कानून और प्रथा में अन्तर स्पष्ट कीजिए - Difference between Law and Custom.

प्रथा और कानून में अन्तर स्पष्ट कीजिए ( Explain the difference between custom and law )

आदिम कानून और प्रथा ( Primitive Law and Custom )

कानून और प्रथा एक - दूसरे से भिन्न है । लेकिन इस भिन्नता के बावजूद भी ये दोनों एक दूसरे पर आश्रित हैं । सामाजिक विकास के क्रम से यह स्पष्ट होता है कि समाज ज्यों - ज्यों सरलता से जटिलता की ओर विकसित होता है, प्रथा के साथ उसका सम्बन्ध कम होता जाता है ।


आदिकालीन समाज के कानून वस्तुतः कानून न होकर सामाजिक प्रथा है । कानून का उल्लंघन जिस प्रकार अपराध माना जाता है उसी प्रकार प्रथा का उल्लंघन भी समाज द्वारा अनुमत नहीं हैं । यदि सूक्ष्म रूप से विचार किया जाय तो कानून का मुख्य आधार प्रथाओं की पृष्ठभूमि है लेकिन इस घनिष्ठ सम्बन्ध के बावजूद भी , प्रथा और कानून में अनेक मौलिक अन्तर है । इस अन्तर को निम्न प्रकार से स्पष्ट किया जा सकता है-

कानून और प्रथा में अन्तर स्पष्ट कीजिए - Explain the difference between Law and Custom.
( 1 ) प्रथा का जन्म किसी निश्चित अवधि में नहीं होता । यह दीर्घकाल के बाद विकसित होती है और एक पीढ़ी के बाद दूसरी पीढ़ी में इसका संक्रमण होता रहता है । लेकिन कानून की उत्पत्ति के बारे में निश्चित अवधि को खोजा जा सकता है ।


प्रथा मूल रूप से संस्थाओं को उत्पत्ति के साथ ही विकसित होती है । लेकिन कानून का विकास बहुत बाद में हुआ । आदिकालीन समाज में प्रथा और कानून में कोई अन्तर नहीं था । आधुनिक समाज में कानून जो कार्य करता है वही आदिकालीन समाज में प्रथा ने किया है । 


( 2 ) प्रथा की उत्पत्ति का मूल कारण समाज की आदतें तथा रीतियों हैं , समाज की रीतियाँ जब स्थायी होकर शक्तिशाली हो जाती हैं तो वे प्रथा का रूप धारण कर लेती हैं । समाज जिन कार्यों को सम्पन्न करने की अनुमति देता है उन्हीं को दूसरे शब्द में समाज की प्रथा कहा जा सकता है , इसलिए प्रथाएँ समाज को नियंत्रित करने की एक पद्धति तहैं , जिनके ऊपर पुर्नविचार की आवश्यकता नहीं होती । 


( 3 ) प्रथा के पीछे जनशक्ति का निवास होता है । समाज की सामूहिक इच्छा इसका समर्थन करती है । लेकिन कानून के पीछे राजशक्ति का निवास होता है । इस दृष्टि से जो मनुष्य कानून का उल्लंघन करता है । उसके दण्ड में अन्तर है । कानून का जो उल्लंघन करता है उसे समाज दण्ड देता है । कानून के उल्लंघन से व्यक्ति को जेल भेजा जा सकता है अथवा मृत्युदण्ड भी दिया जा सकता है , लेकिन प्रथा के उल्लंघन से व्यक्ति को समाज से बहिष्कृत किया जाता है । 


( 4 ) प्रथाओं की प्रकृति स्थायी होती है । इसके स्वरूप का निश्चय अनेक सदियों के विकास के बाद होता है । लेकिन कानून की प्रकृति प्रथा की तरह स्थायी रहीं है । राज्य किसी भी समय कानून को बदल सकता है अथवा किसी नए कानून का निर्माण कर सकता है । 


( 5 ) कानून राज्य की उपज है । राज्य इसके अतिरिक्त को बनाये रखने के लिए शक्ति का उपयोग करता है , लेकिन प्रथा की उत्पत्ति जन - जीवन से होती है । इसका विकास नहीं किआय जाता , बल्कि स्वतः इसका विकास हो जाता है लेकिन कानून जन - जीवन की उपज न होकर राज्य द्वारा आरोपित नियंत्रम है । 


( 6 ) प्रथा सदैव जनमत का समर्थन करती आई है । इसके अन्दर दो तत्व निहित है , पहला जनशक्ति दूसरा जन विश्वास । इस प्रकार आदिकालीन समाज के जनमत में शक्ति और विश्वास दोनों निहित हैं लेकिन जहाँ तक कानून का सम्बन्ध है इसमें लोक विश्वास की अपेक्षा भय की भावना अधिक होती है ।


आदिकालीन कानून को प्रथा का ही पर्यायवाची रूप माना जा सकता है क्योंकि ये कानून लोगों की सामान्य भावना का प्रतिनिधित्व करते हैं । इस कारण इसके पीछे नैतिक शक्ति छिपी रहती है , मनुष्य इससे नहीं बच सकता । आदिवासी समाज में कानून का क्षेत्र बहुत विस्तृत है।


इन्हें भी पढ़ें

#buttons=(Accept !) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Learn More
Accept !
To Top