UP Board Sanskrit Solutions for Class-10 Chapter - 13 गुरुनानकदेवः (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 13 गुरुनानकदेवः (गद्य – भारती)

गुरुनानकदेव : (गुरु नानकदेव)


( 1 ) पिता तस्य तद्वृत्तं संश्रुत्य खिद्यमानः भृशं चुकोप। तदानीमेव नानकस्य भगिनीपतिः जयराम आगत। तमखिलमुदन्तं ज्ञात्वा तं स्वनगरं सुलतानपुरमनयत्। तत्रत्यः शासक: नवाबदौलतखाँ युवकनामकस्य  व्यवहारकौशलेन शीलेन मधुरया वाचा सन्तुष्ट: सन् तं स्वान्नभाण्डारगारे नियत्यावान्। स्वनिस्पृहवृत्या श्रमेण कर्मणा च नानक: स्वस्वामिनं दौलतखाँ महाशयं तुतोष।

UP Board Sanskrit Solutions for Class-10 Chapter - 13 गुरुनानकदेवः (गद्य – भारती)

पिता तस्य..............................महाशयं तुतोष।


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' गुरुनानकदेव: ' नामक पाठ से लिया गया है । इस गद्यांश में लेखक ने गुरुनानक द्वारा सुल्तानपुर के शासक दौलत खाँ के यहाँ नौकरी करने का वर्णन किया है । 


अनुवाद- पिता ने उनके उस समाचार को सुनकर दु:खी होते हुए अत्यधिक क्रोध किया। उसी समय नानक के बहनोई जयराम आ गये, प्रारम्भ से लेकर अन्त तक सारा वृत्तान्त जानकर वह उस बालक को अपने नगर सुल्तानपुर ले गये ।


वहाँ के शासक नवाब दौलत खाँ ने युवक नानक की व्यवहार कुशलता, शालीनता तथा मधुर वाणी से सन्तुष्ट होते हुए उन्हें अपने अन्न-भण्डार में नियुक्त कर दिया। अपने लोभ रहित स्वभाव, परिश्रम तथा कार्य से नानक ने अपने स्वामी दौलत खाँ को सन्तुष्ट कर दिया। 


( 2 ) एकदा सः स्नानाय नदीं प्रति सेवकेनैकेन सह प्रस्थितः। स्ववस्त्रादीनि सेवकाय समर्प्य सः नद्यामवर्तीर्णः । बहुकाले व्यतीते सन निष्क्रान्तस्तदा तस्य सेवकः तं नद्याम् निमग्नमित्यनुमाय गृहं प्रतिनिवृत्य वृत्तमिदं सर्वान श्रावयत् । सर्वे विस्मिता : तद्विरहतापसंतप्ताः परं का गतिरिति चिन्तयतो सर्वथा स्तब्धाः जाताः। तस्य भगिनी ' नानकी ' तु न विश्वसिति स्म ।


एकदा सः स्नानाय................................. विश्वसिति स्म।


सन्दर्भ - प्रस्तुत अवतरण ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' गुरुनानकदेव: ' पाठ से उद्धृत है। गुरु नानक ने नदी में स्नान करते समय की घटना का यहाँ वर्णन किया गया है । 


अनुवाद - एक बार वह स्नान करने के लिए नदी की ओर एक सेवक के साथ गये । अपने वस्त्र आदि सेवक को देकर वह नदी में उतर गये । बहुत समय के बाद जब वह जल से बाहर नहीं आये , तब सेवक ने उन्हें नदी में डूबा हुआ मान लिया ।


घर लौटकर उसने यह समाचार सभी को सुनाया । सब लोग चकित होकर सेवक की बात सुनकर नानक के विरह में दुःखी हो गये , किन्तु क्या किया जाये , ऐसा सोचकर सभी शान्त हो गये । उसकी बहिन ' नानकी ' को इस पर विश्वास नहीं हुआ । 


( 3 ) गुरुर्नानकः स्वपित्रोरेक एव पुत्र आसीत् । अतस्तस्य जन्मना ऽऽह्लादातिशयं तावनुभवन्तौ स्नेहातिशयेन तस्य लालनं पालनं च कृतवन्तौ। रहसि बाल्यकालादेव तस्मिन् वालके लोकोत्तरा : गुणा : प्रकटिता एकाकी एवोपविश्य नेत्रेऽर्धनिमील्य किञ्चिद् ध्यातुमिव दृश्यते स्मा अभवन् ।


गुरुनानक स्वपित्रोरेक..................................... दृश्यते स्म


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' गुरुनानकदेव : ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें गुरु नानकदेव के जन्म के बारे में बताया गया है । 


अनुवाद - गुरुनानक अपने माता-पिता के इकलौते पुत्र थे। इसलिए उनके जन्म से उन दोनों ने अत्यधिक आनन्द का अनुभव किया और अत्यन्त स्नेहपूर्वक इनका लालन-पालन किया । बालकपन से ही इस बालक में लोकोत्तर गुण प्रकट हो गये थे। अकेले ही एकान्त में बैठकर दोनों नेत्रों को आधा खोलकर कुछ ध्यान करते हुए से इन्हें देखा जाता था।


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