UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 12 लोकमान्य तिलकः (गद्य – भारती)
लोकमान्य तिलक : (लोकमान्य तिलक)
( 1 ) महाविद्यालये प्रवेशसमये स नितरां कृशगात्र आसीत्। दुर्बल शरीरेण स्ववले वर्धयितुं नदीतरण नौकाचालनादि विविधक्रियाकलापेन स्वगात्रं सुदृढं सम्पादितवान् । सहजैव चास्य महाप्राणता आविर्वभूव तत आजीवनं नीरोगताया : निरन्तर- मानन्दमभजत्।
महाविद्यालये प्रवेश ……………………..आनन्दमभजत्।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य - पुस्तक संस्कृत गद्य भारती के ' लोकमान्य तिलकः ' नामक पाठ से अवतरित है । इस गद्यांश में तिलक ने किस प्रकार नियमित रूप से श्रम ( व्यायाम ) द्वारा शारीरिक शक्ति में वृद्धि की, लेखक वर्णन कर रहा है ।
अनुवाद- महाविद्यालय में प्रवेश के समय में वे अत्यन्त कमजोर शरीर के थे , दुर्बल शरीर से , अपने बल को बढ़ाने के लिए नदी में तैरना , नौका चलाना आदि अनेक क्रिया - कलाप द्वारा अपने शरीर को सुदृढ़ ( शक्तिशाली ) बनाया । स्वाभाविक रूप से ही इनमें महान शक्ति उत्पन्न हो गई । इसके उपरान्त जीवन पर्यन्त नीरोगता का निरन्तर आनन्द प्राप्त किया ।
( 2 ) लोकमान्यो बालगङ्गाधर तिलको नाम मनीषी भारतीय स्वातन्त्र्ययुद्धस्य प्रमुख सेनानी ध्वन्यतम आसीत् । ' बालः ' इति वास्तविक तस्याभिधानम् । पितुरभिघानं ' गङ्गाधरः ' इति वंशश्च ' तिलक : ' एवञ्च ' बालगंगाधर तिलकः ' इति सम्पूर्णमभिधानम् , किन्तु लोकमान्य ' विरुदेनासौ विशेषेण प्रसिद्धः । यद्यप्यस्य जन्मनाम ' केशवराव ' आसीत् तथापि लोकस्तं ' बलवन्त राव ' इत्यभिधया एव ज्ञातवान् ।
लोकमान्यो बालगङ्गाधर……………………….. एवं ज्ञातवान् ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' लोकमान्य : तिलकः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें लेखक ने लोकमान्य तिलक को ' लोकमान्य ' नाम से पुकारे जाने के बारे में बताया है ।
अनुवाद - लोकमान्य बालगङ्गाधर तिलक नामक विद्वान् भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख सेनानियों में अद्वितीय थे । ' बाल ' यह उनका वास्तविक नाम था । पिता का नाम ' गंगाधर ' तथा वंश का नाम ' तिलक ' था । इस प्रकार इनका पूरा नाम ' बाल गंगाधर तिलक ' था , किन्तु यश से वे ' लोकमान्य ' के नाम से विशेष प्रसिद्ध हुए । यद्यपि इनके जन्म का नाम 'केशवराव' था , फिर भी संसार उन्हें ' बलवन्त राव ' इस नाम से ही जानता था ।
( 3 ) अत्रैव निर्वासनकाले तेन विश्वप्रसिद्धं गीतारहस्यं नाम गीतायाः कर्मयोगप्रतिपादकं नवीन भाष्यं रचितम्। कर्मसु कौशलमेव कर्मयोग: गीता तमेव कर्मयोग प्रतिपादयति। अतः सर्वे जनाः कर्मयोगिनः स्युः इति तेन उपदिष्टम्। कारागारात् विमुक्तोऽयं देशवासिभिरभिनन्दितः । तदनन्तरं स ' होमरूल ' सत्याग्रहे सम्मिलितवान् ।
अत्रैव निर्वासनकाले ………………………..सम्मिलितवान् ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश ' लोकमान्य तिलक ' नामक पाठ से उद्धृत है । यहाँ लेखक तिलक की धीरता को प्रदर्शित करते हुए लिखता है कि तिलक ने जेल की कठोर यातनाएँ सहन करते हुए ' गीता रहस्य ' आदि पुस्तकों को लिखा ।
अनुवाद — यहीं निर्वासन काल में उन्होंने विश्व प्रसिद्ध ' गीता रहस्य ' नामक गीता के कर्मयोग का प्रतिपादन करने वाले नवीन भाष्य को लिखा । कर्मों में कौशल ही कर्मयोग है , गीता इस कर्मयोग का प्रतिपादन करती है । इसलिए सब मनुष्य कर्मयोगी हों , यह इन्होंने सभी को उपदेश दिया । कारागार से छूटने के बाद लोगों ने इनका अभिनन्दन किया । इसके बाद वह होमरूल नामक सत्याग्रह में सम्मिलित हुए ।
( 4 ) अस्य बाल्यकालोऽतिकष्टेन व्यतीतः । यदा स दशवर्षदेशीयोऽभूत तस्य जननी परलोकं गता । षोडशवर्षदेशीयो यदा दशम्यां कक्षायामधीते स्म तदा पितृहीनो जातेऽयं शिशु एवं नानाबाधाबाधितोऽपि सोऽध्ययनं नात्यजत् । विपद्वायुः कदापि तस्य धैर्य चालयितुं न शशाक। अस्मिन्नेव वर्षे तेन प्रवेशिका परीक्षा समुत्तीर्णा इत्यमस्य जीवनं प्रारम्भादवे संघर्षमयमभूत् ।
अस्य बाल्यकालोऽति…………………….. संघर्षमयमभूत् ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्य - खण्ड ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' लोकमान्य तिलकः ' नामक पाठ से अवतरित है । इस गद्यांश में लेखक ने तिलक के बाल्यकाल जीवन में घटित क्रमशः दुर्घटनाओं एवं पीड़ाओं का वर्णन किया है ।
अनुवाद- इनका बाल्यकाल अत्यन्त कष्ट से बीता । जब वे दस वर्ष के थे । तब इनकी माता का स्वर्गवास हो गया । सोलह वर्ष का था जब यह दसवीं कक्षा में पढ़ता था , तब यह बालक पिता से विहीन हो गया । इस प्रकार अनेक बांधाओं से पीड़ित होने पर भी अध्ययन नहीं छोड़ा । विपत्ति रूपी वायु कभी इनके धैर्य को नहीं हिला सकी । इसी वर्ष उन्होंने प्रवेशिका परीक्षा उत्तीर्ण की । इस प्रकार इनका जीवन प्रारम्भ से ही संघर्षशील रहा ।
( 5 ) सोऽस्मान् स्वतन्त्रतायाः पाठमपाठयत् ' स्वराज्यमस्माकं जन्मसिद्धोऽधिकारः ' इति घोषणामकरोत् । स्वराज्यप्राप्त्यर्थं घोरमसां क्लेशमसहत लोकमान्यो राजनीतिक जागर्तेसत्पाद नार्थं देशभक्तै सह मिलित्वम मराठी भा ' केसरि ' आङ्ग्लभाषाञ्च ' माराठा ' साप्ता पत्रद्वमं प्रकाशायामान । तेनं स्वप्रकाशितपत्रद्वयद्वारा आङ्ग्लशासनस्य सत्यालोचनं , राष्ट्रियशिक्षणं , वैदोशिकवस्तूना बहिष्कार : स्वदेशीय वस्तूनामु , पयोगश्ल प्रचारित: ।
सोऽस्मान् स्वतन्त्रताया:....................................... प्रचलितः ।
सन्दर्भ – प्रस्तुत गद्यावतरण ' लोकमान्य तिलक ' नामक पाठ से अवतरित हैं । यहाँ तिलक की पत्रकारिता एवं देश सेवा का वर्णन किया गया है ।
अनुवाद— उन्होंने हमें स्वतंत्रता का पाठ पाढ़ाया । ' स्वराज्य हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है ' यह घोषणा की । उन्होंने स्वराज्य प्राप्ति के लिए घोर कष्टों को सहन किया । लोकमान्य ने राजनीतिक जागृति उत्पन्न करने के लिए देशभक्तों के साथ मिलकर मराठी भाषा में ' केसरी ' और अंग्रेजी भाषा में ' मराठा ' नामक दो सप्ताहक पन्नों के माध्यम से अंग्रेजी शासन की सच्ची आलोचना, राष्ट्रीय शिक्षा , विदेशी वस्तुओं का त्याग और स्वदेशी बस्तुओं का उपयोग करना आदि को प्रचारित किया।
लोकमान्य तिलक: पाठ का सारांश हिन्दी में
लोकमान्य बाल गंगाधर का जन्म 1856 ई . में महाराष्ट्र में रत्नगिरि मण्डल के ' चिरवल ' नामक गाँव में हुआ था । इनके पिता का नाम रामचन्द्र गंगाधर राव और माता का नाम पार्व बाई था । बाल्यावस्था से ही ये कुशात्र बुद्धि के थे । ये गणित के कठिन प्रश्नों का उत्तर मौखिक ही दे देते थे। ये शरीर से कृश थे।
ये वकालत छोड़कर देश सेवा में लग गये। लोकसेवा के लिए इन्होंने अपना जीवन अर्पित कर दिया था । ' स्वतन्त्रता हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है । ' यह उनकी घोषणा ( नारा ) थी । स्वराज्य प्राप्ति के लिए इन्होंने बहुत कष्ट सहे । तिलक ने मराठी ' केसरी ' और ' अंग्रेजी ' में ' मराठा ' नामक पत्र का प्रकाशन किया । ' केसरी ' पत्र में लिखे लेख से होकर अंग्रेजों ने इन्हें जेल में डाल दिया ।
जेल से छूटने के बाद इन्होंने स्वतन्त्रता आन्दोलन में भाग लिया । फिर सरकार ने इन्हें छ : वर्ष की सजा देकर माण्डले जेल भेज दिया । जेल में इन्होंने ' गीता रहस्य ' नामक पुस्तक लिखी जिसमें कर्मयोग का महत्त्व प्रतिपादित है । इन्होंने जीवन भर स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष किया और 1 अगस्त , 1920 ई . को ये दिवंगत हो गये ।
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