मानवशास्त्र की शाखाएँ - Branches of Anthropology.

 मानवशास्त्र की शाखाएँ ( Branches of Anthropology )

मानवशास्त्र के अन्तर्गत जिन प्रमुख विषयों का अध्ययन किया जाता है उन्होंने एक - एक पृथक शाखा के रूप में विकसित होकर इस विज्ञान की व्यापकता को स्पष्ट किया है । मानवशास्त्र की विभिन्न शाखाएँ यद्यपि मानव के एक - दूसरे से भिन्न विशेष पक्षों के अध्ययन से सम्बन्धित हैं लेकिन यह एक - दूसरे से पृथक न होकर एक - दूसरे पर आश्रित और परस्पर सम्बद्ध हैं । विद्वानों द्वारा प्रस्तुत मानवशास्त्र की विभिन्न शाखा निम्न है : 


हॉबेल ( Hoebel ) ने मानवशास्त्र की शाखाओं अथवा मानवशास्त्रीय विज्ञान का उल्लेख निम्नांकित ढंग से किया है : 


1. शारीरिक मानवशास्त्र ( Physical Anthropology )

( क ) मानवमिति ( Anthropometry ) 

( ख ) मानव प्राणीशास्त्र ( Human Biology ) 

2. पुरातत्वशास्त्र ( Archeology )

3. सांस्कृतिक मानवशास्त्र ( Cultural Anthropology )

( क ) प्रजातिशास्त्र ( Ethnology ) 

( ख ) भाषा विज्ञान ( Linguistics ) 

( ग ) सामाजिक मानवशास्त्र ( Social Anthropology ) 


राल्फ लिण्टन ( R. Linton ) ने मानवशास्त्र को निम्नांकित भागों में विभाजित करके स्पष्ट किया है : 

1. शारीरिक मानवशास्त्र ( Physical Anthropology )

 ( क ) पुरातन मानवशास्त्र ( Human Palaeontology ) 

( ख ) मानव शरीरशास्त्र ( Somatology ) 

2. सांस्कृतिक मानवशास्त्र ( Cultural Anthropology ) 

( क ) पुरातत्व शास्त्र ( Archeology ) 

( ख ) प्रजातिशास्त्र ( Ethnology ) 

( ग ) भाषा विज्ञान ( Linguistics ) 


उपर्युक्त दोनों वर्गीकरण से स्पष्ट होता है कि मानवशास्त्र की शाखाएँ दो मुख्य भाग अर्थात् मानवशास्त्र तथा सांस्कृतिक मानवशास्त्र में विभाजित है । 


शारीरिक मानवशास्त्र ( Physical Anthropology )

शारीरिक मानवशास्त्र इस विज्ञान की वह महत्त्वपूर्ण शाखा है जिसके अन्तर्गत मानव की उत्पत्ति , उद्विकास , शारीरिक बनावट तथा शारीरिक भिन्नताओं का अध्ययन किया जाता है । इसी दृष्टिकोण से होबेल ने लिखा है कि मानवशास्त्र मानव जीव के मानवशास्त्र शारिरिक विशेषताओं का अध्ययन है । जे ० एस ० वीनर ( J. S. Weiner ) ने शारीरिक मानवशास्त्र को दो भागों में विभाजित किया है : 


सर्वप्रथम इसके अन्तर्गत उद्विकास प्रक्रिया के फलस्परूप उत्पन्न होने वाले परिवर्तनों का अध्ययन किया जाता है , तथा मानव शारीरिक विशेषताओं का अध्ययन करते हैं और इसके बाद परवर्ती युग के मानव की जाता है । इसका तात्पर्य है कि सर्वप्रथम मानवशास्त्री शारीरिक आदिकालीन मानव की विशेषताओं से उसकी तुलना करते हैं ।


इस प्रकार यह ज्ञात करने का प्रयत्न किया जाता है कि वे कौन - से शारीरिक लक्षण हैं जिनमें होने वाले परिवर्तनों के फलस्परूप मानव पशुओं से पृथक हो गया । यह शाखा इन विषयों का भी अध्ययन करती हैं कि मानव की उत्पत्ति सर्वप्रथम कहाँ और कब हुई । संसार के विभिन्न भागों में फैली हुई मानव - जनसंख्या की शारीरिक विशेषताओं में बहुत अधिक भिन्नताएँ विद्यमान हैं ।


मानव प्राणीशास्त्र ( Human Biology )

विश्व ने विभिन्न भागों में कुछ व्यक्तियों का रंग गोरा है , कुछ का एकदम काला ; कुछ व्यक्तियों की नाक लम्बी और पतली है तो कहीं इसकी बनावट बहुत अधिक चपटी है ; कहीं आँखों का रंग नीला है तो कहीं भूरा और काला ; कुछ स्थानों के निवासी बहुत लम्बे कद के हैं तो कुछ स्थानों पर व्यक्ति का कद चार फीट से अधिक नहीं होता ।


इसी प्रकार संसार के विभिन्न भागों में मानव का रक्त समूह, खोपड़ी का घनत्व, हाथ - पैरों की लम्बाई, बालों का रंग और बनावट एंट और जबड़ों की बनावट आदि भी बहुत विभिन्नता लिए हुए हैं ।

मानवशास्त्र की शाखाएँ - Branches of Anthropology.
Branches of Anthropology.
परन्तु जब सम्पूर्ण मानव जाति की उत्पत्ति एक ही आदि मानव ( Homo Sapiens ) से हुई है तो विभिन्न मानव समूहों की शारीरिक विशेषताओं में इतना अधिक अन्तर क्यों है शारीरिक मानवशास्त्र उन प्रक्रियाओं का अध्ययन करता है जिनके प्रभाव से विभिन्न मानव समूहों के शारीरिक विशेषताओं में अनेक स्तरों में से गुजरते हुए इतना अधिक परिवर्तन हो गया । शाखा शारीरिक लक्षणों के आधार पर विभन्न मानव समूहों को अलग - अलग प्रजातियों में विभाजित करती हैं ।


सांस्कृतिक मानवशास्त्र ( Cultural Anthropology )

बील्स तथा हॉइजर ( Beals and Hoijer ) ने सांस्कृतिक मानवशास्त्र की अध्ययन- वस्तु को स्पष्ट करते हुए लिखा है , " सांस्कृतिक मानवशास्त्र मानव की संस्कृतियों की उत्पत्ति तथा इतिहास , उनके उद्विकास एवं विकास तथा प्रत्येक स्थान और काल म मानव संस्कृतियों के ढाँचे एवं कार्यों का अध्ययन करता है ।


" इस कथन से स्पष्ट होता है कि मानवशास्त्र के अन्तर्गत सांस्कृतिक मानवशास्त्र वह महत्त्वपूर्ण शाखा है जो प्रत्येक युग में मानव की संस्कृति के अध्ययन से सम्बन्धित है । संस्कृति का तात्पर्य मानव द्वारा सीखे हुए में व्यक्ति जिन सभी भौतिक और अभौतिक विशेषताओं को सीख पृथक करती है । पुरातन काल से लेकर आज तक एक बड़ा है , वह सभी संस्कृति के अन्तर्गत आती है ।


इसके अतिरिक्त उसके द्वारा निर्मित विभन्न प्रकार की संस्थाएँ तथा समितियाँ भी संस्कृति से सम्बन्धित हैं । भौतिक और अभौतिक क्षेत्र में मानव इन व्यवहारों को केवल सीखता ही नहीं । ल्कि , उनमें अपने अनुभवों का भी समावेश करके उन्हें आगामी पीढ़ियों के लिए । नान्तरित कर देता है । बाद में यही हमारी सामाजिक विरासत ' बन जाती है जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपना सामाजिक और नैतिक दायित्व समझने लगता है ।


संक्षेप में , यह कहा जा सकता है कि व्यक्ति के सम्पूर्ण पर्यावरण में से उन दशाओं को पृथक कर दिया जाए जो पूर्णतया प्रकृति द्वारा निर्मित और संचा तो जो कुछ भी शेष रहेगा , उसी को हम मानव की संस्कृति के नाम से सम्बोधित करते हैं । सांस्कृतिक मानवशास्त्र मानव की इसी संस्कृति का अध्ययन करता है ।


वे विशेषताएँ चाहे आदिकालीन मानव की संस्कृति से सम्बन्धित सांस्कृतिक मानवशास्त्र का प्रमुख कार्य मानव की समस्त सांस्कृतिक विशेषताओं हो अथवा सभ्य मानव की सांस्कृतिक विशेषताओं को स्पष्ट करती हों ; मानवशास्त्र की यह शाखा इस तथ्य का भी अध्ययन करती है कि विश्व में विभिन्न संस्कृतियों की उत्पति किस प्रकार हुई , उनका विकास किस प्रकार हुआ , किन दशाओं के प्रभाव से सांस्कृतिक परिवर्तन की स्थिति उत्पन्न होती है , तथा वे कौन से माध्यम है जिसके द्वारा एक बैठी की सांस्कृतिक विशेषताओं का संचरण दूसरी पीढ़ियों में हो जाता है । 


सामाजिक मानवशास्त्र ( Social Anthropology ) -

साधारणतया सांस्कृतिक एक महत्त्वपूर्ण शाखा ही है । सांस्कृतिक मानव - शास्त्र मानव की सम्पूर्ण संस्कृति का व्यवहारों तथा सामाजिक संगठन के अध्ययन को विशेष महत्व दिया जाता है । हॉबेल अध्ययन करता है जबकि सामाजिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत मानव के संस्थागत सामाजिद का कथन है , " सामाजिक मानवशास्त्र सांस्कृतिक मानवशास्त्र की एक उपशाखा है क्योंकि यह मुख्य रूप से सामाजिक व्यवहारों , सामाजिक समूहों और सामाजिक संरचना के अध्ययन से सम्बन्धित है जबकि संस्कृति और कला के अध्ययन में यह बहुत आकस्मिक रूप से ही रूचि लेती है ।


पुरातत्वशास्त्र ( Archaeology ) -

पुरातत्व को शाब्दिक अर्थ होता है- प्राचीन का अध्ययन । इसका तात्पर्य है कि पुरातत्व वह विज्ञान है जो मानव संस्कृतियों के प्राचीन इतिहास को ज्ञात करने का प्रयत्न करता है । सामान्य रूप से यह समझा जाता है कि पुरातत्वशास्त्र वह विज्ञान है जो मानव को हस्तकला से सम्बन्धित अवशेषों का ज्ञान प्रदान करता है । वास्तव में यह अर्थ बहुत संकुचित है ।


नेल्सन ( Nelson ) ने पुरातत्व के अध्ययन क्षेत्र को स्पष्ट करते हुए लिखा है , " पुरातत्वशास्त्र , मानव तथा उसकी संस्कृति की उत्पत्ति , प्राचीनता और विकास से सम्बन्धित समस्त भौतिक अवशेषों का अध्ययन है । " इस सम्बन्ध में सबसे बड़ी कठिनाई यह उत्पन्न होती है कि केवल कुछ अवशेषों के आधार पर ही मानव के सांस्कृतिक इतिहास तथा एक विशेष काल की सांस्कृतिक विशेषताओं को किस प्रकार समझा जा सकता है ।


हमारे पास पुरातन युग के कोई भी लिखित प्रमाण उपलब्ध नहीं होते । स्वाभाविक है कि पुरातत्वशास्त्र खुदाइयों से प्राप्त भौतिक अवशेषों की सहायता से ही यह जानने का प्रयत्न करता है कि एक विशेष काल में मानव के उपकरण और कलाकृतियाँ कैसी थीं तथा वह किन - किन वस्तुओं को अपने उपयोग में लाता था ।


विभिन्न खुदाइयों से प्राप्त सामग्री एक विशेष संस्कृति पर कितना प्रकाश डाल सकती है , इसका उदाहरण मोहनजोदड़ो तथा हड़प्पा की खुदाई से प्राप्त अवशेष हैं : इन्हीं अवशेषों की सहायता से सिन्धु घाटी की महान् सभ्यता का ज्ञान प्राप्त किया जा सका और सच तो यह है कि इन्हीं पुरातात्विक प्रयत्नों के कारण भारत के सांस्कृतिक इतिहास को एक नयी दिशा मिल सकी ।


खुदाइयों से प्राप्त अवशेषों के द्वारा यह जानना भी सरल हो जाता है कि एक विशेष काल में मानव सांस्कृतिक विकास के किस स्तर पर था । उदाहरण के लिए , यदि किसी खुदाई में पत्थर के नुकीले हथियार प्राप्त होते हैं तो सर्पप्रथम वैज्ञानिक परीक्षणों के द्वारा यह देखा जाता है कि यह हथियार कितने प्राचीन हैं , फिर इसकी सहायता से यह जानना सम्भव हो जाता है कि कितने वर्ष पहले मानव प्रस्तर युग ( Stone age ) मानव के सांस्कृतिक विकास से सम्बन्धित प्रस्तर युग, राम्रग, कास्य युग और लौह युग की विशेषताओं को केवल पुरातात्विक खुदाइयों की सलका से ही ज्ञात किया जा सका है ।


इस आधार पर नैल्सन ने पुरातात्विकशास्त्र दे मा.च को स्पष्ट करते हुए कहा है कि “ यह विज्ञान मानव और उसकी संस्कृति क उत्पत्ति , विकास , पतन तथा प्रसार के सम्बन्ध में महत्वपूर्ण जानकारियाँ प्रदान करता ३ तथा यह भी बतलाता है कि प्रागतिहासिक काल में विभिन्न मानव आविष्कार कब और कहाँ हुए तथा किस प्रकार वे संसार के विभिन्न भागों में फैल गये ।


पुरातत्व की इस उपयोगिता के पश्चात् भी यह ध्यान रखना आवश्यक है कि हमें मानव की अभौतिक संस्कृति जैसे प्रथाओं , लोकाचारों , कानूनों और विश्वास का ज्ञान प्रदान नहीं कर सकता । पुरातत्व के द्वारा प्राप्त सम्पूर्ण ज्ञान केवल सुदाइयों पर आधारित होता है तथा यह खुदाइयाँ केवल भौतिक संस्कृति की विशेषताओं ही स्पष्ट कर सकती हैं ।


इसके पश्चात् भी यह सच है कि अनेक भौतिक पदार्थ की अभौतिक विशेषताओं को स्पष्ट करने में भी अत्यधिक सहायक सिद्ध हुए है । यही कारण है कि सांस्कृतिक मानवशास्त्र के अन्तर्गत पुरातत्वशास्त्र का महत्व निरन्तर बढ़ता जा रहा है। 


प्रजातिशास्त्र ( Ethnology ) -

बील्स तथा हॉइजर ( Beals and Holjer ) का कथन है, ' प्रजातिशास्त्र वहाँ से आरम्भ होता है जहाँ पर पुरातत्व शास्त्र का कार्य समाप्त हो जाता है । " इसका तात्पर्य है कि पुरातत्वशास्त्र खुदाइयों से प्राप्त भौतिक अवशेषों के आधार पर एक विशेष काल की मानव संस्कृति को ज्ञात करता है जबकि जातिशास्त्र का कार्य विश्व के विभिन्न स्थानों पर फैली हुई विभिन्न प्रजातियों के अध्ययन द्वारा विभिन्न संस्कृतियों का ज्ञान प्राप्त करना है ।


इस प्रकार स्पष्ट होता है कि प्रजातिशास्त्र रजातियों के अध्ययन से सम्बन्धित नहीं है । विभिन्न प्रजातियों के शारीरिक विशेषताओं का अध्ययन करना शारीरिक मानवशास्त्र ( Physical anthropology ) कार्य है । इसके बेपरीत प्रजातिशास्त्र वह विज्ञान है जिसकी सहायता से विभिन्न प्रजातीय समूहों से नेकट - सम्पर्क स्थापित करके उनकी संस्कृतियों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाता है ।


आरम्भ में यह समझा जाता था कि प्रजातिशास्त्र द्वारा केवल आदिम लोगों अथवा जनजातियों की संस्कृति का ही अध्ययन किया जाता है लेकिन अब यह स्वीकार किया जाने लगा विभिन्न प्रजातियों से सम्बन्धित ग्रामीण और नगरीय समुदायों की संस्कृति का अध्ययन किया जाता है।


भाषा ( Linguistics ) -

भाषा ही एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने विचारों और अनुभवों को दूसरों के लिए सम्प्रेषित करके सामाजिक अन्तर्क्रियाएँ करता है । इसी आधार पर बील्स तथा हॉइजर ने लिखा है , “ सम्भवतः मानव ने उसी समय से भाषा को विकसित करना आरम्भ कर दिया था जबकि लाखों वर्ष पहले वह संस्कृति की परम्परा का संचय करने में काफी आगे बढ़ गया था । "


इससे स्पष्ट होता है कि भाषा का इतिहास उतना ही प्राचीन है जितना कि संस्कृति का । प्रस्तरित मानव ( fossilmen ) के कपाल के भीतरी भाग की परीक्षा करने पर मानवशास्त्रियों ने अपना स्पष्ट मत दिया है कि उस युग के मानव के विकसित मस्तिष्क में ऐसे लक्षण उपलब्ध हैं जिनके आधार पर उस समय के मानव द्वारा भाषा का उपयोग करना बहुत स्वाभाविक प्रतीत होता है ।


भाषा - विज्ञान सांस्कृतिक मानवशास्त्र की वह महत्वपूर्ण शाखा है जो मुख्य रूप से वभिन्न भाषाओं की उत्पत्ति विकास तथा उनकी तुलनात्मक प्रकृति की विवेचना करती है । जैकन्स तथा स्टन ने लिखा है कि " वास्तव में भाषा विज्ञान का उद्देश्य विभिन्न भाषाओं के पारस्परिक सम्बन्ध तथा समानताओं के विषय में सामान्य निष्कर्ष निकालना यह सच है कि भाषा विज्ञान का मुख्य सम्बन्ध आदिम लोगों की भाषा का का अध्ययन करके विभिन्न आधारों पर उनका वर्गीकरण करता है ।


लेकिन व्यापक रूप से यह सभी भाषाओं की उत्पत्ति और विस्तार - क्षेत्र कितना व्यापक है , इसका अनुमान इसी तथ्य से लगाया जा सकता के आज संसार में विभिन्न भाषाओं की संख्या -2700 से भी अधिक है तथा यह भाषाएँ एक विशेष संस्कृति और सभ्यता का ज्ञान प्रदान करती हैं । लेकिन वास्तविकता यह है कि सामाजिक मानवशास्त्र , सांस्कृतिक मानवशास्त्र की मानवशास्त्र एवं सामाजिक मानवशास्त्र को एक - दूसरे के पूर्णतया समान समझ लिया जाता है।


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