UP Board Sanskrit Solutions for Class-10 Chapter-14 योजना–महत्वम् (गद्य–भारती)
योजना- महत्त्वम् (योजना का महत्त्व)
( 1 ) शिक्षया न केवलं व्यक्ते : विकासः, वरं सामाजिकी चेतनापि जागर्ति, परिस्थितिवशात् आचारविचारव्यवहारेषु अपि बालकेषु , प्रौद्धेषु परिवर्तनमायाति । शिक्षितसमुदाये जनसंख्यावर्धनावरोधेषु जागर्ति दृश्यते। दीनेषुः निरक्षेरषु शिशूत्पादनमेव लक्ष्यं प्रतीयते। तेषां भरणे पोषणे च ध्यानं नास्ति।
शिक्षया न केवलं ………………………..ध्यानं नास्ति।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती भाग -2 ' के ' योजना महत्त्वम् पाठ से उद्धृत है । इसमें जनसंख्या वृद्धि को रोकने के लिए शिक्षा की आवश्यकता पर बल दिया गया है।
अनुवाद- शिक्षा से न केवल व्यक्ति का विकास होता है अपितु सामाजिक चेतना भी जाग्रत होती है । परिस्थितिवश बालकों और बड़ों के आचार - विचार और व्यवहार में परिवर्तन आता है । शिक्षित समुदाय में जनसंख्या वृद्धि को रोकने के विषय में जागरूकता दिखायी देती है । दीन तथा निरक्षर लोगों में शिशुओं को उत्पन्न करना ही लक्ष्य है , ऐसा प्रतीत होता है । उनके भरण-पोषण में उनका ध्यान नहीं होता है।
( 2 ) “ कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःखमेकान्ततो वा " इतीयं सुशोभना सूक्तिः, यावच्च प्रतिजनं चरितार्था भवति , तथैव तावदेव राष्ट्रजीवनेष्वपि संघटते। संसारस्येतिहासे पुराकालादारभ्य अद्यावधि कियन्ति राष्ट्राणि, प्रोन्नतिशृंगमारूढानि, कालान्तरेऽवनतिगर्ते पतितानि। कियन्ति चान्यानि अवनतिगर्तानिष्क्रम्य, उन्नतिशिखरमारूढानि, इति गदितुं निरवद्यम शक्यम्। प्रायेण सर्वेषां राष्ट्राणां विषये तथ्यमिदम् । भारतवर्षमपि , अस्य तथ्यस्यापवादो भवितुं नाशकत् ।
कस्यात्यन्तं…………………………….नाशक्नत्।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' योजना महत्त्वम् ' नामक पाठ से उद्धृत है । यहाँ लेखक ने योजनाओं का स्वरूप निश्चित करने में भारत की परतन्त्रता के बाधक होने के विषय में बताया है ।
अनुवाद- किसे अत्यधिक सुख मिला है या किसे पूर्ण दु:ख ' यह सुन्दर सूक्ति जितनी प्रत्येक मनुष्य पर चरितार्थ होती है उतनी ही राष्ट्र जीवन पर भी घटित होती है । संसार के इतिहास में प्राचीनकाल से लेकर आज तक कितने राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुँचे हैं और कुछ समय बाद अवनति के गर्त में गिरे हैं , यह निश्चित रूप से कहना असम्भव है । प्राय : सभी राष्ट्रों के बारे में यह वास्तविकता है । भारतवर्ष भी इस तथ्य का अपवाद नहीं हो सकता।
योजना - महत्वम् पाठ का सारांश हिन्दी में
‘ कस्यात्यन्तं सुखमुपनतं दुःख मेकान्ततो वा ' अर्थात् किसे अत्यन्त सुख प्राप्त है तथा किसे अकेला दुःख प्राप्त है — यह सुन्दर उक्ति है । जितनी यह प्रत्येक मनुष्य में सफल होती है , उतनी ही राष्ट्र जीवनों में घटित होती है । संसार के इतिहास में प्राचीन समय से लेकर आज तक कितने राष्ट्र उन्नति के शिखर पर पहुँच चुके हैं । समय निकल जाने के बाद कितने पतन के गड्ढे में गिर पड़े हैं तथा दूसरे पतन के गड्ढे से निकलकर उन्नति के शिखर पर पहुँच गये हैं ? यह नहीं कहा जा सकता ।
प्राय : सभी राष्ट्रों के विषय में यह तथ्य है । भारतवर्ष भी इस तथ्य का अपवाद नहीं । हो सकता । बहुत रामय से हमारा देश गुलागी की जंजीरों से जकड़ा हुआ था । गाँधी , नेहरू , पटेल , सुभाष आदि महापुरुषों तथा जनता के सहयोग , बलिदान से सन् 1947 ई . में स्वतन्त्र हुआ । विदेशियों ने सारे कार्य इस देश की उन्नति या समृद्धि के लिए न करके अपनी भलाई की दृष्टि से किये ।
देश के स्वतन्त्र हो जाने पर हमारे देश के नेता नेहरू ने इसके लिए एक योजना समिति बनायी । इस समिति ने प्रथम पाँच वर्षों में सम्पादन के लिए उचित कार्यों का जो विवरण प्रकाशित किया वह पहली पंचवर्षीय योजना के नाम से प्रसिद्ध हुआ । यह योजना कृषि तथा कृषि पर आधारित उद्योगों के विकास के लिए थी । द्वितीय योजना में औद्योगिक विकास को महत्त्व दिया गया ।
इसी प्रकार विभिन्न क्षेत्रों में विकास के विचार से क्रमश : तृतीय, चतुर्थ, पंचम, षष्ठ आदि योजनाएँ बनायीं तथा चलायी गयी । इन योजनाओं से हमें अनेक लाभ हुए। जल साधनों का विकास हुआ , बिजली का उत्पादन बढ़ गया, अन्न के उत्पादन में वृद्धि हुई, उद्योगों का विशेष विकास हुआ तथा शिक्षा के क्षेत्र में भी पर्याप्त प्रगति हुई। चिकित्सा सुविधाओं का विस्तार हुआ। गाँव भी प्रगति की इस दौड़ में पीछे नहीं रहे ।
इन योजनाओं के पूर्ण हो जाने पर प्रत्येक मनुष्य को जितना लाभ प्राप्त होना था उतना लाभ नहीं हुआ । तीव्र गति से जनसंख्या की वृद्धि इसका कारण है । चिकित्सा सम्बन्धी विकास के कारण हमारे यहाँ मृत्यु दर में कमी हुई है , किन्तु जन्म दर में कभी न होने के कारण हमारी जनसंख्या बढ़ती जा रही है । अशिक्षा, हमारे पिछड़ेपन का प्रमुख कारण है।
अशिक्षित लोग परिवार कल्याण के वास्तविक महत्व को नहीं समझ पाते। इसलिए अपने परिवार को बढ़ाते चले जाते हैं । अतः विद्यालयों के माध्यम से देश की नयी - पीढ़ी को इस प्रकार शिक्षित किया जाये कि वह अपने कल्याण का सही मार्ग चुन सके , तभी हमारी योजनाओं की सफलता सिद्ध होगी ।
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