UP Board Solutions for Class - 10 Sanskrit Chapter 10 मदनमोहनमालवीयः (गद्य – भारती)
मदनमोहनमालवीयः (मदनमोहन मालवीय)
( 1 ) विश्वविद्यालयस्य संस्थापनानन्तरमेव स कुलपतिपद मलङ्कृतवान। कुलपतिपदमलङ्कर्वन् स छात्रान् प्रियपुत्रानिवामन्यत् । अर्थसंकटे देहसंकटे वा ग्रस्तः कश्चित् छात्र इति ज्ञात्वा तस्य संकटमचिरमसौ पितृवदपानयत् कुलपतिस्तु स पदेनासीत् व्यवहारेण च कुलपिता अभवत्।
विश्वविद्यालयस्य ……………………कुलपिता अभवत् ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' मदनमोहन मालवीयः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इस गद्यांश में लेखक ने मालवीय जी के कुलपति के रूप में उनकी सह का वर्णन किया है ।
अनुवाद विश्वविद्यालय में स्थापित होने के बाद ही उन्होंने कुलपति के पद को सुशोभित किया । कुलपति पद की शोभा बढ़ाते हुए उन्होंने छात्रों को प्रिय पुत्र के समान माना । कोई छात्र अर्थ संकट में है या शारीरिक कष्ट में है , ऐसा जानकर वे उसके संकट को शीघ्र ही पिता की भाँति दूर कर दिया करते थे । कुलपति तो वे पद से थे , परन्तु व्यवहार से तो वे कुलपिता ही थे ।
( 2 ) गौरं कान्तिमयं वपुः धवलं परिधानं, गले लम्बितमुत्तरीयं, शिरसि धवलोष्णीषम्, ललाटेकुङ्कमगर्भितधवलचन्दनतिलकं, धवले चोपानही एतत्सर्व मदनमोहनमालवीयस्य आरतीयचारित्र्यं, हृदयस्य च विमलत्वं निदर्शयति स्म । वस्तुतस्तु , भारतीया संस्कृतिस्तस्मिन् रूपायिता जाता ।
गौरं कान्तिमयं वपुः…………………… रूपायिता जाता ।
सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य - पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती द्वितीय भाग ' में संकलित ' मदनमोहनमालवीयः ' नामक पाठ से उद्धृत है । इसमें लेखक ने मालवीय जी की देशभूषा के बारे में बताया
अनुवाद - गौर वर्ण वाला कान्तियुक्त शरीर, सफेद वस्त्र, गले में लम्बा दुपट्टा, सिर पर सफेद पगड़ी , मस्तक पर रोरी मिला सफेद चन्दन का तिलक, सफेद जूते सभी मदनमोहन मालवीय के भारतीय चरित्र और दया की निर्मलता को बतलाते थे । वास्तव में भारतीय संस्कृति उन्हीं के रूप में साकार हो गयी थी ।
( 3 ) मदनमोहनमालवीयोऽध्यापकोऽभवत्, पत्रकारकर्म चानुष्ठितवान्, परं सः सन्तुष्टि शान्ति च नालभत। देशस्य पारतत्र्येण तस्य मनः भृशमदूयत । कथं वादेश : पारतन्त्र्यशृंखलामुच्छिद्य स्वतन्त्रो भविष्यतीति चिन्ताचिन्तितः सन् मालवीयः अखिलभारतीय काँग्रेसदलमाध्यमेन पृथग्रूपेण मातृभूमे: मुक्तिकर्मणि संलग्नो जातः ।
मदनमोहनमालवीयो ………………………….संलग्नो जातः।
सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती के ' मदनमोहन मालवीय : ' नामक पाठ अवतरित है । इस गद्यांश में भारत को दासता से मुक्ति दिलाने के कार्य में मालवीय जी के योगदान तथा पत्रकारिता का वर्णन किया जा रहा है ।
अनुवाद- मदनमोहन मालवीय अध्यापक हो गये और पत्रकार का काम भी करते रहे, लेकिन इनके मन को सन्तोष और शान्ति न मिली। देश की पराधीनता से उनका मन बहुत दुःखी हुआ। किस प्रकार यह देश पराधीनता की जंजीरों को काटकर स्वतन्त्र होगा? इस चिन्ता से चिन्तित होते हुए मालवीय जी अखिल भारतीय कॉंग्रेस दल के माध्यम से पृथक् रूप से मातृभूमि की मुक्ति के काम में लग गये।
यह पोस्ट भी पढ़े :-
- अध्याय 1 कविकुलगुरुः कालिदासः (कविकुलगुरु कालिदास)
- अध्याय 2 उद्भिज्ज परिषद् (वृक्षों की सभा)
- अध्याय 3 नैतिक मूल्यानि (नैतिक मूल्य)
- अध्याय 4 भारतीय जनतन्त्रम् (भारतीय जनतन्त्र)
- अध्याय 5 विश्वकविः रवीन्द्रः (विश्वकवि रवीन्द्र)
- अध्याय 6 कार्यं वा साधयेयं देहं वा पातयेयम् (या कार्य को सिद्ध करेंगे या मर जाएँगे)
- अध्याय 7 भरते जनसंख्या–समस्या (भारत में जनसंख्या-समस्या)
- अध्याय 8 आदिशंकराचार्यः (आदि शंकराचार्य)
- अध्याय 9 संस्कृतभाषायाः गौरवम् (संस्कृत भाषा का गौरव)
- अध्याय 10 मदनमोहनमालवीयः (मदनमोहन मालवीय)
- अध्याय 11 जीवनं निहितं वने (वन में जीवन निहित है)
- अध्याय 12 लोकमान्य तिलकः (लोकमान्य तिलक)
- अध्याय 13 गुरुनानकदेवः (गुरु नानकदेव)
- अध्याय 14 योजना - महत्व (शामिलियों की महत्ता)