मानवशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध - Relationship of Anthropology with Other Science.

मानवशास्त्र का अन्य विज्ञानों से सम्बन्ध ( Relationship of Anthropology with Other Science )

मानवशास्त्र की विषय - वस्तु तथा उसकी विभिन्न शाखाओं के अध्ययन से यह स्पष्ट से भी सम्बन्धित है । मानवशास्त्र के अन्तर्गत जब हम मानव की सावयवी संरचना, है कि मानवशास्त्र अनेक सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्धित होने के साथ ही प्राकृतिक प्रजातीय विशेषताओं तथा विकास की प्रक्रियाओं का अध्ययन करते हैं तब इसका सम्बन्ध प्राणि - विज्ञान, रसायनशास्त्र, भौतिकी तथा भू - गर्भ विज्ञान आदि से स्थापित हो जाता है ।


दूसरी ओर इसके अन्तर्गत जब मानव के विभिन्न व्यवहारों, उसकी संस्कृति तथा संस्थाओं का अध्ययन किया जाता है तब यह इतिहास, पुरातत्व, मनोविज्ञान, समाजशास्त्र तथा भाषा - विज्ञान जैसे सामाजिक विज्ञानों से सम्बन्धित दिखायी देता है । इस दशा में लम्बे समय से यह विवाद चलता आ रहा है कि मानवशास्त्र को एक प्राकृतिक विज्ञान बहुत मानना चाहिए अथवा सामाजिक विज्ञान ।


रैडक्लिफ ब्राउन ने इस सम्बन्ध में लिखा है कि मानवशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञानों में से ही एक मानना चाहिए ।

नैडल तथा फोर्टेस ने भी ब्राउन के इस कथन से सहमति व्यक्त की ।

इसके विपरीत क्रोबर का कथन है कि ' मानवशास्त्र विशुद्ध रूप से एक सामाजिक विज्ञान है । ' सामाजिक विज्ञानों के साथ मानवशास्त्र के सम्बन्ध को निम्न प्रकार समझा जा सकता है :-


( 1 ) मानवशास्त्र तथा प्राकृतिक विज्ञान ( Anthropology and Natural Sciences )

मैलीनॉस्की ( Malinowski ) तथा उनके अनेक दूसरे अनुयायी मानवशास्त्र को ( Anthropology and Natural प्राकृतिक विज्ञानों की एक शाखा के रूप में मान्यता देने के पक्ष में है । इन विद्वानों का विचार है कि मानवशास्त्र से सम्बन्धित सभी अध्ययनों में प्राकृतिक विज्ञानों की विधियों का उपयोग किया जाता है।


अतः मानवशास्त्र को एक प्राकृतिक विज्ञान मानना ही उचित है । रेडक्लिफ ब्राउन ने भी सामाजिक संरचना की अवधारणा को स्पष्ट करते हुए समाज के सावयवी प्रारूप का उल्लेख करके मानवशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञानों के समान बनाने का प्रयत्न किया है । 


मानवशास्त्र तथा जीवविज्ञान ( Anthropology and Biology )

मानवशास्त्र तथा जीवविज्ञान ( Anthropology and Biology ) के बीच गहरा सम्बन्ध है । हमें इन प्रश्नों का उत्तर प्राणीविज्ञान से ही मिल पा है कि मानव का उद्भव किस प्रकार हुआ तथा प्राणी जगत में मानव का स्थान का है ? प्राणी विज्ञान एककोषीय प्राणियों से लेकर बहुकोषीय तथा पृष्ठवंशीय प्राणिये , नव का अध्ययन करता है ।


प्राणी विज्ञान को इन्हीं खोजों के आधार पर डार्विन गाल्टन तथा बीजमान ने अनेक अध्ययन करके मानवशास्त्र को एक उपयोगी दिया है । इसके अतिरिक्त मानवशास्त्र की शाखा ' शारीरिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत की शारीरिक तथा इससे सम्बन्धित विभिन्नताओं के अध्ययन को विशेष महत्व दिया जाता है । 


मानवशास्त्र तथा भू - गर्भशास्त्र ( Anthropology and Geology )

मानवशास्त्र तथा भू - गर्भशास्त्र ( Anthropology and Geology ) के बीच इसलिए गहरा सम्बन्ध है कि मानव के उद्भव तथा अन्य प्राणियों के साथ उसके विकास क्रम को समझने के लिए मानवशास्त्रियों को भू - गर्भशास्त्र की सहायता लेना आवश्यक हो जाता है ।


भू - गर्भशास्त्र पृथ्वी का काल - मापन करते हुए प्रत्येक युग की स्थितियों को स्पष्ट करता है । आज यदि मानवशास्त्री यह बतला पाने में समर्थ है कि दो अरब सत्तर करोड़ वर्ष पहले पूथ्वी पर एककोषीय प्राणियों ने जन्म लिया था , तो भू - गर्भशास्त्री काल - मापन के द्वारा यह बताते हैं कि इस काल को आरक्योजोइक युग कहा जाता है ।


भू - गर्भशास्त्र के द्वारा ही यह ज्ञात किया जा सकता है कि किस युग में प्राणियों का जन्म किस प्रकार हुआ ? अब यह स्पष्ट हो चुका है कि मानवशास्त्र अनेक दूसरे प्राकृतिक विज्ञानों जैसे, वनस्पतिशास्त्र, भौतिकविज्ञान तथा रसायनशास्त्र से भी सम्बन्धित है । उदाहरण के लिए, मानव के विभिन्न अवशेषों के आयतन अथवा माप के लिए मानवशास्त्री जहाँ भौतिक विज्ञान में सहायता प्राप्त करते हैं वहीं विभिन्न परीक्षणों के लिए रासायनिक पद्धतियों के उपयोग को भी उतना ही महत्व दिया जाता है । 


( 2 ) मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र ( Anthropology and Sociology )

नाब्स ( Jack Nobbs ) ने लिखा है , " मानवशास्त्र समाजशास्त्र से घनिष्ट रूप से जुड़ा हुआ विज्ञान है । कुछ समय पहले तक मानवशास्त्री , मानव - विकास के प्राणीशास्त्रीय परिवर्तनों के अध्ययन में अधिक रूचि लेते थे लेकिन आज इसकी प्रमुख शाखा सामाजिक मानवशास्त्र को समाजशास्त्र के ही समान स्वीकार किया जाने लगा है । "


जैक नास का यह कथन समाजशास्त्र को मानवशास्त्र की तुलना में अधिक महत्व देता है जबकि वास्तविकता यह है कि मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र के बीच विभाजन की कोई भी ऐसी रेखा बना सकना बहुत कठिन है । क्रोबर ने लिखा है , " समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र जुड़वा बहनों के समान है । " इस कथन को भी इस लिए अधिक उपयुक्त नहीं माना जा सकता कि मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक - दूसरे के पूर्णतया समान नहीं है । 


मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र में समानताएँ Similarities in Anthropology and Sociology )

मानवशास्त्र के अन्तर्गत मुख्यतः मानव का अध्ययन किया जाता है जबकि समाजशास्त्र व्यापक अर्थों में सम्पूर्ण समाज का अध्ययन है । वास्तविकता यह है कि ' मानव ' तथा ' समाज ' को एक - दूसरे से पृथक करके स्पष्ट नहीं किया जा सकता । यही कारण है कि मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र एक दूसरे के अत्यधिक निकट है ।


दूसरा तथ्य यह है कि समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र दोनों ही विज्ञानों में मानव व्यवहारों , अन्त सम्बन्धों तथा अन्तर्क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है । यह सच है कि कुछ समय हने तक मानवशास्त्र का प्रमुख सम्बन्ध आदिम समाज तथा आदिम समूहों की संस्कृतियों अध्ययन से लेकिन अब मानवशास्त्र ने ग्रामीण अध्ययनों में भी रूचि लेना आरम्भ दिया है ।


ऐसे अध्ययनों के लिए मानवशास्त्रियों ने जहाँ अनेक नयी पद्धतियों की की है वहीं वे समाजशास्त्रीय पद्धतियों को भी उपयोग में लाते है । वास्तविकता यह आदिम समाजों का अध्ययन जितना महत्वपूर्ण मानवशास्त्र में है , उतना ही महत्व इसे समाजशास्त्र में भी दिया जाता है ।


समाजशास्त्र आदिम समाज के अध्ययन द्वारा समाजों की जटिलताओं के आधार पर आदिम समाजों में विकास की प्रक्रियाओं को समझने वर्तमान समाजों की जटिलताओं को समझने का प्रयत्न करता है जबकि मानवशास्त्र का प्रयत्न करता है ।


मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र में अन्तर Difference between anthropology and sociology

मानवशास्त्र तथा समाजशास्त्र के बीच पायी जाने वाली अनेक असमानताओं का उल्लेख किया है । सर्वप्रथम , मानवशास्त्र मनुष्य के विशिष्ट व्यवहारों तथा मानव व्यवहारों की भिन्नता के कारणों का अध्ययन करता है । दूसरी ओर समाजशास्त्र की विषय - वस्तु तात्पर्य है कि समाजशास्त्र में कोई मानवीय सम्बन्ध अग्रव व्यवहार चाहे प्रकार्यात्मक हो अथवा अकार्यात्मक इन सभी का अध्ययन किया जाता में मानवशास्त्र का अध्ययन - क्षेत्र अधिक विस्तृत है ।


प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान काल तक जाता है जबकि समाजशास्त्र केवल वर्तमान समाज की समस्याओं तथा अन्तर्क्रियाओं का ही अध्ययन करता है । तीसरे, मानवशास्त्र के अध्ययन - पद्धति समग्रतावादी है जबकि समाजशास्त्र के अन्तर्गत अनेक विशिष्ट पद्धतियों जैसे, अवलोकन, साक्षात्कार तथा समाजमिति आदि का प्रयोग किया जाता है ।


बीरस्टीड ने एक अन्य अन्तर का उल्लेख करते हुए लिखा है कि समाजशास्त्र का उपयोग केवल ज्ञान प्राप्ति के लिए किया जा सकता है , इसका कोई व्यावहारिक उपयोग नहीं है । दूसरी ओर मानवशास्त्र एक व्यावहारिक विज्ञान होने के साथ ही एक क्रियाशील विज्ञान ( Action science ) भी है ।


दूसरे , इसका कारण के समाजशास्त्र की तुलना यह है कि मानवशास्त्र मानवीय व्यवहारों का अध्ययन किया इस विवेचन से स्पष्ट होता है कि समाजशास्त्र तथा मानवशास्त्र के बीच अत्यधिक घनिष्ट सम्बन्ध होने के बाद भी इनकी विषय - वस्तु , दृष्टिकोण तथा अध्ययन पद्धतियों में पर्याप्त अन्तर है । 


( 3 ) मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान ( Anthropology and Psychology )

मानवशास्त्र मनुष्य तथा उसकी संस्कृति के विकास का अध्ययन है तथा मनोविज्ञान में मानव की मानसिक रचना और व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है । मनोविज्ञान मानव की सांस्कृतिक पृष्ठभूमि को समझने के लिए मानवशास्त्र की अवहेलना नहीं कर सकता ।


लिन्टन , ( Linton ) ने बताया है कि मनोआदिम युग के मानव के चिन्तन का स्तर कैसा था ? यह स्थिति मानवशास्त्र की मनोविज्ञान पर निर्भरता को स्पष्ट करती है । इसके बाद भी मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान के बीच अनेक भिन्नताएँ हैं । 


मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान में समानताएँ ( Similarities in Anthropology and Psychology ) -

सर्वप्रथम , मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान दोनों ही अपनी पद्धतियों के द्वारा मानव व्यवहारों का सूक्ष्म विश्लेषण करने का प्रयत्न करते हैं । इसी तरह के विश्लेषण की सहायता से इन दोनों विज्ञानों द्वारा मानव व्यवहारों से सम्बन्धित अनेक सामान्य सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया गया है ।


दूसरे , मानवशास्त्र के अन्तर्गत विभिन्न कालों तथा विभिन्न परिस्थितियों में मानव व्यवहारों का अध्ययन किया जाता है । ऐसे अध्ययनों की आवश्यकता मनोविज्ञान में भी होती है । तीसरे , मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान की विषय - वस्तु में भी कुछ स्तरों पर समानता देखने को मिलती है ।


उदाहरण नए , समूह - व्यवहार , संस्कृति , जनमत , नेतृत्व तथा संवेग ऐसे विषय है कि इन दोनों विज्ञानों में किया जाता है । चौथे , इन दोनों विज्ञानों में मानवशास्त्र उपयोग में लायी जाने वाली अध्ययन पद्धतियाँ भी बहुत कुछ एक दूसरे के समान उदाहरण के लिए , मनोविज्ञान में अवलोकन , समाजमिति तथा सा का उपयोग किया जाता है जबकि मानवशास्त्री भी इन पद्धतियों का उपयोग करना अपने लिए उपयोगी समझने लगे हैं ।


मानवशास्त्र तथा मनोविज्ञान में अन्तर ( Difference between Anthropology and Psychology ) -

इन दोनों विज्ञानों में घनिष्ट सम्बन्ध होने के बाद भी इनके बीच अनेक अन्तर देखने को मिलते हैं । सर्वप्रथम मानवशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है जिसमें आदिम अथवा कृषक समाजों के सभी पक्षों का अध्ययन किया जाता है जबकि मनोविज्ञान केवल मानसिक व्यवहारों का अध्ययन करने के कारण एक विशिष्ट विज्ञान है ।


इसी से यह स्पष्ट हो जाता है कि मानवशास्त्र में सामाजिक तथा सांस्कृतिक व्यवहारों के अध्ययन को महत्व दिया जाता है जबकि मनोविज्ञान मानसिक प्रक्रियाओं के अध्ययन तक ही सीमित है । इसका तात्पर्य है कि मनोविज्ञान की तुलना में मानवशास्त्र का अध्ययन क्षेत्र अधिक व्यापक है । मनोविज्ञान से सम्बन्धित प्रयोग और शोध वर्तमान तक ही सीमित है जबकि मानवशास्त्र में प्रागैतिहासिक मानव की संस्कृति तथा व्यवहारों का भी अध्ययन किया जाता है ।


मानवशास्त्र तथा इतिहास ( Anthropology and History )

अनेक विद्वानों ने इतिहास को मानवशास्त्र के पूरक विज्ञान के रूप में स्पष्ट किया है । सच तो यह है कि मानवशास्त्र के प्रारम्भिक काल से लेकर आज तक इससे सम्बन्धित व्याख्याओं में ऐतिहासिक पद्धति का महत्वपूर्ण योगदान रहा है ।


उदाहरण के लिए , डार्विन , न , स्पेन्सर , गार्डन चाइल्ड तथा जूलियन स्टीवर्ड जैसे विद्वानों ने ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर ही अनेक मानवशास्त्रीय सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया । इस सम्बन्ध ये इवान्स प्रिचार्ड ने लिखा है कि यदि हमें यह जानना हो कि हवाई जहाज कैसे उड़ता है तब हम उसके विभिन्न अंगों के प्रकार्यों का अध्ययन करेंगे न कि इतिहास के द्वारा या जानने की कोशिश करेंगे कि हवाई जहाज कैसे बना? इसका तात्पर्य है कि मानवशास्त्र हास से भिन्न है । इस समानता तथा भिन्नता को निम्नांकित रूप से समझा जाता है : 


मानवशास्त्र तथा इतिहास में समानताएँ ( Similarities in Anthropology and History ) -


मानवशास्त्र तथा इतिहास का सम्बन्ध मुख्यतः उस विषय - वस्तु पर आधारित है जिसके लिए मानवशास्त्र को अक्सर इतिहास पर निर्भर रहना पड़ता है । सर्वप्रथम , इतिहास ही एक ऐसा आधार है जिसकी सहायता से प्राचीन घटनाओं को समझा जा सकता है ।


मानवशास्त्र इसी की सहायता से प्रागैतिहासिक काल से लेकर वर्तमान समाज तक की घटनाओं का अध्ययन कर पाता है । दूसरे , मानवशास्त्र के अर्न्तर्गत अनेक ऐसी पद्धतियों का विकास हुआ है जिनके द्वारा विभिन्न घटनाओं के कार्य - कारण सम्बन्धों को समझा जा सकता है ।


वर्तमान शताब्दी में ऐतिहासिक अध्ययन भी अब मानवशास्त्र . की इन्हीं पद्धतियों की सहायता से किये जाने सहायता से मानवशास्त्र में शेपीरो ने लिखा है, उपवास के तरीकों तथा शिल्प - वस्तुओं लगे हैं । तीसरे , विवेचना इतिहास की करता है । इस खोजों की सम्बन्ध संस्कृति के विभिन्न पक्षों की “ प्रागैतिहासिक काल के औजारों , हथियारों , कब्रों से मिली वस्तुओं , के आधार पर मानवशास्त्र और इतिहास लगातार समान रूप से संस्कृति की विवेचना करते हैं । "


इसका तात्पर्य है कि इतिहास में जिस वस्तु को ऐतिहासिक महत्व के दृष्टिकोण से देखा जाता है , मानवशास्त्री उसी की सहायता से सांस्कृतिक विकास के स्तरों को ज्ञात करने की कोशिश करता है । अन्त में Penniman का यह कथन भी महत्वपूर्ण है कि मानवशास्त्र वास्तव में इतिहास का विज्ञान है । इस दृष्टिकोण से मानवशास्त्र के बहुत से अध्ययन इतिहास के निष्कर्षो पर भी आधारित होते है ।


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