मानवशास्त्र का विकास ( Development of Anthropology ) :
मनुष्य की उत्पत्ति की और विकास की कहानी बहुत प्राचीन है । वह जो पार करता हुआ, अपनी वर्तमान अवस्था तक से विचारक विभिन्न दृष्टि से विचार करते आए हैं । विश्व के और मनुष्य के विकास के बारे में अनेक प्रकार के उल्लेख मिलते हैं उत्पत्ति तथा विकास को विभन्न रूपों में चित्रित किया गया है ।
विज्ञान के रूप में मानव शास्त्र का विकास पिछली शताब्दी में हुआ । चार्ल्स डारावे ( 1882 ) ने की सम्भव प्रक्रिया की ओर विश्व का ध्यान आकृष्ट कर अपने विकासवादी सिद्धान्दो प्रस्तुत किया तो मानव - विकास के चिन्तन को अत्यधिक प्रोत्साहन उद्विकासीय प्रक्रिया के विभिन्न पहुँचा है । इस विषय पर प्रत्येक धर्म में भी जिनमें म प्राचीन लेकिन एक मिला ।
आरम्भ में मानवशास्त्र का अध्ययन आदिवासियों के सामाजिक , आर्थिक सांस्कृतिक व राजनीतिक इत्यादि संगठनों के बारे में सुनी हुई चर्चाओं तक सीमित था । इन्हीं चर्चाओं धार पर मनुष्य के बारे में विकासवादी रूपरेखा तैयार की जाती थी । इस कमी को अनेक विचारकों ने अनुभव किया । इग्लैण्ड में इस कमी को मैलीनोस्की तथा अमरीका में बोआस ने पूरा किया ।
उन्होंने इस बात के ऊपर विशेष बल दिया कि मनुष्य के वास्तविक अध्ययन के लिए, आदिवासी समाजों पर पुगे नहीं बल्कि प्रत्यक्ष अध्ययन आवश्यक है । इस प्रकार मनुष्य का वैज्ञानिक विधि से अध्ययन किया जाने लगा और अनेक विचारक मानव मानवशास्त्र को एक पृथक वैज्ञानिक रूप प्राप्त हुआ । अध्ययन के क्षेत्र में आये और इसे विभिन्न प्रकार परिभाषित किया
मानवशास्त्र का अर्थ तथा परिभाषा ( Meaning & Definition of Anthropology )
Anthropology ' की उत्पत्ति ग्रीक शब्द Anthropos ' से मानी जाती है जिसका अर्थ है ' मनवं ' ; दूसरी ओर ' Logy ' का तात्पर्य है ' विज्ञान ' । इस प्रकार स्पष्ट होता है कि शाब्दिक रूप से मानवशास्त्र अथवा ' Anthropology ' का तात्पर्य ' मॉनव के विज्ञान से है ।
इस सम्बन्ध में एक समस्या यह उत्पन्न होती है कि अनेक दूसरे सामाजिक और प्राकृतिक विज्ञान भी मानव का अध्ययन करते हैं, फिर मानव के अध्ययन के लिए मानव एक पृथक् सामाजिक विज्ञान की आवश्यकता क्यों महसूस की गई ? वास्तविकता क भिन्न दृष्टिकोण को लेकर करते हैं ।
उदाहरण के लिए , जीवशास्त्र से मानव का केवल है कि मानवशास्त्र के अतिरिक्त दूसरे सभी सामाजिक विज्ञान मानव का अध्ययन एक की केवल मानसिक प्रक्रियाओं का ही अध्ययन करता है ; इसी प्रकार इतिहास द्वारा मानव रचना अथवा सावयद का ही अध्ययन किया जाता है , जबकि मनोविज्ञान मानव के ऐतिहासिक क्रिया - कलापों का अध्ययन किया जाता है जबकि राजनीति की विवेचना एक राजनैतिक सन्दर्भ में करता है ।
मानवशास्त्र एकमात्र ऐसा सामाजिक विज्ञान है जो आदिकालीन मानव के विकास क्रम तथा उसकी अल्प - विकसित सामाजिक और सांस्कृतिक विशेषताओं का अध्ययन इस दृष्टिकोण से करता है जिससे आदिकालीन मानव की विशेषता के सन्दर्भ में वर्तमान जटिल समाजों की विशेषता को समुचित हुने से समझा जा सकें । कुछ परिभाषएं निम्न हैं: का अध्ययन है । ”
हर्सकोविट्स ( Hnerskovits ) ने लिखा है , “ मानवशास्त्र मानव और उसके कार्यों का अध्ययन है।
स्टर्न ( Jacobs and Stem ) के अनुसार , " मानवशास्त्र मानव जन्म से लेकर वर्तमान काल तक के शारीरिक सामाजिक तथा सांस्कृतिक विकास एवं व्यवहारों वैज्ञानिक अध्ययन है । "
अजूमदार तथा मदान का कथन है , " मानवशास्त्र शारीरिक , सांस्कृतिक था सामाजिक दृष्टिकोण से मनुष्य के उद्भव एवं विकास का अध्ययन करता है।"
हॉबेल ( Hoebel ) का कथन है , “ मानवशास्त्र मानव और उसके समस्त कार्यों का अध्ययन है । अपने सम्पूर्ण अर्थ में यह मानव की प्रजातियों तथा प्रथाओं का अध्ययन है ।
उपर्युक्त परिभाषाओं के अतिरिक्त अनेक दूसरे विद्वानों ने भी मानवशास्त्र को परिभाषित किया है लेकिन प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से सभी विद्वान जिन प्रमुख विशेषताओं के आधार पर मानवशास्त्र को परिभाषित करते आये हैं , उन्हें संक्षेप में निम्नांकित रूप से समझा जा सकता है :-
( 1 ) इसका मुख्य उद्देश्य मानव की विशेषताओं के अध्ययन की सहायता से सांस्कृतिक विकास के उन नियमों को ढूँढ निकालना है , जिनके आधार पर समाज का समुचित विश्लेषण किया जा सकता है ।
( 2 ) मानवशास्त्र मुख्यतः आदिकालीन मानव तथा उसके समस्त कार्यों और उपलब्धिय का अध्ययन है ।
( 3 ) मानवशास्त्र मानव जाति के आरम्भिक समय से लेकर वर्तमान समय तक उस कार्यों का वैज्ञानिक अध्ययन है ।
( 4 ) यह मानव के शारीरिक लक्षणों के अतिरिक्त उसकी सामाजिक - सांस्कृतिक व्यवस्थाओं के अध्ययन में विशेष साथ लेता है।
मानवशास्त्र की परिभाषाओं से इसकी प्रकृति सम्बन्धी अनेक विशेषताएँ स्पष्ट जाती हैं लेकिन इसके बाद भी यह जानना आवश्यक है कि मानवशास्त्र को किस श्रेणी का विज्ञान कहा जा सकता है ? विद्वानों में इस बारे में मतभेद है कि मानवशास्त्र को प्राकृतिक विज्ञान माना जाये अथवा एक सामाजिक विज्ञान अनेक विद्वान ऐसे भी हैं जो मानवशास्त्र में प्राकृतिक और सामाजिक दोनों विज्ञानों की विशेषताओं का साथ - साथ विद्यमान होना सीकार करते हैं ।
मानवशास्त्र की प्रकृति
इस दृष्टिकोण से मानवशास्त्र की प्रकृति को निम्नांकित चार विचारधाराओं की सहायता से सरलतापूर्वक समझा जा सकता ।
( 1 ) प्रथम श्रेणी में वे विद्वान आते हैं जो मानवशास्त्र को एक प्राकृतिक विज्ञान ( Natural Science ) मानते हैं । इन विद्वानों में मैलीनॉस्की , रेडक्लिफ ब्राउन ने । इन सभी विद्वानों ने इस तथ्य पर बल दिया है कि मानवशास्त्र में उन् अभी अध्ययन - पद्धतियों का प्रयोग किया जाता है जो प्राकृतिक विज्ञान से सम्बंधित है ।
इसके अतिरिक्त मानवशास्त्र किसी तरह की दार्शनिक विवेचना अथवा आदर्शवाद प्रत्यक्ष रूप से अवलोकन किया जा सकता है । इसका कार्य उन सभी सामाजिक और सांस्कृतिक नियमों को ढूँढ निकालना है जिनकी सहायता से मानव के उद्भव और परिवर्तनशील प्रक्रियाओं को समझा जा सके ।
( 2 ) दूसरी श्रेणी उन विद्वानों से सम्बन्धित है जो मानवशास्त्र को पूर्णतया एक सामाजिक विज्ञान ( Social Science ) मानते हैं । ऐसे विद्वानों में कोबर , इवांस प्रिचार्ड तथा मजूमदार आदि प्रमुख हैं । इनका कथन है कि मानवशास्त्र का अध्ययन विषय मानव समाज है , जिसे एक प्राकतिक व्यवस्था नहीं माना जा सकता है ।
मानव समाज सामाजिक सम्बन्धों तथा सांस्कृतिक विशेषताओं की एक व्यवस्था है । इन विशेषताओं को किन्हीं प्राकृतिक शक्तियों के आधार पर नहीं बल्कि कुछ विशेष सामाजिक सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही समझा जा सकता है । इस दृष्टिकोण से मानवशास्त्र को एक सामाजिक विज्ञान ही कहा जा सकता है ।
इस सम्बन्ध में मजूमदार ने लिखा है , । " समाज एक सामाजिक और नैतिक व्यवस्था है तथा मानवशास्त्र एक ऐसा सामाजिक विज्ञान है जिसका जीवन के विकास को समझने तथा उसका संरक्षण करने से निकट का सम्बन्ध है । मानव शास्त्री आज सामाजिक पुनर्निर्माण से सम्बन्धित इन्हीं कार्यों में लगे हुए हैं । इस दृष्टिकोण से मानवशास्त्र एक मानविकी ( Humanity ) हैं । "
( 3 ) तीसरी श्रेणी में पेन्नीमन ( Penniman ) का नाम सबसे अधिक महत्वपूर्ण है । आपने मानवशास्त्र के ऐतिहासिक पक्ष पर सबसे अधिक बल देते हुए इसे ' इतिहास का विज्ञान ' ( Science of History ) कहा है । पेन्नीमन का कथन है कि प्राकृतिक इतिहास की एक शाखा के रूप में मानवशास्त्र मनुष्य की उत्पत्ति तथा उसकी स्थिति का चयन करता है ।
दूसरी ओर इतिहास के एक विज्ञान के रूप में वह मानव - इतिहास से सम्बन्धित उन विशेषताओं को ढूँढ निकालने का प्रयत्न करता है जो मानव के व्यवस्थित अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण है । वास्तविकता यह है कि इतिहासकार भी एक समाज वैज्ञानिक हो सकता है यदि वह सामाजिक प्रक्रियाओं से सम्बन्धित सामान्य नियमों को ढूँढने का प्रयत्न करता हो ।
एक मानवशास्त्री भी प्रागैतिहासिक और ऐतिहासिक काल में मानव के शारीरिक , सामाजिक और सांस्कृतिक विकास से सम्बन्धित विभिन्न घटनाओं का विश्लेषण तथा वर्गीकरण करके उन नियमों को ढूंढ निकालने का प्रयत्न करता है . जिनकी सहायता से मानव के शारीरिक , सामाजिक और सांस्कृतिक विकास को समझा जा सके ।
( 4 ) चौथी श्रेणी उन विद्वानों के विचारों से सम्बन्धित है जो मानवशास्त्र को एक • प्राकृतिक तथा सामाजिक विज्ञानों की विशेषताओं से युक्त मानते हैं । इस सम्बन्ध में हॉबेल ने लिखा है , " मानव के अध्ययन अर्थात् मानवशास्त्र में जब प्राकृतिक विज्ञानों के समान विभिन्न सिद्धान्तों तथा पद्धतियों का उपयोग किया जाता है, तब यह एक है कि एक प्राकृतिक विज्ञान होते हुए भी साथ ही साथ एक शारीरिक तथा सामाजिक प्राकृतिक बन जाता है । इसके पश्चात् भी मानव शास्त्र की एक अनोखी विशेषता यह विज्ञान भी है । "
वास्तविकता यह है कि मानवशास्त्र मुख्यतः एक सामाजिक विज्ञान है । केवल विभिन्न में विज्ञान , विज्ञान है । इससे ऊँच - नीच अथवा किसी तरह के श्रेणीकरण का प्रश्न नहीं का अध्ययन करने के इस एक प्राकृतिक विज्ञान नहीं कहा जा सकता उठता । हमारे अध्ययन का विषय चाहे प्राकृतिक हो अथवा सामाजिक यदि हम एक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को लेकर तथ्यों का वास्तविक विवेचन करते हैं तो वाला ज्ञान ' विज्ञान ' कहलाता है ।
मानवशास्त्र मानव की उत्पत्ति , उदनिकास , शारीरिक । विशेषताओं , सामाजिक अध्ययन वस्तुनिष्ठ रूप से करता है | इस है भिन्नताओं दृष्टिकोण से मानवशास्त्र की प्रकृति पूर्णतया वैज्ञानिक है । यह इसलिए भी एक विज्ञान कि मानवशास्त्र पक्षपात रहित होकर तथ्यों अवलोकन और संग्रह पर बल देता है; वैज्ञानिक विधियों की सहायता से तथ्यों का वर्गीकरण और विश्लेषण करता है जिनकी सहायता से मानव विकास तथा परिवर्तन की प्रक्रियाओं को समझा जा सके । इस प्रकार मानवशास्त्र एक ऐसा विज्ञान है जिसके अध्ययन विषय में प्राकृतिक तथा सामाजिक दोनो के तत्व का समावेश है ।
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