UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-3 नैतिकमूल्यानि (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter - 3 नैतिकमूल्यानि (गद्य – भारती)


नैतिकमूल्यानि


( 1 ) कदाचित् एवमपि दृश्यते यत्समाजे प्रचलिता रूढिः समेषां कृते हितकारी न भवति । अतः प्रबुद्धाः विद्वांसः तस्या रूढै : विरोधमपि कुर्वन्ति । पर तैः आचरणस्य व्यवहारे नवीन आदर्श : स्थाप्यते । यः कालान्तरे समाजस्य कृते हितकरः भवति । एवं सदाचरणेऽपि परिवर्तनं दृश्यते । परं वस्तुतः यानि नैतिकमूल्यानि सन्ति । तेषु परिवर्तनं न भवति । यथा सनातनो धर्म : न परिवर्तते तथा नैतिकमूल्यान्यपि स्थिराणि एव। 


कदाचित् एवमपि….…………………….. स्थिराणि एव। 

UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-3

सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' नैतिकमूल्यानि ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें लेखक ने नैतिक आचरण और दूसरों का कल्याण करना ही नैतिकता का मूल तत्व कहा है । 


अनुवाद - कभी ऐसा भी देखा जाता है कि समाज में प्रचलित रूढ़ि सबके लिए लाभदायक नहीं होती है । अतः प्रबुद्ध अर्थात् जागरूक विद्वान इस रूढ़ि का विरोध भी करते है । लेकिन वे आचरण के व्यवहार में नया आदर्श स्थापित करते है जो कालान्तर में समाज के लिए लाभदायक होता है । इस प्रकार सदाचार में भी परिवर्तन दिखलाई देता है । परन्तु जो वास्तव में नैतिक मूल्य है उनमें परिवर्तन नहीं दिखलाई देता ; जैसे- सनातन धर्म में परिवर्तन नहीं दिखलाई देता है । उसी प्रकार नैतिक मूल्य भी स्थिर है । सन्ध्यावन्दनम् , 


( 2 ) तीर्थाटनम्, पावनासु नदीषु , स्नानम् , यजनं , याजनं , गुरु- सेवा , मातृ - पितृसेवा , षोडशसंस्कारा एते मुख्यरूपेण धर्मपदवाच्याः । एषु कर्मसु नीतेः मिश्रणं नास्ति । अतः धर्मो व्यापकः धृति दया - सहिष्णुता - सत्य - परोपकाराद्याचरणेषु द्वयोः साङ्कर्यमस्ति । परमेतत् निश्चितं यत् द्वयोराचरणेन लोकस्य परमं कल्याणं जायते एव ।


तीर्थाटनम्, ………….……………….पावनासु जायते एव ।


सन्दर्भ- नैतिकमूल्यानि ' नामक पाठ से उद्धृत प्रस्तुत गद्यावतरण में कुछ नैतिक मूल्यों के महत्व पर प्रकाश डाला गया है । 


अनुवाद- तीर्थयात्रा पवित्र नदियों में स्नान करना , यह करना , यत्र कराना , गुरु सेवा , माता और पिता की सेवा , सन्ध्या - वन्दना करना, सोलह संस्कार ये मुख्य रूप से धर्म शब्द को बतलाते है। इन कर्मों में नीति - सम्मिलित नहीं है । इसलिए धर्म व्यापक है । धैर्य , दया सहिष्णुता , सत्य का पालन , परोपकार आदि आवरणा में दोनों ही सम्मिलित है , परन्तु यह निश्चित है कि दोनों के आचरण से लोगों का परम कल्याण होता ही है। 


( 3 ) नयनं नीतिः, नीतेरिमानि मूल्यानि नैतिक मूल्यानि यथा सरण्या कार्यकरणेन मनुष्यस्य जीवनं सुचारु सफलं च भवति सा नीतिः कथ्यते इयं नीतिः केवलस्य जनस्य समाजस्य कृते एव न भवति, अपितु जनाना, नृपाणां समेषां च व्यवहाराय भवति। नीत्यऽचलनेन व्यहारेण, प्रजानां शासकानां समस्तस्य लोकस्यापि कल्याणं भवति । नयनं निति: " भवति । 


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत गद्य भारती के ' नैतिकमूल्यानि ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें नीति के स्वरूप एवं प्रयोजन को बताया गया है । 


अनुवाद - ले जाना, पथ - प्रदर्शन है। नीति के ये मूल्य ही नैतिक मूल्य है । जिस पद्धति से कार्य करने से मनुष्य का जीवन सुचारु व सफल होता है , वह नीति कही जाती है । यह नीति केवल मनुष्य व समाज के लिए ही नहीं है , अपितु मनुष्यों एवं सभी राजाओं के व्यवहार के लिए होती है । नीति से चलने से व्यवहार से प्रजा का शासकों का और समस्त लोक का कल्याण होता है । 


( 4 ) नैतिकमूल्यैः व्यक्तेः सामाजिकी प्रतिष्ठाभिवर्धते । मानव कल्याणाय नैतिकता आवश्यकी । नैतिकतैव व्यक्तेः समाजस्य , राष्ट्रस्य , विश्वस्य कल्याणं कुरुते नैतिकताचरणेनैव मनुष्येषु त्यागः, तपः, विनयः, सत्यं, न्यायप्रियता एवमन्येऽपि मानवीयाः गुणा: उत्पद्यन्ते । नैतिकतया मनुष्योऽन्यप्राणिभ्य भिन्न : जायते । तदाचरणेन व्यक्तेः समाजस्य च जीवनम् अनुशासितम् निष्कंटकं च भवति । 


नैतिकमूल्यैः व्यक्तेः………….………………….. च भवति । 


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्य - खण्ड हमारी पाठ्य पुस्तक संस्कृत गद्य भारती के ' नैतिकमूल्यानि ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें लेखक नैतिक मूल्यों के महत्व एवं उपयोगिता पर प्रकाश डाल रहा है । 


अनुवाद - नैतिक मूल्यों से व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है । मानव कल्याण के लिए नैतिकता आवश्यक है । नैतिकता से ही व्यक्ति का समाज का राष्ट्र का और विश्व का कल्याण होता है । नैतिकता के आचरण से ही मनुष्यों में त्याग , तप , विनम्रता , सत्य , न्याय प्रियता और ऐसे ही अन्य मानवीय गुण उत्पन्न होते हैं । नैतिकता से मनुष्य अन्य प्राणियों से भिन्न होता है । उसके आचरण से व्यक्ति और समाज का जीवन अनुशासित और काँटो से रहित होता है । 


( 5 ) इदन्तु सम्यक् वक्तुं शक्यते यत् नैतिकताचरणस्य , नैतिकतायाश्च मुख्यमुद्देश्यम् स्वस्य अन्यस्य च कल्याणकरणं भवति । कदाचित् एवमपि दृश्यते यत् परेषां कल्याणं कुर्वन् मनुष्यः स्वीयाम् हानिमपि कुरुते । एव विधं नैतिकाचरणं विशिष्टं महत्वपूर्ण च मन्यते । परेषां हितम् नैतिकाया : प्राणभूतं तत्वम् । 


इदन्तु सम्यक्………………………….. प्राणभूतं तत्वम् । 


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश नैतिकमूल्यानि ' नामक पाठ से अवतरित है । यहाँ लेखक ने नैतिकता के उद्देश्य के विषय में बताया है ।  


अनुवाद- यह जो भली - भांति कहा जाता है कि नैतिक आचरण और नैतिकता का मुख्य उद्देश्य अपना और दूसरे का कल्याण होता है । कभी - कभी ऐसा भी देखा जाता है कि दूसरों का कल्याण करते हुए अपनी हानि भी कर लेता है । इस प्रकार नैतिक आचरण विशिष्ट एवं महत्वपूर्ण माना जाता है । दूसरों का हित करना नैतिकता का प्राणभूत तत्व है ।


प्रश्न 1. व्यक्ति के नैतिक मूल्यों पर प्रकाश डालिए । 

ले जाने का नाम रीति है। नीति के जो मूल्य होते हैं, वे नैतिक मूल्य कहलाते हैं । जिस पद्धति द्वारा कार्य करने से मनुष्य का जीवन सुन्दर और सफल होता है, उसे नीति कहा जाता है। नीति पर चलने और व्यवहार से प्रजा का शासकों का और सम्पूर्ण लोक का कल्याण होता है ।

नैतिकमूल्यानि पाठ का सारांश हिन्दी में

जिस मार्ग से व्यक्ति और समाज का जीवन सरलता और सफलता के साथ व्यतीत हो उसे नीति कहते हैं। नीति के मूल्य ही नैतिक मूल्य कहलाते हैं । नैतिक मूल्यों का सही रूप में पालन करने से व्यक्ति एवं समाज दोनों का कल्याण होता है । प्राचीनकाल से हमारे साहित्यकार नीति सम्बन्धी साहित्य की रचना करते रहते है ।


संस्कृत साहित्य में चाणक्य नीति , विदुर नीति , पञ्चतन्त्र, नीतिसार, नीतिशतक आदि ऐसे अनेक ग्रन्थ हैं जिनमें नैतिक मूल्यों का वर्णन अत्यन्त सुन्दर ढंग से किया गया है । प्लेटो, अरस्तू, पेन्टर आदि विदेशी विचारकों ने भी अपने साहित्य में नैतिक मूल्यों को महत्त्व प्रदान किया है । त्याग, तप, विनय, सत्य , न्याय -प्रियता आदि मानवीय गुण ही नैतिक मूल्य कहलाते हैं । इनके पालन से मनुष्य की सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ती है ।


इससे समाज में अनुशासन की स्थापना होती है और मनुष्य मात्र को उन्नति का अवसर प्राप्त होता है । नैतिक मूल्य ही लोक कल्याण के मूल आधार हैं । समाज में चलते - फिरते कुछ रीति - रिवाज रूढ़ि का रूप ले लेते हैं । इसलिए लोग इनमें समयानुसार परिवर्तन करते रहते हैं किन्तु नैतिक मूल्य कभी नहीं बदलते ।


धर्म के लौकिक तथा पारलौकिक कल्याण की व्यवस्था करता है जबकि नैतिक मूल्य उसके इसी जीवन को आदर्श बनाते हैं । नीति के सभी गुण धर्म के अंग होते हैं । अतः नैतिक मूल्यों को अपनाये बिना कोई मनुष्य धर्म का पालन नहीं कर सकता है । इस प्रकार मनुष्य के कल्याण का लोकहित की दृष्टि से नैतिक मूल्यों का पालन आवश्यक है ।

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