मूल्यांकन की प्रक्रिया और प्रकार | Procedure and types of assessment

मूल्यांकन की प्रक्रिया और प्रकार | Procedure and types of assessment

मूल्यांकन प्रक्रिया - Evaluation Process

मूल्यांकन प्रक्रिया द्वारा पूर्व निर्धारित उद्देश्यों, ध्येयों तथा लक्ष्यों की प्राप्ति की मात्रा को निर्धारित किया जाता है, जिससे शिक्षण मूल्यों एवं उद्देश्यों की तुलना की जाती है। शिक्षा के पूर्व निर्धारित उद्देश्यों को शिक्षण द्वारा प्राप्त करने की चेष्टा की जाती है।


इसके फलस्वरूप मूल्यों की प्राप्ति होती है और इन अर्जित मूल्यों को ज्ञात करने के लिए मूल्यांकन किया जाता है। इस प्रकार मूल्यांकन प्रक्रिया तथा उद्देश्य एवं शिक्षण विधियों के बीच घनिष्ठ सम्बन्ध होता है।


अर्थात् मूल्यांकन वह प्रक्रिया है, जिसमें तीन बिन्दु हैं- उद्देश्य, अनुभव व उपकरण।। प्रक्रिया के अन्तर्गत हम बालक के व्यवहार के सभी पक्षों-ज्ञानात्मक, भावात्मक एवं क्रियात्मक आहे को सम्मिलित करते हैं।


मूल्यांकन के प्रकार Types of assessment


मूल्यांकन के प्रकार - कक्षागत क्रिया-कलापों की विशेषताओं, उद्देश्यों तथा कार के आधार पर मूल्यांकन के निम्न प्रकार हैं-


1. नियोजनात्मक मूल्यांकन

इस प्रकार के मूल्यांकन प्रतिमाने का प्रयोग प्रारम्भिक स्तर प योजना बनाते समय किया जाता है तथा छात्रों के प्रारम्भिक व्यवहार से सम्बन्धित होता है। किस सुनियोजित अनुदेशनात्मक कार्यक्रम को ग्रहण करने के लिए छात्रों को जिस मूलभूत ज्ञान एवं कौशा का होना आवश्यक है, वे उन्हें प्राप्त है या नहीं इसका पता लगाना नियोजनात्मक मूल्यांकन का उद्देश है।


छात्रों की रुचि, विशेषताओं, आदतों के अनुरूप उपयुक्त शिक्षण विधियों व प्रविधियों के चयः करने हेतु इस मूल्यांकन का प्रयोग होता है। इस आकलन में चंचलता, अभिक्षमता, उद्देश्यधारिता पूर्व परीक्षण एवं आत्मवर्णन तकनीकों का प्रयोग होता है।


2. निर्माणात्मक मूल्यांकन

अधिगम की सफलता शिक्षण अधिगम प्रक्रिया पर निर्भर करती है। इस प्रक्रिया में मूल्यांकन को निर्माणात्मक या रचनात्मक मूल्यांकन कहते हैं। रोनेट्री ने इस मूल्यांकन के लिा माइक्रो मूल्यांकन शब्द का प्रयोग किया है। इसे रूप देय मूल्यांकन के नाम से भी जाना जाता है। इस प्रका इस मूल्यांकन में अध्ययन-अध्यापन प्रक्रिया सम्मिलित है।


इसके आधार पर अध्यापक विधि की अपूर्णत का आंकलन कर अपनी शिक्षण विधि में वांछित संशोधन कर सकता है। दूसरे शब्दों में ज्ञान के विकास के आधार मान कर अधिगम को प्रदान किया जाता है। प्रतिपुष्टिं सफल अधिगम को पुनर्बलन करने के साथ ह उन कमियों को भी स्पष्ट करती है जिनके कारण अधिगम में कठिनाइयाँ उत्पन्न होती हैं।

मूल्यांकन के उद्देश्य

(1) शिक्षण पद्धति की सफलता का अनुमान लगाने के लिए। (2) बालकों की कठिनाइयों, सीमाओं एवं दोषों को जानने हेतु। (3) पथ प्रदर्शन के लिए। (4) शिक्षण रीतियों एवं सामग्रियों को उपयोगिता की जांच के लिए। (5) बालकों की निष्पत्ति का ज्ञान प्राप्त करने के लिए। (6) बालकों के वर्गीकरण हेतु। (7) जीवन-स्तर स्थापित करने हेतु। (8) सीखने की प्रक्रिया को प्रोत्साहित करने हेतु। (9) शिक्षक की सफलता एवं कुशलता का ज्ञान प्राप्त करने के लिए। (10) बालकों के विकास को निरन्तर बनाये रखने के लिए। (11) पाठ्यक्रम में सुधार लाने हेतु। (12) शिक्षण में सुधार करने के निमित्त।

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