प्रश्नों के प्रकार | Types of Questions in Hindi

प्रश्नों के प्रकार | Types of Questions in Hindi

विकासात्मक प्रश्न ( Developmental questions )


विकासात्मक प्रश्न- विकासात्मक प्रश्नों का उद्देश्य पाठ के विकास में विद्यार्थियों का सक्रिय सहयोग प्राप्त करना और उन्हें स्वयं सोचने तथा तथ्यों का ज्ञान प्राप्त करने हेतु अवसर प्रदान करना है। विकासात्मक प्रश्न पूछने से बालक स्वयं ज्ञान प्राप्त करने के लिए बाध्य हो जाते हैं।


मूल पाठ के किसी तथ्य का ज्ञान कराने के लिये अध्यापक उस विशेष तथ्य से सम्बन्धित बालक के पूर्व प्राप्त या नवीन अथवा तत्कालीन ज्ञान पर प्रश्न करता है और उसके उत्तरों के आधार पर कुछ और प्रश्न करके बालकों को उस विशेष तथ्य का ज्ञान प्राप्त कराता है।


इस प्रकार बालक पाठ की मुख्य- मुख्य बातों को स्वयं जान लेते हैं। पाठ्य-वस्तु के स्पष्टीकरण के लिए तथा कक्षा को एक तथ्य बिन्दु से दूसरे तथ्य बिन्दु की ओर ले जाने हेतु विकासात्मक प्रश्नों का उपयोग किया जाता है।


उदाहरण के लिए, जब शिक्षक बालकों को अंकगणित के एक नियम से दूसरे नियम की ओर ले जाता है या किसी देश की जलवायु के आधार पर वहाँ की पैदावार सम्बन्धी बातों को बालकों द्वारा निकलवाता है या विशेष उदाहरणों द्वारा व्याकरण अथवा विज्ञान के नियमों को स्वयं जानने के लिए उन्हें प्रेरित करता है अथवा पूर्व प्राप्त ऐतिहासिक तथ्यों की सहायता से उन्हें नवीन तथ्यों के समीप ले जाता है तब वह विकासात्मक प्रश्नों का ही आश्रय लेता है।


कभी-कभी नवीन शिक्षक पाठ के सभी तथ्यों को बालकों द्वारा निकलवाना चाहते हैं। यह उनकी भूल है। ऐसे ऐतिहासिक तथा भौगोलिक तथ्य जो बालकों द्वारा नहीं निकलवाये जा सकते, शिक्षक को स्वयं बताने चाहिए।


समस्यात्मक प्रश्न (Problematic questions)


समस्यात्मक प्रश्न- ये प्रश्न पाठ के आरम्भ में या अन्त में दोनों ही स्थानों पर सफलतापूर्वक किये जा सकते हैं। जब ये प्रश्न पाठ के आरम्भ में किये जाते हैं, तब उनका उद्देश्य बालनों के सम्मुख कुछ समस्या उत्पन्न करना होता है।


इस समस्या को ध्यान में रख कर बालक पाठ की प्रमुख बातों का अध्ययन करते हैं और समस्या हल करने के लिये प्रयत्नशील रहते हैं और जब ये प्रश्न पाठ के अन्त में किये जाते हैं तो इनका उद्देश्य यह जाँच करना होता है कि बालकों में पठित वस्तु को प्रयोग में लाने की कितनी योग्यता है।


ऐसे प्रश्न प्रायः विज्ञान तथा गणित के शिक्षण में किये जाते हैं। जहाँ समस्याओं को हल करना पड़ता है और हल करने के लिए पूर्व प्राप्त जान के उपयोग की आवश्यकता होती है। समस्यामूलक प्रश्न का उत्तर देने के लिए बालक अर्जित ज्ञान चेतना में लाकर उसे पुनः व्यवस्थित करता है और उसके सुव्यवस्थित रूप का प्रयोग करता है।


इस प्रकार बालक बिना शिक्षक की सहायता के अपने पूर्व ज्ञान का उपयोग करता है और नवीन ज्ञान को आत्मसात करता है। स्पष्ट है कि उक्त प्रश्नों के द्वारा बालकों में ज्ञान ग्रहण करने, उसे व्यवस्थित करने तथा प्रयोग में लाने की क्षमता उत्पन्न होती है।


बोधात्मक प्रश्न (Comprehension question)


बोधात्मक प्रश्न- बोधात्मक प्रश्नों का उद्देश्य यह पता लगाना है कि विद्यार्थियों ने पठित वस्तु को ठीक-ठीक समझा या नहीं और वह उनके स्थायी ज्ञान का अंश बन गया है अथवा नहीं। प्रायः बालक यह विचार करते हैं कि जो कुछ पढ़ाया गया है वे उसे समझ गये हैं, किन्तु जब प्रश्न का उत्तर देने की बारी आती है तब कहीं उन्हें अनुमान होता है कि वे पठित वस्तु को पूर्णतः नहीं समझ पाये थे।


इसलिये लगभग सभी प्रकार के पाठों में शिक्षक को कुछ बोध प्रश्न करने चाहिए जिससे बालकों को यह बोध हो सके कि जो कार्य किया गया है उसे वे सचमुच समझ गये हैं अथवा नहीं। यदि छात्र पाठ्य-वस्तु को भली-भाँति समझ जाते हैं तो उन्हें उत्तर देने में कोई कठिनाई नहीं होती। इसके विपरीत यदि वे पाठ को नहीं समझ, पाये हैं तो वे उत्तर न दे सकेंगे।


ऐसी परिस्थिति में अध्यापकों को चाहिए कि वे पाठ को पुनः पढ़ावें। अन्यथा उनका पढ़ाना व्यर्थ है। प्रायः ये प्रश्न सम्पूर्ण पाठ या पाठ के प्रत्येक सोपान के अन्त में पूछे जाते हैं। भाषा के पाठ में बोध प्रश्न दो प्रकार के होते हैं, एक पाठ्य-वस्तु सम्बन्धी और दूसरे भाषा सम्बन्धी।


इन प्रश्नों का पूरा-पूरा लाभ उठाने के लिए यह आवश्यक है कि ये श्रृंखलाबद्ध हों जिससे इनके उत्तरों द्वारा सम्पूर्ण पाठ्यं-वस्तु का ज्ञान हो सके। ये प्रश्न कुछ जल्दी-जल्दी पूछे जाने चाहिए।

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