आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली - Anupatik Pratinidhitv Ki Pradali in Hindi

आनुपातिक प्रतिनिधित्व की प्रणाली | System of Proportional Representation in Hindi

अल्पसंख्यक वर्ग को अपनी संख्या के अनुपात से प्रतिनिधित्व प्रदान करने की दृष्टि से आनुपातिक प्रतिनिधित्व प्रणाली को सर्वाधिक उपयोगी पाया गया है और इसलिए आज के अधिकाधिक देशों ने इसी प्रणाली को अपनाया है। इस प्रणाली का सबसे प्रथम प्रयोग सन् 1793 में फ्रेंच राष्ट्रीय कन्वेंशन में किया गया था, तत्पश्चात् इसका तेजी से प्रचार होने लगा ।


यह पद्धति एक ऐसी व्यवस्था का नाम है जिसका उद्देश्य राष्ट्रीय या स्थानीय संस्थाओं के निर्वाचन में प्रत्येक समुदाय या दल के लोगों के लिए उनके मतदाताओं की संख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व प्रदान करना है । इसका प्रयोग ऐसे निर्वाचन क्षेत्र में ही सम्भव है जिससे अनेक प्रतिनिधियों का चुनाव होता है। एकल सदस्यीय निर्वाचन क्षेत्र में इसका प्रयोग नहीं किया जा सकता ।


इस पद्धति की दूसरी विशेष बात यह है कि चुनाव में विजय प्राप्त करने के लिए बहुमत प्राप्त करने की आवश्यकता नहीं है , केवल एक विशिष्ट अथवा नियत न्यूनतम संख्या में मत प्राप्त करना आवश्यक है । सरल भाषा में यह विशिष्ट संख्या किसी निर्वाचन में दिए गए कुल मतों को निर्वाचित किए जाने वाले स्थानों की संख्या विभाजित करने से प्राप्त मतों की संख्या होती है । " आनुपातिक प्रतिनिधि - प्रणाली की विशद् व्याख्या सर्वप्रथम टॉमस हेयर ने अपनी पुस्तक ' इलेक्शन ऑफ रिप्रजेंटेशन ' में सन् 1859 में की थी ।


इस प्रणाली को Andrai System भी कहते हैं , क्योंकि डेनिस मंत्री Shri Andrai ने सन् 1855 में अर्थात् टॉमस हेयर से 4 वर्ष पूर्व इसी प्रकार की एक योजना का विकास किया था। इस आनुपातिक प्रणाली के दो स्वरूप होते हैं -

( 1 ) एकल संक्रमणीय मत प्रणाली,

( 2 ) सूची प्रणाली।

इन दोनों स्वरूपों की व्याख्या इस प्रकार की जा सकती है 


1. एकल संक्रमणीय मत प्रणाली -

चूंकि इस प्रथा का सर्वप्रथम प्रवर्तक टॉमस हेयर था, अतः इस प्रथा को ' हेयर प्रथा ' भी कहते हैं। इस व्यवस्था में देश बहुत से निर्वाचन क्षेत्रों में विभक्त कर दिया जाता है और प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के कम से कम 3 सदस्य चुन लिए जाते हैं, किन्तु मतदाताओं को केवल एक मत देने का अधिकार होता है ।


मतदाता उम्मीदवारों के नामों के आगे 1 , 2 , 3 , 4 , 5 आदि लिखकर अपनी प्राथमिकता ( Preference ) प्रगट करता है । यदि किसी उम्मीदवार को कोटे में निश्चित मत मिल पाते हैं तो वह विजयी घोषित कर दिया जाता है । यह कोटी अथवा चुनाव अंक निकालने के लिए आमतौर पर दो तरीके प्रचलित हैं -


इसमें संदेह नहीं है कि प्रथम तरीका अधिक सरल है किन्तु दूसरा तरीका ही अधिक प्रचलित है। इसके अनुसार मान लीजिए कि कुल मत 10,000 पड़े और चार स्थानों के लिए सदस्य चुने जाते हैं तो .... मत कोटा हुआ । जिस उम्मीदवार को 2,001 मत मिल जाएंगे वह विजयी घोषित कर दिया जाएगा ।

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