प्राचीन भारत के तीन प्रमुख शिक्षा केन्द्रों का वर्णन कीजिए ।
प्राचीन भारत में शिक्षा की यह विशेषता थी कि गुरु और शिष्य में परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध था और दोनों एक ही स्थान पर मिलकर रहते थे । आध्यात्मिक या दार्शनिक विकास के लिए शिक्षा के बाह्य उपकरणों पर अधिक ध्यान न देकर विद्यार्थी की आन्तरिक उन्नति पर ध्यान दिया जाता था । शिक्षा की इस व्यवस्था के कारण प्राचीनकाल में सुसंगठित शिक्षा केन्द्र वर्तमान काल की भाँति स्थापित न सके । उन दिनों गुरु ही शिक्षालय थे और गुरुकुलों में ही शिक्षा की व्यवस्था थी । अतः कुछ तीर्थ क्षेत्रों का निर्माण किया गया और उन्हें शिक्षा केन्द्र या शिक्षण संस्था कहा गया । वैदिक या उपनिषद् साहित्य में संघों और परिषदों का उल्लेख मिलता है जहाँ भिन्न - भिन्न स्थानों से विद्वान् आकर एकत्रित होते थे और उच्चकोटि के शास्त्रार्थ करते थे ।
जिन स्थानों में गुरुकुलों की स्थापना हो गयी थी . वहाँ सामूहिक रूप से विद्याध्ययन होता था । गुरुकुल बहुधा गाँव में ही स्थापित हुए , वनों में भी गुरुकुलों की स्थापना हुई । बौद्ध धर्म के सम्पर्क में आने पर हिन्दुओं ने संगठित शिक्षा संस्थाएँ निर्माण करने में उनका अनुकरण किया और विशाल मठों या मन्दिरों में शिक्षा दी जाने लगी । इसके अतिरिक्त कुछ स्थान ऐसे भी बन गये जहाँ विशेष प्रकार की शिक्षा के केन्द्र स्थापित हो गये , जैसे- तक्षशिला में आयुर्वेद , धनुर्वेद तथा राजनियम ( कानून ) का अध्ययन करने के लिए दूर - दूर से राजपुत्र आया करते थे।
उज्जयिनी में ज्योतिष तथा काशी में दर्शन व संगीत इत्यादि के केन्द्र थे । दक्षिणी भारत में भी कुछ शिक्षा केन्द्र स्थापित हो गये , जैसे- बीजापुर जिले में सलोत्गी गाँव में एक विशाल संस्कृत विद्यालय था । इसके अतिरिक्त हिन्दू शिक्षा का केन्द्र एन्नायरम में था जो 11 वीं शताब्दी में स्थापित हुआ । तीसमुक्कुदल , मालकापुरम , धारा तथा पाण्डिचेरी अन्य केन्द्र थे । ' अग्रहार ' ग्राम भी प्राचीन हिन्दू शिक्षा के विशाल केन्द्र थे जिनकी स्थापना दक्षिणी भारत में राजाओं द्वारा विद्वान ब्राह्मणों के उपनिवेशों के रूप में हुई थी ।
प्राचीन भारत के प्रमुख शिक्षा केन्द्र निम्नलिखित हैं -
( i ) तक्षशिला—
तक्षशिला प्राचीन काल के इतिहास में गांधार देश की राजधानी थी। यह स्थान उत्तरी पश्चिमी सीमा पर था । इसलिए ईरानी , यूनानी और कुषाण राजाओं के वहाँ आक्रमण होते रहे हैं। यहाँ का विश्वविद्यालय पाँचवीं शताब्दी के पूर्व तक चलता रहा और जब पाँचवीं शताब्दी में चीनी यात्री फाह्यान वहाँ आया तो उसे यहाँ विश्वविद्यालय का एक चिह्न भी न दिखायी दिया।
( II ) नालन्दा-
यह विश्वविद्यालय बिहार प्रदेश के पाटलिपुत्र से दक्षिण पश्चिम 40 मील दूर पर स्थित था । महात्मा बुद्ध ने यहाँ पर अपनी शिक्षा का प्रसार किया था । इसलिए यह बौद्ध शिक्षा का सबसे केन्द्र बना । 7 वीं शताब्दी तक नालन्दा विश्वविद्यालय प्रसिद्ध रहा । इसमें 10,000 विद्यार्थी निःशुल्क पढ़ते थे । 500 विद्वान् शिक्षक थे । खर्च के लिए 200 गाँव राजा की ओर से मिले थे ।
( iii ) काशी -
आधुनिक वाराणसी ( बनारस ) का प्राचीन नाम है । उत्तरवैदिक काल से ही यह केन्द्र शिक्षा के लिए प्रसिद्ध हो गया था। महात्मा बुद्ध ने सारनाथ में अपना उपदेश दिया था । इसलिए बौद्ध काल में भी काशी एक शिक्षा का मुख्य स्थान बन गया । 7वीं शताब्दी तक इसका निरन्तर विकास होता रहा ।
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