स्त्री शिक्षा ( Woman Education ) - Questionpurs

स्त्री शिक्षा ( Woman Education )

वर्तमान युग प्रचलन का युग है जिसका अर्थ है जनता का राज्य। जनता में सभी प्रौढ़ स्त्री व पुरुष भी शामिल हैं तथा शिक्षा की दृष्टि से यदि विचार किया जाये तो सभी को शिक्षा प्राप्ति का समान अधिकार भी है।


भारत के प्रथम प्रधानमन्त्री जवाहर लाल नेहरू ने कहा था- "परिवार में लड़के की शिक्षा एक ही सदस्य की शिक्षा होती है, परन्तु परिवार में लड़की की शिक्षा सम्पूर्ण परिवार की शिक्षा होती है।"


"Education of the male member in the family is the education of one member, but the education of a female member in the family is the education of the whole family."


स्त्री शिक्षा ( Woman Education ) - Questionpurs

स्त्री शिक्षा के महत्त्व एवं सार्थकता को विद्वानों ने निम्नलिखित ढंग से भी व्यक्त किया है-

"माँ सर्वोत्तम शिक्षिका होती है।" "Mother is the best teacher."

"माँ हजार शिक्षकों के बराबर होती है।" "Mother is equal to thousand teachers."


भारत में स्त्री शिक्षा का स्वरूप (NATURE OF WOMEN EDUCATION IN INDIA)


भारत में स्त्री शिक्षा के स्वरूप में निरन्तर परिवर्तन होता रहा है। यदि हम वैदिक काल के आरम्भ की बात करें तो इस समय स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार था, परन्तु इसमें भी योग्यता को महत्त्व न देकर वर्ण को महत्त्व दिया जाता था।


अतः इस काल में शिक्षा की समस्त सुविधाएँ न उपलब्ध होने से स्त्रियाँ शिक्षा का लाभ न उठा सकीं। मध्यकाल में स्त्री शिक्षा का यह स्वरूप अति संकुचित हो गया तो अंग्रेजों के शासन में स्त्री शिक्षा के स्वरूप में क्रान्तिकारी परिवर्तन भी हुए, जिसमें उन्होंने सभी बालक-बालिकाओं की शिक्षा पर बल दिया एवं स्त्री शिक्षा को नया स्वरूप देते हुए उच्च माध्यमिक व माध्यमिक स्तर पर लड़के-लड़कियों के लिए अलग-अलग पाठ्यक्रम चलाये।


स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में भी सुधार करने के उद्देश्य से 1958 में देशमुख समिति का गठन किया गया, जिसने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में कोई ठोस सुझाव तो नहीं दिया, परन्तु विस्तार के लिए अनेक उपाय बताये। इसके बाद स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में पुनः विस्तार से सुझाव देव के लिए 1962 में हंसा मेहता समिति का गठन किया गया।


इस समिति ने स्त्री व पुरुषों को सामाव कक्षा का सुझाव देते हुए कहा कि शिक्षा में लिंग आधारित भेदभाव समाप्त किया जाये। इसके बाद कोठारी आयोग, 1964-66 ने स्त्री-पुरुषों के लिए भिन्न-भिन्न पाठ्यक्रमों का सुझाव दिया। परन्तु साथ ही प्रथम 10 वर्षीय शिक्षा के लिए आधारभूत पाठ्यचर्या (Core curiculum) प्रस्तावित का इसका प्रभाव यह हुआ कि भिन्न-भिन्न प्रान्तों में स्त्री शिक्षा को भिन्न-भिन्न रूपों में संगठित किया।


इन्हीं विषमताओं को दूर करने के लिए 1986 में नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति की घोषणा की गयी। जिसमें स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में स्पष्ट निर्देश दिया गया कि भारत में स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में किसी एकार का भेद नहीं किया जायेगा, स्त्रियों को पुरुषों की भाँति किसी भी प्रकार की शिक्षा प्राप्त करने का अधिकार होगा। इतना ही नहीं, इस शिक्षा नीति द्वारा स्त्रियों को विज्ञान, तकनीकी व मैनेजमेण्ट की शिक्षा के लिए भी प्रोत्साहित किया गया एवं उनके लिए आरक्षण की भी व्यवस्था की गयी। अब हम स्त्री शिक्षा की प्रगति हेतु प्राचीन भारत से लेकर अब तक की प्रगति की समीक्षा क्रमवार करेंगे।


भारत में स्त्री शिक्षा का विकास (DEVELOPMENT OF WOMEN EDUCATION IN INDIA)


प्राचीन काल में नारी समाज की एक सभ्य शिक्षित व सम्मानित अंग रही है। ऋग्वेद काल में स्त्रियों को पूर्ण स्वतन्त्रता थी। वे पुरुषों के साथ यज्ञ करती थीं। यहाँ तक कि वह यज्ञ पूर्ण नहीं माना जाता था जो बिना अद्धांगिनी के सम्पादित किया जाता था। ऋग्वेद कालीन बहुत-सी विदुषी स्त्रियाँ हैं। उपनिषद् काल में भी स्त्रियों को शिक्षा की पूर्ण स्वतन्त्रता थी। याज्ञवल्क्य की दो पत्नियाँ गार्गी और मैत्रेयी दोनों ही परम विदुषी स्त्रियाँ थीं।


उपनिषदों में ऐसी स्त्रियों का भी वर्णन है जो 'शिक्षिका' का कार्य करती थीं। स्त्रियों को 'ब्रह्मवादिनी' कहा जाता था। स्त्री शिक्षिकायें 'उपाध्याया' और ' आचार्या' भी कहलाती थीं। पिता की यह अभिलाषा रहती थी कि उसकी पुत्री पंडिता हो। स्त्रियों को सैनिक शिक्षा दिये जाने का उदाहरण भी मिलता है। जैसा कि 'रिक्तिकी' शब्द से प्रतीत होता है, जिसका उल्लेख पतंजलि ने किया है। इसका अभिप्राय भाला धारण किये स्त्री से है। ये स्त्रियाँ वैदिक ज्ञान में भी मंत्रविद् होती थीं।


वैदिक काल में प्राथमिक शिक्षा की व्यवस्था परिवारों में होती थी और उच्च शिक्षा की व्यवस्था गुरुकुलों में होती थी। परन्तु इसमें शिक्षित परिवारों को बालिकायें प्राथमिक शिक्षा तो प्राप्त कर लेती याँ, परन्तु उच्च शिक्षा हेतु वे गुरु-आश्रमों व गुरुकुलों में नहीं जा पाती थीं। अतः इस काल में स्त्री शिक्षा का समुचित विकास नहीं हो सका।


ब्रिटिश काल में स्त्री शिक्षा (WOMEN EDUCATION IN BRITISH PERIOD)


ब्रिटिश काल का आरम्भ ईस्ट इण्डिया कम्पनी के शासन से होता है जिसने स्त्री शिक्षा पर विशेष ध्यान नहीं दिया, क्योंकि उसे अपने कामकाज से किसी शिक्षित स्त्री की आवश्यकता नहीं पड़ती थी। अतः कम्पनी ने स्त्री शिक्षा के लिए कोई ठोस प्रयास नहीं किया।


सन् 1813 में ब्रिटिश पार्लियामेण्ट ३ कम्पनी को जो आज्ञापत्र जारी किया, उसमें एक आदेश यह भी था कि कम्पनी शिक्षा पर प्रति वर्ष एक लाख रुपये खर्च करे, परन्तु इसी बीच प्राच्य पाश्चात्य विवाद के कारण कम्पनी का रुख जश्चात्यीकरण की तरफ हो गया। परन्तु ईसाई मिशनरियों का कार्य जारी रहा, उन्होंने अनेक स्कूलों को स्थापना की।


भारत में बालिकाओं के लिए अलग से सबसे पहला स्कूल 1818 में ईसाई मिशनरी रेवरेण्ड में चिनसुरा में स्थापित किया गया। 1819 में कैरे ने सौरामपुर में दूसरा बालिका विद्यालय स्थापित किया। 1820 में इंग्लैण्ड से मिस कूक भारत आर्यों। इन्होंने यहाँ आते ही 8 बालिका विद्यालयों की स्थापना की और इसके बाद 1823 तक 14 और बालिका विद्यालय स्थापित किये।


मिशनरियों से प्रभावित होकर भारतीय भी आगे बढ़े। पूना में महात्मा फूले ने एक बालिका विद्यालय खोला, जिसमें वे और उनकी पत्नी भी पढ़ाते थे। 1849 में कलकत्ता में भी वैश्यून ने एक बालिका विद्यालय की स्थापना को। इसके बाद राजा राममोहन राय और ईश्वरचन्द्र विद्यासागर ने कलकत्ता क्षेत्र में कई बालिका विद्यालय खोले। 1851 तक ईसाई मिशनरियों ने ही 371 बालिका विद्यालय स्थापित कर दिये थे और इनमें 11,293 बालिकाएँ शिक्षा प्राप्त कर रही थीं।


सन् 1854 के बुड के घोषणा पत्र ने स्त्री शिक्षा के विद्यालयों को सहायता अनुदान दिये जाने की भी बात कही। कम्पनी के संचालकों का विश्वास था कि स्त्री शिक्षा द्वारा भारतीय जनता का नैतिक स्तर बढ़ेगा। अतः इस घोषणा पत्र में पुनः धन सम्बन्धी सहायता तथा अन्य प्रकार के सहयोगों का सुझाव देकर स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित किया। बंगाल के गवर्नर जनरल ने भी घोषणा की कि भारत में स्त्री शिक्षा को सरकार की स्पष्ट एवं मैत्रीपूर्ण मदद मिलनी चाहिए।


1857 में भारत में अंग्रेजों के विरुद्ध हुई क्रान्ति को दबाने के बाद, 1859 में ब्रिटिश सरकार ने प्राथमिक शिक्षा कर लगाया। इस धनराशि से स्त्री शिक्षा का भी प्रसार हुआ व 1882 तक हमारे देश में लगभग 2,097 बालिका विद्यालय खुल चुके थे जिनमें 1,27,066 बालिकाएँ शिक्षा ग्रहण कर रही थीं।


1882 में हण्टर कमीशन ने भी स्त्री शिक्षा की आवश्यकता व इसके प्रसार पर बल दिया एवं स्त्री शिक्षा को निःशुल्क किये जाने का सुझाव दिया। इसके साथ ही निर्धन बालिकाओं को छात्रवृत्तियाँ दिये जाने व दूर से आने वाली छात्राओं हेतु छात्रावासों की व्यवस्था किये जाने की भी बात की, जिससे स्त्री शिक्षा के विकास में गति आयी। 1904 में श्रीमती एनी बेसेण्ट ने बनारस में सेण्ट्रल हिन्दू बालिका विद्यालय की स्थापना की व 1916 में दिल्ली में लेडी होर्डिंग कॉलेज खोला गया जो भारत का सर्वप्रथम महिला मेडिकल कॉलेज था।


इसी वर्ष महर्षि कर्वे ने पूना में महिला महाविद्यालय की स्थापना की। इस प्रकार स्त्री शिक्षा के प्रसार में और अधिक तेजी आयी। 1946-47 तक भारत में 28,196 बालिका शिक्षा संस्थाओं की स्थापना हो चुकी थीं, जिनमें 21,479 प्राथमिक विद्यालय, 2,370 माध्यमिक विद्यालय, 59 महाविद्यालय और 4,288 व्यावसायिक शिक्षा संस्थाएँ थीं एवं इनमें पढ़ने वाली छात्राओं की संख्या लगभग 42 लाख थी।


स्वतन्त्र भारत में स्त्री शिक्षा का विकास (DEVELOPMENT OF WOMEN EDUCATION IN FREE INDIA)


15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद व 26 जनवरी, 1950 को संविधान निर्माण के पश्चात् स्त्रियों को समानता का अधिकार दिया गया जो शिक्षा के क्षेत्र में भी लागू हुआ। सर्वप्रथम 1948 में गठित राधाकृष्णन् आयोग ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में अनेक सुझाव दिये, जिनमें मुख्य थे स्त्रियों के लिए शिक्षा के अधिक अवसर उपलब्ध कराये जायें, बालिकाओं के लिए उनकी रुचि और आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम तैयार किये जायें और उनके लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन की उचित व्यवस्था की जाये। इस प्रकार अब भारत में स्त्री शिक्षा के प्रसार का कार्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू हुआ।


स्त्री शिक्षा के विकास हेतु निम्न समितियों के प्रयास भी उल्लेखनीय हैं-


राष्ट्रीय स्त्री शिक्षा समिति, 1958 (National Committee on Women Education, 1958)


भारत सरकार ने 1958 में स्त्री शिक्षा पर विचार करने के लिए श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख की अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति' की नियुक्ति की। इस समिति को देशमुख समिति (Deshmukh Committee) भी कहा जाता है। इसका मुख्य कार्य स्त्री शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत करना था। समिति ने फरवरी 1959 में अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया और केन्द्र सरकार को एक निश्चित योजना के अनुसार व निश्चित अवधि में स्त्री शिक्षा का उत्तरदायित्व देने व इसके लिए एक नीति निर्धारित करने की आवश्यकता व्यक्त की। इसके साथ ही यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा का विशेष प्रयास किया जाये व केन्द्रीय सरकार इसके प्रसार सम्बन्धी व्यय का सम्पूर्ण भार अपने ऊपर ले। समिति ने केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्' की स्थापना किये जाने व राज्यों द्वारा 'बालिका एवं स्त्री शिक्षा की राज्य परिषदों' (State Council of Education for Girls and Women) का गठन किये जाने का सुझाव दिया।


सन् 1962 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति ने श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में 'हंसा मेहता समिति' का पुनर्गठन किये जाने का सुझाव' दिया व स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिये जो निम्न प्रकार हैं-


1. प्राथमिक स्तर पर लड़के-लड़कियों के लिए समान पाठ्यक्रम होना चाहिए।

2. माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के लिए गृह विज्ञान शिक्षा की सुविधा होनी चाहिए।

3. बालिकाओं के लिए अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।

4. किसी भी स्थिति में बालक-बालिकाओं की शिक्षा में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए।


भक्तवत्सलम कमेटी रिपोर्ट, 1963 (Report of Bhaktavatsalam Committee, 1963)


राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् ने भी भक्तवत्सलम की अध्यक्षता में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया। इस समिति ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में अग्र सुझाव दिये-


1. 6 से 14 आयु वर्ग के सभी लड़के-लड़कियों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की अवस्था को जाये।

2. लड़कियों के अलग से माध्यमिक स्कूल खोले जायें व इन माध्यमिक स्कूलों में छात्रावास आवागमन को सुविधा दी जाये।

3. लड़कियों के लिए अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।

4. लड़कियों के लिए अलग से महिला महाविद्यालय खोले जायें व लड़कियों के लिए विशेष जत्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की जाये।


कोठारी आयोग के स्त्री शिक्षा पर सुझाव (Suggestions on Woman's Education of Kothari Commission)


आयोग के अनुसार बच्चों के चरित्र निर्माण, परिवारों की उन्नति व राष्ट्रीय मानव संसाधनों के विकास के लिए स्त्रियों की शिक्षा पुरुषों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है, अत: स्त्री शिक्षा के प्रसार व उन्नयन के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा सम्बन्धी आयोग के सुझाव निम्न प्रकार हैं-


1. बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा का अधिक से अधिक विस्तार करने के साथ ही माध्यमिक स्तर पर भी बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार की गति इतनी तीव्र कर दी जाय कि 20 वर्ष के अन्त में निम्न माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं तथा बालकों की संख्या का अनुपात 1:3 और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 12 हो जाय।


2. बालिकाओं के लिए पृथक् विद्यालयों व छात्रावासों और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाय तथा जहाँ महिलाओं की उच्च शिक्षा की अधिक माँग हो, वहाँ अलग से महिला महाविद्यालय स्थापित किये जायें।


3. बालिकाओं की शिक्षा हेतु, शिक्षा, गृहविज्ञान व सामाजिक कार्य (Social Work) के पाठ्य विषयों का विस्तार करके उनको समुन्नत बनाया जाय।


4. माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को भी विज्ञान या गणित का अध्ययन करने के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया जाय तथा संगीत व कलाओं की शिक्षा देने हेतु भी उचित व्यवस्था की जाय।


5. स्त्रियों के लिए पत्राचार पाठ्यक्रमों की व्यवस्था व प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा जाय।


6.राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव (Suggestions Regarding Women Education by National Education Policy, 1986)


इस नीति में यह स्पष्ट घोषणा की गयी कि अब स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में कोई अन्तर नहीं होगा। स्त्री-पुरुष सभी को शिक्षा की समान सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी और इस हेतु स्त्री शिक्षा के प्रसार पर विशेष ध्यान दिया जायेगा, उन्हें विशेष सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी। इस शिक्षा नीति के साथ एक कार्य योजना (POA) भी बनायी गयी, जिसके अनुसार हर क्षेत्र में कार्य शुरू किये गये व स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु भी महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये, जैसे-जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (DPEP)।


यह कार्यक्रम मुख्य रूप से उन जिलों में शुरू किया गया जिनमें स्त्री साक्षरता प्रतिशत बहुत कम था। बालिका निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को 90% अनुदान देना शुरू किया गया तथा केन्द्रीय व नवोदय विद्यालयों में भी 30% आरक्षण किया गया एवं उनकी शिक्षा निःशुल्क की गयी। महिलाओं के लिए +2 पर नये-नये व्यावसायिक पाठ्यक्रम खोले गये व उनके लिए अलग से पॉलीटेक्निक कॉलेज खोले गये।


विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने भी विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में महिला अध्ययन केन्द्र खोलने हेतु सहायता देना शुरू किया। सन् 1980 में महिला समाख्या कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें ग्रामीण एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं की शिक्षा और उन्हें अधिकारसम्पन्न करने का ठोस कार्यक्रम तैयार किया गया।


इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा की केन्द्रीयता को पहचानना है। इस कार्यक्रम में शिक्षा को केवल आधारित साक्षरता कौशल हेतु नहीं समझा जाता है, बल्कि इसमें महिलाओं हेतु ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है, जिसमें वह स्वयं अपनी गति के अनुसार ज्ञान अर्जित कर सकती है और अपनी समस्याओं को सुलझा सकती है।


यह कार्यक्रम मुख्य रूप से सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित तथा गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही महिलाओं में इस भावना को जाग्रत करना है कि वे किसी भी तरह से अन्य महिलाओं से कम नहीं है, क्योंकि इस कार्यक्रम द्वारा उन्हें समस्याओं से निपटने, आत्मविश्वास को जाग्रत करने तथा जीवन के संघर्षों को दूर करने की शिक्षा दी जाती है।


बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति में सुधार हेतु शैक्षिक प्रयास (EDUCATIONAL IMPACT TO IMPROVE STATUS OF THE GIRLS EDUCATION)


15 अगस्त, 1947 को स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद व 26 जनवरी 1950 को संविधान निर्माण के पश्चात् स्त्रियों को समानता का अधिकार दिया गया जो शिक्षा के क्षेत्र में भी लागू हुआ। सर्वप्रथम 1948 में गठित राधाकृष्णन् आयोग ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में अनेक सुझाव दिये, जिनमें मुख्य थे स्त्रियों के लिए शिक्षा के अधिक अवसर उपलब्ध कराये जायें, बालिकाओं के लिए उनकी रुचि और आवश्यकतानुसार पाठ्यक्रम तैयार किये जायें और उनके लिए शैक्षिक एवं व्यावसायिक निर्देशन की उचित व्यवस्था की जाये। इस प्रकार अब भारत में स्त्री शिक्षा के प्रसार का कार्य योजनाबद्ध तरीके से शुरू हुआ। स्त्री शिक्षा के विकास हेतु निम्न समितियों के प्रयास भी उल्लेखनीय हैं-


1. राष्ट्रीय स्त्री शिक्षा समिति, 1958 (National Committee on Women Education, 1958) -

भारत सरकार ने 1958 में स्त्री शिक्षा पर विचार करने के लिए श्रीमती दुर्गाबाई देशमुख को अध्यक्षता में 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति' की नियुक्ति की। इस समिति को देशमुख समिति (Deshmukh Committee) भी कहा जाता है। इसका मुख्य कार्य स्त्री शिक्षा की विभिन्न समस्याओं का समाधान करने के लिए अपने सुझाव प्रस्तुत करना था।


समिति ने फरवरी 1959 में अपना प्रतिवेदन सरकार के समक्ष प्रस्तुत किया और केन्द्र सरकार को एक निश्चित योजना के अनुसार व निश्चित अवधि में स्त्री शिक्षा का उत्तरदायित्व देने व इसके लिए एक नीति निर्धारित करने की आवश्यकता व्यक्त की। इसके साथ ही यह भी कहा कि ग्रामीण क्षेत्रों में स्त्री शिक्षा का विशेष प्रयास किया जाये व केन्द्रीय सरकार इसके प्रसार सम्बन्धी व्यय का सम्पूर्ण भार अपने ऊपर ले।


समिति ने केन्द्रीय शिक्षा मंत्रालय द्वारा 'राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद्' की स्थापना किये जाने व राज्यों द्वारा 'बालिका एवं स्त्री शिक्षा की राज्य परिषदों' (State Council of Education for Girls and Women) का गठन जाने का सुझाव दिया। सन् 1962 में राष्ट्रीय महिला शिक्षा समिति ने श्रीमती हंसा मेहता की अध्यक्षता में 'हंसा मेहता अधिनि' का पुनर्गठन किये जाने का सुझाव दिया व स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में कुछ सुझाव दिये जो निम्न


(1) प्राथमिक स्तर पर लड़के-लड़कियों के लिए समान पाठ्यक्रम होना चाहिए।

(1) माध्यमिक स्तर पर लड़कियों के लिए गृह विज्ञान शिक्षा की सुविधा होनी चाहिए।

(1) बालिकाओं के लिए अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।

(1ⅳ) किसी भी स्थिति में बालक-बालिकाओं को शिक्षा में बहुत अधिक अन्तर नहीं होना चाहिए


2. भक्तवत्सलम कमेटी रिपोर्ट, 1963 (Report of Bhaktavatsalam Committee, 1963) -

राष्ट्रीय महिला शिक्षा परिषद् ने भी भक्तवत्सलम की अध्यक्षता में ग्रामीण क्षेत्रों में महिला शिक्षा के पुनर्गठन हेतु सुझाव देने के लिए एक समिति का गठन किया। इस समिति ने स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में निम्न सुझाव दिये


(i) 6 से 14 आयुवर्ग के सभी लड़के-लड़कियों के लिए अनिवार्य एवं निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था की जाये।

(ii) लड़‌कियों के अलग से माध्यमिक स्कूल खोले जायें व इन माध्यमिक स्कूलों में छात्रावास व आवागमन की सुविधा दी जाये।

(iii) लड़कियों के लिए अलग से व्यावसायिक शिक्षा की व्यवस्था की जाये।

(iv) लड़कियों के लिए अलग से महिला महाविद्यालय खोले जायें व लड़कियों के लिए विशेष छात्रवृत्तियों की भी व्यवस्था की जाये।


3. कोठारी आयोग के स्त्री शिक्षा पर सुझाव (Suggestions of Kothari Commission at Women Education)-

आयोग के अनुसार बच्चों के चरित्र निर्माण, परिवारों की उन्नति व राष्ट्रीय मानव संसाधनों के विकास के लिए स्त्रियों की शिक्षा पुरुषों की शिक्षा से अधिक महत्वपूर्ण है, अतः स्त्री शिक्षा के प्रसार व उन्नयन के लिए विशेष प्रयास किये जाने चाहिए। सर्वप्रथम स्त्री शिक्षा सम्बन्धी आयोग के सुझाव निम्न प्रकार हैं-


(i) बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा का अधिक-से-अधिक विस्तार करने के साथ ही माध्यमिक स्तर पर भी बालिकाओं की शिक्षा के विस्तार की गति इतनी तीव्र कर दी जाय कि 20 वर्ष के अन्त में निम्न माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं तथा बालकों की संख्या का अनुपात 1:3 और उच्चतर माध्यमिक स्तर पर 12 हो जाय।

(ii) बालिकाओं के लिए पृथक् विद्यालयों व छात्रावासों और छात्रवृत्तियों की व्यवस्था की जाय तथा जहाँ महिलाओं की उच्च शिक्षा की अधिक माँग हो, वहाँ अलग से महिला महाविद्यालय स्थापित किये जायें।

(iii) बालिकाओं की शिक्षा हेतु, शिक्षा, गृहविज्ञान व सामाजिक कार्य (Social Work) के पाठ्य विषयों का विस्तार करके उनको समुन्नत बनाया जाय।

(iv) माध्यमिक स्तर पर बालिकाओं को भी विज्ञान या गणित का अध्ययन करने के लिए विशेष प्रोत्साहन दिया जाय तथा संगीत व कलाओं की शिक्षा देने हेतु भी उचित व्यवस्था की जाय।

(v) स्त्रियों के लिए पत्राचार पाठ्यक्रमों की व्यवस्था व प्रौढ़ शिक्षा कार्यक्रम में स्त्रियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान रखा जाय।


4. राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 1986 द्वारा स्त्री शिक्षा के सम्बन्ध में सुझाव (Suggestions Regarding Women Education by National Education Policy, 1986)-

इस नीति में यह स्पष्ट घोषणा की गयी कि अब स्त्री-पुरुषों की शिक्षा में कोई अन्तर नहीं होगा। स्त्री-पुरुष सभी को शिक्षा को समान सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी और इस हेतु स्त्री शिक्षा के प्रसार पर विशेष ध्यान दिया जायेगा, उन्हें विशेष सुविधाएँ प्रदान की जायेंगी।


इस शिक्षा नीति के साथ एक कार्य योजना (POA) भी बनायी गयी, जिसके अनुसार हर क्षेत्र में कार्य शुरू किये गये व स्त्री शिक्षा के प्रसार हेतु भी महत्त्वपूर्ण कदम उठाये गये, जैसे जिला प्राथमिक शिक्षा कार्यक्रम (DPEP)। यह कार्यक्रम मुख्य रूप से उन जिलों में शुरू किया गया जिनमें स्त्री साक्षरता प्रतिशत बहुत कम था।


बालिका निरौपचारिक शिक्षा केन्द्रों को 90% अनुदान देना शुरू किया गया तथा केन्द्रीय व नवोदय विद्यालयों में भी 30% आरक्षण किया गया एवं उनकी शिक्षा निःशुल्क की गयी। महिलाओं के लिए +2 पर नये-नये व्यावसायिक पाठ्यक्रम खोले गये व उनके लिए अलग से पॉलीटेक्निक कॉलेज खोले गये। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने विश्वविद्यालयों और महाविद्यालयों में महिला अध्ययन केन्द्र खोलने हेतु सहायता देना शुरू किया।


शिक्षा के अधिकार कानून में भी इस बात का प्रावधान है कि जो बच्चे स्कूल छोड़ चुके हैं अथवा बड़ी आयु के बच्चे जो कभी स्कूल गये ही नहीं, उन्हें उनकी आयु के हिसाब से पारंगत करने और मुख्य धारा के स्कूलों की कक्षाओं में लाने के लिए 'सेतु पाठ्यक्रम' शुरू करने चाहिए।


किन्तु राज्य सरकारें इसके लिए प्रयास नहीं करती हैं। इसी प्रकार शिक्षा में हाशियाकरण का उदाहरण उन अप्रवासी कामगारों के बच्चों में देखने को मिलते हैं, जिनमें से अधिकांश दलित या आदिवासी समुदायों के होते हैं तथा अपने माता-पिता के साथ काम की तलाश में इधर-उधर घूमने के कारण स्कूल से लम्बे समय तक अनुपस्थित रहने के कारण उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ता है।


प्रत्येक राज्य के शिक्षा विभाग का कत्र्तव्य है कि वे इस प्रकार के बच्चों पर नजर रखें व उन्हें मुख्य धारा में लाने हेतु उनका स्कूल में दाखिला अवश्य करायें। सरकार द्वारा इन हाशिये पर खड़े, अनुसूचित जाति व जनजाति के लोगों की शिक्षा के लिए निम्न योजनायें शुरू की गयी हैं-


(i) महिला समाख्या योजना शैक्षिक पहुँच एवं उपलब्धि के क्षेत्र में लैंगिक अन्तर का निराकरण करती है। इसमें महिलाओं (विशेषतः हाशिये पर खड़ी सामाजिक एवं आंशिक रूप से पिछड़ी व वंचित) को ऐसे सशक्तिकरण के योग्य बनाती है ताकि वे अलग-थलग पढ़ने और आत्मविश्वास की कमी जैसी समस्याओं से जूझ सकें व दमनकारी सामाजिक रीति-रिवाजों के विरुद्ध खड़े होकर अपने अस्तित्व की रक्षा के लिए संघर्ष कर सकें।


(ii) NPEGEL (प्राथमिक स्तर पर बालिका शिक्षा हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम)।


(iii) सर्व शिक्षा अभियान योजना, जिसके अधीन NPEGEL प्राथमिक स्तर पर सहायता प्राप्ति से वंचित पिछड़ी बालिकाओं हेतु अतिरिक्त संसाधन मुहैया कराता है। यह कार्यक्रम शैक्षिक दृष्टि से पिछड़े उन विकास खण्डों में चलाया जा रहा है जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता की दर राष्ट्रीय औसत से कम है और लैंगिक भेदभाव राष्ट्रीय औसत से अधिक है, साथ ही यह कार्यक्रम ऐसे जिलों के विकास खण्डों में भी चलाया जा रहा है जहाँ कम-से-कम 5% जनसंख्या अनुसूचित जाति/जनजाति की है और जहाँ अनुसूचित जाति/जनजाति महिला साक्षरता की दर 1991 के आधार पर राष्ट्रीय औसत से 10% कम है।


(iv) शिक्षाकर्मी योजना (SRP) का लक्ष्य बालिका शिक्षा पर प्रमुख रूप से ध्यान देने के अतिरिक्त राजस्थान के दूरदराज के अर्धशुष्क एवं सामाजिक-आर्थिक रूप से पिछड़े क्षेत्रों में प्राथमिक शिक्षा के सार्वभौमीकरण एवं गुणवत्ता में सुधार लाना है। यह उल्लेखनीय है कि शिक्षाकर्मी स्कूलों में अधिकतम बच्चे अनुसूचित जाति एवं अन्य पिछड़े वर्गों के हैं।


कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना (KASTURBA GANDHI BALIKA VIDYALAYA)


भारत सरकार द्वारा 2004 में अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग की बालिकाओं के लिए हुदुर ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय उच्च्त्व प्राथमिक विद्यालय की स्थापना के लिए कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना की शुरुआत प्रथम दो वर्ष तक एक अलग योजना के रूप में हुई। इन विद्यालयों की आपना भारत सरकार द्वारा उन बालिकाओं के लिए की जिन्होंने बीच में ही विद्यालय छोड़ दिया था तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष या उससे अधिक है।


इनको शिक्षा के अवसर दोबारा उपलब्ध कराने के लिए इस योजना की शुरुआत की गयी। ये विद्यालय शैक्षिक रूप से पिछड़े उन विकास खण्डों में खोले गये हैं जहाँ अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग की बालिकाओं की संख्या अधिक है और जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता कम है।


पढ़ें बेटियाँ, बढ़ें बेटियाँ द्वारा स्त्री शिक्षा में प्रगति (PROGRESS IN WOMEN EDUCATION THROUGH PADHEN BETIYAN, BADHEN BETIYAN')


इस योजना के तहत सूबे में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्राओं को आगे की पढ़ाई जारी करने के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त दिये जायेंगे। यह लाभ सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति सभी वर्ग की छात्राओं को मिल सकेगा। वर्तमान में उत्तर प्रदेश सरकार का स्त्री शिक्षा के क्षेत्र में यह एक लाभप्रद प्रयास है।


इस योजना के माध्यम से गरीब तबके की बालिकाओं को अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने हेतु न केवल प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि सरकार द्वारा प्राप्त इस आर्थिक मदद के माध्यम से उन्हें शिक्षा सम्बन्धी सहूलियतें भी मिल सकेंगी। अपनी आगे की पढ़ाई के लिए वे अपने परिवार पर ही आश्रित न होंगी, अपनी पढ़ाई आगे जारी रखने की उनकी राह स्वतः आसान हो जायेगी। अतः उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित यह योजना किशोरवय बालिकाओं के लिए अत्यन्त लाभप्रद योजना है एवं स्त्री शिक्षा के विकास की ओर एक सार्थक प्रयास है।


अतः उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि स्त्री शिक्षा समाज एवं देश के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अत: इसमें आने वाली कठिनाइयों का समाधान करते हुए स्त्री शिक्षा का विकास करना होगा, जिसमें स्त्रियों की उन्नति एवं विकास हो सके और देश प्रगति के शिखर पर चढ़कर अपने को विकसित देश के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर सके। इसलिए स्त्री शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। जैसा कि पहले भी इंगित किया गया है कि "एक पुरुष के शिक्षित होने पर एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है, परन्तु एक स्त्री के शिक्षित होने पर एक परिवार शिक्षित हो जाता है।"


नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति, 2020 में अनुसूचित जाति/ जनजाति/अल्पसंख्यक तथा बालिका शिक्षा हेतु अनुशंसाएँ (RECOMMENDATIONS FOR GIRLS EDUCATION SC/ST/MINORITY IN NEP 2020)


शिक्षा में हाशियाकरण की प्रकृति को कम करने के लिए नई राष्ट्रीय शिक्षा नोति, 2020 में भी निम्न अनुशंसाएँ की गई हैं जिससे शिक्षा के क्षेत्र में पिछड़ो इन जातियों का शैक्षिक उन्नयन हो सके। आँकड़ों के आधार पर यह पता चलता है कि कुछ भौगोलिक क्षेत्रों में शैक्षिक रूप से पिछड़ी (एमईडीजी) का एक बड़ा अनुपात है।


अतः एक विशेष हस्तक्षेप के रूप में यह सिफारिश की जाती है कि देश के शैक्षिक रूप से वंचित इन जाति वर्ग को विशेष शिक्षा का क्षेत्र (SEZ) घोषित किया जाना चाहिये। केन्द्र व राज्यों द्वारा सही मायने में इन क्षेत्रों के शैक्षिक परिदृश्य को बदलने के लिए अतिरिक्त प्रयासों के माध्यम से उपरोक्त सभी योजनाओं और नीतियों को पूरी तरह से लागू किया जाये।


2. महिलाओं की शिक्षा के सम्बन्ध में यह नीति उनकी विशिष्ट व महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए उनके लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की व्यवस्था की सिफारिश करती है तथा उनके उत्थान के लिए बतायी जा रही नीतियों और योजनाओं को विशेष रूप से एसईडीजी वर्ग की बालिकाओं पर केन्द्रित करने की भी सिफारिश करती है।


3. इसके साथ ही भारत सरकार सभी लड़कियों और साथ ही ट्रांसजेंडर छात्रों का गुणवत्तापूर्ण और न्यायसंगत शिक्षा प्रदान करने की दिशा में देश की क्षमता का विकास करते हुए एक 'जेंडर समावेशी निधि' का गठन करेगी। केन्द्र सरकार द्वारा निर्धारित प्राथमिकताओं को लागू करने के लिए राज्यों को यह सुविधा उपलब्ध कराने हेतु कोष की व्यवस्था भी की जायेगी। अतः महिला और ट्रांसजेंडर बच्चों तक शिक्षा की पहुँच की दृष्टि से यह प्रावधान बेहद महत्वपूर्ण है।


4. ऐसे स्थान जहाँ विद्यालय तक जाने के लिए छात्रों को अधिक दूरी तय करनी पड़ती है वहाँ जवाहर नवोदय विद्यालयों के स्तर की तर्ज पर निःशुल्क छात्रावासों का निर्माण किया जायेगा। विशेषकर ऐसे छात्रों के लिए जो सामाजिक-आर्थिक रूप से वंचित पृष्ठभूमि से आते है। उच्चतर गुणवत्ता की दृष्टि से इन विद्यालयों में कम से कम एक वर्ष की प्रारम्भिक बाल्यावस्था देखभाल और शिक्षा को समाहित करते हुए वंचित क्षेत्रो में प्री-स्कूल वर्ग को भी जोड़ा जायेगा।


5. अनुसूचित जाति और जनजातियों के शैक्षणिक विकास में असमानताओं को दूर करने पर विशेष ध्यान किया जायेगा। स्कूली शिक्षा में भागीदारी बढ़ाने के प्रयासों के अंतर्गत, सभी वंचित (हाशिए पर) वर्ग के प्रतिभाशाली और मेधावी छात्रों के लिए बड़े पैमाने पर समर्पित क्षेत्रों में विशेष छात्रावास, ब्रिज पाठ्यक्रम और फीस माफ करने तथा छात्रवृत्ति के माध्यम से वित्तीय सहायता विशेषकर माध्यमिक स्तर पर प्रदान की जाएगी ताकि उच्चतर शिक्षा में उनके प्रदेश को सुगम बनाया जा सके।


6. हाशिए पर स्थित इन सभी वर्गों के छात्र-छात्राओं के लिए उपलब्ध छात्रवृत्ति, अवसर और योजनाओं में प्रतिभाग करने की दृष्टि से और समता को बढ़ाने के लिए कुछ सरलीकृत तरीके स्थापित किये जाएंगे ताकि इन सभी विद्यार्थियों तक इन योजनाओं, छात्रवृत्ति अथवा अवसरों की पहुँच सुनिश्चित हो सके।


बालिकाओं की शिक्षा हेतु केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा संचालित योजनायें व अन्य प्रयास (RUN SCHEMES AND OTHER EFFORTS BY THE STATE GOVERNMENTS FOR GIRLS EDUCATION)


प्रत्येक सरकार देश के विकास हेतु शिक्षा सहित जनजीवन के सभी क्षेत्रों में विकास लाना चाहती है। समय-समय पर शिक्षा की आवश्यकता तथा महत्व को ध्यान में रखते हुए सरकार शिक्षा पर विभिन्न योजनाओं की घोषणा करती है शिक्षा की कई योजनाएँ विशेष लक्ष्यों को पूरा करती हैं तो वहीं शैक्षिक नीतियाँ शैक्षिक नीति के व्यापक लक्ष्य को पूरा करती हैं।


नीति के लक्ष्य प्राप्ति के लिए कुछ शैक्षिक योजनाएँ जैसे मध्याहन भोजन योजना बालक एवं बालिकाओं के लिए अलग-अलग शौचालयों की बोजना, प्रशिक्षित शिक्षकों की नियुक्ति को क्रियान्वित किया जाता है। शिक्षा की प्रभावी योजनाओं का क्रियान्वयन शैक्षिक नीतियों एवं योजना में सफलता लाता है। इसी सन्दर्भ में बालिकाओं की शिक्षा में सुधार हेतु भी केन्द्र व राज्य सरकार द्वारा प्रायोजित विभिन्न शिक्षा की योजनाओं में से कुछ का विवरण यहाँ दिया जा रहा है जिनके माध्यम से हमारे देश में बालिका स्त्री शिक्षा की प्रगति देखने को मिल रही है-


1.सर्वशिक्षा अभियान

सर्वशिक्षा अभियान द्वारा सरकार का मुख्य उद्देश्य प्राथमिक व माध्यमिक स्तर का सार्वभौमीकरण का लक्ष्य प्राप्त करना है यह योजना पूरे देश में समान रूप से लागू की गई है जो राज्य सरकारों के साथ साझोदारी में काम करती है। यह योजना मुख्यतः 6-14 वर्ष की आयु के बच्चों के लिए उपयोगी है। अतः बालिकाओं तक शिक्षा की पहुँच बनाने के सन्दर्भ में यह योजना एक समयबद्ध कार्यान्वयन रणनीति द्वारा संचालित की जा रही है जिसमें बालिका शिक्षा की प्रगति हुई है।


2. बालिकाओं की शिक्षा हेतु, भारत सरकार द्वारा विशेषकर उन बालिकाओं तक पहुँचने के लिए जिनका नामांकन किसी भी स्कूल में नहीं है। जुलाई 2003 में एनपीजीईएल बालिकाओं की प्राथमिक शिक्षा हेतु राष्ट्रीय कार्यक्रम योजना शुरू की गई। यह योजना सर्वशिक्षा अभियान का ही एक महत्वपूर्ण घटक है जो बालिकाओं की शिक्षा में सुधार हेतु अतिरिक्त सहायता प्रदान करता है इस योजना के अंतर्निहित उद्देश्य, लिंग-संवेदनशील शिक्षण सामग्री का विकास है। इसमें पढ़ने-लिखने की वस्तुएँ, यूनिफॉर्म और कार्य पुस्तिका का भी प्रावधान है। इस कार्यक्रम का मुख्य ध्येय लिंग से बाधित रूढ़ियों और धारणाओं को तोड़ना भी है और यह सुनिश्चित करना है कि बालिकाओं को प्राथमिक स्तर पर अच्छी शिक्षा मिल सके।


3. मिड डे मील योजना

बालिकाओं की शिक्षा में नामांकन वृद्धि के संदर्भ में मिड डे मील योजना, 1995 में शुरू की गई। इसे प्राथमिक शिक्षा के राष्ट्रीय कार्यक्रम पोषण संबंधी सहायता के रूप में भी जाना जाता है। इस योजना का उद्देश्य स्कूलों में बच्चों की उपस्थिति और नामांकन में वृद्धि करना था। इस योजना के द्वारा निश्चित रूप से बालिका शिक्षा को प्रगति मिली है।


4. शिक्षा का अधिकार अधिनियम

शिक्षा का अधिकार अधिनियम, 2009 में लागू किया गया तथा इस अधिनियम द्वारा शिक्षा प्राप्ति को 6 से 14 साल के प्रत्येक बच्चे के लिए मौलिक अधिकार बनाया गया। इसमें देश के सभी प्राथमिक विद्यालयों के लिए बुनियादी मानदंड भी निर्धारित किए हैं। इसके द्वारा किसी भी बच्चे को प्रारम्भिक स्तर तक शिक्षा पूर्ण करने के लिए किसी प्रकार का शुल्क नहीं देना है तथा इसके अन्तर्गत आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के बच्चों के लिए निजी स्कूलों में 25% औरक्षण भी अनिवार्य किया गया है।


5. सन् 1980 में महिला समाख्या कार्यक्रम शुरू किया गया जिसमें ग्रामीण एवं पिछड़े वर्ग की महिलाओं की शिक्षा और उन्हें अधिकार सम्पन्न करने का ठोस कार्यक्रम तैयार किया गया। इस कार्यक्रम का मुख्य उद्देश्य महिलाओं के सशक्तिकरण के लिए शिक्षा की केन्द्रीयता को पहचानना है। इस कार्यक्रम में शिक्षा को केवल आधारित साक्षरता कौशल हेतु नहीं समझा जाता है, बल्कि इसमें महिलाओं हेतु ऐसे वातावरण का निर्माण किया जाता है जिसमें वह स्वयं अपनी गति के अनुसार ज्ञान अर्जित कर सकती है और अपनी समस्याओं को सुलझा सकती है।


यह कार्यक्रम मुख्य रूप से सामाजिक एवं आर्थिक रूप से वंचित तथा गरीबी की रेखा से नीचे जीवनयापन कर रही महिलाओं में इस भावना को जाग्रत करना है कि वे किसी भी तरह से अन्य महिलाओं से कम नहीं हैं, क्योंकि इस कार्यक्रम द्वारा उन्हें समस्याओं से निपटने, आत्मविश्वास को जाग्रत करने तथा जीवन के संघर्षों को दूर करने की शिक्षा दी जाती है।


6. भारत सरकार द्वारा 2004 में अनुसूचित जाति, जनजाति व पिछड़े वर्ग की बालिकाओं के लिए सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में आवासीय उच्च प्राथमिक विद्यालय की स्थापना के लिए कस्तूरबा गाँधी बालिका विद्यालय योजना को शुरुआत प्रथम दो वर्ष तक एक अलग योजना के रूप में हुई।


इन विद्यालयों की स्थापना भारत सरकार द्वारा उन बालिकाओं के लिए की जिन्होंने बीच में ही विद्यालय छोड़ दिया था तथा जिनकी उम्र 10 वर्ष या उससे अधिक है। इनकी शिक्षा के अवसर दोबारा उपलब्ध कराने के लिए इस योजना की शुरुआत की गयी। ये विद्यालय शैक्षिक रूप से पिछड़े उन विकास खण्डों में खोले गये हैं जहाँ अल्पसंख्यक अनुसूचित जाति/जनजाति एवं अन्य पिछड़े वर्ग की बालिकाओं की संख्या अधिक है और जहाँ ग्रामीण महिला साक्षरता कम है।


7. 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ'

केन्द्र सरकार की 2015 में शुरू की गई 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ' योजना बालिका शिक्षा के लिए सबसे प्रसिद्ध योजनाओं में से एक है। शुरू में इस सरकारी योजना का मुख्य उद्देश्य कन्या भ्रूण हत्या की रोकथाम व बालिकाओं को सुरक्षा और उनकी शिक्षा के लिए सहायता प्रदान करना था। अतः यह योजना बालिकाओं की सुरक्षा और उनके अस्तित्व को सुनिश्चित करने के साथ-साथ इस बात को भी तय करती है कि बालिकाएँ बालकों के साथ सभी शैक्षिक गतिविधियों में समान रूप से भाग लें।


8. बालिका शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए मोदी सरकार द्वारा कई छात्रवृत्तियाँ शुरू की गई हैं। National Scheme of Incentive to Girls के तहत माध्यमिक स्कूलों में पढ़ने वाली छात्राओं को 3,000 रूपये प्रतिवर्ष की छात्रवृत्ति दी जाती है। इस योजना के अन्तर्गत मई 2017 तक 9.65 लाख छात्राओं को लाभ मिल चुका है। वहीं लड़कियों को उच्च शिक्षा के लिए भी स्कॉलरशिप दी जा रही है। AICTE की तरफ से इंजीनियरिंग और फार्मेसी की पढ़ाई करने वाली 40,000 छात्राओं को प्रतिवर्ष 12,400 रूपये की छात्रवृत्ति दी जाती है। इसके साथ ही कॉलेज में पढ़ने वाली 4,000 लड़कियों को प्रतिवर्ष 5,000 रुपये की छात्रवृत्ति दी जा रही है।


9. 'प्रगति स्कॉलरशिप' योजना

भारत सरकार की ही एक अन्य लड़‌कियों के लिए 'प्रगति स्कॉलरशिप' योजना है जिसका उद्देश्य लड़कियों को तकनीकी शिक्षा के लिए प्रोत्साहित करना है। इसके तहत प्रतिवर्ष 4,000 लड़कियों को छात्रवृत्ति दी जा रही है। इसके तहत 30,000 रूपये तक की ट्यूशन फीस और कोर्स के दौरान 10 महीने तक 2,000 रुपये प्रति महीने दिये जाते हैं। लड़कियों से तकनीकी शिक्षा के लिए केन्द्र सरकार की तरफ से प्रतिवर्ष 50,000 रुपये तक की आर्थिक सहायता दी जाती है।


10. स्वामी विवेकानन्द स्कॉलरशिप योजना

स्वामी विवेकानन्द स्कॉलरशिप योजना भी एकल लड़की को सामाजिक विज्ञान में रिसर्च के लिए मोदी सरकार की तरफ से शुरू की गई है। इस छात्रवृत्ति का उद्देश्य समाज में एकल लड़कों को पहचान दिलाना और एकल लड़की की अवधारणा को प्रचारित करना है।


11. उड़ान योजना

उड़ान योजना भी प्रतिभावान छात्राओं को स्कूल से तकनीकी शिक्षा पाने तक के सफर को आसान बनाने के उद्देश्य से शुरू की गई है। इसके लिए ऐसी छात्राओं को मार्गदर्शन के साथ ही आर्थिक मदद भी दी जाती है छात्राओं को इंजीनियरिंग के प्रवेश परीक्षा के लिए तैयारी में मदद की जाती है। इस योजना के तहत प्रवेश परीक्षा की तैयारी करने वाली छात्राओं को ऑनलाइन फिजिक्स, कैमिस्ट्री, ताजित से जुड़े विषयों के वीडियो, पाट और टेस्ट कराए जाते हैं। इस योजना के जरिए प्रतिभावान जत्राओं को प्रतिष्ठित इंजीनियरिंग कॉलेजों में प्रवेश दिलाया जा सके।


12. पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ

पढ़े बेटियाँ, बढ़े बेटियाँ द्वारा भी सूबे में गरीबी रेखा से नीचे जीवनयापन करने वाले परिवारों की हाईस्कूल उत्तीर्ण छात्राओं को आगे की पढ़ाई जारी करने के लिए 30,000 रुपये एकमुश्त देने की योजना है। यह लाभ सामान्य वर्ग, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति सभी वर्ग की छात्राओं हेतु उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा संचालित की जा रही है।


इस योजना के माध्यम से गरीब तबके की बालिकाओं को अपनी आगे की पढ़ाई जारी रखने हेतु न केवल प्रोत्साहन मिलेगा, बल्कि सरकार द्वारा प्राप्त इस आर्थिक मदद के माध्यम से उन्हें शिक्षा सम्बन्धी सहूलियतें भी मिल सकेंगी और वे अपनी आगे की पढ़ाई हेतु अपने परिवार पर आश्रित न होकर अपनी पढ़ाई आगे जारी रख सकेंगी।


13. सुकन्या समृद्धि योजना भी बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ अभियान के तहत ही लड़‌कियों की शिक्षा के लिए बचपन से ही पैसा जोड़ने की प्रवृति को बढ़ाने के लिए सन् 2015 में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा शुरू की गई है। इस योजना के तहत बच्चियों के नाम से बैंक में खाता खोला जाता है और उस पर आकर्षक ब्याज दिया जाता है। यह पैसा लड़कियों की शिक्षा और उनके शादी के खर्च में काम आ सकता है इसके तहत तीन वर्षों में 1.26 करोड़ खाते खोले जा चुके हैं।


14. बालिका समृद्धि योजना भी 1997 से शुरू हुई थी यह सरकारी योजना ग्रामीण व शहरी दोनों क्षेत्रों में बालिकाओं के जीवन को बेहतर बनाने पर केन्द्रित है। इसके तहत प्रत्येक बालिका जब अगली कक्षा में जाती है तो उसे मौद्रिक इनाम दिया जाता है।


15. साक्षर भारत मिशन योजना

साक्षर भारत मिशन योजना को 2009 में अंतर्राष्ट्रीय साक्षरता दिवस (8 सितंबर) के अवसर पर शुरू किया गया था। यह योजना मुख्यतः महिलाओं को ध्यान में रखकर व्यस्क शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए शुरू की गई थी। यह स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग, मानव संसाधन विकास मंत्रालय भारत सरकार के तहत एक केन्द्र प्रायोजित योजना है।


16. इसके साथ ही उच्चतर शिक्षा विभाग द्वारा भी महिलाओं की अत्यधिक भागीदारी व नामांकन सुनिश्चित करने के लिए विभिन्न योजनाएँ चलाई जा रही हैं जिससे देश में उच्चतर शिक्षा में लड़कियों के नामांकन में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। लड़कियों के नामांकन का भाग जो स्वतंत्रता की पूर्व सन्ध्या तक कुल नामांकन का 10% था शैक्षिक वर्ष 2014-15 में 45.96% तक पहुँच गया है।


17. राष्ट्रीय उच्चतर शिक्षा अभियान द्वारा कॉलेजों का क्लस्टर विश्वविद्यालयों में रूपान्तरण, नए मॉडल डिग्री कॉलेजों की स्थापना व मौजूदा डिग्री कॉलेजों को मॉडल डिग्री कॉलेजों में प्रोन्नत द्वारा भी बालिका शिक्षा को गति मिली है।


18. उच्चतर शिक्षा पर व्यावसायीकरण के अंतर्गत महिला संस्थाओं को सहायता दी जा रही है वहीं बालिका शौचालयों के निर्माण/नवीकरण और छात्राओं को आवश्यक आत्मरक्षा तकनीकी और मार्शल आर्ट से सुसज्जित किया जा रहा है तथा प्रत्येक जिले में महिलाओं के लिए कम से कम एक मॉडल आवासीय डिग्री कॉलेज प्रांरभ करने का निर्णय लिया गया है।


19. इसके साथ ही मुक्त और दूरस्थ अधिगम (ODL) द्वारा भी उन्हें उच्चतर शिक्षा देकर उनके शिक्षण स्तर को ऊँचा करने का प्रयास किया जा रहा है।


अतः उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है कि स्त्री शिक्षा समाज एवं देश के लिए अत्यन्त आवश्यक है। अत: इसमें आने वाली कठिनाइयों का समाधान करते हुए स्त्री शिक्षा का विकास करना होगा, जिससे स्त्रियों की उन्नति एवं विकास हो सके और देश प्रगति के शिखर पर चढ़कर अपने को विकसित देश के रूप में विश्व के समक्ष प्रस्तुत कर सके। इसलिए स्त्री शिक्षा अत्यन्त आवश्यक है। जैसा कि पहले भी इंगित किया गया है कि "एक पुरुष के शिक्षित होने पर एक व्यक्ति ही शिक्षित होता है, परन्तु एक स्त्री के शिक्षित होने पर एक परिवार शिक्षित हो जाता है।"


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