आदिशङ्कराचार्यः (गद्य–भारती) - UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter-8

UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter 8 आदिशङ्कराचार्यः (गद्य – भारती)

आदिशंकराचार्य (आदि शंकराचार्य)


( 1 ) गुरोः गोविन्दपादादेव वेदान्ततत्त्वं विधिवदधीत्य स तत्वज्ञो वभूव । सृष्टिरहस्यमधिगम्य गुरोराज्ञया स वैदिकधर्मोद्धरणार्थं दिग्विजयाय प्रस्थितः । ग्रामाद् ग्रामं नगरान्नगरमटन् विद्वद्भिश्च सह शास्त्रचर्चा कुर्वन् स काशीं प्राप्तः । काशीवासकाले स व्याससूत्राणामुपनिषदां श्रीमद्भगवद् गीतायाश्च भाष्याणि प्रणीतवान्। 

आदिशङ्कराचार्यः (गद्य–भारती) - UP Board Solutions for Class 10 Sanskrit Chapter-8

गुरोः गोविन्दपादादेव…………………………प्रणीतवान् ।


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश 'आदिशंकराचार्य:' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें आदि शंकराचार्य के गुरु गोविन्द पाद से संन्यास की दीक्षा लेकर तथा दिग्विजय के लिए प्रस्थान करने के विषय में बताया गया है। 


अनुवाद- शंकर गोविन्द पाद से ही वेदान्त के तत्व विधिपूर्वक अध्ययन करके तत्वज्ञाता हो गये । सृष्टि के रहस्य को जानकर गुरु की आज्ञा से उन्होंने वैदिक धर्म का उद्धार करने के लिए दिग्विजय हेतु प्रस्थान किया । गाँव से गाँव , नगर से नगर घूमते हुए , विद्वानों से शास्त्रार्थ की चर्चा करते हुए वे काशी पहुँचे । काशी में रहते हुए उन्होंने व्यास सूत्रो , उपनिषदों और श्रीमद्भगवद्गीता पर भाष्य लिखे । 


( 2 ) दिग्विजययात्राप्रसङ्गैनैव आचार्यप्रवरः प्रयागं प्राप्तः । तत्र वैदिक धर्मोद्धरणाय सततं यतमानं कुमारिलभट्टे ददर्श । एकत : कुमारिलभट्टः वैदिकधर्मस्य कर्मकाण्डपक्षमाश्रित्य सम्प्रदायिकान् पराजितवान् अपरतश्च श्रीमच्छङ्करः कर्मकाण्डस्य चित्तशुद्धिमात्र पर्यवसायिमाहात्म्यं स्वीकृत्यापि मोक्षे तस्य वैयर्थ्य प्रतिपादयामास एवं कुमारिलसम्मतं मतमपि खण्डयित्वा स अज्ञान निवृत्तये ज्ञानस्य महिमान ख्यापयामास । 


दिग्विजययात्राप्रसङ्गेनैव……………………….. ख्यापयामासा 


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सन्दर्भ -प्रस्तुत गद्यावतरण संस्कृत गद्य भारती द्वितीय भाग के ' आदिशंकराचार्य ' नामक पाठ से उद्धृत है । यहाँ लेखक ने श्री शंकराचार्य की महानता एवं विद्वता का परिचय दिया है । 


अनुवाद- दिग्विजय के ही प्रसंग में आचार्यों में श्रेष्ठ ये प्रयोग पहुँचे । वहाँ वैदिक धर्म के उद्धार के लिए निरन्तर प्रयास करते हुए कुमारिल भट्ट से मिले। एक ओर तो कुमारिल भट्ट ने वैदिक धर्म के कर्मकाण्ड के पक्ष को लक्ष्य करके साम्प्रदायिको को पराजित किया दूसरी और श्री शंकराचार्य के कर्मकाण्ड के चित्त शुद्धि मात्र उद्देश्य वाली उसकी महत्ता को स्वीकार करके भी मोक्ष के विषय में उसकी व्यर्थता को सिद्ध किया। इस प्रकार कुमारिल भट्ट के द्वारा सम्मानित मत का भी खण्डन करके उन्होंने अज्ञान के निराकरण के लिए ज्ञान की महिमा को बताया । 


( 3 ) शङ्करः केरलप्रदेशे मालावारप्रान्ते पूर्णाख्याया: नद्यास्तटे स्थिते शलकग्रामे अष्टाशीत्यधिके सप्तशततमे ख्रिष्टाब्दे नम्वृद्रिकुले जन्म लेभे तस्य पितुर्नामि शिवगुरुरासीत् मातुश्च सुभद्रा । शैशवादेव शङ्करः अलौकिकप्रतिभासम्पन्न आसीत् । अष्टवर्षदेशीयः सन्नपि परममेधावी असौ वेदवेदाङ्गेषु प्रावीण्यमवाप । 


शङ्कर केरल प्रदेश………………………….. प्रावीण्यमवाय । 


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सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्य खण्ड हमारी पाठ्य पुस्तक ' संस्कृत गद्य भारती के ' आदिशंकराचार्यः ' नामक पाठ से अवतरित है । इस गद्यांश में लेखक शंकराचार्य का जीवन परिचय देते हुए उनके प्रतिभावान होने का वर्णन कर रहा है । 


अनुवाद - शंकर ( आचार्य ) ने केरल प्रदेश में मालावरा प्रान्त में पूर्णा नाम की नदी के किनारे स्थित शलक ग्राम में 788 ईसवी में नम्बूद्री कुल में जन्म लिया । उनके पिता का नाम शिवगुरु और माता का नाम सुभद्रा था । बचपन से ही शंकर अलौकिक प्रतिभा से सम्पन्न था । आठ वर्ष के होते ही अत्यन्त बुद्धिमान शंकर ने वेद और वेद के अंगों में प्रवीणता प्राप्त कर ली थी । 


( 4 ) निष्कामकर्मयोगी शङ्कर: यद्यपि अल्पयुरासीत् किन्तु तस्य कर्याणि , अत्युत्कृष्टभाष्यग्रन्थाः , अनेके मौलिकग्रन्थाः द्वैत- सिद्धान्तश्चैनम् अनुक्षणं स्मारयन्ति । धन्यः खल्वसौ महनीयकीर्ति : जगद्गुरुः भगवान् शङ्कर । 


निष्काम कर्मयोगी……………………… भगवान् शङ्करः ।


सन्दर्भ - प्रस्तुत गद्यांश ' संस्कृत गद्य भारती ' के ' आदिशंकराचार्यः ' नामक पाठ से लिया गया है । इस गद्यांश में जगद्गुरु भगवान् शंकर के यशस्वी कार्यों का वर्णन किया गया है । 


अनुवाद – निष्काम कर्मयोगी शंकराचार्य यद्यपि थोड़ी अवस्था के थे , किन्तु उनके कार्य, उत्तम भाष्य, अनेक मौलिक ग्रन्थ तथा अद्वैत सिद्धान्त उनकी हर समय याद दिलाते हैं । वे पूजनीय, कीर्तिवान् जगद्गुरु भगवान् शंकर धन्य हैं । 


( 5 ) धन्येयं भारतभूमिर्यत्र साधुजनानां परित्राणाय दुष्कृतानाञ्च विनाशाय सृष्टिस्थितिलयकर्ता परमात्मा स्वयमेव कदाचित् रामः कदाचित कृष्णश्च, भूत्वा आविर्बभूव। त्रेतायुगे रामोधनुर्घृत्वा विपथगामिनां रक्षसां संहारं कृत्वा वर्णाश्रमव्यवस्थामरक्षत्। द्वापरे कृष्णो धर्मध्वंसिनः कुनृपतीन् उत्पाट्य धर्ममत्रायत। सैषा स्थितिः यदा कलौ समुत्पन्ना बभूव तदा नीललोहितः : भगवान् शिव : शंकररूपेण पुनः प्रकटीबभूव । 


धन्येयं भारतभूमिर्यत्र …………………………….प्रकटीबभूव।


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सन्दर्भ- प्रस्तुत गद्यांश संस्कृत गद्य भारती द्वितीय भाग ' के ' आदि शंकराचार्य: ' नामक पाठ से अवतरित है । इसमें लेखक आदि गुरु शंकराचार्य ने किस प्रकार देश में पुन : वैदिक धर्म की स्थापना की , इसका वर्णन कर रहा है । 


अनुवाद - यह भारत भूमि धन्य है , जहाँ सज्जनों की रक्षा के लिए और दुष्टों के विनाश के लिए जगत् की सृष्टि , स्थिति और लाभ के कारण भूत ईश्वर रही कभी राम तो कभी कृष्ण होकर प्रकट हुए । त्रेता युग में राम ने धनुष धारण करके कुमार्ग पर चलने वाले राक्षसों का संहार करके वर्णाश्रम व्यवस्था की रक्षा की । वही दशा जब कलियुग में पैदा हुई तब नीलकण्ठ भगवान शिव शंकर का रूप धारण करके पुनः उत्पन्न हुए।


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