शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त की व्याख्या कीजिए तथा उसकी आलोचना प्रस्तुत कीजिए | लार्ड मैकाले की निस्यन्दन नीति की विवेचना कीजिए।
सिद्धान्त का अर्थ अंग्रेजी के ' Filtration ' शब्द का अर्थ है- ' निस्यन्दन ' अर्थात् ' छानने की क्रिया ' । व्यापारियों की कम्पनी होने के कारण, वह भारतीयों की शिक्षा पर कम-से-कम धन व्यय करना चाहती थी। अतः उसने यह सिद्धान्त प्रतिपादित किया कि शिक्षा का नियोजन केवल उच्च वर्गों के व्यक्तियों के लिए किया जाय, क्योंकि शिक्षा इन वर्गों के व्यक्तियों से छन - छनकर स्वयं ही निम्न वर्गों के व्यक्तियों तक पहुँच जायगी ।
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लार्ड मैकाले की निस्यन्दन नीति |
इस सिद्धान्त के अर्थ का स्पष्टीकरण करते हुए आर्थर मैथ्यू ने लिखा है— “ शिक्षा ऊपर से प्रवेश करके , जनसाधारण तक पहुँचनी थी । लाभप्रद ज्ञान, भारत के सर्वोच्च वर्गों से बूँद - बूँद करके नीचे टपकना था। "
शिक्षा में छनाई के सिद्धान्त ( Principles of Filtering in Education )
अंग्रेज यह चाहते थे कि उनको सदैव ऐसे भारतीय मिलते रहें जो उनके व्यापार और प्रशासन में उनकी मदद करते रहें, अतः उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा का प्रचलन किया । एक बात उनके साथ यह भी स्मरणीय है कि वह अंग्रेजी शिक्षा का प्रचार जनसाधारण में तेजी से नहीं करना चाहते थे । कारण स्पष्ट था कि वह भारतीय जन - समाज को अपने अधिकार और कर्त्तव्य के प्रति जागृति नहीं उत्पन्न होने देना चाह रहे थे ।
मिशनरियों का पहले से ही कहना था कि यदि उच्च वर्ग के अच्छी जाति के कुछ हिन्दू ईसाई धर्म में दीक्षित कर लिये जायँ तो निम्न वर्ग उनका अनुसरण सहज ही करने लगेंगे । ईस्ट इण्डिया कम्पनी के संचालकों ने 1830 ई 0 में मद्रास सरकार को यह आदेश दिया था कि वह उच्च वर्ग को ही शिक्षा देने के पक्ष में है । अंग्रेज यह चाहते थे कि यदि उच्च वर्ग उनका भक्त बना रहेगा तो उनका विरोधी कोई नहीं खड़ा हो सकेगा ।
लॉर्ड मैकाले ने भी 1835 ई ० के विवरण-पत्र में कहा था कि " इस समय हमें ऐसे वर्ग की आवश्यकता है जो हमारे तथा भारतीय जनता के बीच सम्बन्ध स्थापित करे । यह ।। " साथ ही 31 जुलाई , वर्ग रंग - रूप में तो भारतीय हो परन्तु रुचि, विचारों तथा बुद्धि में अंग्रेज 1937 ई ० को एक विज्ञप्ति में उसने स्वीकार किया था कि " वर्तमान समय में हमारा उद्देश्य निम्न वर्ग के लोगों को प्रत्यक्ष शिक्षा प्रदान करना नहीं है ।
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" मैकाले के साथ सहमति व्यक्त करते हुए बंगाल की ' लोक शिक्षा समिति ' ने 1839 ई ० में वही मत व्यक्त किया कि " हमारे प्रयास अभी उच्च वर्ग की शिक्षा के लिए ही होने चाहिए । " ऑकलैण्ड ने मैकाले और बंगाल की शिक्षा समिति के सुझाव को सरकारी नीति में बदलते हुए यह घोषणा की कि " सरकार को शिक्षा उच्च वर्ग को ही प्रदान करना चाहिए जिससे सभ्यता छन - छनकर जनता में पहुँचेगी । " अंग्रेजों की यह नीति अनेक वर्षों तक चलती रही जिसका प्रभाव भारतीय शिक्षा पर काफी दिनों तक बना रहा ।
सिद्धान्त
इस सिद्धान्त के मूल में 3 महत्त्वपूर्ण बातें थीं जो एक - दूसरे से अलग होते हुए महत्त्वपूर्ण स्थान रखती हैं-
1. अंग्रेज एक ऐसे वर्ग को शिक्षित करना चाहते थे जो उनके शासन कार्य के लिए उपयुक् हो क्योंकि कम्पनी को छोटी - छोटी जगहों के लिए विलायत से कर्मचारी लाने पड़ते थे अतः उन्होंने यह उचित समझा कि ऐसे कर्मचारियों का निर्माण क्यों न यहीं किया जाय । अतः उच्च वर्ग को शिक्षा प्रदान कर शासन के महत्त्वपूर्ण पदों पर नियुक्त करके शासन
2. उच्च वर्ग को शिक्षा प्रदान की जाये जिसका को सुदृढ़ करना चाहते थे । असर निम्न वर्ग पर उनके आचार - विचार , और सभ्यता पर पड़ेगा । साथ ही निम्न वर्ग की शिक्षा का स्वरूप स्वतः निर्धारित हो जायगा ।
3. कुछ व्यक्तियों का जो राजभक्त हों चाहे वह उच्च वर्ग के हो अथवा निम्न वर्ग के हो शिक्षित करके उनके ऊपर जनसाधारण की शिक्षा का भार अर्पित कर देना चाहते थे । कारण यह था कि शिक्षा के क्षेत्र में निम्न वर्ग के लिए छूट इसलिए थी क्योंकि यह लोग ईसाई मिशनरियों के चक्कर में जल्दी आ जाते थे ।
समालोचनात्मक मूल्यांकन
छनाई के सिद्धान्त के कार्यान्वयन से सबसे बड़ा लाभ शिक्षा के सरकारी नीति निर्धारण होने से हुआ । इसके कारण भारतीय शिक्षा का स्वरूप निर्धारित हो गया , ऐसा अनेक विद्वानों का मत है । परन्तु वास्तव में हम इससे यह अवश्य मानते हैं कि शिक्षा सम्बन्धी सरकारी नीति का स्वरूप अवश्य निर्धारित होगा परन्तु हम इस बात से सहमत नहीं कि शिक्षा के क्षेत्र में लाभ हुआ ।
कारण स्पष्ट है कि उच्च शिक्षा के क्षेत्र में तीव्रता आयी और कुछ लोग शिक्षित हो गये । सरकार को काम करने के लिए, राज्यपदों एवं कम्पनी के कार्यों के लिए आदमी भी मिल गये परन्तु इसके फलस्वरूप वह वर्ग जो सरकारी पद पर था या कम्पनी का गुलाम पढ़ - लिखकर बना , भारतीय जनसमूह को घृणा की दृष्टि से देखने लगा । उन्हें गँवार , मूर्ख , पोंगा और बुद्ध समझने लगा । यह मनोवृत्ति शिक्षा में इतना घर का गयी कि आज तक यह अपने कुछ - न - कुछ रूपों और अंशों में विद्यमान है ।
यह अवश्य हुआ कि भारत में अंग्रेजों को सुदृढ़ करने के लिए उन्हें एक वर्ग की सहायता से मिलने लगी परन्तु यह उद्देश्य कि उच्च वर्ग के अनुकरण से रहन-सहन, आचार-विचार तथा सभ्यता के निम्न वर्ग में फैलेगी और समस्त निम्न वर्ग भी अंग्रेजों की चाल से उन्हीं का हो जायगा, सम्भव नहीं हो सका क्योंकि जहाँ घृणा का बीज आरोपित हो गया वहाँ अनुकरण और प्रभाव का प्रश्न ही समाप्त हो गया। अतः इस क्षेत्र में चतुर बनने वाले फिरंगियों के स्वप्न अधूरे रह गये अथवा निराधार कल्पना जगत में विलीन हो गये ।
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