UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter - 2 उद्भिज्ज परिषद् (गद्य – भारती)
( उद्भिज्ज - परिषद् )
स्वावस्थायां संतोषमलभमाना मनुजन्मानः प्रतिक्षणं स्वार्थ- साधनाय सर्वात्मना प्रवर्तन्ते, न धर्ममनुधावन्ति, न सत्यमनुबध्नन्ति, तृणवदुपेक्षन्ते स्नेहम्, अहितमिव परित्यजन्ति आर्जवम्, न किञ्चिदपि लज्जन्ते अनृतव्यवहारात्, न स्वल्पमपि बिभ्यति पापाचरेभ्यः, न हि क्षणमपि विरमन्ति परपीडनात् ।
स्वावस्थाय ………………………………………परपीडनात् ।
Up board class 10th Sanskrit solutions
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती के ' उद्भिज्ज - परिषद् ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें पीपलदेव द्वारा मानव जाति की विविध जघन्यताओं का वर्णन किया गया है।
अनुवाद - अपनी अवस्था में सन्तोष न पाने वाले मनुष्य प्रतिक्षण स्वार्थ सिद्धि के लिए पूरी तरह लगे रहते हैं। वे धर्म का अनुसरण नहीं करते है और न सत ( सत्य ) का ही अनुसरण करते है। स्नेह की तिनके के समान उपेक्षा करते हैं, सीधेपन को अहित की भाँति त्याग देते है । झूठ के व्यवहार से तनिक भी लज्जित नहीं होते है। वे पाप के आचरण से तनिक भी नहीं डरते हैं और दूसरों को पीड़ित करते हुए क्षणभर को भी नहीं रुकते हैं ।
उद्भिज्ज - परिषद् पाठ का सारांश हिन्दी में
एक बार वृक्षों की एक सभा हुई जिसमें अश्वत्थदेव ने कहा— हे वन के वृक्षो ! कोमल लताओ ! सावधान होकर सुनिये , इस संसार की सृष्टि में मानव सृष्टि सबसे निकृष्ट है। समस्त जीवों में मानव जैसा स्वार्थी , धोखेबाज, कपटी, हिंसक और कोई दूसरा जीव नहीं है। पशु तो अपना पेट भरने के लिए हिंसा करता किन्तु मनुष्य तो मनोरंजन के लिए हिंसा करता है ।
मनुष्यों की हिंसावृत्ति की कोई सीमा या अन्त नहीं है। अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए मनुष्य स्त्री, पुत्र, मित्र, स्वामी सबकी हत्या कर सकता है। पशु-हत्या तो उनका खेल है। उनके व्यवहार को देखकर हम वृक्षों का भी हृदय फटने लगता है । उनके मन में धर्म उपकार, सत्य, अहिंसा का कोई स्थान नहीं है।
ये मनुष्य केवल पशुओं से ही निकृष्ट नहीं हैं, अपितु तिनके से भी निकृष्ट हैं। तिनका तो अपनी शक्ति के अनुसार शत्रु का डटकर मुकाबला करता है और शक्ति के क्षीण होने पर वीर पुरुष की भाँति भूमि पर गिर जाता है । कायर पुरुषों के समान वह मैदान छोड़कर नहीं भागता। इस प्रकार तिनके से भी सारहीन और पशुओं से भी निकृष्ट है।
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