सैडलर आयोग 1917 की क्या आवश्यकता थी? उसके गुण-दोषों को बताइए

सैडलर कमीशन की क्या आवश्यकता थी? उसके गुण-दोषों को बताइए

कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग की प्रमुख सिफारिशों का उल्लेख करते हुए शिक्षा के क्षेत्र में उसके प्रभाव का परिचय दीजिए।


कलकत्ता विश्वविद्यालय से सम्बन्धित सुझाव

आयोग मूल रूप में कलकत्ता विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में जाँच करके अपनी रिपोर्ट करने के लिए ही गठित हुआ था । यह आयोग प्रमुख समस्याओं का गहन अध्ययन करके इस विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि -

1. विश्वविद्यालय का आकार दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है।

2. विश्वविद्यालय से सम्बद्ध कालेजों की संख्या बढ़ती जा रही है।

3. इस विश्वविद्यालय से सम्बद्ध विद्यालयों की छात्र संख्या का विस्तार बहुत अधिक तेजी से हो रहा है ।

सैडलर आयोग 1917 की क्या आवश्यकता थी? उसके गुण-दोषों को बताइए
सैडलर आयोग 1917 की क्या आवश्यकता थी?


इसी आधार पर कमीशन ने इस बात का अनुभव विया कि विश्वविद्यालय के समक्ष अनेक कठिनाइयाँ हैं जिनका निवारण अनिवार्य है। अतः कलकत्ता विश्वविद्यालय के सम्बन्ध में निम्न प्रस्ताव रखे गये -


( क ) शीघ्र ही ढाका में एक आवास - शिक्षण विश्वविद्यालय की स्थापना की जाय । 

( ख ) कलकत्ता नगर के समस्त शिक्षण संस्थाओं को इस प्रकार से संगठित किया जाय कि शिक्षा प्रदान करने वाले एक विश्वविद्यालय का स्वरूप धारण कर ले । 

( ग ) कलकत्ता नगर के आस - पास के विद्यालयों को इस प्रकार संगठित किया जाय कि थोड़े से स्थानों में विश्वविद्यालय केन्द्रों के क्रमिक विकास को प्रोत्साहित करना सम्भव हो सके । विश्वविद्यालयीय सामान्य सुझाव 


1. सरकारी नियन्त्रण-

विश्वविद्यालयों को अधिकतर सरकारी नियन्त्रण से बचाया जाय क्योंकि अधिक सरकारी नियन्त्रण के कारण ये विश्वविद्यालय शिक्षा सम्बन्धी कार्य स्वेच्छा से नहीं कर पाते । 


2. प्राध्यापक -

विश्वविद्यालय के अध्यापकों को अधिकार प्रदान किये जायें तथा उनके स्थलों को महत्त्वपूर्ण समझा जाय । 


3. प्रतिनिधि कोर्ट-

यह सिफारिश की गई कि सीनेट के स्थान पर एक 'प्रतिनिधि कोर्ट की स्थापना कर दी जाय। 


4. कार्यकारिणी समिति-

यह भी सुझाव रखा जाय कि आन्तरिक व्यवस्था एवं प्रशासन को ठीक रहने के लिए ' सिंडीकेट ' के स्थान पर छोटी - सी ' कार्य समिति ' की स्थापना की जाय । 


5. आनर्स कोर्स -

मेधावी और अच्छे विद्यार्थियों के लिए विश्वविद्यालयों में आनर्स कोर्स की व्यवस्था की जाय । 


6. नियुक्ति समिति-

विश्वविद्यालयों में प्रोफेसरों एवं रीडरों की नियुक्ति के लिए एक विशेष समिति बनाई जाय जिससे योग्य तथा अनुभवी व्यक्तियों के साथ विशेषज्ञों को रखा जाय । 


7. 3 वर्ष का डिग्री कोर्स -

कमीशन ने यह सुझाव दिया कि विश्वविद्यालयों का डिग्री कोर्स ( बी० ए० ) 3 वर्ष कर दिया जाय। 


8. एकेडमिक कौंसिल -

एकेडमिक कौंसिल को सक्रिय किया जाय । पाठ्यक्रम उपाधि वितरण आदि का कार्य भी पूर्ण रूप से एकेडमिक कौंसिल के हाथों में सौंप दिया जाय , ऐसा करने से विश्वविद्यालयीय स्तर को ऊँचा करने में मदद मिलेगी ।


9. विभिन्न विभाग -

कमीशन ने यह भी सुझाव दिया कि प्रत्येक विश्वविद्यालय में भिन्न विभागों की अलग - अलग व्यवस्था की जाय जिससे शिक्षा को समुचित रूप दिया जा सके ।


10 . उपकुलपति -

विश्वविद्यालयों में एक कुलपति की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसका पद वैतनिक रखने का प्रयास किया जाय । 


11. शिक्षाशास्त्र -

बी ० ए ० तथा इण्टरमीडिएट कक्षाओं में शिक्षाशास्त्र की शिक्षा भी प्रदान किया जाय । 


12. स्त्रियों की सुविधाएँ -

कमीशन ने यह सिफारिश की कि विश्वविद्यालय में स्थियों को हर प्रकार की सम्भव सुविधाओं की व्यवस्था की जाय । पदांनशीन छात्राओं के लिए पर्दे की व्यवस्था की जाये । 


13. व्यावसायिक शिक्षा

आयोग ने इस बात पर भी बल दिया कि विश्वविद्यालयों में कानून अध्यापन , इंजीनियरिंग तथा डॉक्टरी आदि की शिक्षा का प्रबन्ध किया जाय । 


14 . स्वास्थ्य व्यवस्था -

विश्वविद्यालयों के स्वास्थ्य के सम्बन्ध में ध्यान दिया जाय । छात्रों को इस दिशा में सुविधाएँ दी जायें । एक स्वास्थ्य शिक्षा संचालक की नियुक्ति की जाय जो छात्रों के स्वास्थ्य का निरीक्षण करे । 


15 . अन्तर विश्वविद्यालय बोर्ड -

यह भी सिफारिश की गई कि एक अन्तर विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना की जाय जो सभी विश्वविद्यालय में पारस्परिक सम्बन्ध स्थापित करता रहे । 


16. भारतीय मुसलमानों की शिक्षा -

कमीशन इस निष्कर्ष पर पहुँचा कि भारतीय मुसलमान शिक्षा के क्षेत्र में बहुत पिछड़े हुए है , अतः उन्हें शिक्षा प्रदान करने के लिए प्रोत्साहित किया जाय । 


17. औद्योगिक शिक्षा -

कमीशन ने यह मत व्यक्त किया कि भारत में औद्योगिक विकास के लिए औद्योगिक शिक्षा की अत्यन्त आवश्यकता है । अतः इस सम्बन्ध में भी सुझाव दिये गये 

( क ) विश्वविद्यालयों में पाठ्यक्रम में प्रयोग विज्ञान और विभिन्न विषयों की औद्योगिक शिक्षा को सम्मिलित कर उनके शिक्षण का समुचित प्रबन्ध किया जाय । 

( ख ) उक्त विषयों पर परीक्षा की व्यवस्था की जाय और उत्तीर्ण छात्रों को उपाधियाँ प्रदान की जायें।



कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग का मूल्यांकन


कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के गुण

यह सत्य है कि कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के सुझाव विश्वविद्यालय शिक्षा के उत्थान का मार्ग प्रदर्शित करते हैं । यद्यपि कमीशन के द्वारा सुझाव प्रमुखतया कलकत्ता विश्वविद्यालय के सुधार के लिए थे परन्तु ये इतने व्यावहारिक थे कि इनका महत्त्व सम्पूर्ण देश के लिए रहा है । 'आयोग' की सिफारिशें अत्यन्त विशद् और व्यावहारिक थीं , इसी कारण भारतीय शिक्षा के इतिहास में इनका एक विशेष स्थान है।


इनके सुझावों के कारण ही भारतीय विश्वविद्यालयों के दोषों को किसी सीमा तक दूर किया जा सका । परीक्षाओं के साथ - साथ विश्वविद्यालयों में अब अनुसन्धान को भी महत्त्व दिया जाने लगा । विश्वविद्यालयों में जीवनोपयोगी और औद्योगिक शिक्षा को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का सुझाव देकर आयोग ने दूरदर्शिता का परिचय दिया । इस प्रकार विश्वविद्यालीय शिक्षा जीवन की वास्तविकता से सम्बन्धित हो सकी । इस आयोग की सिफारिशों के परिणामस्वरूप विश्वविद्यालय अब वास्तविक ज्ञान के केन्द्र बन गये ।


सैडलर आयोग का सबसे प्रमुख कार्य था- विश्वविद्यालयों के आन्तरिक संगठन में क्रान्तिकारी सुधार करना । आन्तरिक संगठन में सुधार हो जाने से विश्वविद्यालयों का कार्य अत्यधिक सुचारुता और गतिशीलता से चलने लगा । विश्वविद्यालयों के सम्बन्धों में मधुरता और सद्भावना उत्पन्न करने के लिए अन्तर्विश्वविद्यालय बोर्ड की स्थापना करने का सुझाव पूर्ण रूप से व्यावहारिक था । पुस्तकीय ज्ञान के साथ-साथ शारीरिक स्वास्थ्य को प्रथम बार महत्त्व प्रदान किया गया था। वास्तव में उच्च शिक्षा का कोई अंग शेष नहीं रह गया था जिस पर कि आयोग ने भली प्रकार प्रकाश न डाला हो। 


कलकत्ता विश्वविद्यालय आयोग के दोष

प्रथमतः हम सैडलर 'आयोग' को पूर्ण रूप से दोषमुक्त नहीं कह सकते। अधिकांश सुझाव समय से पूर्व ही दे दिये गये थे। विदेशी विश्वविद्यालयों, ऑक्सफोर्ड और कैम्ब्रिज के आधार पर हमारे देश के विश्वविद्यालयों का संगठन करना पूर्ण रूप से अव्यावहारिक था।


लन्दन की परिस्थितियों से भारत की परिस्थितियाँ पर्याप्त रूप से भिन्न हैं । दूसरा दोष इस आयोग का यह था कि इसने माध्यमिक शिक्षा पर से शिक्षा विभाग के नियन्त्रण को समाप्त कर उसे बोर्ड के अधीन कर दिया था जो कि हर दृष्टि से समय के प्रतिकूल था। इण्टरमीडिएट कॉलेज को अलग करना भी अधिक लाभदायक सिद्ध न हो सका।


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