UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter 6 कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम् (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-6 कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम्

कार्य वा साधयेयम् देहं वा पातयेयम् (या कार्य को सिद्ध करूंगा या मर जाऊँगा)

यस्य ग्रेडः स्वयं परिश्रमी कथं स न स्यात् स्वयं परिश्रमी ? यस्य प्रभुः स्वयं अद्भुतसाहसः, कथं स न भवेत् स्वयं तथा? यस्य स्वामी स्वयंमापदो न गणयति, कथं स गणवेदापद: ? यस्य च महाराज: स्वयंसकल्पितं निश्चितेन साधयति, कथं स नये साधत् स्वसंकल्पितम् ? अस्त्येश महाराज - शिववीरस्य दयापात्रं चरः, तत्कथमेष झञ्झा-विभिषका भर्विभीषितः प्रभु-कार्यं विगणयेत् ? तदितोऽप्येषु तथैव तुरन्तमश्वं चालयंश्चलति।

UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter 6

यस्यअसः ……………………………चालयंश्चलति ।

UP Board Class 10 Sanskrit

सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्य खण्ड 'कार्य वा साधयेयं देह वा पातयेयम्' नामक पाठ से अवतरित है। इसमें लेखक ने शिवाजी के गुप्तचर रघुवीरसिंह को वीरता एवं अभिलेख के कारणों पर प्रकाश डाला है।


अनुवाद- जिसका अध्यक्ष परिश्रमी हो, वह स्वयं परिश्रमी क्यों न हो? जिसका राजा वंडर रेकॉर्ड हो, वह स्वयं सत्य क्यों न हो ? जिसकी स्वामी स्वयं आपत्ति की परवाह न करें, आपत्ति की सावधानी क्यों न करें ? और जिसका महाराज अपना संकल्प निश्चयपूर्वक पूर्ण करें, वह अपना संकल्प क्यों पूरा न करें ? यह महाराज शिवाजी की कृपापात्र चर है। इसलिए यह झज्झावत के भय से डरकर स्वामी के कार्य में प्रमाद क्यों करें ? इसलिए यह यहां से भी उसी प्रकार घोड़े को चालू किया जा रहा है।


कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम् पाठ का सारांश हिन्दी में


आषाढ़ का महीना था और सन्ध्या का समय बादल आकाश में छाये हुए थे । घोर अन्धकार था । उस समय शिवाजी का अत्यन्त विश्वासपात्र सेवक 16 वर्ष का नवयुवक रघुवीर सिंह घोड़े पर शिवाजी का एक गुप्त पत्र लेकर सिंह दुर्ग से तोरणदुर्ग को जा रहा था ।


उसी समय अचानक तेज आँधी आती है ऊपर से वर्षा की झड़ी लग जाती है । किन्तु ऐसे दुर्दिन के समय भी वह घुड़सवार बिघ्न - बाधाओं की परवाह न करता हुआ आगे बढ़ रहा था । मार्ग भी सरल न था । ऊबड़ - खाबड़ पहाड़ी पर वह दृढ़ संकल्प घुड़सवार चला जा रहा था । घोड़ा कभी दो पैरों पर खड़ा हो जाता था, कभी उछल कर चलता था, कभी ठोकर खाता था।


किन्तु शिवाजी का वह चर आगे बढ़ने से रुकता नहीं था। उसकी दृढ़ प्रतिज्ञा थी कि ' या तो कार्य पूरा करूँगा या शरीर को छोड़ दूँगा । ' ठीक है जिसका स्वामी स्वयं वीर, साहसी, परिश्रमी, उत्साही व धीर है उसका सेवक क्यों न धीर, वीर, साहसी और पराक्रमी होगा। वह तेजी से अपना घोड़ा भगाते हुए चला जा रहा था।


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