UP Board Class 10 Sanskrit Chapter - 9 Solutions संस्कृतभाषायाः गौरवम् (गद्य – भारती)

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 9 संस्कृतभाषायाः गौरवम् (गद्य – भारती)

संस्कृतभाषायाः गौरवम् (संस्कृत भाषा का गौरव)


( 1 ) संस्कृतं विना एकताया अखण्डतायाः पाठः च निरर्थक एव प्रतीयते नेहरूमहाभागेनापि स्वकीयायाम् आत्मकथायां लिखितम् यत् संस्कृतभाषा भारतस्य निधिस्तस्याः सुरक्षाया उत्तरदायित्वं स्वतन्त्रे भारते आपतितम् । अस्माकं पूर्वजानां विचारा: अनुसन्धानानि चास्यामेव भाषायां सन्ति । स्वसभ्यतायाः धर्मस्य राष्ट्रियेतिहासस्य , संस्कृतेश्च सम्यग्बोधाय संस्कृतस्य ज्ञानं परमावश्यकमस्ति।

UP Board Class 10 Sanskrit Chapter - 9 Solutions संस्कृतभाषायाः गौरवम् (गद्य – भारती)

संस्कृत विना एकताया …………………..परमावश्यकमस्ति। 


सन्दर्भ - संस्कृतभाषायाः गौरवम् ' नामक पाठ से उद्धृत प्रस्तुत अवतरण में लेखक यह वर्णन कर रहा है कि संस्कृत भाषा ही एकमात्र देश को एकता और अखण्डता के सूत्र में बाँध सकती है ।


अनुवाद - संस्कृत के बिना एकता और अखण्डता का पाठ व्यर्थ ही प्रतीत होता है । नेहरूजी ने भी अपनी आत्मकथा में लिखा है कि संस्कृत भाषा भारत की निधि है । इसकी सुरक्षा का उत्तरदायित्व स्वतन्त्र भारत पर आ पड़ा है । हमारे पूर्वजों के विचार एवं अनुसन्धान इसी भाषा में हैं । अपनी सभ्यता , धर्म , राष्ट्रीय इतिहास एवं संस्कृति के अच्छे ज्ञान के लिए संस्कृत का ज्ञान परमावश्यक है। 


( 2 ) संस्कृतभाषा विश्वस्य सर्वासु भाषासु प्राचीनतमा विपुल ज्ञान विज्ञानसम्पन्ना सरला सुमधुरा हृद्या चेति सर्वैरपि प्राच्यपाश्चात्य विद्वद्भि रेकस्वरेणोररीक्रियते । भारतीयविद्याविशारदैस्तु " संस्कृतं नाम दैवी वागन्वाख्याता महर्षिभिः " इति संस्कृतभाषा हि गीर्वाणवाणीति नाम्ना सश्रद्धं समाम्नाता।


संस्कृतभाषा विश्वस्य …………………….समाप्नाता।


सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती 'के' संस्कृतभाषायाः गौरवम् ' नामक पाठ से उद्धृत है । इस गद्यांश में लेखक ने संस्कृत भाषा की प्राचीनता का वर्णन किया है ।  

अनुवाद- संस्कृत भाषा विश्व की सभी भाषाओं में सबसे अधिक प्राचीन असीमित ज्ञान-विज्ञान से सम्पन्न, सरल, मधुर और हृदयहारी है, यह भारतीय एवं पाश्चात्य विद्वान् एक स्वर से स्वीकार करते हैं। भारतीय विद्या विशारद - विद्वान् ' संस्कृत को दैवी वाणी महर्षियों के द्वारा कहा गया है ' मानकर संस्कृत भाषा को ही देव भाषा के नाम बड़ी श्रद्धा के साथ पुकारते हैं ।


संस्कृतभाषायाः गौरवम् पाठ का सारांश हिन्दी में


इस पाठ में लेखक ने संस्कृत भाषा की प्राचीनता, उसके साहित्य की विशदता तथा विशेषताओं का उल्लेख किया है। संस्कृत भाषा विश्व की सम्पूर्ण भाषाओं में सबसे प्राचीन है। यह देववाणी, दैवीय वाक् तथा गीर्वाण वाणी नाम से प्रसिद्ध है। यह भाषा विपुल ज्ञान-विज्ञान से सम्पन्न, सरल, श्रुतिमधुर तथा हृदयहारिणी है। प्राचीन समय में यह भाषा जन-साधारण की बोलचाल की भाषा थी। इस भाषा का साहित्य विशाल है।


विश्व के सबसे प्राचीनतम चारों वेद, उपनिषद्, दर्शनशास्त्र, स्मृतियाँ, धर्मशास्त्र, पुराण, रामायण और महाभारत आदि संस्कृत साहित्य की अनुपम निधि है। वाल्मीकि, व्यास, भवभूति, दण्डी, सुबन्धु, बाण, अश्वघोष, भारवि, जयदेव, माघ और श्रीहर्ष आदि कवि और लेखक इस भाषा के गौरव के प्रतीक है।


मुनि पाणिनि इसके व्याकरण के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। संस्कृत भाषा के वाक्य प्रयोग में कर्ता क्रिया आदि का स्थान निश्चित नहीं है । कोई भी पद कहीं भी रखा जा सकता है। इसकी हैं. सन्धि-योजना तथा समास विधान भी अद्वितीय है। लकारों का प्रयोग भी वैज्ञानिक ढंग से किया गया है। इस भाषा की शब्द-निष्पत्ति योजना भी महान है। यह भाषा अत्यन्त मधुर है। इसका साहित्य उपदेशों से भरा पड़ा है। जो देश को एकता, अखण्डता के सूत्र में बाँधते हैं। अपनी सभ्यता, संस्कृति तथा धर्म को जानने के लिए संस्कृत भाषा का ज्ञान परमावश्यक है।


यह पोस्ट भी पढ़े :-

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top