वुड का आदेश-पत्र 1854 | वुड का घोषणा-पत्र के सुझाव व सिफारिशें

वुड का आदेश-पत्र 1854 | वुड का घोषणा-पत्र के सुझाव व सिफारिशें

भारतीय शिक्षा के इतिहास में 1833 ई0  से 1853 ई की अवधि को शिक्षा के अंग्रेजीकरण की अवधि कहा जाता है । बेंटिंक की 1835 ई ० की ' विज्ञप्ति ' ने अंग्रेजी के माध्यम से पाश्चात्य शिक्षा के प्रसार को सरकार की शिक्षा नीति बताया । इस नीति को व्यावहारिक रूप प्रदान करने के लिए ' लोक - शिक्षा समिति ने अंग्रेजी की शिक्षा देने के लिए , संस्थाओं का नव निर्माण किया ।

वुड का आदेश-पत्र 1854
वुड का आदेश-पत्र 1854

1836 ई ० के ' आज्ञा - पत्र ' ने भारत के सिंहद्वार सब देशों के मिशनरियों के लिए खोल दिये । अतः अंग्रेज मिशनरियों के अलावा अन्य देशों के मिशनरियों ने भी भारत में अंग्रेजी की शिक्षा के लिए मिशन स्कूलों और कालेजों की स्थापना की । 


वुड का घोषणा-पत्र के सुझाव व सिफारिशें


1. शिक्षा का उत्तरदायित्व-

'आदेश - पत्र ' में यह स्वीकार किया गया कि भारत में शिक्षा का प्रसार करने का उत्तरदायित्व कम्पनी पर है । इस उत्तरदायित्व को पुनीत कर्त्तव्य बताते हुए, ' आदेश पत्र ' में कहा गया— " अनेक महत्त्वपूर्ण विषयों में से कोई भी विषय हमारे ध्यान को इतना आकृष्ट नहीं करता है, जितना कि शिक्षा । यह हमारे सबसे अधिक पुनीत कर्तव्यों में से एक है । " 


2. शिक्षा का उद्देश्य –

' आदेश - पत्र ' ने भारतीयों की शिक्षा के अग्रांकित चार उद्देश्य घोषित किये –

( 1 ) भारतीयों में शिक्षा का प्रसार करके, उनकी मानसिक और चारित्रिक उन्नति करना,

( 2 ) भारतीयों को पाश्चात्य ज्ञान से अवगत कराके, उनकी भौतिक समृद्धि करना,

( 3 ) भारतीयों को राजपदों के लिए सुयोग्य व्यक्ति बनाना और

( 4 ) भारतीयों को अपने देश को समृद्धशाली बनाने में सहायता देना । 


3. पाठ्यक्रम-

आदेश - पत्र ' ने अरबी फारसी और संस्कृत को उपयोगी बताते हुए उनको पाठ्यक्रम में स्थान दिया किन्तु भारतीयों के लिए यूरोप के समुन्नत कला - कौशल , विज्ञान , दर्शन और साहित्य को अधिक उपयोगी बताकर , पाठ्यक्रम में विशेष स्थान प्रदान किया गया । इन विषयों को यूरोपीय ज्ञान की संज्ञा देते हुए , ' आदेश - पत्र ' में घोषित किया गया— " हम बलपूर्वक घोषित करते हैं कि हम भारत में जिस शिक्षा का प्रसार देखना चाहते हैं , वह है - यूरोपीय ज्ञान । ” 


4. शिक्षा का माध्यम

'आदेश - पत्र ' ने अंग्रेजी का समुचित ज्ञान रखने वाले व्यक्तियों के लिए अंग्रेजी को और अन्य व्यक्तियों के लिए देशी भाषाओं को शिक्षा का माध्यम निश्चित किया । इस प्रकार , अंग्रेजी और देशी भाषाओं - दोनों का शिक्षा का माध्यम निश्चित करते हुए ' आदेश - पत्र ' ने यह आशा प्रकट की— " हम यूरोपीय ज्ञान के प्रसार के लिए अंग्रेजी भाषा और भारत की देशी भाषाओं को शिक्षा के माध्यम के रूप में साथ - साथ देखने की आशा करते हैं । " 


5. शिक्षा विभागों की स्थापना –

वुड का 'आदेश - पत्र' ने सुझाव दिया कि प्रान्तीय बोर्डों और शिक्षा समितियों को भंग करके भारत के पाँचों प्रान्तों ( पंजाब , बंगाल , मद्रास , मुम्बई और उत्तरी पश्चिमी प्रदेश ) में एक - एक लोक - शिक्षा विभाग की स्थापना की जाय । इस विभाग के संचालन का सम्पूर्ण भार लोक शिक्षा - संचालक पर रखा जाय । उसे अपने कार्य में सहायता देने के लिए उपशिक्षा संचालकों , विद्यालय निरीक्षकों और सहायक विद्यालय निरीक्षकों की पर्याप्त संख्या में नियुक्त की जाय । 


6. विश्वविद्यालयों की स्थापना –

वुड का आदेश - पत्र ' में भारतीयों को उच्च शिक्षा प्रदान करने के लिए मद्रास , बम्बई और कलकत्ता में विश्वविद्यालय स्थापित करने की आज्ञा दी गयी । ' आदेश- पत्र ' में कहा गया कि इन विश्वविद्यालयों का संगठन , लन्दन विश्वविद्यालय को आदर्श मानकर किया जाय जो केवल परीक्षण संस्था थी ।


7. क्रमबद्ध संस्थाओं की स्थापना –

वुड का आदेश - पत्र में यह मत प्रकट किया गया कि भारत में क्रमबद्ध शिक्षा - संस्थाओं की योजना को क्रियान्वित किया जाय । 


8. जन- शिक्षा का विस्तार

वुड का आदेश पत्र ' में यह निस्संकोच रूप से स्वीकार किया गया कि कम्पनी ने ' निस्यन्दन सिद्धान्त ' का अनुसरण करके , जनसाधारण की शिक्षा की पूर्ण उपेक्षा की है । अतः ' आदेश - पत्र ' ने यह सिफारिश की कि सरकार प्राथमिक शिक्षा पर अधिक धन व्यय कर , प्रत्येक जिले में स्कूलों की स्थापना करे , देशी विद्यालयों का सुधार करे और मेधावी , पर निर्धन छात्रों के लिए छात्रवृत्तियों की व्यवस्था करे ताकि उनको निम्नतम् स्तर से उच्चतम स्तर तक शिक्षा प्राप्त करने में सुविधा मिले । सम्पूर्ण 


9. सहायता अनुदान प्रणाली –

' आदेश - पत्र ' ने भारत में जन - शिक्षा कार्य को सफल बनाने के उद्देश्य से शिक्षा संस्थाओं को आर्थिक सहायता देने के लिए सहायता अनुदान प्रणाली को प्रचलित करने का सुझाव दिया । उसने यह भी सुझाव दिया कि भवन निर्माण , छात्रवृत्तियों , पुस्तकालयों प्रयोगशालाओं , अध्यापकों के वेतन आदि के लिए भी अलग-अलग अनुदान दिये जायें । " सहायता अनुदान प्रणाली ' की रूपरेखा का संकेत देते हुए , ' आदेश पत्र ' में यह वाक्य अंकित किया गया " हमने भारत में उसी सहायता अनुदान - प्रणाली को अपनाने का निश्चय किया है , जो इस देश में अत्यधिक सफलता से सम्पादित की गयी है । "


10. अध्यापकों का प्रशिक्षण –

आदेश पत्र ' ने इस बात पर बल दिया कि अध्यापकों " के प्रशिक्षण के लिए विभिन्न प्रकार की प्रशिक्षण संस्थाओं का शिलान्यास किया जाय । ' आदेश - पत्र ' ने यह इच्छा व्यक्त की कि छात्रों को प्रशिक्षण काल में छात्रवृत्तियाँ एवं शिक्षकों को उत्तम वेतन देकर , शिक्षा के व्यवसाय को आकर्षक बनाने की चेष्टा की जाय । 


11. व्यावसायिक शिक्षा –

आदेश - पत्र ' में व्यावसायिक शिक्षा की चर्चा करते हुए कहा गया कि भारत में ऐसे स्कूलों और कॉलेजों की सृष्टि की जाय , जिनमें छात्रों को विभिन्न व्यवसायों की शिक्षा ग्रहण करने की सुविधा मिल सके । 


12. स्त्री शिक्षा –

आदेश - पत्र में यह सिफारिश की गयी कि स्त्री शिक्षा को उदारतापूर्वक सहायता अनुदान देकर प्रोत्साहित किया जाय । ' आदेश - पत्र ' में उन व्यक्तियों की सराहना की गयी , जिन्होंने स्त्री शिक्षा को प्रोत्साहित करने के लिए धन दिया था । 


13. मुसलमानों की शिक्षा –

'आदेश - पत्र ' में यह स्वीकार किया गया कि मुसलमानों की शिक्षा पिछड़ी हुई दशा में थी । अतः उसने दृढ़तापूर्वक कहा कि कम्पनी के अधिकारियों को मुसलमान की शिक्षा का विस्तार करने के लिए विशेष प्रयत्न करने चाहिए । 


14. शिक्षा व रोजगार –

'आदेश - पत्र ' ने इस बात पर बल दिया कि अंग्रेजी शिक्षा प्राप्त व्यक्तियों को सरकारी नौकरियाँ दी जायें । इस सम्बन्ध में कम्पनी के संचालकों की इच्छा को ' आदेश पत्र ' में अग्रांकित शब्दों में व्यक्त किया गया— " जो बात हम चाहते हैं , वह यह है कि यदि सरकारी नौकरियों के लिए उम्मीदवारों की अन्य योग्यताएँ समान हों , तो उस व्यक्ति की तुलना में जिसने अंग्रेजी की अच्छी शिक्षा प्राप्त नहीं की है , उस व्यक्ति को वरीयता दी । जाय जिसने अच्छी शिक्षा प्राप्त की है । " 


आदेश-पत्र का मूल्यांकन

‘ वुड के आदेश - पत्र ’ का निष्पक्ष मूल्यांकन करने के लिए उसके गुणों और दोषों का अवलोकन करना वांछनीय है । अतः हम संक्षेप में उनका उल्लेख कर रहे हैं , यथा


( अ ) वुड का घोषणा-पत्र के गुण


आदेश - पत्र के प्रमुख गुण अधोलिखित हैं -

1. ' आदेश - पत्र ' ने भारतीय शिक्षा के उद्देश्य का स्पष्टीकरण किया , शिक्षा की नीति का निर्धारण किया और शिक्षा को निश्चित दिशा प्रदान की ।

2. ' आदेश पत्र ' ने प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर तक की शिक्षा के प्रति ध्यान देकर , क्रमबद्ध शिक्षा संस्थाओं की स्थापना का सुझाव दिया ।

3. ‘ आदेश - पत्र ’ ने ‘ निस्यन्दन सिद्धान्त ' को सर्वथा अनुपयुक्त बताकर , जन शिक्षा को प्रोत्साहन देने वाले सिद्धान्त को मान्यता प्रदान की ।

4. ' आदेश - पत्र ' ने भारतीय भाषाओं के महत्त्व को स्वीकार करके उनको माध्यमिक विद्यालयों में शिक्षा के माध्यम के पद पर प्रतिष्ठित किया ।

5. ' आदेश - पत्र ' ने भारतीय साहित्य की उपयोगिता को स्वीकार करके , उसको पाठ्यक्रम में उचित स्थान प्रदान किया ।


( ब ) वुड का घोषणा-पत्र के दोष


ऊपर वर्णित गुणों से हमें इस भ्रम में नहीं पड़ना चाहिए कि 'आदेश-पत्र' दोषमुक्त था । वस्तुतः उसमें अनेक स्पष्ट दोष थे , यथा -

1. आदेश - पत्र ने शिक्षा पर राज्य का पूर्ण आधिपत्य स्थापित कर दिया । फलस्वरूप चिरकाल से चले आने वाले स्वतन्त्र शिक्षण कार्य का अन्त हो गया । 

2. आदेश - पत्र ने अंग्रेजी का शिक्षित व्यक्तियों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दिये जाने का आदेश अंकित किया । फलतः प्रच्य - शिक्षा , साहित्य और विद्यालयों का अस्तित्व संकट में पड़ गया । 

3. आदेश - पत्र ने अंग्रेजी की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य सरकारी नौकरियाँ प्राप्त करना निर्धारित किया । इस उद्देश्य को निर्धारित करके, ' आदेश - पत्र ' ने शिक्षा के व्यापक उद्देश्य को नष्ट कर दिया । 

4. आदेश-पत्र ' ने भारतीय शिक्षा को पूर्णतया विदेशी रंग में रंग दिया और भारतीयों को उसे ग्रहण करने के लिए राजपदों का प्रलोभन दिया। इसका परिणाम यह हुआ कि भारतीयों का अपने देश की शिक्षा प्रणाली से सम्बन्ध विच्छेद हो गया । 

5. आदेश-पत्र ने अंग्रेजी को उच्च एवं माध्यमिक शिक्षा का माध्यम बना दिया । अतः शिक्षा संस्थाओं में प्राच्य भाषाओं का गौण स्थान हो गया ।


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