स्तनपान छुड़ाना - बच्चे से मां का दूध छुड़ाने के उपाय | Bache Ko Doodh Chudane Ka Tarika

स्तनपान छुड़ाते समय किन - किन मुख्य बातों का ध्यान रखना चाहिए ? Bache Ko Doodh Chudane Ka Tarika

माता का दूध शिशु के लिए सर्वोत्तम प्राकृतिक आहार है परन्तु आयु बढ़ने के साथ यह दूध शिशु को पोषण देने में असमर्थ हो जाता है । ऐसी स्थिति में ऊपरी दूध द्वारा शिशु की आवश्यकता को पूर्ण किया जाता है । माता के दूध के पश्चात् शिशु के लिए गाय का दूध ही सर्वोत्तम आहार है ।


इसमें पोषक तत्त्वों की मात्रा माता के दूध से अधिक होती है, उसके साथ ही गाय का दूध शिशु की समस्त आवश्यकताओं को पूरा करने में समर्थ होती है। यह बात माता के स्वास्थ्य पर निर्भर करती है कि शिशु का दूध किस आयु में छुड़ाया जाय। किन्तु साधारणतः स्वस्थ स्थिति में शिशु को 9 मास की आयु तक माता का दूध पिलाना उत्तम होगा ।


इसके पश्चात् धीरे - धीरे 10-11 माह तक माता का दूध एकदम छुड़ा दिया जाता है । किन्तु ध्यान रहे कि स्तनपान एकदम न छुड़ाया जाय , इससे शिशु और माता दोनों के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है । दूध छुड़ाते समय शिशु को बीच - बीच में खिचड़ी , दलिया , साबूदाना आदि देना भी लाभदायक होगा । 


साधारणतया स्तनपान छुड़ाने में निम्नलिखित बातों का ध्यान रखना चाहिए-

1. स्तनपान एकदम न छुड़ाया जाय -

एक ही दिन में दूध छुड़ाने से माता और शिशु दोनों पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है । शिशु इससे झुंझलाहट और कष्ट का अनुभव करते हैं और माता के स्तनों में दूध आना भी एकदम बन्द नहीं हो जाता । अतः वह एकत्रित होकर कष्ट देता है । इसके अतिरिक्त बालक को नये पदार्थ खाने का अभ्यास न होने के कारण अचानक ही उसके पाचन संस्थान पर कार्यभार बढ़ जाने के कारण उसमें विकार उत्पन्न हो जाते हैं जिसका बालक के स्वास्थ्य पर हानिकारक प्रभाव पड़ता है ।

स्तनपान छुड़ाना - बच्चे से मां का दूध छुड़ाने के उपाय | Bache Ko Doodh Chudane Ka Tarika

दूध छुड़ाते समय सबसे पहले सप्ताह में दिन में एक बार गाय का दूध दिया जाय । दूसरे सप्ताह में दो बार , तीसरे में तीन बार । इस प्रकार धीरे - धीरे डेढ़ माह तक स्तन - पान एकदम बन्द कर देना चाहिए । दिनों का क्रम सुविधानुसार 10 दिन भी रखा जा सकता है । शिशु और माता दोनों मातृकला एवं शिशुपालन की मानसिक शान्ति व शारीरिक विकास के लिए आवश्यक है कि एक वर्ष के पूर्व ही स्तन - पान छुड़ा दिया जाय ।


2. पोषक तत्त्वों की पूर्ति -

शैशवावस्था में शिशु का शारीरिक व मानसिक विकास बड़ी तीव्र गति से होता है अत : उसके भोजन में पौष्टिक तत्त्वों का समावेश अनिवार्य है । माता के दूध से तो शिशु को सभी तत्त्व आवश्यक मात्रा में उपलब्ध हो जाते हैं किन्तु दूध छुड़ाते समय इस बात का विशेष ख्याल रखना आवश्यक है , क्योंकि गाय के दूध में सभी आवश्यक तत्त्व उचित मात्रा में नहीं मिल सकते ।


विशेष रूप से उसके भोजन में विटामिन सी और डी , कैल्शियम तथा अन्य खनिज लवण और प्रोटीन का होना अनिवार्य है । उसके लिए उसके भोजन में हरी सब्जी व फल , अण्डे की जर्दी , मछली का तेल , दही , मक्खन , डबल रोटी आदि का होना भी अनिवार्य है ।


3. कब्ज से बचाव -

दूध छुड़ाते समय बच्चों को प्रायः कब्ज हो जाता है । किन्तु इसके लिए चिकित्सक की सलाह के बिना किसी भी विरेचक पदार्थ का प्रयोग नहीं करना चाहिए । बल्कि भोजन में ही परिवर्तन करके इसे ठीक करने का प्रयास करें इसके लिए शिशु के आहार में दलिया , हरी सब्जी , फल आदि देने चाहिए ।


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