बुनियादी शिक्षा
बुनियादी शिक्षा की अवधारणा (CONCEPT OF BASIC EDUCATION)
वर्धा शिक्षा योजना, बेसिक शिक्षा, बुनियादी तालीम व बुनियादी शिक्षा, इन विभिन्न नामों से पहचानी जाने वाली गाँधीजी की शिक्षा व्यवस्था, वास्तव में भारतीय सभ्यता व संस्कृति के आधार अथवा बुनियाद से जुड़ी थी। गाँधीजी को राष्ट्रपिता (Father of Nation) कहा जाता है, क्योंकि उन्होंने वास्तव में भारतीय जनता की समस्याओं तथा परिस्थितियों का गहराई से अध्ययन किया था तथा इन्हीं कारणों से उन्होंने अपनी शिक्षा व्यवस्था का मूलभूत सिद्धान्त 'हस्त उत्पादक कार्य' (Manual Productive Work) रखा जिससे शिक्षकों के वेतन व अन्य मदों पर व्यय का भी समुचित प्रबन्ध हो जाए, क्योंकि तत्कालीन आर्थिक स्थिति भी अत्यन्त दयनीय थी।
उन्होंने अपनी वर्धा शिक्षा में भारतीय जनता की स्वायत्तता तथा प्रगतिशील बनाने हेतु अनेक सकारात्मक और लाभदायक सुझाव दिये। यह शिक्षा व्यवस्था मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों पर आधारित है, क्योंकि इसमें छात्रों की रुचियों, योग्यताओं व क्षमताओं को भी महत्व दिया गया है।
बुनियादी शिक्षा के उद्देश्य (AIMS OF BASIC EDUCATION)
बेसिक शिक्षा बच्चों को आधारभूत ज्ञान एवं कौशल प्रदान करती है तथा उन्हें सामान्य जीवन के लिये तैयार करती है। अतः बुनियादी शिक्षा (Basic Education) के निम्नलिखित उद्देश्य निश्चित किये गए-
1. बालकों का समुचित व सर्वांगीण विकास (Proper and all around Development of Child) -
बुनियादी शिक्षा का प्रमुख उद्देश्य बालक का शारीरिक, मानसिक, सामाजिक, शैक्षिक एवं आर्थिक विकास करना था। गाँधीजी के अनुसार मनुष्य एक मनोशारीरिक प्राणी है अतः उन्होंने सर्वप्रथम बालक के शारीरिक तथा मानसिक विकास पर बल दिया।
2. सर्वोदय समाज की स्थापना (Establishment of Sarvodaya Samaj)
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है अतः शिक्षा द्वारा मनुष्य का सामाजिक विकास होना चाहिये। गाँधीजी के अनुसार शिक्षा इस प्रकार की होनी चाहिये कि छात्र अपनी उन्नति व विकास के साथ-साथ सम्पूर्ण जाति व समाज की भी उन्नति हेतु प्रयास करें। शिक्षा द्वारा छात्रों में प्रेम, आत्मनिर्भरता, दया, सेवा की भावना, समानता आदि के गुणों का विकास हो।
3. चारित्रिक एवं नैतिक विकास (Character and Moral Development)
गाँधीजी ने शिक्षा द्वारा छात्रों के नैतिक व चारित्रिक विकास पर अत्यधिक बल दिया, क्योंकि शिक्षा द्वारा उच्च आदर्शों व मूल्यों का ज्ञान छात्रों को दिया जाता है, इसके लिये पाठ्यक्रम में महान् पुरुषों, वैज्ञानिकों, अन्वेषकों की जीवनियों व सम्बन्धित पाठों को सम्मिलित किया गया।
4. सांस्कृतिक विकास (Cultural Development)-
तत्कालीन परिस्थितियां अधिकांशतः पाश्चात्य संस्कृति व ज्ञान समर्थित ही थीं, इसलिये गाँधीजी ने भारतीय सभ्यता व संस्कृति पर बल देते हुए, छात्रों में भारतीयता की भावना के विकास को प्रोत्साहित किया तथा पाठ्यक्रम में भारतीय ज्ञान विज्ञान को सम्मिलित किया।
5. व्यावसायिक विकास (Vocational Development)-
गाँधीजी भारत की वास्तविक आर्थिक दशा से परिचित थे। अतः उन्होंने पाठ्यक्रम में व्यावसायिक शिक्षा व हस्तकौशलों को सम्मिलित किया, ताकि छात्र अधिकाधिक मात्रा में उत्पादन कार्य में लग कर अपने मदों पर व्यय कर सकें तथा इस शिक्षा द्वारा छात्र अपनी जीविका कमा सकें व शिक्षकों का वेतन भी विद्यालय के लाभ से ही प्राप्त हो सके।
6. उच्च नागरिकता का विकास (Development of High Citizenship)
गाँधीजी की शिक्षा राष्ट्रीय शिक्षा योजना पर आधारित थी। अत: उन्होंने शिक्षा द्वारा छात्रों में उच्च आदर्शों के जन्म, कर्तव्यों के पालन, अधिकारों की रक्षा व राष्ट्र के प्रति वफादारी की भावना के विकास पर बल दिया तथा छात्रों में उच्च नागरिक गुणों के जन्म पर विशेष बल दिया।
7. आर्थिक निर्भरता (Economic Dependence)
गाँधीजी की बुनियादी शिक्षा व्यवस्था, हस्त कौशलों के माध्यम से छात्रों के भविष्य को सुरक्षित व सुविधाजनक बनाने में सक्षम थी, क्योंकि इन रोजगार परक विषयों की सहायता से छात्र, आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर व सम्पन्न बन सकते थे।
8. आध्यात्मिक विकास (Spiritual Development)
गाँधीजी के अनुसार, "शिक्षा से मेरा तात्पर्य बालक के और मनुष्य के शरीर, मन और आत्मा के सर्वांगीण, सर्वोकृष्ट विकास से है।"
अत: स्पष्ट है कि गाँधीजी शिक्षा द्वारा छात्रों में आध्यात्मिकता का विकास करना चाहते थे, किन्तु वे केवल किसी एक धर्म के समर्थक नहीं थे अपितु धर्म निरपेक्षता व सर्वधर्म समभाव की नीति द्वारा उन्होंने आध्यात्मिकता पर बल दिया।
बुनियादी शिक्षा के सिद्धान्त (PRINCIPLES OF BASIC EDUCATION)
बुनियादी शिक्षा के निम्नलिखित आधारभूत सिद्धान्त थे-
1. शुल्कमुक्त अनिवार्य शिक्षा का सिद्धान्त (Free and Compulsory Education)
गाँधीजी शिक्षा को मनुष्य का जन्मसिद्ध अधिकार मानते थे, उनके अनुसार किसी भी बच्चे को शिक्षा के अधिकार से वंचित रखना उसके अधिकार का हनन करना है। अत: 7 से 14 आयु वर्ग के सभी बच्चों के लिये अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा की व्यवस्था करनी चाहिये।
2. शिक्षा को आत्मनिर्भर बनाने का सिद्धान्त (Principle of Self Dependency of Education)
गाँधीजी ने देश की दुर्बल आर्थिक स्थिति को देखते हुए, स्कूलों में हस्तशिल्प की शिक्षा को अनिवार्य करने पर बल दिया, ताकि छात्र स्वनिर्मित उत्पादों के विक्रय द्वारा प्राप्त धन से आत्मनिर्भर बन सकें।
3. सत्य, अहिंसा व सर्वोदय समाज का सिद्धान्त (Principle of Truth, Non Violence and Sarvoday Society)
गाँधीजी 'महात्मा' ही थे, वे सत्य व अहिंसा के पुजारी थे, उन्होंने सदैव व्यक्तिगत स्वार्थों के स्थान पर सामाजिक विकास तथा उन्नति पर अत्यधिक बल दिया। अतः उन्होंने समान शिक्षा के सिद्धान्त पर बल दिया।
4. जीवन उपयोगी होने का सिद्धान्त (Principles of Utility in Life)
गाँधीजी ने शिक्षा को बच्चों के वास्तविक जीवन, उनके प्राकृतिक एवं सामाजिक पर्यावरण और घरेलू एवं क्षेत्रीय उद्योग धन्धों पर आधारित कर उसे उनके वास्तविक जीवन से जोड़ने पर बल दिया।
5. मातृभाषा के माध्यम का सिद्धान्त (Principle of Mother-tongue as a Medium of Instruction)
गाँधीजी के अनुसार बच्चों का स्वाभाविक विकास मातृभाषा के माध्यम से ही हो सकता है, क्योंकि बच्चा बचपन से ही मातृभाषा का प्रयोग, आम बोलचाल की भाषा के रूप में करता है। अत: मातृभाषा के माध्यम से पढ़ाया जाने वाला पाठ्यक्रम अधिक स्थायी रहता है।
6. बालकेन्द्रित शिक्षा का सिद्धान्त (Principle of Child-centred Education)
गाँधीजी ने शिक्षा को बाल केन्द्रित करने पर बल दिया जिससे बालक मनोवैज्ञानिक रूप में शिक्षण प्रक्रिया के प्रति आकर्षित होता है।
7. सर्वांगीण विकास का सिद्धान्त (Principle of All-round Development)
बुनियादी शिक्षा के द्वारा बालक के सभी प्रकार के विकास पर बल दिया गया, ताकि शिक्षा के सभी समग्र उद्देश्यों को प्राप्त किया जा सके।
8. पाठ्य पुस्तकों के कम प्रयोग का सिद्धान्त (Principle of Less use of Text Books)
बुनियादी शिक्षा में अत्यधिक पुस्तकीय ज्ञान की अनिवार्यता के स्थान पर, प्रयोगात्मक व व्यावहारिक ज्ञान पर बल दिया गया, ताकि छात्रों की इन्द्रियों का विकास हो सके व रटने की आदत की समाप्ति हो।
9. एकीकृत शिक्षा का सिद्धान्त (Principle of Integrated Education)
गाँधीजी ने ज्ञान को सम्पूर्ण इकाई के रूप में विकसित करने पर बल दिया अर्थात् पाठ्यचर्या के समस्त विषय व क्रियाएं समग्र रूप से बालक के वास्तविक जीवन से सम्बद्ध हो।
10. क्रियात्मक शिक्षा का सिद्धान्त (Principle of Creativity Based Education)
बुनियादी शिक्षा मुख्य रूप से हस्तकौशलों पर आधारित थी। अत: इसमें बालक की क्रियात्मकता पर अत्यधिक बल दिया गया।
बुनियादी शिक्षा की शिक्षण विधियाँ (TEACHING METHODS OF BASIC EDUCATION)
वर्धा शिक्षा योजना में पाठ्य पुस्तक विधि के स्थान पर, परियोजना विधि वा प्रोजेक्ट मैथड को अपनाया गया था।
1. क्रिया द्वारा सीखना (Learning by Doing)-
इस विधि में मिट्टी के खिलौने, लकड़ी की वस्तुओं का निर्माण व कृषि कार्य इत्यादि क्रियाओं द्वारा छात्रों का शारीरिक व मानसिक विकास किया जाता है।
2. अनुभव द्वारा सीखना (Learning by Experience)-
इसमें पुस्तकीय ज्ञान के स्थान पर प्रकृति द्वारा सीखने पर बल दिया गया। इस विधि में बालक अन्य छात्रों के साथ मिलजुल कर क्रिया करके, जुनभव द्वारा सीखता है।
3. सहसम्बन्ध द्वारा सीखना (Learning by Correlation)-
बुनियादी शिक्षा से सम्बन्धित समस्त पाठ्यक्रम चूंकि क्रिया से सम्बन्धित था, इसलिये एक कार्य में सीखा गया ज्ञान अन्य कार्य में सहायक होता है। इस प्रकार छात्र सभी शिल्प कलाओं के परस्पर प्रयोग द्वारा अधिगम करते हैं।
4. आत्माभिव्यक्ति द्वारा सीखना (Learning by Self-expression)-
इस विधि द्वारा छात्रों को स्वतन्त्र रूप से आत्माभिव्यक्ति के अवसर प्राप्त होते हैं, जिससे छात्रों में आत्मविश्वास बढ़ता है जैसे-नाटक में भाग लेना इत्यादि ।
बुनियादी शिक्षा में शिक्षक (TEACHER IN BASIC EDUCATION)
बुनियादी शिक्षा में शिक्षक प्रशिक्षण पर विशेष बल दिया गया, इसमें दो प्रकार के प्रशिक्षण को व्यवस्था की गई-एक तीन वर्षीय प्रशिक्षण तथा दूसरा एक वर्षीय प्रशिक्षण। 3 वर्षीय प्रशिक्षण बिल्कुल नए शिक्षकों के लिये था, जिन्हें प्राथमिक कक्षाओं में शिक्षण का कोई अनुभव नहीं था जबकि । वर्षीय प्रशिक्षण, अनुभवी प्रशिक्षकों के लिये था। शिक्षकों की न्यूनतम शैक्षिक अहर्ता मैट्रिक उत्तीर्ण होनी चाहिये।
बुनियादी शिक्षा योजना की प्रमुख विशेषताएँ (MAIN FEATURES OF BASIC EDUCATION PLAN)
बुनियादी शिक्षा की निम्नलिखित विशेषताएँ थीं-
1.7 से 14 आयु वर्ग के छात्रों (बालक बालिकाओं) को अनिवार्य व निःशुल्क शिक्षा
2. पूर्ण रूप से राष्ट्रीय शिक्षा नीति
3. मातृभाषा के माध्यम द्वारा शिक्षा
4. बुनियादी शिल्प कौशलों (Basic Crafts) पर आधारित
5. एकीकृत सात वर्षीय शिक्षा योजना
6. छात्रों में आत्मनिर्भरता की उत्पत्ति में सहायक
7. आर्थिक सम्पन्नता प्रदान करने में सहायक
8. छात्रों के नैतिक व चारित्रिक विकास में सहायक
9. छात्रों में उच्च आदशों व मानवीय मूल्यों के जन्म व विकास में सहायक
10. व्यावसायिक शिक्षा के साथ-साथ, सैद्धान्तिक विषयों व विज्ञान की शिक्षा प्रदान करने में सहायक।
बुनियादी शिक्षा का मूल्यांकन (EVALUATION OF BASIC EDUCATION)
महात्मा गाँधी ने अपनी बुनियादी शिक्षा योजना में, भारतीय जनता की समस्त समस्याओं व आर्थिक विपन्नता के निवारण हेतु विभिन्न सुझाव प्रस्तुत किये, यद्यपि यह योजना कुछ तत्कालीन कारणों से लागू नहीं की जा सकी थी, किन्तु फिर भी यह योजना भारतीय जन मानस के लिये अत्यन्त लाभप्रद व हितकारी योजना थी। अतः निष्पक्ष रूप से इस शिक्षा के निम्नलिखित गुण व दोष है-
बुनियादी शिक्षा के गुण (Merits)
1. मनुष्य के सर्वांगीण विकास पर बल,
2. आत्मनिर्भर योजना,
3. 7-14 वर्ष के बच्चों के लिये निःशुल्क व अनिवार्य शिक्षा,
4. वर्ग भेद की समाप्ति,
5. क्रिया प्रधान शिक्षण विधि,
6. धर्म सहिष्णुता के सिद्धान्त पर आधारित,
7. शिक्षा का माध्यम मातृभाषा,
8. व्यावहारिक जीवन शैली हेतु छात्रों को तैयार करना,
9. राष्ट्रीय शिक्षा योजना,
10. सर्वधर्म सम्भाव पर आधारित धार्मिक शिक्षा प्रदान करना,
11. बालकों को श्रेष्ठ नागरिक बनाने में सहायक,
12. स्थानीय आवश्यकताओं की पूर्ति स्व अर्जन द्वारा करना।
बुनियादी शिक्षा के दोष (Demerits)
1. अपूर्ण योजना क्योंकि इस योजना में केवल ग्रामीण आवश्यकताओं को ही ध्यान में रखा गया, नगरीय आवश्यकताओं को उपेक्षित कर दिया गया।
2. केवल प्राथमिक शिक्षा पर ध्यान केन्द्रित किया गया, माध्यमिक व उच्च शिक्षा के सम्बन्ऱ्या पर कोई सुझाव नहीं दिया गया।
3. यह शिक्षा व्यवस्था नगरीय क्षेत्रों के लिये अनुपयुक्त थी, क्योंकि सभी संस्तुतियां ग्रामीण क्षेत्रों के आधार पर ही की गई थीं।
4. परम्परागत विषयों की उपेक्षा की गई।
5. प्राथमिक स्तर पर अत्यन्त छोटे बच्चों को हस्तकौशल की शिक्षा प्रदान करने का सुझाव व्यर्थ था, यह पूर्ण रूप से समय व शक्ति का अपव्यय तथा कच्चे माल की बरबादी था।
6. अस्वाभाविक शिक्षण विधियों का प्रयोग किया गया था।
7. इस योजना में आधुनिक विज्ञान, तकनीकी व उद्योगों की शिक्षा व्यवस्था पर कोई ध्यान नहीं दिया गया।
8. यह योजना व्यावहारिक रूप से काल्पनिक ही थी।
9. इस योजना में छात्र-छात्राओं को स्वाध्याय का बहुत कम अवसर प्राप्त होता है।
10. इस योजना में शारीरिक शिक्षा की उपेक्षा की गई है।
उपर्युक्त गुण व दोषों के बावजूद भी वास्तव में गाँधीजी का शिक्षा की ओर यह नवीनतम प्रवास वास्तव में सराहने योग्य है।
आधुनिक तकनीकी युग में बुनियादी शिक्षा की उपयोगिता (UTILITY OF BASIC EDUCATION IN MODERN AGE OF TECHNOLOGY)
वास्तव में बुनियादी शिक्षा व्यवस्था सैद्धान्तिक रूप में अत्यन्त उपयुक्त थी, किन्तु व्यावहारिक रूप से यह एकदम असफल योजना रही, इस योजना को उपयोगिता के प्रश्न पर आलोचनात्मक रुख का सामना करना पड़ा। किन्तु फिर भी मातृभाषा के माध्यम से शिक्षा और क्रिया द्वारा शिक्षा इत्यादि इस योजना के कुछ अत्यन्त उपयोगी तत्व हैं, जो वास्तव में हमारे देश की शिक्षा हेतु अत्यन्त लाभदायक है।
सन् 1938 में वर्धा में विद्यामन्दिर प्रशिक्षण विद्यालय स्थापित हुआ। दस प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना हुई तथा बेसिक एजूकेशन बोर्ड का भी निर्माण हुआ। पुराने स्कूलों को बेसिक स्कूलों में परिवर्तित किया गया। सन् 1938-39 में वर्धा में एक ट्रेनिंग कॉलेज खोला गया, जिसमें नॉर्मल स्कूल के शिक्षकों एवं बेसिक शिक्षा के निरीक्षकों की दीक्षा की व्यवस्था की गई। देश में 14 प्रशिक्षण केन्द्र खुल गए तथा प्रारम्भिक पाठशालाओं की संख्या भी बढ़ गई। सन् 1942-45 में पुनः बेसिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति हुई, सन् 1945 में सेवाग्राम में एक राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ, जिसमें विशेषज्ञों की एक समिति बनाई गई।
समिति ने पाठ्यक्रम में सुधार का सुझाव दिया तथा जनवरी सन् 1947 में दिल्ली में अखिल भारतीय शिक्षा सम्मेलन हुआ, जिसमें मौलाना अबुल कलाम आजाद ने अनिवार्य शिक्षा की गति तीव्र करने पर बल दिया। देश की स्वतन्त्रता के उपरान्त भी बेसिक शिक्षा, राष्ट्रीय शिक्षा में विद्यमान रही, यद्यपि इसमें व्यापक रूप से परिवर्तन किया गया किन्तु सन् 1966 में कोठारी आयोग ने बेसिक शिक्षा को समाप्त करने की संस्तुति की, कोठारी आयोग में बेसिक शिक्षा के कार्यानुभव (Work Experience) को अपने प्रतिवेदन में स्थान दिया, किन्तु बुनियादी तालीम या बेसिक शिक्षा को पूर्ण रूप से लागू नहीं किया गया।
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