मानवशास्त्र का अध्ययन विषय तथा क्षेत्र ( Subject - matter and Scope of Anthropology )

मानवशास्त्र का अध्ययन विषय तथा क्षेत्र ( Subject - matter and Scope of Anthropology )

मनुष्यों और पशुओं में कुछ शारीरिक समानताएँ अवश्य ही हैं , परन्तु मिन्नताएँ अधिक है । इन शारीरिक भिन्नताओं के कारण ही प्राणी - जगत में केवल मनुष्य ही दो पैरों के बल सीधे चल सकता है , हाथों को विभिन्न कार्यों में लगा सकता है , बोल सकता है , सोच - विचार और कल्पना कर सकता है , याद रख सकता है और भविष्य के सम्बन्ध में अनुमान भी लगा सकता है ।


परन्तु प्राणी जगत् में केवल मनुष्य ही एक मात्र सामाजिक प्राणी नहीं है ; पशु - पक्षी, कीड़े - मकोड़े तक के अपने - अपने समाज होते हैं । यह तो मानव की संस्कृति है जो उसे पशुओं से पूर्णतया पृथक करती हैं । सांस्कृतिक क्षेत्र में मनुष्यों की विलक्षणताएँ या अनोखापन वास्तव में सुस्पष्ट है ।


सांस्कृतिक विकास के निम्नतम स्तर पर भी मनुष्य कुछ- न - कुछ औजारों तथा अन्य भौतिक वस्तुओं, भोजन प्राप्त करने की प्रविधियों किसी- न - सी रूप में श्रम विभाजन , सामाजिक तथा राजनीतिय संगठन, धर्म तथा संस्कार , विचार - विनिमय के लिए भाषा आदि का अधिकारी रहा है ।


समस्त विभिन्नताओं का अध्ययन मानवशास्त्र के असंगत होता है । इस प्रकार , पशु और मानव में अनेक शारीरिक मानसिक तथा सांस्कृतिक भे परन्तु ये अन्तर केवल पश और मानव में ही नहीं हैं , स्वयं मानव के विभिन्न समूह या प्रजातियों में भी अनेक तथा सांस्कृतिक भेद पाए जाते हैं । मनुष्य - विज्ञान के प्रारम्भिक विद्वान एक प्रजाति को दूसरी से प्रायः भाषा , धर्म , राष्ट्र आदि के आधार हैं पर पृथक् करते थे ।


परन्तु मानवशास्त्रियों के वैज्ञानिक अध्ययन से यह क्रमशः स्पष्ट होता गया कि राष्ट्र, धर्म, भाषा, संस्कृति ये सब प्रजाति से सम्बन्धित नहीं है और इनको प्रजाति से सम्बन्धित करना वास्तव में वैज्ञानिक तथ्यों की अवहेलना करना है । आज जितनी भी प्रजातियाँ और उप प्रजातियाँ भूमण्डल पर रह रही है , पे सभी जाति - मेघावी मानव की सदस्य है और उन्हें कुछ सामान्य शारीरिक लक्षणों के पर एक - दूसरे से पृथक किया जा सकता है ।


ये शारीरिक भिन्नताएँ अनुकूलन , उत्परिवर्तन पथक्करण , स्थान - परिवर्तन आदि प्रक्रियाओं के उत्पन्न होती है । मान् हे अर्न्तगत मनुष्य - जाति की इन विभिन्न प्रजातियों की उत्पत्ति विवरण तथा विशेषता का तुलनात्मक अध्ययन होता है । अतः मानवशास्त्र का सम्बन्ध प्रत्येक युग और प्रत्येक समाज के मानव से है क्योंकि मानवशास्त्र का अध्ययन विषय समग्र रूप में मानव ( mankind as a whole ) है ।


स्थान और समय के बिना किसी सीमा के मनुष्य में जो कुछ भी शारीरिक या प्राणिशास्त्रीय सामाजिक और सांस्कृतिक तत्व हैं , वे सभी मानवशास्त्र का अध्ययन विषय है । में धीरे - धीरे मनुष्य में किस प्रकार विकसित हुआ , इस उदुविकास में उसके शरीर - रचना में कौन - कौन से परिवर्तन हुए हैं और इन परिवर्तनों के फलस्वरुप विभिन्न अन्तर्गत आते हैं ।


परन्तु जैसाकि पहले ही कहा जा चुका है, प्राणी - जगत् में मनुष्य मानव प्रजातियों का उद्भव किस प्रकार सम्भव हुआ है , ये सभी विके की सर्वप्रमुख विशेषता यह है कि वह न केवल एक सामाजिक प्राणी है बल्कि संस्कृति का एक मात्र सृष्टिकर्ता भी है ।


चूंकि मानवशास्त्र संस्कृति का निर्माण करने वाले इस मानव का अध्ययन है इस कारण इसका ( मानवशास्त्र का ) अध्ययन विषय न केवल मानव - समूहों की शरीर - रचना, प्रजातीय भिन्नता आदि ही है, बल्कि विभिन्न संस्कृतियों के विकास, समानताओं और विभिन्नताओं का विश्लेषण तथा वर्गीकरण भी मानवशास्त्र अध्ययन क्षेत्र में आ जाता है । 


इस प्रकार मानवशास्त्र एक ओर मानव की उत्पत्ति, के प्राचीन तथा आधुनिक मानव - प्रजाति के शारीरिक लक्षणों की समानताओं तथा भिन्नताओं का विश्लेषण करता है, और दूसरी ओर विभिन्न मानव - समाजों तथा संस्कृतियों भाषा , साहित्य , धर्म, ज्ञान, विश्वास, कला, प्रथा, परम्परा, विवाह, राजनीतिक तथा आर्थिक संस्थाओं आदि की उत्पत्ति और विकास का भी अध्ययन करता है । 

इस प्रकार मानवशास्त्र के अध्ययन विषय को दो प्रमुख भागों में बाँटा जा सकता है।


( 1 ) मानव - समूहों या विभिन्न प्रजातियों की शरीर -

रचना सम्बन्धी विषयों का भ ययन मानवशास्त्र का प्रथम और प्रमुख अध्ययन विषय है । इसके अर्न्तगत न केवल सृष्टि के प्रारम्भ से लेकर अब तक मनुष्य की शारीरिक बनावट में किस - किस प्रकार के अन्तर उत्पन्न हुए , इसका ही अध्ययन किया जाता है बल्कि मानव की उन समस्त शारीरिक विशेषताओं का भी अध्ययन किया जाता है।


जो मानव को पशु - जगत् से पृथक करता है जैसे , मनुष्य में दो पैरों पर खड़े चल सकने योग्य पीठ की हड्डी , हाथ से दक्षतापूर्वक काम करने की क्षमता , बड़ा जटिल मस्तिष्क आदि । इसके अतिरिक्त होकर और विभिन्न प्रजातियों की उत्पत्ति , विस्तार तथा वर्गीकरण भी मानवशास्त्र का एक प्रमुख अध् ययन - विषय है । मानवशास्त्र मानव की प्रजातियों के विभिन्न स्परूपों का तुलनात्मक अध ययन करता है । 


( 2 ) मानवशास्त्रों के अध्ययन विषय का दूसरा समस्त संस्थागत व्यवहारों , आदतों और क्षमताओं का है-

जिसके द्वारा मनुष्यों और प्रकृति में तथा मनुष्य और मनुष्य या समूह में अनुकूलन सम्भव होता है । इसके अर्न्तगत उन समस्त आर्थिक , राजनीतिक , धार्मिक तथा की पूर्ति में सहायक है । मानवशास्त्र विभिन्न आर्थिक , राजनीतिक , धार्मिक तथा सामाजिक सामाजिक संगठनों और संस्थाओं का समावेश है जोकि मनुष्य की विभिन्न आवश्यकताओं संस्थाओं ( ज्ञान , विश्वास, प्रथा, धर्म जादू, ललितकला, सरकार, न्याय, विवाह, परिवार आदि ) के उद्भव तथा उविकास का अध्ययन करता है ।


मानवशास्त्री सामाजिक तथा के अध्ययन में विशेष रूचि रखते हैं । आदिकालीन अर्थ व्यवस्था , आविष्कार , परिवार , स्कृतिक उदविकास के विभिन्न स्तरों एवं संस्कृति की समानताओं और विभिन्नताओं दिशा नातेदारी , भाषा , विज्ञान तथा प्राविधिक ज्ञान , विधान , न्याय तथा शासन - पद्धति, कला साहित्य, संगीत, नृत्य, धर्म तथा जादू आदि समस्त विषयों का अध्ययन मानवशास्त्र के अन्तर्गत होता है जिससे हमें इस बात का ज्ञान हो सके कि उक्त संस्थाओं का आदिकालीन रूप क्या था ।


निष्कर्ष

उपर्युक्त विवेचना से स्पष्ट है कि मानवशास्त्र के अध्ययन- क्षेत्र के अन्तर्गत मनुष्य - जाति के शरीर , समाज तथा संस्कृति से सम्बन्धित समस्त विषयों का समावेश है । साथ है, मानवशास्त्र का अध्ययन किसी विशेष समय या समाज तक ही सीमित मानव व समाज दोनों ही आ जाते हैं।


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