UP Board Solutions for Class 10th Sanskrit Chapter-4 भारतीय जनतन्त्रम् (गद्य – भारती)
भारतीय जनतन्त्रम् ( भारतीय जनतन्त्र )
( 1 ) अनेकेषु प्रजातन्त्रीयेषु देशेष्वधुनाऽपि राजानः सन्ति किन्तु ते तत्रालङ्कारमात्रभूताः जनप्रतिनिधिभिः नियमिताधिकाराः वर्तन्ते । सत्स्वपि राजसु तत्रापि च प्रजातन्त्ररीत्य एव शासनं सञ्चरते । तत्रापि शासनस्य सर्वेऽधिकाराः जननिर्वाचित प्रतिनिधिसदसि सन्निहिता- स्तिष्ठान्ति । त एवाधिकारा राज्ञोयभुज्यन्ते ये प्रतिनिधिभिः तस्मै प्रदत्ताः ।
अनेकेषु प्रजातन्त्रीयेषु……………………….. तस्मै प्रदत्ताः ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यखण्ड हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से अवतरित है । इस गद्यखण्ड में अन्य देशों के प्रजातन्त्र के स्वरूप पर प्रकाश डाला जा रहा है ।
अनुवाद — अनके प्रजातन्त्रीय देशों में आज भी राजा हैं किन्तु वे अलंकार मात्र हैं , जनप्रतिनिधियों द्वारा अनेक अधिकार नियमित हैं । राजाओं के होते वहाँ भी प्रजातन्त्र की रीति से शासन चलता है । वहाँ भी शासन के सम्पूर्ण अधिकार जनता द्वारा निर्वाचित प्रतिनिधियों में सन्निहित हैं । राजा उन्हीं अधिकारों का उपभोग करते हैं , जो प्रतिनिधियों द्वारा उन्हें दिये गये हैं ।
( 2 ) राजतन्त्रे दण्डभयाद् कार्य निष्पादयन्ति जनाः । जनतन्त्रे स्वतः एव कर्तव्यभावनया स्वकार्य निष्पादनीयं भवेत् कर्तव्यबोध एव जनतन्त्रस्य मूलाधारः । यस्मिन् कस्मिन् वा कार्य नियुक्ताः कर्तव्यसम्पादनसमुत्सुका : सततं राष्ट्रविकासनिरताः विहितसाध्यं साधयन्तोऽश्रान्ताः श्रमशीला देशवासिनो नागरिका एव स्वराष्ट्रपुन्नेतुं क्षमन्ते इति जनतन्त्रपद्धत्याः महद्वैशिष्ट्यम् ।
राजतन्त्र दण्डभयाद् …………………………महद्वैशिष्ट्यम् ।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें राजतन्त्र तथा जनतन्त्र के अन्तर को स्पष्ट किया गया है ।
अनुवाद - राजतन्त्र में लोग दण्ड के भय से कार्य करते हैं । जनतन्त्र में स्वतः ही कर्तव्य भावना से अपना कार्य किया जाता है । कर्तव्य का बोध ही जनतन्त्र का मूल आधार है । जहाँ कहीं भी जिस किसी में नियुक्त करते कर्तव्य को पूर्ण करने के लिए उत्सुक , सदा राष्ट्र के विकास में संलग्न तथा निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए अथक श्रम करने वाले देशवासी नागरिक ही अपने राष्ट्र की उन्नति करने में समर्थ होते हैं , यहीं जनतन्त्र प्रणाली की महान् विशेषता है ।
( 3 ) जनतन्त्राभिधाना शासनप्रणाली अस्माकं देशे प्रवर्तमा - नाऽस्ति । राजनयशास्त्रज्ञैः विद्वद्भिः राजतन्त्रं कुलीनतंत्र प्रजातंत्रमिति शासन प्रणालल्यास्त्रयो भेदं प्रतिपादिताः , राजतन्त्रम्- राज्ञ : शासनम् , कुलीनतन्त्रम्- कुलीनानां विशिष्टजनानां शासनम् , जनतन्त्रम् जनानां शासनमिति तैराधुनिकैः व्याख्यातम् ।
जनतन्त्राभिधानम शासन ……………………..व्याख्यातम् ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से उद्धृत है । यहाँ लेखक ने शासन-प्रणालियों के भेदों के बारे में बताया है।
अनुवाद- जनतन्त्र नाम की शासनप्रणाली हमारे देश में प्रचलित है। राजनीति के जानने वाले विद्वानों द्वारा -राजतन्त्र, कुलीनतन्त्र और जनतन्त्र शासनप्रणाली के तीन भेद बताये गये हैं। राजतन्त्र अर्थात् राजा का शासन, कुलीनतन्त्र अर्थात् कुलीनों का शासन और जनतन्त्र अर्थात् जनों का शासन, विभिन्न आधुनिक विद्वानों ने बताये हैं।
( 4 ) राजतन्त्रं व्यक्तिविशेषस्य शासनं भवति । स एव सर्वोच्च शासक : राजा भवति । यावज्जीवनं स राजसिंहासने तिष्ठति शासनञ्च कुरुतेः तस्य मृत्योः परं तस्य ज्येष्ठः पुत्र , पुत्राभावे तस्य ज्येष्ठा पुत्री तत्पदमलङ्करुते । राजतन्त्रपक्षग्रहाः विपश्चितः राजानमीश्वरप्रतिनिधि भूतमेवाङ्गीकुर्वन्ति ।
राजतन्त्रं व्यक्तिविशेषस्य ………………..भूतमेवाङ्गीकुर्वन्ति ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से उद्घृत है । प्रस्तुत अवतरण में शासनप्रणालियों के अन्तर्गत राजतन्त्र प्रणाली पर प्रकाश डाला जा रहा है ।
अनुवाद- राजतन्त्र व्यक्ति विशेष का शासन होता है । वही सर्वोच्च शासक राजा होता है । वह जीवनपर्यन्त राजसिंहासन पर बैठता है और शासन करता है । उसकी मृत्यु पर उसका बड़ा पुत्र , पुत्र न होने पर बड़ी पुत्री उस पद को सुशोभित करती है । राजतन्त्र का पक्ष लेने वाले विद्वान राजा को ईश्वर का प्रतिनिधि स्वीकार करते हैं ।
( 5 ) कुलीनानां विशिष्टजनानां शासनमपि जनानां कृते श्रेयष्करं न संभाव्यते , समाजे विशिष्टजना : बहुधा धनिनो वलिनो वा भवन्ति । धनिनां शासनं धनिनां कृते । बलवतां शासनं बलवतां कृते कल्याणकृत सम्पत्स्यते । एवंविधे शासने निर्धना: दुर्बलाश्च भृशमुत्पीडिता भवेयुर्नात्र संशयलेशः । तन्त्रेऽस्मिन् सामान्यजनानां कल्याणस्य कल्पनाऽपि खपुष्पमिव भवेत् । अतएवेदं तन्त्रं कदापि जनहृदि हृद्यं पदं नाऽलमत् ।
कुलीनानां विशिष्ट …………………………नाडलभत् ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यावतरण ' भारतीय जनतंत्रम् ' नामक पाठ से अवतरित है । यहाँ कुलीन तंत्र के विषय में वर्णन किया गया है ।
अनुवाद- कुलीनों का , विशिष्टजनों का शासन भी प्रजा के लिए कल्याणकारी सम्भव नहीं हो पाता क्योंकि समाज में विशिष्टजन प्रायः धनी या बलवान होते हैं । धनवानों का शासन , धनवानों के लिए , बलवानों का शासन बलवानों के लिए कल्याणकारी हो सकेगा । इस प्रकार के शासन में निर्धन और दुर्बल अत्याधिक पीड़ित होते हैं , इसमें किचित सन्देह नहीं है । इस तत्र में सामान्य मनुष्यों के कल्याण की कल्पना भी आकाश - कुसुम की भाँति असम्भव हो जाती है । इसलिए इस तन्त्र ने कभी भी मनुष्यों के हृदय में अच्छा स्थान नहीं प्राप्त किया ।
( 6 ) यूयमेव बालकबालिकाश्चास्य राष्ट्रस्य स्वामिनः सेवकाश्च स्था यूयं यथा समाचरिष्यथ तथैव राष्ट्ररूपं भविष्यति । यदि यूयं स्वकर्त्तव्यानि सदा सावधान अनुशासिता : सम्पादयन्तः राष्ट्रहिताय स्वहितं परिहरन्तः राष्ट्ररक्षायै राष्ट्रविकासाय तत्पराः स्थास्यथ तदैवास्माकं राष्ट्र भारतवर्ष जगद्गुरुगौरवपदं पुनरुपलप्स्यते ।
यूयमेव बालक………………………… पुनरूपलप्स्यते ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से लिया गया है । इस गद्यांश में लेखक ने देश के बालक और बालिकाओं को राष्ट्र की उन्नति करने के लिए उनके योगदान का वर्णन किया है ।
अनुवाद- तुम सब बालक - बालिकाएँ राष्ट्र के स्वामी और सेवक हो । तुम्हारा जैसा आवरण होगा , राष्ट्र का स्वरूप वैसा ही होगा । यदि तुम सब सदैव सावधानी और अनुशासन से अपनी हित छोड़कर राष्ट्रहित , राष्ट्र - रक्षा के लिए और राष्ट्र - विकास के लिए तत्पर रहोगे , तब हमारा राष्ट्र भारतवर्ष जगद्गुरु की पदवी फिर से प्राप्त कर सकता है ।
( 7 ) अस्माकं देशो भारतवर्षमपि सप्तचत्वारिंशदुत्तरैकोनविंशति शततमें ख्रिष्टाब्दे अगस्तमासस्य पञ्चदशादिनाङ्के वैदेशिककूर - करान्युक्तं सत् जनतंत्रप्रणालीमुरीचकार । विदेशीयशासनजनितान् दारिद्र्या शिक्षाऽऽमयादिदोषान् अपाकुर्वन् सततं विकासोन्मुखोऽस्माकं देशस्त्वरितगत्याऽग्रेसरायान्नस्ति । साश्चर्यमेतस्योन्नतिं विश्वराष्ट्राणि पश्यन्ति । देशवासिनां देशप्रेम्णः परिणामोऽयं विद्यते ।
अस्माकं देशो…………………………. परिणामोऽयं विद्यते ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्य - खण्ड ' भारतीय जनतन्त्रम् ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात् देश में किये गये विकास कार्यों पर प्रकाश डाला जा रहा है ।
अनुवाद- हमारे देश भारतवर्ष में भी 15 अगस्त सन् 1947 ई . को विदेशियों के कर हाथों से मुक्त होते हुए जनतन्त्र प्रणाली को स्वीकार किया । विदेशी शासन से उत्पन्न निर्धनता , अशिक्षा और रोग आदि दोषों को दूर करता हुआ हमेशा विकास की ओर उन्मुख हमारा देश तेज गति से आगे बढ़ रहा है । इसकी उन्नति को संसार के राष्ट्र आश्चर्य के साथ देखते हैं । यह देशवासियों के देश प्रेम का परिणाम है ।
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