एकलव्य फाउंडेशन
एकलव्य फाउंडेशन (Eklavya Foundation) की स्थापना सन् 1996 में हुई थी, जिसका उद्देश्य भारत की विद्यालयी शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना था। यह संगठन युवा प्रोफेशनल प्रशिक्षकों द्वारा स्थापित एक गैर-सरकारी व अव्यावसायिक संगठन है जो व्यावसायिक, आधुनिक व नैतिक सन्दर्भों को दृष्टिगत रखते हुए विद्यालयों व शिक्षक प्रशिक्षण केन्द्रों को स्थापना करता है।
इस संगठन का प्रारम्भ कोर एम्बलॉज (Core Embalog) नामक कम्पनी ने 1996 में किया था जो अब एक स्वायत्तशासी संगठन है। यह गुजरात शहर के अहमदाबाद में स्थित है व इसका मुख्य विद्यालय (जिसमें प्राथमिक विद्यालय भी शामिल हैं) संथाल नामक गाँव में है। यह संगठन अहमदाबाद व गाँधीनगर में अन्य विद्यालयों के परस्पर सहयोग से चलता है।
1997 से प्रारम्भ हुए इस विद्यालय में वर्तमान समय में नर्सरी से कक्षा 12 तक 1,000 विद्यार्थी पढ़ रहे हैं, जिसमें 100 पूर्णकालिक शिक्षक व 12 अंशकालिक शिक्षक हैं। यह विद्यालय Council for Indian School Certificate Exam- ICSE द्वारा मान्यता प्राप्त है। इस विद्यालय में प्राथमिक व जूनियर कक्षाओं में प्रवेश 'पहले आओ पहले पाओ' के आधार पर होता है तथा मिडिल स्कूल में परीक्षा के आधार पर प्रवेश होता है।
एकलव्य फाउंडेशन का दर्शन (Philosophy of Eklavya Foundation)
'एकलव्य' शिक्षा को अत्यन्त महत्त्वपूर्ण ढाँचे के रूप में मान्यता देता है यह देश के नागरिकों की आर्थिक सम्पन्नता व खुशहाली का निर्धारण करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विकासशील राष्ट्रों ने भी एक उपयुक्त रणनीति के तहत इन विद्यालयों में शिक्षा हेतु अत्यधिक निवेश किया है, क्योंकि राष्ट्र के समक्ष जो समस्यायें हैं वे चुनौतियाँ हैं। इनका समाधान इस दीर्घावधि निवेश (शिक्षा में निवेश) द्वारा ही सम्भव है। आज राष्ट्र अपने नौनिहालों को जैसी शिक्षा प्रदान करेगा वह भावी पीढ़ी के शिशुओं के चरित्र व कौशलों को परिचायक होगी। इस आयु में दी गयी शिक्षा ही व्यक्ति के मूल चरित्र का निर्माण करती है।
एकलव्य का उद्देश्य बहुआयामी उपागम के माध्यम से विद्यालयी शिक्षा के क्षेत्र में कार्य करते हुए शिक्षा में क्रान्तिकारी परिवर्तन लाना है। इसके लिए एकलव्य योजना द्वारा- उत्त्व गुणवत्तापूर्ण विद्यालयों की स्थापना व संचालन किया जायेगा। इन विद्यालयों में ऐसो शिक्षण परिस्थितियों का निर्माण किया जायेगा जिनसे उच्च गुणवत्तापूर्ण प्रशिक्षण द्वारा प्रतिभाशाली लोगों को शिक्षा के क्षेत्र में आकर्षित किया जा सके। शैक्षिक प्रक्रियाओं में अभिभावकों व समुदाय के अन्य सदस्यों की सहभागिता सुनिश्चित की जायेगी। एकलव्य द्वारा एक महत्त्वपूर्ण शिक्षा प्रदाता के रूप में सार्थक व आधुनिक तकनीकी को अपनाने हेतु प्रेरणा व सहायता दी जायेगी।
एकलव्य की संकल्पना एक-दूसरे के साथ मिलकर चलना' है। यह संगठन उपदेश देने की बजाय अभ्यास पर बल देता है। यह नीति निर्माण के स्तर पर ही उच्च गुणवत्तायुक्त विद्यालयों में प्रभावी शिक्षक प्रशिक्षण कार्यक्रमों और शिक्षण पद्धतियों में प्रदर्शनात्मक सुधार लाने का प्रयास करता है ताकि वांछित परिवर्तन सम्भव हो सकें।
एकलव्य का मानना है कि 'हर बच्चा अद्वितीय होता है' व उसमें जन्मजात प्रतिभा निहित होती है। विद्यालय व शिक्षकों का दायित्व है कि वह बच्चों पर व्यक्तिगत रूप से ध्यान देकर उसे उसकी इन छिपी प्रतिभाओं को खोजने में मदद करे।
संगठन का नाम 'एकलव्य' क्यों ? (Why Eklavya?)
बहुत वर्षों पूर्व इस संगठन का स्वरूप बहुत छोटा था। अच्छे लोग इसमें शामिल ही नहीं होना चाहते थे। लोगों को इस ओर आकर्षित करने के कई प्रयासों के बाद कोर के सदस्यों ने 'मानव संसाधन विकास' की संकल्पना को साकार करते हुए 'स्वयं से ही मानव निर्माण' (To produce people from within) का निश्चय किया तथा इस बात पर बल दिया कि गुण तो व्यक्ति में पहले से ही निहित होते हैं।
आवश्यकता है तो उचित अवसर व सुविधाएँ प्रदान करने की। आज इसी सन्दर्भ में इस कोर को 'एकलव्य' नाम दिया गया। एकलव्य जो गुरु द्रोणाचार्य का शिष्य बनना चाहता था, परन्तु केवल क्षत्रिय राजाओं को धनुर्विद्या सिखाने की बाध्यता के कारण गुरु द्रोणाचार्य ने उसे शिष्य के रूप में 'स्वीकार नहीं किया।
इस पर एकलव्य ने अपने गुरु द्रोणाचार्य की मिट्टी की मूर्ति बनाकर, उन्हों से प्ररेणा प्राप्त कर, स्वयं ही धनुर्विद्या सीखनी शुरू कर दी। परिणाम यह हुआ कि एकलव्य न केवल महान धनुर्धारी अर्जुन से भी महान बना, बल्कि अपने गुरु द्रोणाचार्य का प्रिय शिष्य भी बना तथा गुरुदक्षिणा के रूप में माँगे जाने पर अपने दायें हाथ का अंगूठा भी उन्हें दक्षिणास्वरूप दे दिया।
इसी कथानक को ध्यान में रखते हुए इस कोर को 'एकलव्य संगठन' का नाम दिया गया तथा यह आशा की गयी कि इस शैक्षिक संगठन में शिक्षा प्राप्त करने वाला हर बालक व बालिका एकलव्य की तरह बने व सुदृढ़ देशभक्ति से ओतप्रोत होकर देश के तीव्र विकास में सहभागी बने।
एकलव्य विद्यालय की शिक्षा प्रणाली व पाठ्यक्रम (Academics and Curriculum at Eklavya School)
शिक्षा मनोवैज्ञानिकों के अनुसार बच्चों में सीखने की अद्भुत क्षमता होती है। उन्हें प्रारम्भिक अवस्था में इस प्रतिभा को उजागर करने हेतु उपयुक्त भाषा, उपयुक्त तकनीकी, उपयुक्त कलाओं की शिक्षा देने की जरूरत होती है ताकि एक विशेष क्षेत्र में वे अपनी रुचि प्रदर्शित कर सकें।
इसे ध्यान में रखते हुए एकलव्य के मिडिल स्कूलों में कक्षा 5 से 8 तक की शिक्षा 10 से 13 वर्ष की आयु वाले बच्चों को दी जाती है। इन्हें विषयों की विविधता व खेलकूद व अन्य गतिविधियों के विभिन्न विकल्पों से भी परिचित कराया जाता है। कक्षा का सीमित आकार (20 छात्र प्रति कक्षा में) रखा जाता है ताकि हर बच्चे पर उचित ध्यान दिया जा सके।
छात्रों को विभिन्न विषयों की शिक्षा हेतु भिन्न-भिन्न शिक्षण पद्धतियों से पढ़ाया जाता है जिसमें प्रयोग व अनुभव द्वारा सीखना भी शामिल है। अधिगम प्रक्रिया को व्यापक बनाते हुए प्रशिक्षकों द्वारा ओवरहेड प्रोजेक्टर (OHP), शिक्षण अधिगम सामग्री, पुस्तकों, पत्रिकाओं व पुस्तकालय में रखे विभिन्न प्रोजेक्टों की सहायता से शिक्षा प्रक्रिया को रोचक बनाया जाता है।
अभिभावकों, शिक्षकों व छात्रों के आपसी सम्बन्धों में सुदृढ़ता लाने हेतु अन्तक्रियात्मक मातृकार्य शालाएँ (Interactive Mothers Workshops) भी संचालित की जाती हैं। ये कार्यशालाएँ अभिभावकों को अपने व्यक्तिगत अनुभवों को दूसरे अभिभावकों के साथ आदान-प्रदान करने का मौका देती है ताकि वे किशोर मनोविज्ञान व विद्यालय के पाठ्यक्रम को जान सकें।
किशोर बालक अपनी प्रतिभा व कौशल तथा शक्तियों को खोजने के लिए आतुर रहता है। अतः ये मिडिल स्कूल उसे उसकी इच्छा के अनुसार खेलों को चुनने व अन्य गतिविधियों को चुनने का अवसर देते हैं। अतः इससे उनके आत्मविश्वास में भी वृद्धि होती है। ये मिडिल स्कूल शैक्षिक गतिविधियों, खेलकूद व अन्य गतिविधियों द्वारा उन्हें व्यक्तित्व विकास के उचित अवसर प्रदान करते हैं।
इन विद्यालयों में उपचारात्मक कक्षाओं, मातृ कार्यशालाओं व छात्रों के घर पर भेंट द्वारा शिक्षक परामर्श सेवा भी प्रदान करते हैं। 'उमंग' कार्यक्रम के अन्तर्गत कहानी द्वारा शिक्षण कार्य कराया जाता है। पाठ्यसहगामी क्रियाओं पर बल- इसके लिए इन विद्यालयों में थियेटर बनाये गये है जहाँ विद्यार्थी स्वयं स्क्रिप्ट लिखते हैं व अभिनय करते हैं। सृजनात्मक मेलों का आयोजन तथा व्यर्थ की वस्तुओं से उपयोगी वस्तु बनाना जैसे सृजनात्मक कार्य भी छात्रों से कराये जाते हैं।
रोचक समूह गतिविधियों, जैसे-संस्कृत श्लोकों का उच्चारण, कुकिंग, बागवानी व अन्य क्रियाकलापों हेतु क्लबों का निर्माण भी होता है। अन्य सुविधाएँ-विज्ञान, पार्क व तालंग (शिक्षण साधनों व सहायक सामग्री हेतु संग्रहालय) की स्थापना। प्राथमिक शिक्षा स्तर पर विभिन्न कार्यशालाओं का आयोजन। इस प्रकार इन 'एकलव्य विद्यालयों' में हाई स्कूल स्तर पर विषयों के वैकल्पिक चुनाव की व्यवस्था होती है। कक्षा 9 व 10 तथा 11 व 12 हेतु विषयों की उपलब्धता इस प्रकार है।
1. अंग्रेजी साहित्य व भाषा।
2. हिन्दी साहित्य व भाषा।
3. सामाजिक अध्ययन इतिहास व नागरिकशास्त्र, भूगोल ।
4. पर्यावरण अध्ययन।
5. गणित।
6. विज्ञान भौतिकी, रसायन व जीव विज्ञान।
7. इन विषयों में से एक-आर्थिक प्रबन्धन, कम्प्यूटर एप्लीकेशन व कला।
शिक्षण पद्धति (Teaching Methods)
एकलव्य विद्यालय में शिक्षण प्रक्रिया को प्रभावी व आनन्ददायी बनाते हुए कई शिक्षण विधियों का समन्वय किया जाता है। अधिगम केवल कक्षा शिक्षण तक ही सीमित नहीं रहता, बल्कि इसमें पाठ्य-पुस्तकें, श्रव्य दृश्य सामग्री, वर्कशीट, सी. डी. रोम व इण्टरनेट प्रोजेक्ट के साथ ही शैक्षिक भ्रमण व अनेक प्रत्यक्ष अनुभव भी प्रदान किये जाते हैं। विद्यालय द्वारा विशेषज्ञों (जिसमें अभिभावक भी शामिल होते हैं) को अपने कार्यक्षेत्र पर व्याख्यान हेतु आमन्त्रित किया जाता है।
अधिगम प्रक्रिया केवल 'चॉक व टॉक पद्धति' पर ही केन्द्रित नहीं होती है, बल्कि इसमें गणित के प्रत्ययों को ठीक से समझाने व मूल्यांकन हेतु छात्रों को सुपरवाइजर तक ले जाया जाता है जहाँ उन्हें 50 रु. मूल्य तक के सामान सूची में से खरीदने होते हैं। छात्रों को सूची पर लिखे मूल्य देखकर यह निश्चय करना होता है कि यह उनके बजट में है या नहीं। छात्र यह भी जानने का प्रयास करते हैं कि क्या एक ही जैसे मूल्य की तीन वस्तुएँ खरीदना बेहतर है या अलग-अलग सामग्री को खरीदना उचित है।
मूल्यांकन प्रणाली (Evaluation System)
छात्रों, अभिभावकों, शिक्षकों व विद्यालय को नियमित रूप से प्रतिपुष्टि देने के उद्देश्य से सतत् मूल्यांकन प्रणाली अपनायी जाती है। सभी शिक्षण विधियों पर आधारित प्रोजेक्ट, विभिन्न गतिविधियों, असाइनमेण्ट सरप्राइज या पूर्व घोषित टेस्ट व कक्षा 5 के बाद परीक्षाएँ भी लो जाती हैं। परन्तु कक्षा 4 तक परीक्षाओं द्वारा अनुचित दबाव नहीं डाला जाता है। कक्षा 5 के खत्रों की अर्द्धवार्षिक व वार्षिक परीक्षाएँ भी होती हैं।
एकलव्य विद्यालयों में अपना एक प्रकाशन हाउस भी होता है, जहाँ प्रसिद्ध अंग्रेजी की कहानियों का गुजराती व हिन्दी में अनुवाद कराया जाता है। इसके अतिरिक्त नियमित आधार पर एकलव्य समाचार नाम से बुलेटिन निकाला जाता है जिसमें एकलव्य विद्यालयों व शिक्षण केन्द्रों की गतिविधियों की जानकारी दी जाती है। शिक्षको हेतु भी प्रोत्साहन पुरस्कार रखे जाते हैं तथा श्रेष्ठ छात्रों हेतु वजीफे का भी प्रावधान है।
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