UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter-1 कविकुलगुरुः कालिदासः (गद्य–भारती)
( कविकुलगुरुः कालिदासः )
( 1 ) वस्तुतः कालिदासः मूर्धन्यतमः भारतीय: कविरस्ति। एकतस्तस्य कृतिषु काव्योचितगुणानां समाहार: दृश्यते अपात्यात भारतीयजीवनपद्धते : सर्वाङ्गीणता तत्र राराजते । काव्योत्कर्षदृष्ट्या तस्य काव्येषु मानवमनसः " सूक्ष्मानुभूतीनामिन्द्रधनु : कस्यापि सहृदयस्य चित्तमावर्जीयितुं पारयति । प्रकृतिरपि स्वजडत्वं विहाय सर्वत्र मानवसहचरीवाच वस्तुतः
कालिदासः ……………………… मानवसहचरीवाचरति ।
गद्यांशों का सन्दर्भ सहित अनुवाद
सन्दर्भ –
प्रस्तुत गद्यांश कविकुलगुरु : कालिदासः ' नामक पाठ से उद्धृन है । इसमें लेखक ने महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं पर विचार किया है ।
अनुवाद-
वास्तव में कालिदास सर्वश्रेष्ठ भारतीय कवि हैं । एक ओर उनकी कृतियों में काव्योचित गुणों का समाहार ( समावेश ) दिखाई देता है और दूसरी ओर भारतीय जीवन पद्धति का समग्र रूप उनमें शोभित होता है । काव्योत्कर्ष की दृष्टि से उनके काव्यों में मानव मन की सूक्ष्म अनुभूतियों का इन्द्रधनुष किसी भी सहृदय के चित्त को प्रभावित करने में समर्थ है । प्रकृति भी अपनी जड़ता को त्यागकर सब जगह मानव की सहचरी के समान आचरण करती है ।
( 2 ) शाकुन्तलनाटके पतिगृहगमनकाले आश्रमपादपाः स्वभगिन्यै शकुन्तलायै आभरणानि समर्पयन्ति । हरिणार्भकः तस्याः मार्गाविरोधं कृत्वा स्वकीयं निश्छलं प्रेम प्रकटयति । एवमेव नद्यः प्रेयस्य इवाचरन्ति । सूर्य : अरुणोदयवेलायां स्वप्रियतमाया : नलिन्याः , तुषारबिन्दुरूपाणि अश्रूणि स्वकरै : परिमृजति ।
शाकुन्तलनाटके ………………………………… परिमृजति ।
UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit संस्कृत
सन्दर्भ - प्रस्तुत अंश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' कविकुलगुरु कालिदासः ' नामक पाठ द्वारा उद्धृत है । इसमें लेखक ने महाकवि कालिदास की काव्यगत विशेषताओं का वर्णन किया है ।
अनुवाद - शाकुन्तल नाटक में आश्रम के वृक्ष पति - गृह जाते समय अपनी बहिन शकुन्तला के लिए वस्त्र तथा आभूषण भेंट करते हैं । हिरन का बच्चा उसका रास्ता रोककर अपने निश्छल प्रेम को प्रकट करता है । इसी प्रकार नदियाँ प्रेयसियों के समान आचरण करती हैं । सूर्य अरुणोदय के समय अपनी प्रियतमा कमलिनी के ओस की बूँदों के रूप में लगे हुए आँसुओं को अपने हाथो ( किरणों ) से पोंछता है ।
( 3 ) वाग्देवताभरणभूतस्य प्रथितयशसः कालिदासस्य जन्म कस्मिन् प्रदेशे, काले , कुले , चाभवत् , किञ्चासीत् तज्जन्मवृत्तम् इति सर्वमधुनाफि विवाद , कोटिं नातिक्रामति । इतरकवय इव कालिदासः स्वकृतिषु प्राय : स्तन्नामसंकीर्तनमात्रादेव अन्तर्बहिस्सालेक्ष्यमनुसृत्य आत्मज्ञापने धृतमौन एवास्ति । अन्येऽपि कवय स्वीयां वाचं धन्यां मत्वा मौनमवलम्वान्ते । तथापि समीक्षकाः कविपरिचयं यावच्छक्यं प्रस्तुवन्ति
वाग्देवताभरणभूतस्य ……………………….प्रस्तुवन्ति।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' कविकुलगुरु: कालिदासः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इस गद्यांश में महाकवि कालिदास के जन्मकाल एवं जन्म स्थान के विषय में वर्णन किया गया है ।
अनुवाद- सरस्वती देवी के आभूषण स्वरूप , प्रसिद्ध यश वाले कालिदास का जन्म किस प्रदेश में किस काल और किस कुल में हुआ । उनके जन्म के वृतान्त के बारे में कुछ भी पता न था । आज भी सम्पूर्ण विवाद अतिक्रमण नहीं करता है । इधर कवियों के समान कालिदास अपने सम्बन्ध में अपनी कृतियों में प्राय: मौन ही धारण किये हैं । अन्य कवि भी उनके नाम का संकीर्तन करके ही अपनी वाणी को धन्य मानकर मौन रह गये हैं । फिर भी आन्तरिक और बाह्य साक्ष्यों का अनुसरण करके आलोचक यथाशक्ति कवि का परिचय प्रस्तुत करते हैं।
( 4 ) रघुवंशे कालिदासः रघुवंशिनां चित्रण तथा करोति यथा भारतीयजनजीवनस्योदात्तादर्शानां सम्यग् दिग्दर्शनं भवेत् । रघुकुलजा : राजानः प्रजाक्षेमाय बलिमाहरन् मितसंयतभाषिणस्ते सदा सत्यनिष्ठा : आसन् । यशस्कामास्ते तदर्थं प्राणानपि त्यक्तुं सदैवोद्यता अभवन् । केवलं सन्तत्यर्थे ते गृहमेधिनो बभूवुः । शैशवे विद्यार्जनं यौवने रञ्जनम् वार्धक्ये मुक्तयर्थं मुनिवदाचरणं तेषां व्रतमासीत् । बालवृद्धवनितादीनां यदाचारणं कालिदासकाव्ये निरूपितं तत्सर्वथा भारतीयसंस्कृतिगौरवानुरूपमेव ।
रघुवंशे कालिदास …………………………अनुरूपमेव।
सन्दर्भ -
प्रस्तुत गद्यांश कविकुलगुरु कालिदासः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें लेखक ने कालिदास की काव्यगत विशेषताओं पर विचार व्यक्त किया है ।
अनुवाद– रघुवंश में कालिदास , रघुवंशियों का चित्रण इस प्रकार करते है जिससे भारतीय जन - जीवन के उज्ज्वल आदर्शों को अच्छी प्रकार दर्शाया जा सके । रघुकुल में उत्पन्न राजा प्रजा के कल्याण के लिए कर लेते थे , कम बोलने वाले तथा बोलने में संयम बरतने वाले वे सत्य का पालन करते थे । यश की कामना -करने वाले वे उसके निमित्त अपने प्राणों को भी त्यागने के लिए सदा तैयार रहते थे ।
केवल सन्तान के लिए वे परिवार बसाते थे । बाल्यकाल में विद्या प्राप्त करना , युवावस्था में मन को प्रसन्न रखना तथा वृद्धावस्था में मुक्ति के लिए मुनियों के समान आचरण करना उनका व्रत था । बालको , वृद्धी , स्त्रिया आदि के जिस आचरण का कालिदास के काव्य में वर्णन किया गया है , वह हर प्रकार से भारतीय संस्कृति के गौरव के अनुरूप ही है।
( 5 ) एतावान् कवेरस्य महिमास्ति यत् सर्वे एव तं स्व - देशीयं साधयितुं तत्परा भवन्ति । कश्मीरवासिविद्वांसः कश्मीरोद्भव तं मन्यन्ते , वनवासिनश्च वङ्गदेशीयम् । अस्ति तावदन्योऽपि समीक्षकवर्गः यस्य मतेन कालिदास उज्जयिन्यां लब्धजन्मासीत् । उज्जयिनीं प्रति कवेः सातिशयोऽनुराग एतन्मतं पुष्णाति ।
एतावान् कवेरस्य……………………. एतन्मतं पुष्णाति।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' कविकुल गुरु : कालिदासः ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें लेखक जनश्रुति के आधार पर कालिदास के जन्म के विषय पर चर्चा कर रहा है ।
अनुवाद- इस कवि की महिमा में सब उसे अपने देश का मानने को तैयार होते हैं । कश्मीर के विद्वान उसे कश्मीर में पैदा हुआ मानते हैं और बंगाल के निवासी उसे बंगाल देश में पैदा हुआ मानते हैं । समीक्षकों का एक अन्य वर्ग भी है जिसके मतानुसार कालिदास ने उज्जैन में जन्म लिया था । उज्जयिनी ( उज्जैन ) के प्रतिकवि का अत्यधिक प्रेम इस मत की पुष्टि करता है ।
( 6 ) आहिमवतः सिन्धुवेलां यावत् विकीर्णा : भारतगौरवगाथा : कालिदासेन स्वकृतिषूपनिबद्धाः । रघुवंशे , मेघे , कुमारसम्भवे च भारतदेशस्य विविधभूभागानां गिरिकाननादीनां यादृक् स्वाभाविक मनोहारि च चित्रणं लभ्यते , स्वचक्षुषाऽनवलोक्य तदसम्भवमस्ति । तथाविधं तस्य देशप्रेम तस्य काव्योत्कर्षं समुद्रढयति । सन्तु तत्रानल्पा संस्कृतकवयः किन्तु कस्यापि कालिदासेन साम्य नास्ति ।
आहिमवत: सिन्धुबेलां ………………………. साम्य नास्ति।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण ' कविकुलगुरु : कालिदासः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें लेखक ने कालिदास को एक श्रेष्ठ रचनाकार के रूप में प्रस्तुत किया है ।
अनुवाद - हिमालय से सिन्धु बेला तक फैली भारतीय गौरव गाथा को कालिदास ने अपनी रचनाओं में निबद्ध किया है । रघुवंश , मेघदूत , कुमारसम्भव में भारत देश के विभिन्न भागों के पर्वत, वन , नदी , आदि के स्वाभाविक और मनोहर चित्रण मिलते हैं । अपनी आँखों के देखे बिना वैसा सम्भव नहीं है । उसी प्रकार उनका देश प्रेम उनके काव्योत्कर्ष को दृढ़ करता है । संस्कृत में बहुत से कवि हैं । किन्तु कोई भी कालिदास के समान नहीं है ।
कालिदासस्य ………………….….निरूपणमस्ति ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' कविकुलगुरु : कालिदासः नामक पाठ से लिया गया है । इसमें महाकवि कालिदास के रचना - कौशल के विषय में वर्णन किया गया है ।
अनुवाद- कालिदास की नवीन उन्मेष शालिनी बुद्धि का विकास उनकी रचनाओं में पाया जाता है । यह किसी विद्वान् से छिपा हुआ नहीं है । संस्कृत काव्य के विभिन्न प्रमुख प्रकारों में अपने कौशल को प्रदर्शित करके उन्होंने सभी पूर्ववर्ती तथा भावी कवियों को पराभूत कर दिया। ' रघुवंश ' और ' कुमारसम्भव ' उनके दो महाकाव्य ' मेघदूत ' और ' ऋतुसंहार ' खण्डकाव्य, ' मालविकाग्निमित्रम् ' , ' विक्रमोर्वशीयम् ' तथा ' अभिज्ञानशाकुन्तलम् ' नाटक हैं । वहाँ ' रघुवंश ' नामक महाकाव्य कविकुलगुरु की सर्वश्रेष्ठ रचना है । इस महाकाव्य में दिलीप से लेकर अग्निवर्ण तक इक्ष्वाकुवंश में उत्पन्न समस्त राजाओं का निरूपण।
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