है कि शिक्षा कोई वस्तु नहीं हो सकती।
अतः शिक्षा शास्त्रियों का ध्यान दो अन्य शब्दों की ओर भी गया।

2. एजूसीयर (Educere) एजूसीयर शब्द का तात्पर्य निकालना, विकसित करना, पथ प्रदर्शन करना होता है।

3. एजुकेयर ( Educare) एजूकेयर शब्द का तात्पर्य उठाना, आगे बढ़ाना, प्रगति करना, बाहर निकालना होता है।

इन दोनों शब्दों से पता चलता है कि ये शब्द मूल रूप में क्रियायें है और शिक्षा कोई वस्तु नहीं है वह क्रिया है। अतः शिक्षा शास्त्रियों की दृष्टि से एजुकेशन शब्द इन्हीं दोनों शब्दों से निकला होगा। अत: व्याकरण की दृष्टि से शिक्षा या एजूकेशन शब्द संज्ञा है किन्तु अर्थ की दृष्टि से यह प्रक्रिया है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि शिक्षा एक ऐसी प्रक्रिया है जो बालक की आन्तरिक शक्तियों को बाहर की ओर प्रकट करती है।

शिक्षा की परिभाषा (Definitions of Education)

शिक्षा की परिभाषा के सम्बन्ध में शिक्षा शास्त्रियों में एकमत नहीं है। इसलिए प्रत्येक शिक्षा शास्त्रों ने अपनी विचारधारा के अनुसार शिक्षा को परिभाषित करने का प्रयास किया है। यद्यपि वर्तमान समय में शिक्षा की अनेकानेक परिभाषाएँ हैं, परन्तु उनमें एक भी पूर्ण नहीं कही जा सकती।

कुछ प्रमुख परिभाषाएँ निम्नलिखित है -

1. ऋग्वेद के अनुसार "शिक्षा वह है जो व्यक्ति को विनयी और आत्मविश्वासी बनाए।" "Education makes an individual modest and self-reliant." - Rigveda

2. शंकराचार्य के अनुसार "शिक्षा आत्मानुभूति के लिए है।" तथा "सा विद्या या मुक्तये" अर्थात "विद्या (शिक्षा) बह है जो हमें मुक्ति दिलाए।” "Education is for realisation of the self" or "Edu- cation is emancipation." - Sankaracharya.

3. विवेकानन्द के अनुसार "मनुष्य को अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति ही शिक्षा है।" "Education is the manifestation of perfection already in a man. - Vivekanand

4. रविन्द्र नाथ टैगोर के अनुसार "शिक्षा वह है जो जीवन की संपूर्ण सत्ता के साथ समन्वय स्थापित करने की शक्ति देती है।" "Education our life in harmony with existence." -Rabindranath Tagore 

5. महात्मा गांधी के अनुसार "शिक्षा से मेरा अभिप्राय है बालक और मनुष्य के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा में पाए जाने वाले सर्वोत्तम गुणों का सर्वांगीण विकास। "By education, I mean an all around drawing out of the best in child and man body, mind and spirit. -Mahatma Gandhi 

6. राधाकृष्णन के अनुसार "शिक्षा को मनुष्य और समाज का निर्माण करना चाहिए। "Education should be man-making and society making." -Radha Krishanan 

7. प्लेटों के अनुसार - "शिक्षा शारीरिक, मानसिक तथा बौद्धिक विकास की प्रक्रिया है।
"Education is a process of physical, mental and intellectual development." - Plato

8. अरस्तू के अनुसार "शिक्षा स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का निर्माण करती है।" 
"Education is the creation of a sound mind is a sound body." - Aristotle


शिक्षा की प्रक्रिया (Process of Education)

शिक्षा रूपी प्रक्रिया के साथ विभिन्न शिक्षाविदों ने अनेक घटकों को प्रयुक्त किया है। इनमें से कुछ प्रमुख प्रक्रियायें निम्नलिखित है -

1. शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है (Education is a Bipolur Process) :- 

शिक्षा की हम चाहे जो परिभाषा ले शिक्षार्थी और अर्जित किये जाने योग्य अनुभव एडम्स ने उसी शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया माना है। एडम्स के अनुसार "शिक्षा द्विमुखी प्रक्रिया है जिसमें एक व्यक्तित्व दूसरे को प्रभावित करता है ताकि उसके व्यवहार में सुधार हो जाय।"

द्विमुखी प्रक्रिया में दो लोग होते हैं। एक ध्रुव पर शिक्षा और दूसरे ध्रुव पर शिक्षार्थी होता हैं दोनों के कार्यों का समान महत्व होता है। एक बोलता है दूसरा सुनता है एक पथ प्रदर्शन करता है और दूसरा उनका अनुगमन करता है। उनके कार्यों का एक दूसरे से सम्बन्ध होता है।

शिक्षा की द्विमुखी प्रक्रिया

जॉन डीवी ने भी शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया माना है उनके अनुसार शिक्षा प्रक्रिया के दो ध्रुव होते हैं मनोवैज्ञानिक और सामाजिक। इसे हम निम्न रूप में प्रकट कर सकते हैं-

जे० एस० रॉस ने भी शिक्षा को द्विमुखी प्रक्रिया माना है उनका कहना है कि इस प्रक्रिया को चलाने के लिए शिक्षक और शिक्षार्थी को एक दूसरे का स्पष्ट ज्ञान होना चाहिए। शिक्षक को शिक्षार्थी के स्तर पर और शिक्षार्थी को शिक्षक के स्तर पर पहुंचना आवश्यक है। ऐसा किए बिना शिक्षा देने और शिक्षा लेने का कार्य नहीं चल सकता। इस प्रकार शिक्षा एक चेतन और विकासपूर्ण प्रक्रिया है। 

2. शिक्षा त्रिमुखी प्रक्रिया है (Education is Tripolar Process) 


रार्यवनं ने शिक्षा को त्रिमुखी प्रक्रिया माना है। उनके अनुसार शिक्षा के तीन ध्रुव होते हैं शिक्षक, शिक्षार्थी और पाठ्यक्रम। शिक्षक और शिक्षार्थी के साथ पाठ्यक्रम भी शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग हैं पाठ्यक्रम का अर्थ केचवल पुस्तकीय ज्ञान न होकर उन सब विचारों, भावों, मान्यताओं और अनुभवों से है। जिनसे बालक का सर्वांगीण विकास हों। इन्हें निम्न रूप में प्रकट करते हैं-

रायबर्न का मानना है कि पाठ्यक्रम, शिक्षक और शिक्षार्थी को एक दूसरे के सम्पर्क में लाने का कार्य करता है।
शैक्षिक मूल्यांकन विशेषज्ञों ने शैक्षिक प्रक्रिया को शैक्षिक लक्ष्यों, उनकी प्राप्ति के लिए सीखने-सिखाने की परिस्थिति और मूलयांकन विधियों तीन अंगों में विभाजित किया है। उनके अनुसार शिक्षा की प्रक्रिया इन्हीं तीन अंगों के बीच चलती है।

3. शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है (Education is a Dynamic Process): 

चूंकि समय परिवर्तनशील होता है, समय के साथ-साथ परिस्थितियां भी बदलती रहती हैं तथा समय और परिस्थितियों के साथ शिक्षा के उद्देश्य भी बदलते रहते हैं। शिक्षा की प्रक्रिया स्थिर न होकर गतिशील है। यह व्यक्ति के जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक चलती रहती हौ। यह व्यक्ति को सक्रिय बनाकर जीवन में उन्नति और विकास करने के लिए प्रेरित करती है।

शिक्षा की प्रक्रिया के द्वारा ही व्यक्ति अपनी उन्नति और विकास करने में सफल होता है। अतः कहा जा सकता है कि शिक्षा जड़ नहीं है यह एक गतिशील प्रक्रिया है जो व्यक्ति को समय एवं परिस्थितियों के अनुसार प्रगतिशील बनाती है। यही कारण है कि कुछ विद्वानों ने शिक्षा को साउद्देश्य प्रक्रिया की संज्ञा दी है। क्योंकि शिक्षा का कोई न कोई उद्देश्य अवश्य होता है, इन्हीं उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए व्यक्ति क्रियाशील होता है अत: कहा जा सकता है कि शिक्षा एक गतिशील प्रक्रिया है।

4. शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है (Education is a Social Process) :- 

शिक्षा समाज में, समाज के लिए, समाज द्वारा संचालित प्रक्रि या। शिक्षा सामाजिक कार्य है इसका अर्थ यह है कि शिक्षा की प्रक्रिया सामाजिक है। दूसरे शब्दों में कहा जा सकता है कि व्यक्ति को सामाजिक वातावरण में ही लाभप्रद ढंग से शिक्षा दी जाती है। जॉन डीवी के अनुसार "सभी शिक्षा का प्रारमा उस समय होता है जब व्यक्ति प्रजाति की सामाजिक चेतना में भाग लेता है।" सामाजिक पर्यावरण में व्यक्ति क्रिया एवं प्रतिक्रिया करके शिक्षा प्राप्त करता है डीवी महोदय ने विद्यालय को समाज का लघुरूप माना है।

चूंकि शिक्षा विद्यालय में दी जाती है, अतः शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है। व्यक्ति जन्म से लेकर मृत्यु पर्यन्त तक समाज में रहकर ही शिक्षा प्राप्त करता है, सामाजिक पर्यावरण में ही उसे उचित शिक्षा मिलती है। समाज से अलग रहकर उसकी शिक्षा सम्भव नहीं है। बालक में जो भी ज्ञान और अनुभव की प्राप्ति संभव होती है वह परिवार, पड़ोस, समाज, साथ ही समूह आदि से होती है। इसलिए कहा जा सकता है कि शिक्षा एक सामाजिक प्रक्रिया है।


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