सामाजिक विज्ञान की शिक्षण विधियाँ कौन-कौन सी है?
सामाजिक विज्ञान के शिक्षण में प्रयुक्त की जाने वाली प्रमुख विधियाँ-
(i) योजना विधि
योजना विधि शिक्षण की वह पद्धति, जिसमें शिक्षण से पूर्व, शिक्षण के लिए योजना का निर्माण एवं उसके क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार की जाती है। इस पद्धति के जन्मदाता अमेरिका के किलपैट्रिक थे। इस पद्धति का निर्माण प्रयोजनवाद के सिद्धान्तों को आधार बनाकर किया गया है।
(ii) व्याख्यान विधि
(iii) इकाई विधि
(iv) निरीक्षण-अध्ययन विधि
(v) समाजीकृत अभिव्यक्ति विधि
(vi) स्रोत विधि -
यह विधि कोई नवीन विधि नहीं है बल्कि निरीक्षण विधि से मिलती-जुलती है। यह विधि भी इस धारणा पर बनी है कि सुनने या पढ़ने की अपेक्षा अच्छा एवं स्थायी ज्ञान देखने से प्राप्त होता है अर्थात् प्रत्यक्ष अनुभव से अधिक सीखा जाता है। इस विधि के अन्तर्गत ज्ञान की प्राप्ति मूल स्रोतों के माध्यम से की जाती है।
(vii) सर्वेक्षण विधि
(viii) विचार-विमर्श विधि
आगमन-निगमन विधि - Inductive-deductive method
अर्थशास्त्र के शिक्षण में आगमन व निगमन विधियों का प्रयोग विशेष रूप से किया जाता है। आगमन विधि में बालक के सामने अनेक उदाहरण प्रस्तुत किय जाते हैं। इन उदाहरणों की सहायता से बालकों द्वारा सामान्य सिद्धान्त निकलवाया जाता है। इस प्रकार आगमन विधि उदाहरणों से आरम्भ होती है और उदाहरणों के द्वारा ही किसी सामान्य नियम का निर्धारण किया जाता है।
आगमन-निगमन विधि के गुण
(1) आगमन तथा निगमन विधि द्वारा आर्थिक जीवन से प्रगतिशील तथ्यों के निष्कर्ष निकाले जाते हैं।
(2) इसमें छात्रों को आर्थिक जीवन की वास्तविक घटनाओं के निरीक्षण के अवसर मिलते हैं।
(3) इस विधि द्वारा बालक स्वाभाविक ढंग से ज्ञान प्राप्त करते हैं।
(4) यह ज्ञान प्राप्त करने की मनोवैज्ञानिक प्रणाली है।
(5) इसके अपनाने से छात्रों में आत्मविश्वास उत्पन्न हो जाता है।
पर्यटन या भ्रमण विधि
इस विधि द्वारा अर्थशास्त्र का शिक्षण कक्षा भवन से बाहर किया जाता है। पर्यटन विधि का प्रयोग तीन प्रकार से किया जाता है-
1. किसी एक घण्टे में ही कक्षा से बाहर छात्रों को ले जाकर निरीक्षण योग्य सामग्री का निरीक्षण कराना।
2. विद्यालय से बाहर पूरे दिन अथवा आधे दिन का कार्यक्रम बनाकर बालकों को नगर के औद्योगिक संस्थानों की यात्रा पर ले जाना।
3. प्रदेश के प्रमुख औद्योगिक संस्थानों का भ्रमण जिसमें अनेक दिन या अनेक सप्ताह का कार्यक्रम हो।
अर्थशास्त्र सैद्धान्तिक होने की अपेक्षा व्यावहारिक अधिक है, अतः इससे व्यावहारिक पक्ष का ज्ञान प्राप्त करने के लिए पर्यटन परम उपयोगी है। अर्थशास्त्र शिक्षण में पर्यटन विधि से निम्न लाभ होते हैं-
(i) पर्यटन द्वारा छात्रों को अर्थशास्त्र के अध्ययन में रुचि और उत्साह का अनुभव होता है।
(ii) यह पाठ्य के अनुभवों को समृद्ध बनाता है।
(iii) छात्रों की सामान्य बुद्धि का विकास होता है।
(iv) वे आर्थिक क्रियाओं के प्रत्यक्ष सम्पर्क में आते हैं।
(v) छात्रों की निरीक्षण शक्ति का विकास होता है।
(vi) आर्थिक समस्याओं को हल करने की सामग्री भी छात्र पर्यटन द्वारा ही प्राप्त करते हैं। (vii) पर्यटन द्वारा छात्र विभिन्न नवीन योजनाओं से परिचित होते हैं।
पर्यटन की योजना
बिना योजना बनाये भ्रमण करना पूर्णतया व्यर्थ है। अर्थशास्त्र में पर्यटन की सफल योजना के लिए अध्यापक को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए-
1. पर्यटन स्थल का चुनाव सोच-समझकर करना चाहिए। जिस स्थल का चुनाव किया जाये वह अर्थशास्त्र शिक्षण के उद्देश्य की पूर्ति करने वाला हो।
2. पर्यटन स्थल का चुनाव करने के पश्चात् पर्यटन की अवधि का निर्धारण किया जाता है।
3. प्राथमिक स्तर के बालकों को अधिक दूर का पर्यटन नहीं कराया जाये। जूनियर स्तर के छात्रों दूर तथा अधिक काल के लिए बाहर ले जाया जा सकता है।
4. यदि सम्भव हो तो पर्यटन स्थल का अध्यापक को स्वयं पहले निरीक्षण कर लेना चाहिए।
5. पर्यटन के उद्देश्यों का निर्धारण करना भी आवश्यक है। इसमें छात्रों से भी सहायता ली जा सकती है।
6. छात्रों को अपने साथ नोट-बुक, पेन या पेन्सिल तथा कैमरा आदि ले जाने को भी कहा जाये।
7. छात्रों को किसी खेत, फार्म या कारखानों आदि का निरीक्षण करने की पूरी पूरी सुविधा प्रदान की जाये।
8. निरीक्षण करने में छात्रों का मार्गदर्शन भी किया जाये।
9. छात्रों द्वारा किये गये प्रश्नों का उत्तर अध्यापक को अवश्य देना चाहिए।
Related Posts