परिवार के प्रमुख उत्तरदायित्व कौन-कौन से हैं ? ( What are the main responsibilities of the family? )
परिवार समाज की आधारभूत एवं अपरिहार्य समाज निर्माण का सम्पूर्ण उत्तरदायित्व प्रायः परिवार का ही है । सफल एवं सुविकसित परिवार अपने उत्तरदायित्वों एवं कार्यों को निष्ठापूर्वक करके अपने सदस्यों तथा अन्ततः पूरे समाज का कल्याण करता है । अब परिवार के उत्तरदायित्वों के विषय में विस्तृत रूप से चर्चा करेंगे ।
1. सन्तोषजनक जीवन दर्शन
प्रत्येक व्यक्ति अथवा व्यक्तियों के समूह की जीवन के प्रति कुछ मान्यताएँ , विश्वास एवं दृष्टिकोण होते हैं और उन्हीं मान्यताओं , विश्वासों एवं धारणाओं के अनुकूल वह अपने जीवन व्यवहार को ढालता है । ये ही जीवन सम्बन्धी धारणा एवं विचार व्यक्ति अथवा समूह - विशेष का जीवन - दर्शन कहलाता है ।
प्रत्येक व्यक्ति तथा व्यक्ति समूह का अपना जीवन दर्शन होता है, चाहे वह इसके सम्बन्ध में चेतनाशील हो या नहीं । वास्तविकता तो यह है कि समाज में जितने व्यक्ति रहते हैं, उतने ही प्रकार के जीवन - दर्शन विद्यमान हैं । प्रत्येक स्त्री- की जीवन सम्बन्धी मान्यताएँ अपनी विशेषता रखती हैं ।
इनमें से कुछ अपने अनुभवों के आधार पर जीवन - दर्शन का निर्माण करते हैं , कुछ ऐसे होते हैं जो प्रचलित परम्पराओं एवं रीति रिवाजों द्वारा निर्धारित जीवन - दर्शन को अपना लेते हैं तथा अन्य व्यक्ति ऐसे भी होते हैं जो परिस्थितियों से प्रभावित दृष्टिकोण को अपना लेते हैं ।
प्रत्येक परिवार का अपना जीवन दर्शन होता है, जिनका निर्धारण प्रधानतः पति - पत्नी का अपना जन्मजात स्वभाव, उनके जीवन के अनुभव , शैक्षिक पृष्ठभूमि , उनकी आदतें तथा शारीरिक एवं सामाजिक आनुवंशिकता करती है । प्रायः जीवन दर्शन का विकास क्रमागत रूप से अनजाने में ही होता है ।
2. परिवार के सदस्यों की वृद्धि एवं विकास-
जीवन दर्शन एवं जीवन मूल्यों के निर्धारण के बाद परिवार का दूसरा महत्त्वपूर्ण दायित्व परिवार के समस्त सदस्यों के व्यक्तित्व का विकास करने के लिए प्रयत्न करना है । परिवार स्वभावतः अपरिपक्व सदस्यों को सामाजिक परिपक्वता हेतु तैयार करता है ।
सफल परिवार निर्माण के लिए स्नेह तथा घर में मानवीय सम्बन्धों की समस्या का निराकरण करने के लिए विवेकपूर्ण एवं स्वस्थ निर्णय नितान्त आवश्यक है । इसके अतिरिक्त आर्थिक सुरक्षा तथा गृहस्वामी एवं सदस्यों के पारिवारिक जीवन के स्तर में परिवर्तन होने के परिणामस्वरूप उत्पन्न समस्याओं को सुलझाने के लिए सीखने की इच्छा भी अपरिहार्य है ।
अच्छे पारिवारिक जीवन के निर्माण का अभिप्राय है -- अच्छे समाज की रचना करना, क्योंकि परिवार समाज का ही संक्षिप्त रूप है । परिवार का संगठन साधारणतः विभिन्न आयु , लिंग , भिन्न रुचियों तथा जीवन के प्रति विभिन्न अभिवृत्तियों वाले सदस्यों से होता है ।
इन भिन्नताओं के कारण परिवार के सदस्यों में सतत् समायोजन बनाये रखने की बड़ी आवश्यकता होती है । स्वस्थ समायोजन स्थापित करने का गुण नागरिकता की अच्छी शिक्षा है । जिस प्रकार के आदर्शों , आदतों एवं अभिवृत्तियों की समाज के अच्छे नागरिक को आवश्यकता होती है, उसके निर्माण का प्रारम्भः घर में ही होता है ।
यदि परिवार अपने सदस्यों के सर्वांगीण विकास के लिए सुविधाएँ प्रदान करेगा तो ही समाज तथा व्यक्ति - विशेष के प्रति वह अपना उत्तरदायित्व सफलतापूर्वक निभा सकेगा । परिवार का यह उत्तरदायित्व किसी सदस्य - विशेष अथवा सदस्यों के किसी आयु - विशेष या व्यक्तित्व के किसी पक्ष - विशेष तक ही सीमित नहीं होता । सन्तानोत्पत्ति से लेकर मृत्यु पर्यन्त , शिशु से लेकर वृद्धों तक तथा शारीरिक, मानसि , सामाजिक, आध्यात्मिक एवं नैतिक दृष्टि से सभी को वृद्धि एवं विकास के लिए परिवार को प्रयत्न करना है ।
पारिवारिक जीवन - चक्र पर दृष्टिपात करने पर ज्ञात होता है कि इसके प्रारम्भ से अन्त तक कहीं भी विशृंखलता नहीं है । इतना अवश्य है कि इसमें कुछ स्पष्ट स्तर ( Stages ) अवश्य है । जीवन के ये स्तर एक - दूसरे से इतने सह - सम्बन्धित है कि एक को दूसरे से पूर्णतः पुषक् नहीं किया जा सकता ; फिर भी प्रत्येक स्तर की अपनी विशेष परिस्थितियाँ एवं समस्याएँ होती हैं । इनमें शिशु एवं बाल्यावस्था सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण अवस्था होती है, क्योंकि इनकी इस अवस्था की वृद्धि व विकास उनके सम्पूर्ण व्यक्तित्व एवं जीवन - क्रम को निर्धारित करता है ।
विकास की इन अवस्थाओं में परिवार की आवश्यकताओं एवं वयस्कों की व्यक्तिगत इच्छाओं के मध्य बहुधा प्रतिद्वन्द्विता रहती है । परिणामतः कुण्ठाएँ एवं द्वन्द्र उत्पन्न हो जाने की सम्भावना रहती है । यदि वयस्कों में ऐसे स्वस्थ जीवन दर्शन का विकास हो गया है जो परिवार को सम्पूर्ण इकाई मानकर निर्देशन प्रदान करे तो समायोजन अपेक्षाकृत अधिक सरलता से स्थापित किया जा सकता है तथा द्वन्द्वों का निराकरण अधिक सरलता से हो सकता है ।
3. गृह - व्यवस्था सम्बन्धी उत्तरदायित्व -
घर के वातावरण में मानवीय साहचर्य का स्वाभाविक परिणाम गृह - प्रबन्ध है । जैसे ही गृहस्थी स्थापित होती है , व्यक्ति समान उद्देश्य के लिए मिलकर कार्य करना प्रारम्भ कर देते हैं , उत्तरदायित्व के विवरण हेतु तथा घर के मानवीय एवं वस्तुगत साधनों के उपयोग को संगठित एवं नियन्त्रित करने के लिए कार्य के आयोजन के विकास की आवश्यकता उत्पन्न होती है । निरन्तर हल की जाने वाली समस्याओं की बहुलता तथा परिवार के किए जाने वाले निर्णयों के कारण गृह - प्रबन्ध पारिवारिक जीवन का एक महत्त्वपूर्ण उत्तरदायित्व बन गया है ।
गृह - प्रबन्ध के दो प्रत्यय –
कुछ लोग गृह - प्रबन्ध का सम्बन्ध प्रमुख रूप से कुशलताओं के विकास , मानवीकृत कार्य , कार्यों को सम्पादित करने में प्रयुक्त किए गए उपकरण एवं साज - सज्जा के चयन तथा यान्त्रिक कुशलता से स्थापित करते हैं । इस प्रत्यय के अन्तर्गत कुशलता एवं मानवीकरण का मापन परिवार के साधनों , जैसे — समय , शक्ति तथा धन की इकाइयों द्वारा किया जाता है ।
यह दृष्टिकोण गृह प्रबन्ध में आदर्श स्तर और कुशलता को साध्य मानकर इस पर बल देता है । गृह - प्रबन्ध के दूसरे प्रत्यय को मानने वाले गृह - प्रबन्ध को जीवन का एक ढंग मानते हैं । उनकी दृष्टि में घर प्रेम और स्नेह के वातावरण के साथ - साथ रहने वाले मनुष्यों द्वारा निर्मित है । इस अर्थ के अनुसार गृह - प्रबन्ध परिवार के लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु साधनों को प्रयुक्त करने का एक माध्यम मात्र है ।
कुशलता का मापन उच्च स्तर तथा व्यक्तिगत विकास एवं पारिवारिक जीवन को साधनों का प्रयोग किस प्रकार प्रभावित करता है , के सन्दर्भ में किया जाता है । मानवीय मूल्यों के सन्दर्भ में कुशलता की व्याख्या विशिष्ट परिस्थितियों की आवश्यकताओं और व्यवस्था के स्तर के मध्य समायोजन द्वारा की जाती है । एक ही घर में विभिन्न समय पर विभिन्न स्तर हो सकते हैं ।
इसका स्पष्टीकरण एक गृहिणी द्वारा दिया गया है जिसका कथन है " तीन प्रकार की सफाई हो सकती है : एक तो वह जिसमें आप घर की प्रत्येक वस्तु तथा प्रत्येक कोने की सफाई करते हैं , दूसरी वह जिसमें आप सर्वाधिक दिखाई देने वाली वस्तुओं व स्थानों की सफाई करते हैं , तथा तीसरी वह जिसमें आप बहुत मामूली सफाई करते हैं । " अपनी परिस्थिति और आवश्यकता के अनुकूल एक गृहिणी यह निर्धारित कर सकती है कि उसे कब किस प्रकार की सफाई करनी है । पारिवारिक जीवन के गृह - प्रबन्ध सम्बन्धी उत्तरदायित्व प्रमुखतः प्रत्येक गृहिणी द्वारा किए जाने वाले निम्नलिखित कार्यों से सम्बन्धित हैं—
( 1 ) स्वस्थ एवं सन्तोषप्रद तरीकों से व्यक्तिगत सम्बन्धों को निर्देशित करना ।
( 2 ) अपने समय व शक्ति के उपयोग को इस प्रकार आयोजित करना कि काम सम्पन्न हो जाय तथा जीवन की आवश्यकताएँ भी परिपूर्ण हो जाएँ ।
( 3 ) परिवार के आर्थिक पक्ष का विभिन्न प्रकार से आयोजन करना व निर्देशित करना ।
( 4 ) परिवार की आवश्यकताओं के अनुकूल घर का आयोजन व सुविधा प्रदान करने की व्यवस्था करना।
( 5 ) गृह की साज - सज्जा को क्रम से करने की योजना बनाना व निर्देशित करना।
( 6 ) परिवार के सदस्यों को पोषक भोजन व उपयुक्त वस्त्रों का आयोजन व व्यवस्था करना करना ।
( 7 ) घर की देखभाल व व्यवस्था को आयोजित व नियन्त्रित करना
( 8 ) परिवार के सदस्यों के स्वास्थ्य को बनाए रखने हेतु आयोजन करना व सहायता करना ।
( 9 ) परिवार में व्यक्तियों के एवं सामाजिक विकास की योजना बनाना व निर्देशित करना ।
शैक्षिक इन प्रबन्ध - सम्बन्धी उत्तरदायित्वों का विश्लेषण करने पर अनेक अन्तर्सम्बन्धों का स्पष्टीकरण होता है । कुछ उत्तरदायित्वों दूसरे उत्तरदायित्वों के प्रत्यक्ष परिणाम हैं , ऐसे होने के कारण उनके द्वारा सम्बन्ध हैं, उदाहरण के लिए पारिवारिक वित्तीय पक्ष तथा उनका व्यवस्थापन पारिवारिक जीवन के प्रत्येक पक्ष का स्पर्श करता है, क्योंकि ये परिवार के सभी सदस्यों की इच्छा को प्रभावित करते हैं तथा वे सम्पूर्ण जीवन में क्या प्राप्त कर सकते हैं, तथा वे सम्पूर्ण जीवन में क्या प्राप्त कर सकते हैं व क्या नहीं प्राप्त कर सकते हैं, इसको अधिकांश नियन्त्रित करते हैं ।
वस्त्रों का आयोजन करते समय सर्वप्रथम परिवार के वित्तीय साधनों पर विचार कर लेना चाहिए तथा उपलब्ध धन क सहायता से सर्वोत्तम विधि से इच्छाओं और आवश्यकताओं की पूर्ति करनी चाहिए । अन्य व्यवस्था सम्बन्धी उत्तरदायित्वों से घनिष्ठ रूप से सम्बन्धित समय व कार्य का व्यवस्थापन भी है । दैनिक कार्य को बिना किसी प्रकार से अवांछनीय कष्ट एवं तनाव के सम्पन्न करने के लिए, गृहिणी को प्रत्येक प्रबन्ध सम्बन्धी उत्तरदायित्व के विषय में तथा इसे पूर्ण करने के लिए आवश्यक समय व प्रयत्न के सन्दर्भ में इससे सम्बन्धित कार्य के विषय में निरन्तर सोचते रहना चाहिए ।
4. पारिवारिक जीवन के शारीरिक कार्य -
सम्बन्धी उत्तरदायित्व - परिवार के सदस्यों के सर्वांगीण विकास की दृष्टि से घर में शारीरिक क्रियाओं की व्यवस्था एवं निर्देशन की नितान आवश्यकता है, क्योंकि जीवन की आवश्यकताओं स्नेह, सम्मान, सुरक्षा तथा अनुभव की पूर्ति तब तक नहीं हो सकती जब तक कि प्रबन्ध और कार्य, दोनों साथ ही साथ न किए जाएँ । परिवार निर्माण की समस्याएँ प्रधानतः मानवीय आवश्यकताओं की पूर्ति की विधियों तथा घर एवं समाव = दोनों की ही एक सन्तोषजनक मानवीय सम्बन्धों के विकास हेतु उपयुक्त दशाओं से सम्बन्धित है ।
शारीरिक क्रिया तो प्रत्येक प्राणी के जीवन का अङ्ग होती है । शारीरिक कार्य गृह - निर्माण का तांत्रिक पक्ष है । इसके अन्तर्गत उपकरणों व साध का उपयोग तथा वे प्रतिक्रियाएँ एवं प्रयत्न जिनके माध्यम से परिवार अपने दैनिक जीवन की क्रियाओं को सम्पादित करता है , आती हैं ।
शारीरिक क्रियाएँ - गृह - निर्माण सम्बन्धी शारीरिक क्रियाओं को निम्नानुसार वर्गीकृत किया जा सकता है-
( 1 ) बालकों की देखभाल तथा प्रशिक्षण सम्बन्धी शारीरिक क्रियाएँ ।
( 2 ) भोज्य पदार्थों को क्रय करना, तैयार करना, परोसना, सुरक्षा करना, संग्रह करना, रेफ्रीजरेटर में रखना एवं संरक्षित रखना आदि।
( 3 ) घर की स्वच्छता, सुरक्षा एवं व्यवस्था रखना।
( 4 ) वस्त्रों को क्रय करना, धुलाई , सफाई, मरम्मत तथा संग्रह करना
( 5 ) गृह की साज-सज्जा सम्बन्धी वस्तुओं को क्रय करना , बनाना , मरम्मत करना एवं स्वच्छ करना ।
( 6 ) घर के आस-पास के वातावरण, आँगन, बगीचा, यदि कारे हो तो उसकी तथा उसके गैरेज की सफाई एवं देखभाल रखना ।
( 7 ) अर्थ - व्यवस्था से सम्बन्धित कार्य; जैसे — बैंक का कार्य करना, हिसाब-किताब रखना तथा बिलों का भुगतान करना।
कुछ गृह-प्रबन्धों को गृह निर्माण सम्बन्धी समस्त कार्य स्वयं ही करने पड़ते हैं । केवल कभी कभी इन कार्यों के सम्बन्ध में परिवार के अन्य सदस्यों से सहायता मिलती हैं , परन्तु कुछ परिवारों के सभी सदस्य इन कार्यों में योगदान देते हैं । कुछ लोगों के पास नौकर की व्यवस्था है तो वे केवल कुछ कार्यों को स्वयं करने हेतु चुन लेते हैं ।
जो परिवार आर्थिक दृष्टि से ऊँचे स्तर के होते हैं, उनमें गृह प्रबन्धक केवल पथ - प्रदर्शक एवं निर्देशन का कार्य ही करते हैं । वे स्वयं शारीरिक क्रियाएँ नहीं करते। परन्तु यह सुनिश्चित है कि प्रत्येक कार्य को करने में मानवीय शक्ति व्यय होती है । आयोजन में मानसिक क्रिया करनी पड़ती है।
आयोजन के क्रियान्वयन में मानसिक व शारीरिक क्रिया तथा ज्ञान , अनुभव एवं तकनीकी कुशलता को इस प्रकार किया जाता है कि एक को दूसरे को पृथक नहीं किया जा सकता । प्रत्येक गृह - प्रबन्धक अपनी विचार - शक्ति का परीक्षण अपने कार्य तथा उसके परिणामों के माध्यम से करता है । इस प्रकार प्रबन्ध - सम्बन्धी तथा हस्तकला - सम्बन्धी कुशलताओं का विकास करते हैं तथा नवीन अनुभव एवं ज्ञान प्राप्त करते हैं ।
गृह निर्माण की प्रमुख समस्याएँ हैं, बिना अत्यधिक समय एवं शक्ति का व्यय किये प्रतिदिन के कार्य को करने , थकान जिसमें होना अनिवार्य है । " प्रत्येक कार्य में शारीरिक व मानसिक शक्ति के साथ - साथ विभिन्न प्रकार के उपकरणों व पदार्थों की आवश्यकता है , इसलिए घर के कार्यों को करने तथा कार्य - सम्बन्धी समस्याओं के समाधान सम्बन्धी विधियाँ गृह - प्रबन्ध एवं गृह निर्माण के महत्त्वपूर्ण अंग है ।
किसी भी कार्यविधि का चयन करके उसके अनुसार आयोजन करने तथा कार्य को सफलतापूर्वक करने में परिवार के सदस्यों की रुचि , सहयोग एवं सहायता की आवश्यकता होती है । घर में गृह - निर्माण सम्बन्धी क्रियाओं के सम्पन्न करने में गृह - प्रबन्धक किस प्रकार समय तथा शक्ति को प्रयुक्त करेगा , यह उसकी समायोजनशीलता तथा पारिवारिक जीवन में विभिन्न तत्त्वों को नियन्त्रण करने की उस योग्यता पर निर्भर करता है , जो उसकी समय व शक्ति व्यय करने सम्बन्धी प्रणाली को प्रभावित करता है ।
5. स्थानीय एवं राष्ट्रीय कार्यों में भाग लेने की क्षमता
क्षमता उत्पन्न करने का उत्तरदायित्व परिवार समाज का महत्त्वपूर्ण अंग है । इसके समाज के प्रति कुछ उत्तरदायित्व होते हैं । आज के वैज्ञानिक युग ने तो विश्व की दूरी कम कर दी है , पड़ोस के वातावरण से परे के सामाजिक वातावरण में थोड़ा - सा परिवर्तन भी इसके वातावरण एवं व्यवस्था को प्रभावित करता है तथा बदले में घर का वातावरण पड़ोस , नगर , राज्य , राष्ट्र तथा अन्य देशों पर भी अपना निश्चित प्रभाव डालता है ।
यह परिवार का विशेषकर माता - पिता का प्रमुख उत्तरदायित्व है कि वें ऐसे व्यक्तित्व का निर्माण करें , जो समाज में सहकारी प्रयत्नों का एक रचनात्मक अंग बन सके । परिवार जिस समाज में रहता है , उस समाज की सेवा करने का कार्य तभी निभा सकता है , जबकि परिवार के सदस्यों के मस्तिष्क में समाज के कार्यों को समझने की अभिवृत्ति तथा उसमें रुचि विकसित करने का कार्य सम्पन्न किया जाय ।
इसके अतिरिक्त ऐसे नागरिकों को तैयार कर समाज में भेजे जो सामाजिक न्याय एवं सर्वोत्तम सामाजिक मूल्यों के लिए प्रयत्न करेगा । सामाजिक उत्तरदायित्वों एवं सामाजिक न्याय की शिक्षा सर्वप्रथम घर में ही प्राप्त होती है । इस शिक्षा का प्रारम्भ व्यक्तिगत सम्बन्धों की प्रकृति से होता है जो माता - पिता के मध्य , माता - पिता एवं बच्चों के मध्य सम्बन्धों तथा परिवार के सदस्यों , विशेषकर माता व पिता द्वारा अभिवृत्तियों से स्पष्ट हो जाता है ।
माता के कार्य के प्रति पिता की अभिवृत्ति , उसका सामाजिक समस्याओं के प्रति कार्य तथा महत्त्व के विषय में अपनी अभिवृत्ति , बालकों के प्रति माता - पिता दोनों का सम्मिलित बुद्धिमत्तापूर्ण तथा मूर्खतापूर्ण अथवा न्यायपूर्ण और अन्यायपूर्ण समाधान , नागरिक के रूप में अपने उत्तरदायित्व तथा समूह और समाज के कार्यों में उनका भाग लेना बालकों की अभिवृत्ति के स्वरूप को निर्धारित करने में सहायता करते हैं ।
स्वयं एवं अन्य व्यक्तियों तथा सामाजिक समूहों के प्रति घर में स्थापित अभिवृत्तियों से उत्पन्न होते हैं , ये सभी तथा परिवार के कार्य करने के ढंग बच्चों के दूसरे व्यक्तियों के साथ रहने के कार्य करने की विधि को निर्धारित करते हैं ।
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