UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-5 विश्वकविः रवीन्द्रः

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 5 विश्वकविः रवीन्द्रः

विश्वकवि : रवीन्द्रः (विश्वकवि रवीन्द्र)

(1) रवींद्रनाथस्य जन्म कलिकातानगरे एकषष्ट्यधि- काष्टा दशशततमेरिष्टाब्दे मेमासस्य सप्तमे दिने अभवत् । अस्य जनक देवेन्द्रनाथ : जननी शारदा देवी चास्ताम् । रवीन्द्रस्य जन्म एकस्मिन सम्भ्रान्ते समृद्धे ब्राह्मण परिवारकुले जातम् । यस्य सविधेचला विशाला जीवरासीत् । अतो भृत्यबहुलं भृत्यैः परिपुष्टं संरक्षित जीवन | वन्दिपूर्णमन्वभवत् । अतः स्वच्छन्दविचरणाय , क्रीडनाय सुलभोऽवकाशः नासीत्तेन मनः खिन्नमेवास्त ।

UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-5 विश्वकविः रवीन्द्रः

रवीन्द्रनाथस्य जन्म………..…………खिन्नमेवास्त ।


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश पाठ्यक्रम हमारी - पुस्तक संस्कृत गद्य भारती' के 'विश्वकवि : रवीन्द्र:' नामक पाठ से अवतरित है। इस गद्यांश में विश्व कवि रवीन्द्र के जन्म तथा बाल्यकाल की दशा का वर्णन किया गया है।


अनुवाद- रवींद्रनाथ का जन्म कलकत्ता नगर में 1861 ई. में 7 मई का दिन था। इनके पिता देवेंद्र नाथ और माता शारदा देवी थीं। रवींद्र नाथ का जन्म एक ऐसा विशिष्ट संपन्न ब्राह्मण परिवार में हुआ था जिसके पास विशाल अचल जीव था। इसलिए नौकरों की अधिकता से युक्त और नौकरों द्वारा पालित एवं संरक्षित होने पर उन्होंने अपने जीवन को बन्दी के समान अनुभव किया। इसलिए स्वतन्त्रतापूर्वक घूमना, करने के लिए इन्हें अवसर प्राप्त नहीं हुआ था। इसी से उनका मन खिन्न रहता था।


(2) भवनस्य वातायने समुपविष्ट: बालकः दृश्यमिदं दर्श दर्श परां मुदमलभत । अस्मिन्नेव सरसि तत्रत्याः निवासिनः यथासमय स्नातुमागत्य स्नानञ्च कृत्वा यान्ति स्म । तेषां कवितां विविधाः क्रियाश्च दृष्ट्वा बाल: किञ्चित्कलं प्रसन्नः अजायत । मध्याह्नात ज्ञापन सरोवरः शून्यतां भजंति एसएम । सायं पुन: बका: हंसा: जलकृकवाकवः विहंगा: कोलाई कुर्वाणा: स्थानानि लभन्ते स्म।


भवनस्य वातायने………………………………. लभन्ते स्मा


सन्दर्भ – विश्वकवि : रवीन्द्र' नामक पाठ के लिए गया प्रस्तुत गद्यवतरण में लेखक विश्व कवि रवीन्द्र के बचपन के विषय में बतला रहा है।


अनुवाद – भवन की प्रमाण में स्थिति हुई बालक इस दृश्य को देखकर काफी क्षुब्ध हो गया। इस सरोवर में वहाँ के निवासी यथासमय नहाने आते हैं और नहाकर चले जाते थे। उनके परिधान और तरह-तरह के कार्यों को देखकर यह बालक कुछ समय के लिए प्रसन्न हो जाता है। दोपहर बाद यह सरोवर सूना हो जाता था, फिर सायंकाल में बगुले, हंस, जलमुर्गे आदि पक्षीगण शोर करते हुए उस स्थान पर आ जाते थे।


(3) आङ्ग्लवाङ्मये काव्यधनः शेक्सपियर इव, संस्कृतसाहित्ये कविकुलगुरुः कालिदास इव हिन्दी साहित्ये महाकवितुलसीदास इब बङ्गसाहित्ये कवीन्द्रो रवीन्द्रः केनाविदितः स्यात्। आधुनिक भारतीयशिल्पिषु रवीन्द्रस्य स्थानं महत्वपूर्णमस्ते इति सर्वैः ज्ञायत एव तस्य बहूनि योगदानानि पार्थक्येन वैशिष्ट्यं लभन्ते । केवलमाध्यात्मिक सांस्कृतिक क्षेत्रेषु तस्य योगदान महत्वपूर्णमपि तु कृतिसाहित्यकारतयापि तस्य नाम लोकेषु सुविदितमेव सर्वैः ।


आङ्ग्लवाङ्मये................................... सुविदितमेव सर्वैः ।


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यवतरण हमारी पाठ्य-पुस्तक 'संस्कृत गद्यभारती' के 'विश्वकवि रवीन्द्रः' नामक पाठ से उद्धृत है। इस अवतरण में विश्वकवि रवींद्र का बांग्ला साहित्य के क्षेत्र में निर्धारित किया गया है।


अनुवाद- अंग्रेजी साहित्य में काव्य के धनी शेक्स पीयर की भाँति , संस्कृत साहित्य में कविकुल गुरु कालिदास की भाँति , हिंदी साहित्य में महाकवि तुलसीदास की किस्में, बांग्ला साहित्य में कवीन्द्र रवीन्द्र का नाम नहीं रखेंगे। आधुनिक भारतीय शिल्पकारों में रवींद्र का स्थान महत्वपूर्ण है, यह सभी जानते हैं। उनके बहुत से योगदान को अलग-अलग विशेषताएं न केवल आध्यात्मिक और सांस्कृतिक क्षेत्रों में रखते हैं, बल्कि कलात्मक साहित्यकारिता के कारण भी उनका नाम संसार में भली प्रकार जात है।


( 4 ) रवींद्रस्य प्राथमिक शिक्षा गृहे एव चलित शिक्षण बङ्गभाषायां प्रारभत । विज्ञानं विज्ञानम् , संस्कृतम् , विज्ञानमिति त्रयों पाठ्यविषयाः अभूवन् । घृतिकगृहशिक्षायां समाप्तायां वलकः उत्तरकालीकातानगस्य ओरियंटल सेमिनार । विद्यालये प्रवेशमलभत् तदनन्तरं नार्मल विद्यालय गतवान परं कुत्रापि मनो न रमते स्म । सर्वत्र शिक्षकानां स्वेच्छाचरणं सहपठिनां दचा रुची : श्रेष्ठान् स्वभावांश्च विलोक्य मनोन रेमे रवींद्रस्य प्राथमिकी मनो न रेमे ।


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यवतरण 'विश्वकविः रवीन्द्रः' नामक पाठ से अवतरित है। इस अवतरण में रवींद्र की शिक्षा प्राप्ति के बारे में बताया गया है।


अनुवाद - रवींद्र की शिक्षा शिक्षा घर में हुई थी। शिक्षा बांग्ला भाषा में दर्ज हुई। वैज्ञानिक विज्ञान , संस्कृत , विज्ञान - तीन पाठ्य विषय थे । डांसिक शिक्षा शुरू होने पर लड़के ने उत्तर कलकत्ता नगर के ओरियंटल सत्र विद्यालय में प्रवेश लिया। इसके बाद नार्मल स्कूल गया, लेकिन कहीं भी मन नहीं लगा। सभी जगह शिक्षकों की अपनी इच्छा के अनुकूल आचरण और सहपाठियों की पकड़ रुचि व स्वभाव को देखकर मन नहीं लगता।


(5) संगीतविधासु, नृत्यविधासु च सः नूतनं शैली प्राकटयत्। साशैली 'रवीन्द्र संगीत' नाम्ना ख्यातिं लभते । एवं नृत्यविधासुलेखगत शैली मनुसरताऽनेन शिल्पिना नवना नृत्य शैली आविष्ठा। अन्यक्षेत्रेष्वपि शिक्षाविद्रूपेण तने नवां विचारां सूत्रपातो विहितः। तेषां प्रयोगात्मक विचारां पुञ्जीभूतः निरुपम प्रासाद : 'विश्व - भारती' रूपेण खींचशिरस्क: राजते।


संगीतविद्यासु…………….………………..राजते।


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश 'संस्कृत गद्य भारती के' विश्वकवि रवीन्द्रः' नामक पाठ से अवतरित है। इस गद्यांश में विश्वकवि रवींद्र नाथ टैगोर द्वारा वैज्ञानिक क्षेत्र में किए गए योगदान के अलावा नृत्य एवं संगीत विद्या के ऊपर भी प्रकाश डाला जा रहा है।


अनुवाद- संगीत और नृत्य की विधाओं में वे नई श्रेणी के हैं। वह शैली 'रवीन्द्र संगीत' के नाम से प्रसिद्ध है। इसी प्रकार नृत्य की विभिन्न विधायिकाओं में बैंकोग्राम तकनीक का परिवर्तन करते हुए शिल्पी (रवीन्द्र) ने नई नृत्य विद्या का आविष्कार किया। -अन्य क्षेत्रों में भी शिक्षाविद रूप में नए विचारों का सूत्रपात किया। उनके प्रयोगात्मक विचार का समूह अद्वितीय भवन 'विश्व भारती' के रूप में वाक्य भाल ( मस्तक ) है।


विश्वकवि: रवीन्द्र: पाठ का सारांश हिन्दी में

कवीन्द्र रवीन्द्र का जन्म 1861 ई . में 7 मई को कोलकाता में एक सम्भ्रान्त परिवार में हुआ था । इनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ और माता का नाम शारदा देवी था । इनकी प्रारम्भिक शिक्षा घर पर हुई थी । प्रारम्भिक शिक्षा समाप्त कर ये ओरियण्टल सेमिनार विद्यालय में दाखिल हुए ।


1873 में से अपने पिता के साथ हिमालय गये । वहाँ के प्राकृतिक सौन्दर्य ने रवीन्द्र को अधिक प्रभावित किया । 1878 ई . में अपने बड़े भाई न्यायाधीश श्री सत्येन्द्र नाथ विधिशास्त्र का अध्ययन करने के लिए इंग्लैण्ड गये और 1880 ई . में अपने भाई के साथ कोलकाता लौट आये ।


कवीन्द्र और रवीन्द्र में नैसर्गिक प्रतिभा थी । किशोर अवस्था में ही उन्होंने अनेक निबन्ध व कथाएँ लिखीं । उनकी सर्वोत्कृष्ट कृति ' गीताञ्जलि ' पर ' नोबिल ' पुरस्कार मिला था । रवीन्द्र महात्मा गाँधी का बड़ा सम्मान करते थे । गाँधीजी रवीन्द्र को अपना गुरु मानते थे । उनका साहित्यिक, सामाजिक दार्शनिक और लोकतान्त्रिक जोवन लोक कल्याणकारी और प्रेरणाप्रद था । 7 अगस्त , 1941 ई . को वे पार्थिव शरीर को छोड़कर ब्रह्मतत्व में विलीन हो गये ।


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