परिहार संबंध क्या है ? What is the avoidance relationship?

परिहार सम्बन्ध क्या है ? दो उदाहरण दीजिए।

' परिहार ' ( Avoidance ) ‘ परिहार ’ का अर्थ यह है कि कुछ ऐसे रिश्ते हैं जो कि दो ‘ व्यक्तियों के बीच एक निश्चित सम्बन्ध तो स्थापित करते हैं , पर साथ ही इस बात का निर्देश देते हैं कि वे एक - दूसरे से दूर रहें और पारस्परिक अन्तःक्रिया में यथासम्भव प्रत्यक्ष या आमने - सामने रहते हुए सक्रिय भाग न लें । इस प्रकार के सम्बन्ध में पुत्र - वधू तथा सास - ससुर का सम्बन्ध बहुत ही सामान्य है । उसी प्रकार दामाद तथा सास का पारस्परिक सम्बन्ध भी कुछ समाजों में परिहार के अन्तर्गत ही आता है ।


चेपल और कूल के अनुसार- " परिहार प्रथा एक ऐसी व्यवस्था की उपज है , जिसके अनुसार कतिपय व्यक्तियों के बीच अन्तः क्रिया की मात्रा कम रखना आवश्यक माना जाता है , अन्यथा सामाजिक संरचना विकृत हो सकती है । " संक्षेप में कहा जा सकता है कि नातेदारी व्यवस्था के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के परिहार व्यवहार प्रतिमानों का समावेश रहता है , जिसमें यह आवश्यक माना जाता है , कोई वाद - विवाद न हो , ऐसे सम्बन्धों में आमने सामने होने पर भी बातचीत नहीं करनी चाहिए ।


परिहार संबंध क्या है ?


परिहार के प्रकार ( Type of Avoidance )

परिहार के कुछ प्रमुख स्वरूपों का वर्णन निम्नवत् किया जा सकता है-


( 1 ) पुत्र वधु और सास - ससुर परिहार -

अनेक जनजातियों में पुत्र वधू अपने सास - ससुर के सामने अपने चेहरे को ढँके रखती हैं । युकाधिर ( Yukaghir ) जनजाति में यह निषेध है कि वधू कभी भी अपने ससुर या जेठ के चेहरे को न देखे और न ही दामाद को अपनी सास ससुर के चेहरे को देखना चाहिए । इन सम्बन्धियों को परस्पर यदि कुछ कहना होता है तो पर्दा करते हुए कहते हैं या किसी दूसरे से कहलवा देते हैं ।


ओस्ट्याक ( Ostyak ) जनजाति में वधू अपने ससुर के सामने और दामान सास के सामने तब तक नहीं जाते हैं जब तक उनके बच्चे पैदा न हो जाएँ । अगर कभी अचानक वे एक - दूसरे के सामने पड़ जाते हैं तो वधू या सास फौरन घूँघट से अपना चेहरा छिपा लेती है । वधू को जीवन - भर ससुर के सामने घूंघट निकालना पड़ता है । इस प्रकार के निषेध हिन्दू समाज में भी पाये जाते हैं । ससुर तथा अन्य बयोवृद्ध सम्बन्धियों के सामने घूंघट निकालना बहू के लिए एक सामान्य नियम है ।


( 2 ) सास - जमाई परिहार -

विभिन्न जनजातीय समाजों में परिहार का यह रूप भी पाया जाता है । इस विषय पर टॉयलर का मत यह है कि उपर्युक्त निषेध मातृसत्तात्मक परिवार - प्रथा के कारण है । इस प्रकार की परिवार प्रथा में वर को पत्नी के घर पर जाकर रहना पड़ता था जहाँ कि वह वर बिल्कुल ही अजनबी होता था ।


इस प्रकार उस परिवार की अन्य स्त्रियाँ विशेषकर सास , जोकि परिवार की मालकिन होती थी , उस अजनबी वर से दूर रहती थी । इसी से धीरे धीरे आगे चलकर सास सम्बन्धित निषेध पनपे हैं । उसी प्रकार पितृ स्थानीय परिवारों से ससुर से सम्बन्धित निषेधों का जन्म हुआ है ।


परन्तु आज इस मत से बहुत से विद्वान सहमत नहीं है । होपी जूनी जनजातियाँ , जोकि मातृ स्थानीय हैं , इस प्रकार के निषेधों को नहीं मानतीं । आस्ट्रेलिया की वे जनजातियाँ , जोकि पितृ स्थानीय हैं , दामाद का परिहार करती हैं , न कि वधू का । 


परिहार के कारण ( Causes of Avoidance )


इस विषय पर फ्रेजर का मत यह है कि इन परिहारों का उद्देश्य यौन सम्बन्ध को नियंत्रित करना अर्थात् निकेटाभिगमन को रोकना है । श्री फ्रेजर का कथन है कि कुछ जनजातियाँ तो इस विषय में इतनी अधिक तटस्थ हैं कि भाई - बहन तक को एक - दूसरे से अलग रखते हैं ।


उदाहरणार्थ , लंका की वेड्डा जनजाति में भाई - बहन एक ही कमरे में नहीं रह सकते और न ही एक साथ बैठकर खाना खा सकते हैं । श्री फ्रेजन के सिद्धान्त के आधार पर सास - दामाद के परिहार सम्बन्धी निषेध को यदि मान भी लिया जाय , तो भी इससे इस बात का स्पष्टीकरण नहीं होता है कि ससुर - दामाद के रिश्ते में इस प्रकार के निषेध क्यों हैं । फ्रायड ने मनौवैज्ञानिक आधारों पर इस प्रकार के परिहारों को समझाने का प्रयत्न किया है ।


आपके अनुसार इस प्रकार के परिहारों का एक मात्र उद्देश्य दामाद और सास या वधू और ससुर में पारस्परिक यौन - सम्बन्धी आकर्षण को रोकना है । लोई का मत है कि वन और उसके ससुराल या दामाद और उसके ससुराल दोनों की सामाजिक और पारस्परिक पृष्ठिभूमि में भिन्नता होने के नातेदारी में मतानुसार कारण ही इस प्रकार का निषेध पनपा है ।


रैडक्लिफ - ब्राउन के ऐसे कुछ सम्बन्धी होते हैं जिनके कि अत्यधिक घनिष्ठ होने पर परिवार के अन्य सदस्यों में द्वेष या ईर्ष्या की भावना पनप सकती है जोकि स्वस्थ पारिवारिक जीवन के लिए हानिकारक सिद्ध होगी । इसलिए इन सम्बन्धीगण को परिहारों द्वारा दूर - दूर ही रखा जाता है । सास , ससुर , दामाद , वधू , इसी प्रकार के सम्बन्धीगण हैं । इसीलिए टर्नी हाई का कथन है कि सास को दामाद से औह वधू को ससुर से दुर रखना पारिवारिक शान्ति को बनाये रखने के लिए आवश्यक समझा गया।


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